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भाग 1

Bhaag 1


।। ऊँ सनातन प्राकृत प्रकृति की जय ।।

।। श्री गणेशाय नम: जय राम जी की ।।

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विषयवस्तु-

गोवंशसंवर्धनं         कृषिसंवर्धनम्         राष्ट्रसंवर्धनम्

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आदरणीय श्रीमान् जी,  ___________सक्षम तंत्र ___________।

(सक्षम तंत्र का नाम - वादी - प्रतिवादी - विधिक आधार शब्दो का प्रयोग नहीं -------- क्योंकि स्थिति अनुसार वर्तमान में प्रस्तुत विषय नागरिकों की जानकारी हेतु और राष्ट्र के परम आदरणीय "प्रधानकार्यकारी" जी के विचाराधीन रहना ---|) इसी कारण प्रस्तुत विषय में वादी - प्रतिवादी - विधिक आधार शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है ----- शायद इसकी आवश्यकता भी न हो क्योंकि वर्तमान के प्रधानकार्यकारी जी -------- | 

भूमिका:

          

           (1) प्रथम भाग - सम्पूर्ण राष्ट्र में ''गोवंश की हत्या व विषाक्त कृषि" द्वित्य भाग में "नए यांत्रिक कत्लखाने खोलने और जो स्थापित है उनके विधि विरुद्ध कृत्यों को'' पूर्णतः प्रतिबन्ध करने के साथ ही संविधान द्वारा निर्देशित अन्य मूक प्राणियों की हत्या प्रतिबन्ध करने के बाबत्।

           (2) भारतीय संविधान के अनुच्छेद अनुच्छेद 13 - अनुच्छेद 14 - अनुच्छेद 19(1)(छ) - अनुच्छेद 21 - अनुच्छेद 25 - अनुच्छेद 47 - अनुच्छेद 48 - अनुच्छेद 48(क) - अनुच्छेद 51(क) के (ख)(च)(छ) और संविधान की उद्देशिका साथ ही अनु. 32, जो स्वंय में मूलअधिकार है, साथ ही अनु. 132 भी है। उपरोक्त विषय के पक्ष में इन सभी के आधार पर सवैंधानिक तथ्य है। साथ ही पशु-क्रूरता निवारण अधिनियम 1961 -- |

            (3) भारत सरकार और लोकतंत्र के अन्य स्तम्भ (सूचित किया गया) भी जानकारी - समझदारी रखते हुए - मूक दर्शक है।

             (4) लोकहित वाद अनु. 32 के तहत् आवेदन में तकनीकी बारीकियों की पालना आवश्यक नही - यह न्याय प्रदान करने के मार्ग में अवरोध नही बन सकती - किन्तु न्यायालय को समाधान होना जरूरी - विषयवस्तु व तथ्यों से। सार्वजनिक हित के मामलों में सरकार को आपत्ति करने के बजाय - स्वागत करना चाहिए। उपरोक्त के संबंध में अधिकतर निर्णय भारत के मुख्य न्यायामूर्ति माननीय भगवती प्रसाद के हैं |

             (5) भूमिका के इस बिंदु का पूर्णतः स्पष्टीकरण प्रथम भाग के तथ्य संख्या 9 में किया गया है | इसका सार्वजनिक प्रकाशन जून 2023 में पुनः किया गया है | 

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         (6) गुरु नानक देव से दशम गुरु गुरुदेव गोविन्द सिंह जी द्वारा माँ जगदंबा से सम्पूर्ण विश्व से गौ हत्या का पाप मिटाने और उनके सुखदायी जीवन की प्रार्थना की गयी जो हिन्दू समुदाय के लिए गुरुदेव का स्पष्ट आदेश भी है | गुरुदेव जाम्भोजी विष्णुपंथ के (बिश्नोई) प्रवर्तक ने अपने जीवन काल के 12 वर्ष- 1 युग तक मौन रहकर गौवंश की भक्ति की और ज्ञान प्राप्त किया जबकि उनके भाई द्वारकाधीश के अवतार बाबा रामदेव महाराज (रूणिचा धाम, जैसलमेर) के भी गौ भक्ति में चमत्कार हुए है | क्षत्रिय कुल में जिस प्रकार मीरा बाई की कृष्ण भक्ति अद्वितीय उदाहरण है ठीक उसी प्रकार क्षत्रिय कुल के अतिरथियों ने गौरक्षा के लिए गर्दन कटने के बाद भी अकल्पनीय युद्ध करके गौरक्षा की जो वर्तमान में जुझारू नाम से देवरूप में मान्यता प्राप्त है | जाट कुल की कर्मा बाई की कृष्ण भक्ति धर्म क्षेत्र में अनुपम उदाहरण है ठीक उसी प्रकार जाट कुल के वीर तेजाजी का गौरक्षा के लिए विश्व के लिए अनुपम उदाहरण है क्योंकि इनके शरीर में भी सुई की नोंक के बराबर भी कोई स्थान सुरक्षित नहीं रहा जहाँ से रक्त धारा प्रवाहित न हो रही हो साथ ही वीर तेजाजी भी देव रूप में मान्यता प्राप्त है | गुरुदेव परम आदरणीय श्री खेतेश्वर (खेताराम जी) जी महाराज (विश्व के द्वितीय ब्रह्मा जी मंदिर के संस्थापक, बाड़मेर) के यहाँ गौसेवा के लिए हज़ारों शिष्य होने के बावजूद वो गौसेवा स्वयं अपने हाथों  से करना, यह भी गौभक्ति का अनुपम उदाहरण है | विश्व के सबसे बड़े गौधाम पथमेड़ा महातीर्थ के परम आदरणीय गुरुदेव दत्तशरणानंद जी की गौसेवा - गौभक्ति वर्तमान समय में अनमोल है, साथ ही यहीं पथमेड़ा के ग्वालसंत गोपालानंद जी महाराज की गौभक्ति भी वर्तमान युग में एक उदाहरण है | उपरोक्त के सम्बन्ध में पूर्णतः स्पष्टीकरण भारतीय संविधान के अनु. 25 (1) के तहत प्रथम भाग में संवैधानिक तथ्यों के साथ ऋग्वेद से चंडी दीवार तक संवैधानिक रूप से - वैज्ञानिक रूप से और हिन्दू समुदाय के धर्म के अभिन्न अंग के रूप में गौ महात्म्य को स्पष्ट किया गया है| (हिन्दू समुदाय = हिन्दू समाज, सिख समाज, जैन समाज और बौद्ध समाज) इस प्रकार हिन्दू समुदाय को भूमिका के बिंदु संख्या 18 में धार्मिक दृष्टि से - संवैधानिक दृष्टि से - व्यहवहारिक दृष्टिकोण से भी पूर्णतः विस्तृत रूप में सिद्ध किया गया है |

 

         (7) आजादी के बाद में सर्वप्रथम अतिशुभ घटनाक्रम वह भी संविधान के अनुरूप हुआ ---- प्रधानमंत्री श्री मोरराजी देसाई ने विनाबा जी को वचन देने पर और संसद में घोषणा कर देने पर, कि केन्द्रीय कानून के द्वारा सारे देश में गौहत्याबंदी की जायेगी, विनोबाजी ने पांचवें दिन (26 अप्रेल 1979) उपवास छोड़ दिया। उपरोक्त कार्यवाही हेतु संसद में बिल पेश भी हुआ लेकिन उक्त लोकसभा के भंग हो जाने से (नादानपूर्ण तरीके से कांग्रेस द्वारा सरकार को गिराना) बिल विधेयक फिर लटक गया | ठीक इसी प्रकार कुछ समय पश्चात किसान परिवार - किसानी कार्यों से जुड़े हुए और खेती व किसानो के जानकार और हितैषी श्रीमान चौधरी चरण सिंह जी की सरकार को भी कांग्रेस और उनकी सहयोगी विचारधारा ने गिरा दिया, जो कृषि के क्षेत्र में बहुत कुछ कर ----- | इस प्रकार प्रस्तुत विषय के प्रथम भाग के दोनों विषयों पर कांग्रेस और उनके सहयोगियों ने कुठाराघात कर दिया | 

        (8)म्पूर्ण राष्ट्र में कुछ राज्यों को छोड़कर गौवंश की रक्षा के लिए पूर्व में अनेक कानून बनाये ----- अध्यादेश तक लाये ---- कठोर से कठोरत्तम कानून बनाये गए | केंद्रीय कानून के आभाव में परिणाम सामने है ---- गौ तस्करी के हज़ारों मामले होते है, इसमें भी 99% निकल जाते है, 1-2 ट्रक पकड़े जाते है, उनकी विभित्सा भी ऐसी है कि 70-70 बछड़े उनमे होते है | इस प्रकार ऐसा क्रूरत्तम परिवहन गौवंश की हत्या से भी क्रूर (बेहोशी की दवा भी दी जाती है) है क्योंकि कुछ बछड़े – गाय - नंदी दबकर, कुछ दम घुटकर कालग्रसित हो जाते है | संवेदनशील गौ रक्षक दल - स्थानीय पुलिस बल के साथ गौ तस्करो की मुठभेड़ व गोली-बारी होती है | गौ रक्षक दल - पुलिस दल के सदस्य शहीद भी होते है | गौ तस्कर गाड़ी व गौवंश को छोड़ कर भाग जाते है अथवा कुछ पकड़े जाते है | यह राष्ट्र के "कानून के शासन" का स्पष्ट स्वरुप है जो भारत माता के लिए कलंक है | अतः राष्ट्र के प्रधान कार्यकारी जी प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की तुलना में आपके पास राजनैतिक स्थिरता - संख्या बल - प्रस्तुत विषय के संवैधानिक विश्लेषण इत्यादि  उपरोक्त सभी पक्ष आपके साथ है | साथ ही प्रस्तुत विषय में आज दिनांक तक ऐसा संवैधानिक विश्लेषण नहीं हुआ अर्थात आपको भारतीय संविधान के अनु. 132 के तहत विधि का सारवान प्रश्न स्पष्टतः प्रस्तुत हो गया है | अतः आपको संविधान द्वारा स्थापित कर्त्तव्य व्यवहार का निर्वहन (केंद्रीय कानून) करना अनिवार्य हो जाता है | विशेष - सी. बी. आई. ने आँकलन - सर्वे के पश्च्यात अपनी रिपोर्ट में प्रतिवर्ष 15 - 20 हज़ार करोड़ की गौवंश की क्रूरतापूर्ण तस्करी होना स्वीकार किया है  अर्थात कम से कम 50,000 गौ तस्करों की गिरफ्तारी और 5,000 ट्रक गाड़ियाँ इत्यादि कुर्क होनी चाहिए --- पर अफ़सोस केंद्रीय कानून के आभाव में यह कार्य उनकी कार्यसूची में नहीं है | इसी प्रकार सीमा सुरक्षा बल पिछले वर्षों में 1 लाख 56 हज़ार गौवंश को तस्करी से बचाया -- इसमें भी कम से कम 10 हज़ार गौ तस्करों की गिरफ्तारी और 2 से 3 हज़ार ट्रक गाड़ियों इत्यादि की कुर्की होनी चाहिए ---- पर अफ़सोस इस कार्यवाही को भी सामान्य पदार्थों की तस्करी की तरह रोका गया --- क्योंकि केंद्रीय कानून के आभाव में गौवंश रक्षा व संरक्षण के लिए जाँच - गिरफ्तारी - वाहनों का कुर्क इत्यादि इनकी कार्यसूची में नहीं है ---- इसी प्रकार अन्य केंद्र की इस प्रकार की संस्थाएँ निष्क्रिय है और साथ ही राज्य पुलिस - राज्य गुप्तचर विभाग स्थानीय नेताओं के तुष्टिकरण के कारण अधिकांशतः मूक दर्शक बने रहते है | अतः आप "केंद्रीय कानून" -----------------------  | गौतस्करों का भयमुक्त होना, अपने-अपने राज्यों में आकाओं से नाकाबंदी में छूट - पुलिस प्रशासन पर दबाव - यही मुख्य कारण है -------- संप्रदाय विशेष की सघन आबादी क्षेत्र में राज्य के सुरक्षा बल प्रवेश तक नहीं कर सकते, जबकि वहाँ सार्वजानिक रूप से गौवंश की हत्याएं होती रहती है जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण राजधानी दिल्ली से 100 की. मी. से कम दूरी पर हरियाणा - राजस्थान का सीमा क्षेत्र मेवात है | ऐसे राष्ट्र में सैकड़ो स्थान है | गौतस्करों का भाग जाना - जमानत पर बाहर आना - कुछ राज्यों की कठोरता के कारण गौरक्षक सदस्यों - पुलिस अधिकारियों को अपने ट्रक गाड़ियों से रौंधना (किसी भी प्रकार से उस क्षेत्र से बाहर निकलने के लिए) - गोली मारकर हत्या करना - चलते ट्रक गाडियों से गौवंश को पुलिस व गौरक्षक दल की गाड़ियों के आगे फेंकना जिससे पुलिस व गौरक्षक दल गौवंश को बचाने में अथवा रूकावट के कारण तस्कर भागने में सफल हो जाते है | यहाँ तक कि पेट्रोल व डीजल के टेंकों में 20 - 25 गौवंश के हाथ-पैर-गर्दन बांध कर तस्करी करते है - स्थिति हम समझ सकते है जो सामूहिक गौवंश की हत्या से भी जघन्य है | अतः केंद्रीय कानून में गौतस्करों के लिए भूतलक्षी विधि व्यवस्था का प्रावधान हो  - जिसमे गौतस्कर - उनके सहयोगी - गाड़ियों वाले - ऐसे सभी सहयोगिओं को तस्करी के कारण गौवंश की स्पष्टतः सामूहिक हत्या के आधार पर अंतिम निर्णय तक (छूटने पर ऊपर की अदालत में याचिका सूचिबद्ध होते ही पुनः गिरफ्तारी) गैर जमानती वारंट के आधार पर गिरफ्तारी व सजा का प्रावधान ----- | 
उपरोक्त विषय में सम्पूर्ण संत समाज कार्यरत है जिसे प्रस्तुत विषय के तथ्यों में स्पष्ट किया गया है | किन्तु गोपालमणी जी महाराज (देहरादून वाले) और देवकीनंदन जी महाराज (वृन्दावन वाले) समय-समय पर गौभक्तों के साथ प्रदर्शन करते रहते है, साथ ही पुष्पेंद्र जी कुलश्रेष्ठ (यू. पी. वाले) सम्पूर्ण राष्ट्र में गौवंश की रक्षा हेतु अत्यंत प्रभावी व्याख्यान देते है | गोवंश को सरकारी बैठकों-कार्यशालाओं इत्यादि में आवारा-लावारिश पशु इत्यादि से संबोधन न करें अपितु गोमाता अथवा राष्ट्र माता - विश्व माता व नंदी शब्द का प्रयोग करें, यह वैदिक आदेश है । शास्त्रों के अनुसार ‘‘तिलम् न धान्यम्-पशुवः न गावः।’’ अर्थात जिस प्रकार तिल धान नहीं है ठीक उसी प्रकार "गौवंश" भी पशु श्रेणी में नहीं है | तथ्य 21 के "1" के अनुतोष के आधार पर नए केंद्रीय अधिनियम में "गौवंश एवं पशु चिकित्सालय", "गौवंश एवं पशु महाविद्यालय", "गौवंश एवं पशु विश्वविद्यालय" और राज्यों व केंद्र की अन्य इस क्षेत्र की संस्थाओं के नाम भी ------ | तथ्य संख्या 1 से तथ्य संख्या 9 तक में पूर्णतः स्पष्ट किया गया है कि उपरोक्त सभी तथ्य वैदिक शास्त्रों व विज्ञान के साथ संवैधानिक भी है | मानव सृष्टि से मूक सृष्टि तक माँ की समझ, हम समझ सकते है | इसीलिए त्रिकाल में भी सत्य सिद्ध वैदिक आदेश - गावो विश्वस्य मातरः ------- |

             (9) भारत वर्ष में गौवंश की रक्षा हेतु आज़ादी के पश्चात अनेक राज्यों में कठोर से कठोरत्तम कानून बनाये गए और अध्यादेशों और परिपत्रों द्वारा समय-समय पर कानूनों को व्यवारिकता प्रदान करने का प्रयास किया - किन्तु दिल्ली में रहने वाले कांग्रेस के मुख्य आकाओं के दिशा-निर्देशों और सर्वोच्च न्यायालय की एक शब्दावली (अयोग्य गौवंश) ने राष्ट्रीय गौ रक्षा की हरियाली में आग लगा दी | इस प्रकार उस समय से वर्तमान में आज दिनांक तक भारत सरकार द्वारा गौवंश की रक्षा हेतु कोई भी राष्ट्रीय कानून बनाया नहीं गया | जिसका परिणाम यह है कि कुछ राज्यों द्वारा बनाये गए कानून होने पर भी, क्रूरता पूर्ण गौ तस्करी व हत्या - गौवंश के लिए व गौ रक्षा दल के लिए और पुलिस बल के लिए साथ ही 100 करोड़ से अधिक भारतीय जिसमे विशेष समुदाय हिन्दू समुदाय = हिन्दू समाज - सिख समाज - जैन समाज - बौद्ध समाज) के नागरिकों के लिए एक चुभन के साथ नकारात्मक संदेश ही सिद्ध होता है | साथ ही संविधान के अनु. 25 (1) के मूल अधिकारों का हिन्दू समुदाय के लिए कोई औचित्य नहीं रहता है | 

             (10) पंजाब-हरियाणा-उत्तरप्रदेश-बिहार और नजदीक राज्यों के गौवंश 20-30 प्रतिशत पश्चिम बंगाल के कत्लखानों में और पश्चिम बंगाल की सीमा प्रारंभ होने के साथ ही गौवंश असम के दो जिलों में भी पहुंचता है जहां से बांग्लादेश के लिये तस्कारी होती है | यही स्थिति तस्करी के क्षेत्र में बंगाल सीमा क्षेत्र की है| इसी प्रकार दक्षिण के राज्यों व आस-पास के राज्यों से गौवंश इसी आधार पर नकारात्मक कार्ययोजना के कारण केरल पहुंच जाता है। अतः केंद्रीय कानून अनिवार्य हो जाता है | पश्चिम बंगाल में संप्रदाय विशेष अपने बाड़ो में (अधिक आबादी क्षेत्र) सार्वजानिक रूप से गौवंश की हत्या करते है, आस-पास के भवनों की ऊपरी मंजिलों के समुदाय विशेष के नागरिकों - को इस प्रकार के द्रश्यों से अत्यंत मानसिक आघात - रक्तचाप - हृदय घात - अवसाद होते है किन्तु मूक रहना - उपचार करवाना ही उनके अधिकार क्षेत्र में रहता है न कि गौ रक्षा |

             (11) गौवंश के सरंक्षण के लिए बने मौजूदा (राज्यों के) कानूनों को संत विनोबा जी ने विधि शून्य - विधि कहा अर्थात केंद्रीय क़ानून की विधि व्यवस्था ही अनिवार्य है | केरल जैसे राज्य में तो पूर्णत: सार्वजानिक रूप से (संप्रदाय विशेष के आबादी क्षेत्र में) गौवंश की हत्या हो जाती है | अधिकतर स्थानों पर चार-दिवारी के बाड़ों का भी उपयोग नहीं होता है | ---- विरोध करने पर मुख्य मार्गो पर गौवंश की हत्या कर दी जाती है | ऐसी स्थिति में 100 करोड़ से अधिक नागरिको की धार्मिक भावनाओ पर आघात का ---- प्रधानकार्यकारी जी आप क्या --- |

             (12) भारतीय संविधान के अनु. 25(1) के आधार पर ही केंद्रीय क़ानून होना चाहिए, जिससे भविष्य में राष्ट्र के किसी भी भाग में नकारात्मक कृत्य ना हो | केंद्रीय कानून के आभाव में सुरक्षा बलों व केंद्र के ख़ुफ़िया विभाग की कार्यसूचि में गौरक्षा का (हत्या प्रतिबन्ध व कठोर विधि व्यवस्था) विषय नहीं रहता - परिणाम स्वरुप सम्पूर्ण राष्ट्र में इनके द्वारा गौ तस्करी सामान्य पदार्थों की तस्करी समझकर स्थानीय राज्य प्रशासन को सुचना प्रेषित करने के अतिरिक्त स्वयं भी कुछ नहीं कर सकते | इस प्रकार गौ रक्षा कानून वाले राज्यों में भी ऐसे हज़ारों क्षेत्र है | इन राज्यों में संप्रदाय विशेष के आबादी क्षेत्रो में स्थानीय पुलिस कार्यवाही नहीं करती (हिंसा के भय से) साथ ही राज्य व स्थानीय स्तर पर तुष्टिकरण प्रभावी रहता है जिसका प्रत्यक्ष परिणाम राजस्थान-हरियाणा के अरावली व मेवात क्षेत्र है, साथ ही बिहार-झारखण्ड जैसे अनेक राज्य है जहाँ गौ तस्करी व गौ हत्याएं होती रहती है | इस प्रकार ऐसे हज़ारों क्षेत्रो में केंद्र की कार्यवाही शून्य के बराबर है | --- अतः केंद्रीय कानून ------- | क्योंकि राज्य सरकारों द्वारा तुष्टिकरण व मूक दर्शन का प्रमाण पत्र सार्वजानिक रूप से मिलता है | 

             (13) इस प्रकार सीमा पर तस्करी का कारण भी केंद्रीय कानून का आभाव ही है | क्योंकि सीमा सुरक्षा बल की कार्यसूची में गौवंश की हत्या पर प्रतिबन्ध नहीं होने से सामान्य तस्करी, समझ कर -   सामान्य रोकथाम ही करते है | सीमा के पास हज़ारों की संख्या में गौवंश का जाना - एकत्रित होना स्थानीय विधि व्यवस्था तो समझती है और  नासमझ होकर वह मूक भी है |  किन्तु ----- आभाव ------- केंद्रीय ------ राष्ट्र के प्रधानकार्यकारी जी आपकी समझ से बाहर कुछ भी नहीं है फिर भी --------------------------------------------- |

             (14) राष्ट्र के प्रधानकार्यकारी जी अब यह स्पष्ट है कि वर्तमान स्थिति में सामान्य विधि का केंद्रीय क़ानून नहीं बनेगा ------ सर्वोच्च विधि भारतीय संविधान के अनुछेद 25 (1) के तहत ही बनेगा | यह निर्णय अब आपको करना करना है ---- स्थायी हिमालय चाहिए या ताश का महल -------------------------------------------------------- |

             (15) भारतीय संविधान के मूल अधिकार - मूल कर्तव्य- नीति निर्देशक  तत्व - आधारभूत ढ़ांचे और इस सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायलय के निर्णयों के संवैधानिक विश्लेषण, के परिणाम स्वरुप उपरोक्त विषय उत्पन्न हुआ। अतः मेरे स्वयं द्वारा (मैं), न तो संविधान संशोधन कर सकता और न ही सभी रूलिंग निरस्त कर सकता - किन्तु सक्षम तंत्र न्यायलय इस पर सुनवाई -निर्णय अवश्य कर सकतें है। किन्तु "राज्य" भारत सरकार - माननीय प्रधानकार्यकारी के लिए प्रथम छह माह की अवधि सुरक्षित है | संवैधानिक दायित्वों को प्राथमिक स्तर पर - सर्वोच्च न्यायालय नहीं, सर्वोच्च सत्ता (संसद) निर्वहन करती है | संविधान द्वारा स्थापित कर्त्तव्य व्यवहार का पालन ही सर्वोच्च सत्ता का मुख्य कार्य होता है | 

              (16) उपरोक्त विषय के सभी निर्णयों को संसद -सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आज दिनांक तक न तो बदला गया है और न ही निरस्त किया गया है और सभी निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के यथावत है, अतः भारत सरकार कि बाध्यता के साथ - न्यायिक सक्रियता भी अपेक्षित है। भारतीय संविधान के आधारभूत ढ़ाँचे की महत्वपूर्ण शब्दावली भी उपरोक्त विषय के पक्ष में है:- ‘‘विश्वास - धर्म - उपासना’’ ‘‘समानता’’ ‘‘उन सब में व्यक्ति कि गरिमा’’ और ‘‘न्याय’’ । साथ ही उपरोक्त विषय में अनुच्छेद 132 के तहत् सुनवाई एवं स्पष्ट निर्णय औचित्यपूर्ण है, क्योंकि उपरोक्त विषय पर संविधान के उपबंधों का नया निर्वचन-विश्लेषण है | ऐसा विश्लेषण आज दिनांक तक नहीं हुआ ------- गौवंश की हत्या व नस्ल सुधार के स्थान पर मूल नस्ल को नष्ट करके संकरीकरण करना साथ ही गौशाला व गौचर भूमि का अनु. 25 (1) के तहत धर्म का अभिन्न अंग होना - जो आगे के तथ्यों में पूर्णतः - स्पष्टतः संवैधानिक तथ्यों के साथ निर्वचन - विश्लेषण के आधार पर स्वयं सिद्ध किया गया है | अतः उपरोक्त विषय ‘‘विधि का सारवान प्रश्न’’ है । प्रस्तुत विषय में शब्दावली का पुनः प्रकटीकरण होना - उसकी महत्ता को प्रकट करता है साथ ही सामान्य जन समुदाय के दिल - दिमाग में सहजता से स्पष्ट होना | "युक्तियुक्त वर्गीकरण" पुनः पुनः तथ्यों में स्थापित होना यह अति महत्वपूर्ण के साथ, भारतवर्ष के लिए ------ | (सम्पूर्ण गोबर-गौमूत्र का उपयोग करने हेतु मुख्य रूप से गौशालाओं के कर्मचारियों का अभिप्रेरण करना अनिवार्य है - जिसका अनुतोष के तथ्यों में स्पष्टीकरण किया गया है |) 

             (17) परम तपस्वी - महामुनि - ब्रम्हऋषि - परम आदरणीय विश्वामित्र जी ने गंगा स्नान प्रसंग में (राम जी - लक्ष्मण जी) आदेश किया कि "इतिहास - गुणों का ज्ञान - माहात्म्य (कथा) के बगैर भक्ति जागृत नहीं होती है" | हम जानते है, जानते-समझते हुए भी ‘‘कानून का शासन’’ आज दिनांक तक ‘‘मूक दर्शक’’ ही रहा है। अतः संत समाज कि पत्रिकाएं-अन्य धार्मिक व सामाजिक पत्रिकाएं इस विषय को प्रकाशित करें। जिससे लोगों में तथ्य संख्या 9 – 10 – 11 – 12 – 13 – 14 - 15 व तथ्य 21 के उपतथ्य 8 के साथ पढ़ने से अधिक से अधिक गोवंश के प्रति श्रद्धा व भक्ति भाव जागृत होगा और गोवंश के प्रति छोटी सी लापरवाही से होने वाले महापापों से बचाव हो सकें। साथ ही गोवंश के प्रति छोटा सा कार्य करने पर हम महापुण्य प्राप्त कर सकते है। सामान्य जन से लेकर सभी प्रकार की गौवंश की संस्थाएं सभी गौपालकों - को उपरोक्त तथ्यों के साथ तथ्य संख्या 21 के उपतथ्य संख्या 51 तक की जानकारी का भी पूर्ण ज्ञान होने से गौभक्ति के साथ रख-रखाव का ज्ञान भी होगा |  लोकव्यवस्था- लोकस्वास्थय राष्ट्र की अर्थव्यवस्था - विदेशी मुद्रा - रोजगार की अपार श्रंखला - सुनिश्चित राष्ट्र के आर्थिक आधारभूत ढ़ाँचे के आधार पर न्यायिक सक्रियता भी अनिवार्य हो जाती है।

           (18) इस बिंदु में प्रस्तुत विषय के अतिरिक्त अन्य विषयों की भी सूक्ष्म भूमिका पाठकों जानकारी के लिए - विधिक कार्यवाही हेतु प्रस्तुत है | शब्दावली की पुनः प्रस्तुति - विषय की महत्ता व उच्च संवेदना हेतु है | कुछ नादान नागरिक व व्यक्ति (विदेशी मीडिया - संस्था - संगठन और व्यक्तिगत व्यक्ति और स्थानीय प्रशासन व सक्षम तंत्र, संस्था - संगठन - व्यक्तिगत नागरिक) नादान= (अबोध बालक - मुर्ख - नासमझ - समझते हुए भी नासमझी करना - साधन-साध्य का अनुचित होना - पूर्वाग्रसित व अतिआसक्त रूप में मानसिक गुलाम - राष्ट्रवाद - राष्ट्रीय संस्कृति और सांस्कृतिक धरोहर विरोधी - स्वःधर्म की त्याग स्थिति (कुल – वंश - गोत्र व धर्म के आदेश) और परिस्थिति जन्य धर्म का त्याग (किसी भी प्रकार का पद - नियुक्ति के सम्बन्ध में निष्ठावान कर्तव्य कर्म से च्युत) | शत्रुदेश का पक्षधर व मित्र देश का विरोधी अति निम्न कृत्य | द्वेष व ईर्ष्या पूर्ण अन्यो का दुष्प्रचार (समाज व संस्कृति को विभक्त करना) करना | क्षति पहुँचाना - राष्ट्रीय सम्पत्ति व सार्वजनिक सम्पत्ति को और अन्य कारणों से राष्ट्र का अहित करना (जान-माल से)| सार्वजनिक रूप से गरिमा का हनन करना (संवैधानिक पदों एवं संस्थाओं व उच्च स्तर की संस्थाओं और व्यक्तिगत रूप से अन्यों का भी)| उपरोक्त नादानी में कुछ नादान कृत्य शूकर-कूकर योनी देने वाले होते है|) हिन्दू समुदाय को विकृत श्रेणी के नादान, समुदाय के चारों समाजों को विभाजन करने का नादानीपूर्ण प्रयास करते है | हिन्दू समुदाय = हिन्दू समाज - सिख समाज - जैन समाज - बौद्ध समाज ------ वैदिक दर्शन - सनातन धर्म - हिन्दू धर्म के आधार पर (हिन्दू समुदाय के चारों समाज) शामिल है | साथ ही संविधान के अनुच्छेद 25 (2)(ख) के अनुसार भी यह चारों समाज हिन्दू समुदाय के अभिन्न अंग है | माननीय सर्वोच्च  न्यायालय द्वारा अनु. 25 के तहत कुछ अन्य समुदायों के सम्बन्ध में कहा गया - ये संस्थाएं और समुदाय पृथक धर्म नही है वरन् हिन्दू (सनातन) धर्म का ही भाग है। रामकृष्ण मिशन, आनंद मठ इत्यादि, हिन्दू श्रेणी के अन्य समाज अर्थात जो भी सनातन से अलग विचार - पंथ-समाज है - कोई भी वैदिक दर्शन से नकारात्मक नहीं है | एक अन्य वाद में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा ‘‘हमारे धर्म को सनातन कहा गया है। वेदों में इसे  शाश्वत मूल्य कहा है अर्थात वह जो देश और काल (विश्व के सम्पूर्ण भू-भाग व प्रत्येक क्षण में भी प्रभावी) दोनों में बंधा हुआ नहीं है।’’ स्पष्ट है सनातन धर्म का न आदि है और न ही अंत अर्थात सनातन धर्म अनादि और अंनत है अर्थात वैदिक धर्म - सनातन धर्म - हिन्दू धर्म यही वास्तव में धर्म की श्रेणी में है क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत के जीव जगत पर प्रभावी है और प्रकृति का संरक्षक है, क्योंकि प्रकृति के समावेश के बगैर कोई धर्म की संज्ञा प्राप्त नहीं कर सकता, पूर्णतः स्पष्ट है कि इस भू-लोक पर धर्म शब्द सनातन के साथ ही औचित्यपूर्ण शाश्वत है अन्य सभी अपनी-अपनी विचारधाराएँ है - सनातन धर्म अनादि काल में भी रहा और अनंत काल - प्रलय काल तक प्रभावी रहना सुनिश्चित है | ये सभी नादान संविधान - राष्ट्रवाद - राष्ट्रीय संस्कृति अर्थात राष्ट्र के मौलिक अस्तित्वों के विरुद्ध अंतिम स्तर का नादानीपूर्ण कार्य करते है | स्पष्ट है कि हिन्दू समुदाय के सभी समाज वैदिक धर्म - सनातन धर्म के मूल मौलिक आधार, जैसे स्वयं को नष्ट करना (अहंकार - मैं पन को नष्ट करना) और चित्त मल को नाश करना ही मुख्य विचारधारा है | अतः सभी समाज हिन्दू धर्म के अभिन्न अंग है | साथ ही इनके सभी प्रवर्तक कुल - वंश से सनातनी रहे है - ऋषिमुनि परंपरा हो - गुरु वाणी हो - ऋषभदेव जी - भगवान बुद्ध की शिक्षा हो - सभी ने हिन्दू धर्म पर बल देकर ही पंथ-समाज की रचना की जिसमे सत्य, अहिंसा, शौच, तप इत्यादि अनादि काल के सनातन धर्म की शब्दावली पर ही बल दिया है - वैदिक दर्शन के यम - नियम भी आधारभूत रहे है साथ ही उपासना में जप - तप के साथ गुरुमहिमा को उच्च स्थान प्राप्त है | वाहेगुरु स्वरुप में सबसे अधिक "राम" नाम का ही वर्णन है | दशम गुरुदेव द्वारा माँ जगदम्बा की कठोर तपस्या की गयी | चंडी दीवार में जगदम्बा की प्रार्थना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है | साथ ही सिख समाज में ओंकार - गुरुदेव परंपरा भी हिन्दू धर्म का ही अभिन्न अंग है | और धार्मिक आधार पर सिख समाज हिन्दू पंथ (अनेक धार्मिक स्थानों पर - यहाँ तक कि शीशगंज गुरुद्वारे की मुख्य दीवार के दाहिनी तरफ जो लिखा गया है उसका  सार - "सिख समाज हिन्दू धर्म का ही पंथ है") है | और वर्तमान में गुरुद्वारे के नवीनीकरण के बाद भी अंदर की दीवार पर हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए त्याग और बलिदान का वर्णन है | साथ ही सामने की और "लासानी" सहादतों का वर्णन है |

(उपरोक्त के संबंध में अनेक स्थानों पर धातु - अष्ट धातु की प्लाटों पर हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए वाहेगुरु - उनके राजकुमारों - और उनके शिष्यों की लासानी सहादतों का वर्णन है और विशेषकर बंगला साहिब गुरूद्वारे में इस संबंध में विशाल प्रदर्शनी भी सार्वजानिक रूप से हिन्दू समुदाय की जानकारी के लिए प्रदर्शित की गयी है | इस प्रकार सनातन और हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए सिख समाज, सनातन की विशेष शाखा - पंथ के रूप में सम्पूर्ण हिन्दू समुदाय के लिए आदर योग्य है - हिन्दू समुदाय का शिरोमणि है | क्योंकि मजहब के नाम से दहशतगर्द  हत्यारों और लुटेरों की यातनाओं को उपरोक्त में से कोई भी हिन्दू धर्म का त्याग कर इनके मजहब को स्वीकार कर लेता - जैसा की अन्य स्थानों पर हुआ है, तो ऐसी स्थिति में हिंदुस्तान के बहुत बड़े भू-भाग में उन स्थानों की तरह ही धर्म परिवर्तन होना सुनिश्चित ----- | उपरोक्त वर्णित सम्पूर्ण तथ्यों की स्पष्टता के लिए सम्पूर्ण प्रकाशनों में से एक का प्रकाशन प्रस्तुत है | )

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इस प्रकार विश्व के लिए धर्म शिक्षा के लिए अद्वित्य तथा बेजोड़ उदाहरण है | किन्तु कांग्रेस - कम्युनिस्टों और उनके साथ की विचारधाराओं ने उन्हीं हत्यारों - लुटेरों को अच्छे शासक के रूप में भारतीय शिक्षा में शामिल किया और हम नादान पढ़ते रहे | इतना ही नहीं मुग़ल काल के इन हत्यारों और लुटेरों से अपने सती धर्म की रक्षा के लिए, हज़ारों की संख्या में सैकड़ो स्थानों पर समय समय पर क्षत्रिय समाज की वीरांगनाओं ने अग्नि ज्वाला में स्वयं को समर्पण कर दिया | यह भी विश्व के लिए एक अद्वित्य तथा बेजोड़ उदाहरण है क्योंकि ऐसा विश्व में अन्य कहीं भी नहीं हुआ, इसी प्रकार क्षत्रिय कुल ने अनेक भीषण युद्ध (अकबर द्वारा थोपे गए युद्ध व दीन-ए-इलाही द्वारा धर्म परिवर्तन) करके इन मजहबी हत्यारों और लुटेरों से राष्ट्र की जनता को बचाया जिसमे क्षत्रियों के वंश के वंश वीर गति को प्राप्त हुए (महान के रूप में और सर्व धर्म के रूप में अकबर शासन व्यवस्था को महान बताया गया - प्रथम अपनी मुद्रा पर अल्लाहु-अकबर छापना अर्थात अल्लाह ही ईश्वर है - वो ही महान है और इस प्रकार दीन-ए-इलाही के नाम से अति कुटिलता पूर्वक सबसे ज्यादा धर्म परिवर्तन करवाए गए दीन-ए-इलाही में अकबर द्वारा सनातन धर्म के अतिरिक्त 6-7 और धार्मिक विचारधाराओं को शामिल किया गया - किन्तु मुद्रा में उनमे से किसी एक इष्ट का भी नाम नहीं लिखा गया, जिससे स्पष्ट होता है कि ----) | द्वितीय में अपने विस्तारवादी ऐजेंडे के फलस्वरूप अन्याय पूर्वक युद्ध थोपे गए जिसके कारण सबसे ज्यादा क्षत्रिय वंश को क्षति  हुई | ठीक इसी प्रकार जहाँगीर की शासन व्यवस्था को न्याय प्रिय बताया गया जबकि उसके द्वारा हमारे वाहेगुरु की क्रूरतम हत्या करवाई गयी | इस प्रकार इन सभी दहशतगर्द शासन व्यवस्था के साथ मोहम्मद गौरी व गजनी की दहशतगर्दी से सब परिचित है - अंतर सिर्फ इतना ही है कि औरंगज़ेब - गौरी - गज़नी इत्यादि इस्लाम के नाम पर सार्वजनिक अपकृत्य करते - और इनके द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से इस्लाम के नाम पर ही कार्य किये जाते रहे ---- अर्थात इन सभी के द्वारा किसी न किसी रूप से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय संस्कृति के लगभग हर स्तम्भ का विनाश किया | दोस्ती, प्यार और क्षमा के नाम पर इनका विश्वासघात इतना निम्नश्रेणी का है - जिनके प्रत्यक्ष प्रमाण महाराज छत्रपति शिवाजी और महाराज पृथ्वीराज चौहान है | इसके साथ ही इज़राइल में अथवा विश्व में कहीं भी यहूदी समाज में बच्चों का नाम हिटलर या उसके प्रतीकों से सम्बंधित किसी भी कार्य - वस्तु - प्रदार्थ व नामांकरण पूर्णतः व सम्पूर्ण रूप से शासन दृष्टि से अथवा सामाजिक दृष्टि से नकारात्मक रूप से शुन्य है | किन्तु हमारे राष्ट्र में बाबर रोड भी है, उस सेनापति का स्थान भी है जिसने अयोध्या को तहस-नहस किया, औरंगाबाद भी है और वहां पर औरंगज़ेब की मज़ार भी है संप्रदाय विशेष के लोग वहां जाते है और माथा भी टेकते है, जो इस्लाम में नाज़ायज़ भी है - जिसने हिन्दू धर्म और वाहेगुरुओ पर इस्लाम के नाम पर लूट-पाट व क्रूरतम हत्याएँ की, इसके अतिरिक्त राष्ट्र में और ऐसे अनेक स्थान है | इस प्रकार सिख समाज, जैन - बौद्ध की तरह धर्म शब्द का उपयोग नहीं करता अर्थात पूर्णतः हिन्दू समाज का ही अभिन्न अंग है | इसी प्रकार जैन समाज में भी जगदंबा के अन्य रूप की उपासना - माँ सरस्वती हो या माँ महालक्ष्मी हो - साथ ही भैरव उपासना का भी महत्वपूर्ण स्थान है | जप-तप तथा गुरुमहिमा के साथ सनातन के आधारभूत प्रतीक, पूजा - अर्चना - हवन - ओंकार - स्वास्तिक, का प्रयोग और भगवान आदिनाथ के अभिषेक में माँ सरस्वती का होना इत्यादि सभी समान रूप से है | भगवान बुद्ध का नाम ज्ञान प्राप्ति से हुआ है क्योंकि बुद्ध - ज्ञान होता है | अतः उनका नाम भी वही रहा --- | चालीस से अधिक वर्षों में चार सौ से अधिक उपदेश पाली भाषा में दिए (राजकुमार सिद्धार्थ अपने बचपन व किशोरावस्था में शिक्षा प्राप्ति के लिए गुरुकुल नहीं गए - अतः संस्कृत के स्थान पर स्थानीय भाषा में उपदेश दिए - पाली भाषा का प्रयोग उस समय के अनेक प्राचीन मंदिरों में भी है |) जिसमे मुख्य रूप से अपने ज्ञान द्वारा स्पष्ट किया - "संस्कारों का क्षय - चित्त-मल का शोधन ही उत्तम गति है" | इस पर उन्होंने पूर्णतः वैदिक शास्त्रों की तरह ही महत्त्व दिया | साथ ही उनके उपदेश में ऋषि-मुनियों व शास्त्रों के आदेशों की पालना नहीं करने से निम्न गति का भी वर्णन है - प्रत्यक्ष रूप से इन सभी आदेशों में गौवंश की रक्षा का सर्वोच्य स्थान है | इस प्रकार अपने तप से वैदिक दर्शन के जिन विषयों पर ज्ञान प्राप्त हुआ - उनका उस समय बहुत ही सहजता व सरलता से उपदेश दिया व अन्य विषयों पर मौन रहे | व्यवहार में मौन को स्वीकृति का लक्षण भी माना गया है | इसी कारण उन विषयों पर उनके द्वारा कुछ भी उपदेश - कथन नहीं किया गया | और इन सभी में हिन्दू समाज - सनातन समाज से सम्बन्ध रखने वाले परिवार के सदस्यगण ही विचारधारा के आधार पर अनुयायी बने, क्योंकि किसी भी अनुयायी का अलग से प्रादुर्भाव नहीं हुआ --------- | इस प्रकार जिस सनातन धर्म ने सूर्य - चन्द्रमा की खगोलीय स्थिति का ज्ञान कराया - पृथ्वी व समुन्द्र की भौगोलिक स्थिति का ज्ञान कराया - यहाँ तक की प्रकाश गति व ध्वनि गति को आकाशीय बिजली के द्वारा समझाया गया - कि धर्षण पहले होता है अर्थात आवाज ध्वनि पहले और बिजली का प्रकाश बाद में होता है - किन्तु  प्रकाश पहले दिखाई देता है और ध्वनि बाद में सुनाई देती है - जिससे विज्ञान के स्तर पर स्पष्ट हुआ की ध्वनि की गति से अधिक प्रकाश की गति होती है | उपरोक्त सभी तथ्यों की विज्ञान ने कुछ दशक पहले ही जानकारी प्राप्त की | यहाँ तक भारतीय नस्ल के गौवंश के पदार्थों के साथ गोबर - गौमूत्र के सनातन धर्म के आदेश-निर्देशों को भी विज्ञान ने कुछ दशक पहले ही सत्य पाया - यह तो उच्चतम से निम्नतम के कुछ तथ्य बताये गए है -- हिन्दू धर्म के ऐसे हज़ारों तथ्य और शब्दावली प्रलय काल तक सत्य है - "हरे राम - हरे कृष्ण" इसकी वैज्ञानिकता को जान कर और इस एक शब्दावली पर विश्व के 77 देशों में 600 से अधिक कृष्ण मंदिर (और साथ में अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी) सनातन नियमों से चल रहे है | उन पर न तो अत्याचार किया गया - न धमकाया गया - न ही उनको धन का लालच दिया, जैसा की अन्य कुछ मजहब करते है | उपरोक्त सभी कारणों से सम्पूर्ण विश्व का विज्ञान समुदाय हज़ारो लाखों साल पूर्व के तथ्यों की सत्यता पर ख़ुशी से सिर खुजला रहा है | किन्तु हमारे प्रथम श्रेणी के नादान लोग शास्त्रों के जिन विषयों पर विज्ञान की कसौटी नहीं लगती है क्योंकि उनमे सन्दर्भ व भावार्थ की सूक्ष्म गहनता को समझना अति आवश्यक होता है - फिर भी वे अंतिम श्रेणी के नादानों की सीख पर विकृत श्रेणी के नादानीपूर्ण कार्य करते है | प्रधानसेवक जी विश्व में एकमात्र वैज्ञानिक वैदिक धर्म - सनातन धर्म - हिन्दू धर्म है | सती महिमा और गौवंश की रक्षा ही इसका आधारभूत ढाँचा है - इसके पश्च्यात ही भारत व्यवहार रूप में भारतवर्ष सुनिश्चित रूप से दिखाई दे सकता है | अतः आप केंद्रीय क़ानून बनाकर उसकी अनुपालना के लिए युक्तियुक्त वर्गीकरण करके भ्रष्ट आचरण निरोधक कानून बनावें - जिसमे कर्तव्य में लापरवाही, रिश्वत, अनुपस्थित रहना, अयोग्यता व नासमझी इत्यादि में संबंध विधि द्वारा अधिरोपित कर्तव्य न करने पर तत्काल सक्षमतन्त्र - अधिकारीगण द्वारा एक से तीन वर्ष तक वेतनवृद्धि पर रोक, एक से दो पद्दोनति पर रोक और अधिक गंभीरता होने पर बर्खास्त | भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम व अन्य इस प्रकार के अधिनियम भ्रष्टाचार व अनुशाशनहीनता को बढ़ावा देने वाले व शासन - प्रशासन से भयमुक्त करने वाले है | अतः गंभीर विषयों पर इस प्रकार की विधिव्यवस्था को निष्क्रिय किया जावे | इसके साथ ही  प्रस्तुत विषय पढ़ने मात्र से राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय संस्कृति के प्रथम आधारभूत ढांचा - नीव को विकृत करने वाले - विकृत श्रेणी के नादान कौन है कुछ समझ आएगा |  क्योंकि ऐसी विचारधाराएँ ही हिन्दू समुदाय के चारों समाजों को तोड़ने - राष्ट्रीय संस्कृति का ह्रास करने और उद्योग - कारखानों  को समाप्त करने की ही इनके पास कार्यसूची रहती है | इन नादानों को राष्ट्र का विकास और शांति विषयुक्त काँटों की चुभन सी लगती है (कांग्रेस के अतिरिक्त विशेषकर वामपंथी दलों द्वारा) | 

ॐ ओंकार और सूर्यदेव भगवान सनातन - हिन्दू धर्म के प्रत्यक्ष देव माने जाते है | दोनों ही सिख समाज और जैन समाज में सर्वोच्च है | सिख समाज में ओंकार की सर्वोच्चता हम सभी समझते है | किन्तु जैन समाज के गृहस्थ व तपस्वी मुनियों द्वारा तप का शैशव काल सूर्यदेव भगवान के उदय और अस्त के आधार पर ही होता है | इसी अभ्यास के आधार पर तप के शिखर पर पहुँचते है - सूर्यदेव भगवान के उदय - अस्त की सर्वोच्चता वही की वही बनी रहती है साथ ही मुनि बनने वाले महिला - पुरुष शिक्षार्थियों को पंडित परिवारों के पुरोहित से संस्कृत - वेद - पुराण व अन्य शास्त्रों की शिक्षा भी प्राप्त करते है, इसी प्रकार इन समाजों में पूजा - प्रसाद (भोग लगाना) की पद्द्ति हिन्दू समाज के वैष्णव मंदिरों के समान ही है | इस प्रकार स्पष्ट है कि हिन्दू समुदाय के चारों समाज का प्राकृत प्रकृति रुपी मूल ढांचा एक ही है | इस प्रकार हिन्दू समुदाय के चारों समाजों को बांटने का निम्न स्तर का नादानी पूर्ण कार्य कांग्रेस - कम्युनिस्टों के अतिरिक्त कुछ राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियों के स्थानीय नेताओं ने (वोट बैंक व तुष्टिकरण के लिए) भी किये | इस प्रकार हिन्दू समुदाय के चारों समाजों को आपस में असंतोष - द्वेष - नारेबाजी में अलग से प्रयोग करना भारतीय संविधान के अनु. 25 के 2(ख) के अनुसार असंवैधानिक है | 

 

अब प्रश्न उठता है कि क्या हम नादान नहीं है - हम भी नादान है किन्तु नादनपूर्ण कार्य नहीं करते - परन्तु स्पष्टतः विकृतपूर्ण नादानी के कार्यों का हम सशक्त विरोध भी नहीं करते है | यहाँ पर हिटलर का स्मरण हो जाता है - क्योंकि इन विकृत नादानो ने हिन्दू समुदाय - सनातन धर्म के विरुद्ध 100 के स्थान पर 1000 से भी अधिक नकारात्मक अभिव्यक्तियाँ (जिला - राज्य - राष्ट्रीय स्तर पर) करते रहें है | इस प्रकार हम संशय युक्त मूक दर्शक बन गए | प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में दो दशकों से लव जिहाद का विकृतपूर्ण नादान खेल हो रहा है - प्रत्यक्षतः और स्पष्टतः संप्रदाय विशेष के लोग हिन्दू बनकर - हिन्दुओं के प्रतीक धारण करके - हिन्दू आचरण करके इस सम्प्रदाय के समूह द्वारा सुनियोजित (जबकि ये सभी कृत्य इस्लाम से नाम पर नापाक और नाजायज़ है - यह पूर्णतः स्पष्टतः स्वयं सिद्ध तथ्य है कि इस्लाम में पहचान छुपाना, अन्य आस्था - विश्वास - संस्कृति के प्रतीकचिन्हों को धारण करना गुनाह है - नाजायज है) हिन्दू लड़कियों को धोखा देना, विवाह के बाद धर्म परिवर्तन के लिए दबाव - हत्या - बलात्कार - संबंध इंकार करने के कारण हत्या - जला कर मारना - तेजाब फेंकना - चाकुओं से गोदना - आपत्तिजनक तस्वीरें सार्वजानिक करना - साथ में रहने के बाद भी कुछ कारणों से शरीर के टुकड़े - टुकड़े करना इत्यादि विकृत श्रेणी के नादानी पूर्ण कार्य होते है | इस प्रकार स्पष्ट है कि संप्रदाय विशेष दहशतगर्दी के अपकृत्य इस्लाम और ईमान के विरुद्ध सहजता से करते है और संप्रदाय के अन्य लोगो की इनके विरुद्ध चीख-चिल्लाहट भी बंद हो जाती है | जबकि संविधान - विधिव्यवस्था या फिर कानून के शासन की पालना हो, वहां इनकी शरीयत और चीख-चिल्लाहट शुरू हो जाती है | अतः पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है भारत की विधिव्यवस्था की बजाय यह संप्रदाय शरीयत और दहशतगर्दी से भारत में रहना पसंद करते है जबकि अनेक मुस्लिम राष्ट्रों में भी ऐसा नहीं होता है | उदहारण के लिए सऊदी अरब, यूएई व कई और देश भी है | धार्मिक स्थलों से सम्बंधित कानून 1991 को संप्रदाय विशेष अपने पक्ष में होने के कारण सम्पूर्ण राष्ट्र में इतनी चीख-चिल्लाहट करते है जैसे भारत में न्यायपालिका के निर्णय व अन्य विधिव्यवस्था शुन्य है | ठीक इसी प्रकार किसी विधानमंडल अथवा संसद में लव-जिहाद के नाम से आंकड़े नहीं आये तो राष्ट्र में इस संबंध के तमाम अपराधों को गौण बताकर - कि अमुक मंत्री ने संसद में कहा कि लव-जिहाद का एक भी मामला संज्ञान में नहीं है, इसकी तुलना में जब नागरिकता कानून पर प्रधानमत्री तक कहते है कि ये नागरिकता देने का कानून है और संसद में अनेक मंत्रीगण भी यही कथन कहते है - किन्तु फिर भी ये दहशतगर्दी की उच्च सीमा को पार कर देते है क्योंकि कांग्रेस और कम्युनिस्ट जैसी अनेक विचारधाराओं का इनके साथ होना और हिन्दुओं को नागरिकता देना इनकी इच्छा के विरुद्ध और आंतरिक जलन होना भी बड़ा तथ्य है और सारी लोकव्यवस्था भंग कर देते है - उस समय एकमात्र न्यायपालिका लोकव्यवस्था बनाये रख सकती है क्योंकि न्यायपालिका डीजीपी और मुख्य सचिव को लोकव्यवस्था बनाये रखने का आदेश दे सकती है ---- पर ऐसा क्यों नहीं होता है (मूल अधिकार भी लोक व्यवस्था के अधीन रहते है)? ----- कई सप्ताह सामूहिक धरना प्रदर्शन करने से करोड़ो लोगो को आने-जाने में, रोज़गार में, उपचार करवाने में, अनु. 21 के तहत प्राणों के अधिकारों का उल्लंघन होने में जंगलराज का सामना करना पड़ता है, राष्ट्र और राज्यों को अरबो रूपए का नुकसान होता है | इस प्रकार स्पष्ट है कि हिन्दू बनकर इस प्रकार के कार्य समूह के रूप में करना पूर्णतः लव - जिहाद की श्रेणी में आता है | पर अफ़सोस है कि दो दशकों से आज दिनांक तक - किसी भी सक्षम मंत्री ने संसद - विधान सभा में ऐसा नहीं कहा कि "लव जिहाद के इतनी संख्या में मामले हुए" | आप अपने विवेक से विचार करके निष्कर्ष निकालिए कि किसी भी राज्य सरकार ने अथवा केंद्र सरकार ने क्या "लव जिहाद निरोधक कानून" बनाया ? --------------- नहीं --- नहीं --- नहीं -------| क्योंकि "जिहाद" इनके मजहब का धार्मिक शब्द है | अब हम कुछ - कुछ  विकृत श्रेणी के नादान भी बन गए - परन्तु नादानी का कार्य नहीं किया  | क्योंकि जो करने योग्य कार्य --- वह भी नहीं किया | "हिन्दू धर्म - सनातन धर्म की शक्ति का केंद्र सती माता और उसकी महिमा है |" तीन दशक पूर्व कांग्रेस - कम्युनिस्टों के साथ अन्य विकृत नादानों ने (हिटलर की नीति पर) राष्ट्र में सनातन के विरुद्ध ऐसा नकारात्मक माहौल बनाया हम संशय युक्त होकर नादान बन गए जिसमे इनके महिला इकाई  का भी योगदान रहा और साथ ही प्रेस का | परिणाम स्वरुप उस समय उच्चस्तर पर बैठने वाले व्यक्ति द्वारा, जिसका स्वयं का संवैधानिक पद भी नहीं, किन्तु दबाव बनाने में सक्षम होने के कारण सती माता के लिए "निरोधक कानून" बन गया (सती माता रूप कंवर - 1987 कांग्रेस सरकार) | प्रस्तुत विषय उस कानून का पूरा नाम लिख कर "महापाप का भागीदार" नहीं बन सकता | अफ़सोस यह है कि न्याय पालिका - विधायिका - कार्यपालिका - प्रेस इस प्रकार लोकतंत्र के चारों स्तम्भ तीन दशकों से आज दिनांक तक असंवैधानिक कानून के सम्बन्ध में मूक दर्शक है | साथ ही अफ़सोस यह भी है कि महाराष्ट्र के शनिदेव धाम मामले में सर्वोच्च न्यायालय में सती महिमा का गुणगान किया | साथ ही यह भी स्पष्ट होता है कि महा सती अनुसुइया ने माता सीता (जगत जननी) को कर्तव्य धर्म का उपदेश दिया | इसी प्रकार सती सावित्री द्वारा अपने सतकर्म व स्वधर्म में स्थित रहकर धर्मराज से आशीर्वाद प्राप्त कर संसार को पत्नी कर्तव्य का बोध कराया | बह्मांड में और भी अनेक सती माताएँ हमारी रक्षा कर रही है | महिलाओं को धोखा देना - छेड़छाड़ - आपत्तिजनक संकेत करना - मारना - प्रताड़ना - दहेज़ के लिए दबाव - नाबालिगों के साथ अभद्रता - हत्या करना - जलाकर मारना - हत्या के लिए उकसाना इत्यादि सभी के लिए कानून बने हुए है साथ ही सर्वोच्च न्यायलय के दिशा-निर्देश भी महिलाओं के संरक्षण हेतु है | उपरोक्त सभी कानून वर्तमान में महिला सुरक्षा के लिए और अधिक कठोरता से कार्य करते है | तो फिर ऐसी क्या स्थिति हुई कि सती माता के लिए "निरोधक कानून" बनाना पड़ा? इस प्रकार स्पष्ट है कि कानून की न तो आवश्यकता और न ही अनिवार्यता ---- | क़ानून बना - सिर्फ - सिर्फ - सिर्फ एक उसी विकृत श्रेणी के निम्न स्तर के नादानी पूर्ण कार्य से (जो संवैधानिक पद न रखते हुए भी दबाव में सक्षम रहा) क्योंकि उसका हिन्दू और हिन्दू संस्कृति को अपमानित करना ही उद्देश्य रहा --- क्योंकि अपमानित करना ही उद्देश्य रहा --- क्योंकि हिन्दू समुदाय - हिंदुस्तान से घृणा रुपी संस्कार ---- | यदि यह कानून हिन्दू हित - सनातन हित में होता - तो यह सभी श्रेणी के नादान पुरे राष्ट्र में अराजकता फैला देते (जबकि उपरोक्त कानून अनु. 25 (1) के तहत पूर्णतः पूर्णतः पूर्णतः असंवैधानिक है जो एक क्षण-पल के लिए भी बना नहीं रह सकता, क्योंकि "सती" शब्द हिन्दू समुदाय का "शक्ति केंद्र" और "रक्षा कवच" है | अनु. 25(1) के तहत आस्था और विश्वास में सर्वोच्च स्थान है - विशेषकर छत्रीय समाज का ---- |) |इसी प्रकार एक और कानून डेढ़ दशक पूर्व हिन्दू परिवारों के विघटन के लिए बनाया गया | परिवार में भाई बहनो - माता पिता में संशय व द्वेष पैदा करने के लिए व मुकदमे बाज़ी करने के लिए, जो कुछ हद तक सिद्ध भी हो रहा है (हिन्दू महिलाओं को शादी के बाद भी पिता के घर में अधिकार - 2005 कांग्रेस सरकार और उनके सहयोगी) | यह भी अगर हिन्दू हित में होता - विकृत नादानो द्वारा राष्ट्र में अशांति पैदा हो जाती (जबकि उपरोक्त कानून भी भारतीय संविधान के अनु. 14 - अनु. 25 (1) के तहत पूर्णतः पूर्णतः पूर्णतः असंवैधानिक है) | यह भी संवैधानिक पद ना होने पर किन्तु दबाव में सक्षम होने के कारण उसी विकृत श्रेणी के नादान व्यक्ति द्वारा बनवाया गया (अन्य मजहबो की तुलना में हिन्दू महिलाओं को ससुराल व पिता के घर में विधिक अधिकार सर्वाधिक है, चाहे विवाह होते ही ससुराल की संपत्ति में अधिकार होना और बच्चो की शादी में पिता अथवा भाई पक्ष की और से "मायरा" के रूप में पूर्ण सहायता)| इस प्रकार भारत माता की भूमि पर हिन्दू संस्कृति व हिन्दू परिवारों में विष तुल्य खंज़र से गड्ढा खोद दिया गया और भविष्य में हिन्दू परिवारों में आंतरिक विस्फोट से भी अधिक इस व्यक्ति का वर्ग समूह शत्रु राष्ट्र का गुणगान व आंतरिक समझौते और सम्पूर्ण हिन्दू समाज को सार्वनजिक रूप से खंड-खंड (चाहे क्षेत्र वाद हो, चाहे भाषा वाद हो, चाहे जाती वाद हो) करके भारत को तबाह करने का एकमात्र एजेंडा है (समान नागरिक संहिता का अत्यंत शूक्ष्म विश्लेषण विधि विषेशज्ञों द्वारा किया जावे, तो भी यह अनु. 14 का उल्लंघन ही होता है चाहे कोई भी समाज हो इसमें परिवार का सामजिक ताना-बाना नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है - स्पष्टतः भाई बहनो में तकरार-द्वेष-अविश्वास | इसका सार्वजानिक - विधिक और सौहार्दपूर्ण उपाय यह है कि सभी स्त्रियों को पति व ससुराल की चल-अचल सम्पत्तियों में बराबर हक़ मिले; यही है समान नागरिक संहिता, अनु. 14 की समानता का धरातल कानून का शासन है और अनु. 44 की समान नागरिकता का धरातल सामाजिकता है) | अतः भारत सरकार को इस व्यक्ति और इसके साथ के सम्पूर्ण वर्ग समूह को सार्वजनिक करना संवैधानिक कर्तव्य के साथ राष्ट्र हित व लोक हित में अनिवार्य भी है | भारत माता की भूमि पर गौवंश की हत्या के कलंक से कई गुना ज्यादा कलंक सती माता के नाम से तीन दशक पूर्व बनाये गए उस "असंवैधानिक निरोधक कानून" से है | अतः यह भी तत्काल निरस्त करने योग्य है और "राज्य" भारत सरकार इसके लिए बाध्य भी है | इसी प्रकार इन नादानो ने सिख समाज के संबंध में "बड़े वृक्ष का गिरना - धरती का हिलना" | फिर इसी प्रकार इन्होने जैन समाज के "संथारा" तप के आत्महत्या निर्णय में मूक दर्शक (कांग्रेस और सहयोगी दलों की सरकार) रहे - जबकि इन्ही नादानों (कांग्रेस सरकार) ने तीन दशक पूर्व तलाक निर्णय को पलट दिया जबकि "संथारा" शब्द जैन समाज का "परम पवित्र" व "परम गति" का शब्द है जो इनकी आस्था और विश्वास का प्रतीक (अनु. 25(1)) है | अतः ऐसी शब्दावली पर तत्काल प्रतिबंध होना चाहिए और शब्दावली के स्थान पर कुछ दिशा निर्देश जारी हो सकते है | निर्णय और मूक समर्थन दोनों ही असंवैधानिक है क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि "आत्मा का कभी मरण नहीं होता वे साक्षी भाव में रहती है" - यह विज्ञान द्वारा सिद्ध भी हुआ है | इसी प्रकार भारतीय संस्कृति की आदर्श शब्दावली "सामंतशाही" का वर्तमान में अत्याचारी-तानाशाही के रूप में अभिव्यक्ति की जाती है जबकि ये राज्य की जनता की रक्षा व न्याय के लिए कार्यरत और एक कुशल योद्धा के रूप में त्याग और बलिदान भी ----- | अतः इनका नकारात्मक रूप में अभिव्यक्ति (समाज में असंतोष व हिंसा के लिए उकसाना) पर प्रतिबंध होना सुनिश्चित है | इस प्रकार उपरोक्त कृत्य भारतीय संविधान के अनु. 51 (क) (गौरवशाली परम्परा) का भी उल्लंघन है | इसी प्रकार "गोरख-धंधा" हिन्दू समाज के नाथ पंथ की अत्यंत पवित्र शब्दावली है  जिसको वर्तमान में गैर क़ानूनी गतिविधियों - कार्यों के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है | इसमें लोकतंत्र के सभी स्तंभ शामिल है | पूर्व में इस प्रकार की कोई भी अभिव्यक्ति है वो भारतीय संविधान के अनु. 25 (1) के तहत प्रतिबन्ध योग्य है | अतः हिन्दू समुदाय के चारों समाज नादान पूर्ण कार्य ना करते हुए भी नादान बन रहे है | इसके लिए मुक्ति का मार्ग एक ही है - सम्पूर्ण हिन्दू समुदाय सशक्त विरोध करें | राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय संस्कृति के विरुद्ध, तुष्टिकरण का आलम यह है कि हिन्दू राष्ट्र के वैचारिक देव-पुरुष छत्रपति शिवाजी महाराज और वर्तमान समय के हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे जैसे ऐतिहासिक महापुरुषों को भी उनके राजनैतिक व पारिवारिक उत्तराधिकारियों द्वारा ऐसा कार्य किया गया है जिसे उनके वैकुंठवासी सूक्ष्म शरीर को बहुत बड़ा आघात लगा, क्योंकि इनके द्वारा वह कार्य किया गया - जिसका उन्होंने सम्पूर्ण जीवन में विरोध किया - जिसका इन्होने सम्पूर्ण जीवन संघर्ष किया, उसी चौखट पर उनको बैठा दिया गया | इस प्रकार छत्रपति शिवाजी महाराज ने सम्पूर्ण जीवन हिन्दू समुदाय के हत्यारों और लुटेरों से संघर्ष किया - और बाला साहब ठाकरे जी द्वारा शिव सेना की स्थापना और राजनीति में आने के दो प्रमुख उद्देश्य - हिन्दू राष्ट्रवाद की स्थापना और कांग्रेस पार्टी का अंत करना ----- | आज उनके ही उत्तराधिकारियों द्वारा कांग्रेस के साथ घटक दल के रूप में राजनीति और तुष्टिकरण करना अक्षम्य अपराध है |

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इस प्रकार बाला साहेब द्वारा स्थापित शिव सेना के उत्तराधिकारियों द्वारा "उर्दू" कैलेंडर प्रकाशित करना - बालासाहेब ठाकरे जी के आगे "जनाब" शब्द का प्रयोग करना - शिव सेना के द्वारा "उर्दू" कैलेंडर के प्रकाशन के साथ ही "छत्रपति शिवाजी महाराज" के लिए, केवल "शिवाजी" शब्द का उपयोग करना - सम्पूर्ण राष्ट्र के साथ महाराष्ट्र वासियों के लिए अत्यंत दुःखद तुष्टीकरण कृत्य है | इतना ही नहीं, छत्रपती संभाजी महाराज और आनंद दिघे जैसे राष्ट्रवादी हिंदुत्व वाले महामना को भी तिलांजलि देकर औरंगज़ेब के समर्थकों की गोद में जा कर बाला साहेब के उत्तराधिकारी बैठ गए | जिस प्रकार वाहेगुरु जी के शिष्यों ने लासानी शहादते दी (आरे से चीरना - रुई लपेट कर आग लगाना - खौलते हुए पानी में डालना इत्यादि, इस्लाम के नाम पर उन हत्यारों - लुटेरों ने धार्मिक स्थलों को तोड़ने के साथ ऐसे भी जघन्य अपराध किये ) ठीक उसी प्रकार इस्लाम के नाम पर उन्ही हत्यारों - लुटेरों ने छत्रपति संभाजी महाराज के साथ किया - उनकी भी लासानी शहादत हुई | ऐसी स्थिति में भारतीय नागरिकों को कांग्रेस वामपंथी और उनके साथी विचारधारा वाले राजनैतिक दलों को सहयोग करना - समर्थन करने का स्पष्ट अर्थ यह है कि हम वाहेगुरु जी के, छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, छत्रपति संभाजी महाराज आदि आदि अनेको हमारे देवतुल्य महामनाओं के प्रति अपराध कर रहे है | इन सभी में दिल्ली की "आम आदमी पार्टी" का राष्ट्र विरोधी - सनातन विरोधी और जनता को गुमराह करने में सबसे उच्चतम स्थान है जिसका भूमिका के बिंदु संख्या 18 के "चलते-चलते" में एक निम्न श्रेणी के नादानी कार्यों का सूक्ष्म प्रस्तुतीकरण है |

विशेष - जिस प्रकार महाराजा रणजीत सिंह जी की भक्ति श्री विश्वनाथ महादेव के प्रति रही, ठीक उसी प्रकार पूर्व में वाहे गुरु और उनकी प्रथम पंक्ति निहंगों की अयोध्या के प्रति भक्ति व त्याग सर्व विदित है | जैन समाज के प्रथम तीर्थंकर व अन्य चार और तीर्थंकरों का संबंध भी अयोध्या से रहा है (जैन समाज की पवित्र नगरी पालीताना में आदिदेव भगवान का जो सर्वोच्च स्थान है उनका संबंध भी अयोध्या के महलों से है अतः जैन समाज के लिए अयोध्या भी पालीताना का ही रूप है | साथ ही हिन्दू समाज की तरह सिख समाज व जैन समाज के लिए भी अयोध्या परम पूजनीय है) | साथ ही भगवान् बुद्ध ने शास्त्रों के उपदेश की पालना का उपदेश दिया | यह सर्वमान्य है कि राम और रामायण ही सर्वव्यापक है | धर्म का रूप राम को ही माना जाता है | किन्तु कांग्रेस - कम्युनिस्टों व साथी दलों व संगठनों की विचारधारा ने सम्पूर्ण हिन्दू समुदाय (हिन्दू समाज - सिख समाज - जैन समाज - बौद्ध समाज) को और साथ ही इनमे जाति-वर्ग समूह में विभक्त करके आग लगाने की कोशिश का विकृत श्रेणी का नादानपूर्ण कार्य कर रहे है | 

प्रथम भाग के तथ्य संख्या 21 में अनुतोष है और द्वितीय भाग के तथ्य संख्या 26 में अनुतोष है - किन्तु सभी तथ्यों में भी अनुतोष का समावेश अतिरिक्त है | इनके अतिरिक्त भूमिका के 18 बिंदुओं में भी अनुतोष का समावेश है | इस प्रकार गौवंश की रक्षा, विषाक्त कृषि, यांत्रिक कत्लखानों और बूचड़खानों के सन्दर्भ में संवैधानिक तथ्य प्रस्तुत है | किन्तु इन सभी का केंद्रीय कानून में समावेश होना, विशषज्ञों की कमेटी और उनके विचार-विमर्श द्वारा विश्लेषण और निष्कर्ष प्राप्त करना कठिन कार्य है - इसमें समय लग सकता है | इसलिए उपरोक्त के संबंध में जब तक केंद्रीय कानून ("राष्ट्रमाता रक्षा - संरक्षण - संवर्धन अधिनियम" और "अमृत - जैविक कृषि अधिनियम") व प्रस्तुत विषय की अन्य केंद्रीय विधि व्यवस्था प्रभावी हो, तब तक प्रस्तुत विषय के निम्न अनुतोष संवैधानिक दृष्टि से तत्काल प्रभावी होने अनिवार्य है | अतः ------


1) सम्पूर्ण राष्ट्र में गौवंश की हत्या भारतीय संविधान के अनु. 25 (1) के तहत एक क्षण-पल के लिए भी नहीं हो सकती | अतः केंद्रीय कानून बनने से पूर्व गौ वंश की हत्या का प्रतिबन्ध अध्यादेश द्वारा क्रियान्वयन किया जावे | जिसका पूर्णतः स्पष्टतः स्पष्टीकरण संवैधानिक रूप से प्रथम भाग में किया गया है | 


2) सती माता (महिमा निरोधक) अधिनियम 1987 (सती माता रूप कँवर का समय) - यह अधिनियम भारतीय संविधान के अनु. 25 (1) के तहत पूर्णतः असंवैधानिक है | इसका कोई भी विधिक अस्तित्व नहीं है - यह पूर्णतः विधि शून्य है | अतः राज्य व केंद्र सरकार इसको निरस्त करें | क्योंकि यह एक क्षण और पल के लिए भी प्रभावी नहीं रह सकता, जिसका स्पष्टीकरण भूमिका के बिंदु संख्या 18 में किया है |  


3) संथारा शब्द को आत्महत्या घोषित करना भारतीय संविधान के अनु. 25 (1) का घोरतम उल्लंघन है | यह न्यायपालिका का निर्णय न होकर आरोप ही लगता है जो पूर्णतः असंवैधानिक व विधिशून्य है, क्योंकि भारतीय संविधान के अनु. 25 (1) के तहत आत्मा परमात्मा का सूक्ष्म अंश होना और साक्षी भाव से रहना साथ ही पञ्चभूतादि तत्वों के शरीर की तरह "आत्मा" का क्षय अथवा विनाश नहीं होता है | अतः इन संबंध में भारतीय विधिक शब्दावली के साथ सार्वजानिक रूप से सभी अभिव्यक्तियों (आत्महत्या-शब्द) को प्रतिबन्ध की श्रेणी में रखा जावे | अतः प्रथम दृष्टि से न्यायपालिका अपने निर्णय में संशोधन करें अथवा विधायिका इस निर्णय को निरस्त करें | साथ ही "सामंतशाही" और "गोरख-धंधा" की पवित्र शब्दावलियों के संबंध में आज दिनांक तक जो भी नकारात्मक अभिव्यक्तियाँ हुई है, उन सभी पर प्रतिबंध किया जावे व विधिसम्मत कार्यवाही सुनिश्चित करें | उपरोक्त का स्पष्टीकरण भूमिका के बिंदु संख्या 18 में स्पष्ट है |


4) सम्पूर्ण राष्ट्र में हिन्दू समुदाय के तीर्थ स्थानों में नगर सीमा तक और अन्य शहरों के उपासना स्थलों के आस-पास के क्षेत्रों में तत्काल सकारात्मक विधि प्रभावी की जावे (सरकार और स्थानीय निकाय और पुलिस-प्रशासन) जिसका संवैधानिक रूप से भारतीय संविधान के अनु. 25 (1) के साथ अन्य अनुच्छेदों से भी संवैधानिक रूप से स्पष्ट किया गया है | सकारात्मक विधि व्यवस्था का पूर्णतः स्पष्टतः स्पष्टीकरण द्वितीय भाग के तथ्य संख्या 24 में है | प्रथम भाग और द्वितीय भाग, दोनों में स्पष्ट किया गया है (संविधान व सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों से) किसी भी नागरिक को किसी भी स्थान विशेष पर रोजगार अथवा पेशे विशेष का अधिकार नहीं होता साथ ही सरकारी क्षेत्र में कोई भी अधिकारी - कर्मचारी इच्छा अनुसार स्थान अथवा पद प्राप्त करने का अधिकारी नहीं होता है अतः राज्य सरकारें इस पर केवल विधि मंत्रालय  की सहमति से सकारात्मक विधि व्यवस्था स्थानीय निकाय और पुलिस प्रशासन द्वारा प्रभावी बनायीं जा सकती है | सकारात्मक विधि व्यवस्था में अलग से विधि व्यवस्था बनाने की अनिवार्यता नहीं है | इसे कोई भी नागरिक पुलिस प्रशासन के सहयोग से प्रभावी बना सकता है | किन्तु विवाद व संघर्ष से बचाव हेतु इसमें आदेश-निर्देश अपेक्षित है |


5) गौ तस्करों को केंद्रीय कानून बनने तक राज्य विधि के आधार पर (घटनाक्षेत्र व प्रभावी विधि) सामूहिक गौवंश की हत्या और अंतिम फैसले तक गैर जमानती वारंट की व्यवस्था की जावे |  जिसका स्पष्टीकरण भूमिका के बिंदु संख्या 8 व प्रथम भाग के तथ्य संख्या 21 में है | साथ ही इन पर परिवहन अधिनियम, शस्त्र अधिनियम, हत्या के प्रयासों और हत्याओं, साथ ही संगठित अपराध के भी वाद दर्ज़ किये जावे | विशेषज्ञों की राय के पश्च्यात विधि व्यवस्था प्रभावी होने तक राज्य सरकारें अपने राज्यों में युक्ति युक्त वर्गीकरण के आधार पर इस तथ्य को प्रभावी बना सकती है | अतः सभी जमानती गौतस्कारों को पुनः गिरफ्तार किया जाए | 


6) जब तक क्षेत्रवार विषाक्त कृषि के स्थान पर जैविक कृषि की परियोजना विधि व्यवस्था के तहत प्रभावी न हो, तब तक सम्पूर्ण राष्ट्र में कृषि क्षेत्र में इस समझ का वातावरण प्रभावी स्तर पर प्रकाशित - प्रचारित और सामूहिक आयोजनों के द्वारा सुनिश्चित करना होगा कि भारतीय संविधान के तहत न तो किसान विषाक्त कृषि कर सकते है और न ही सरकार लोक व्यवस्था के तहत इसे स्वीकार कर सकती है और न ही लोक स्वास्थ्य व अनु. 21 के तहत भारत सरकार नागरिकों को ऐसे खाद्य उपलब्ध करा सकती | इसका विस्तृत स्पष्टीकरण संवैधानिक तथ्यों के साथ प्रथम भाग के तथ्य संख्या 12 तथा तथ्य संख्या 21 में किया गया है | 


7) जब तक क्षेत्रवार परियोजना प्रभावी न हो तब तक गोबर-गौमूत्र व सूखे वनस्पति कचरे के उपयोग हेतु गोबर गैस सयंत्र की व्यवस्था की जावे और खाना पकाने की गैस, वाहन चलाने की गैस व ग्रामीण स्तर पर बिजली उत्पादन का कार्य प्रभावी रूप से हो और सयंत्र की स्लेरी खाद का उपयोग आस पास के कृषि क्षेत्र व बंज़र भूमि में किया जावे | इसका विस्तृत स्पष्टीकरण संवैधानिक तथ्यों - रोज़गार - अर्थव्यवस्था के साथ प्रथम भाग के तथ्य संख्या 12 और तथ्य संख्या 21 के अनुतोष में किया गया है | 

8) प्रत्यक्ष रूप से स्पष्ट है कि प्रस्तुत विषय गौरवशाली राष्ट्रीय संस्कृति का आधारभूत ढाँचा है अतः राष्ट्रीय संस्कृति के कुछ अन्य विषयों का समावेश अनिवार्य हो जाता है जिसे हम प्रस्तुत विषय की एकाग्रता ही कहते है | अतः पूर्व की ऐतिहासिक भूल और कांग्रेस-कम्युनिस्टों के अपकृत्यों से हमारी पीढ़ियों पर हमारी गौरवशाली परंपरा की पूर्णतः छाप नहीं छप सकी, अतः उस ऐतिहासिक भूल को अथवा स्वयं की नादानी को पूर्णतः निरस्त करते हुए - कांग्रेस-कम्युनिस्टों के मक्कड़जाल को तोड़ते हुए - हमें नए पाठ्यक्रम की गौरवशाली परंपरा सुनिश्चित ---- | जिसका आधार उपरोक्त तथ्य में प्रस्तुत किया गया है व सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए शिक्षा विशेषज्ञों की कमिटी भी अनिवार्य हो जाती है | साथ ही हमारे धार्मिक स्थलों की गौरवशाली परंपरा का भी समावेश होना चाहिए | 

9) जब तक केंद्रीय कानून व्यवस्था प्रभावी न हो तब तक प्रथम भाग के तथ्य संख्या 9, 10, 11, 12 और 21 के आधार पर गौवंश को लोकव्यवस्था (रोज़गार की शृंखला, अर्थव्यवस्था व कृषि का आधारभूत ढाँचा और 70 करोड़ नागरिकों का संलग्न होना) के आधार पर संबंध राज्य सरकारे उपरोक्त तथ्यों के आधार पर गौशाला भूमियों का आरक्षण करना और निर्माणाधीन गौशालाओं द्वारा सक्षमतन्त्र (लेखपाल और चार्टर्ड अकाउंटेंट) से बजट प्रस्तुत (गौ-गृह, चारा गोदाम, पानी के टैंक इत्यादि, जो भी आवश्यक हो) करवाने पर तत्काल बजट राशि प्रदान की जावे | केंद्रीय कानून प्रभावी होने पर गौशाला कर्मचारियों का वेतनमान बढ़ेगा तब तक उनको प्रतिदिन निश्चित रूप से गौ महात्म्य समझाया जावे, ताकि गौभक्ति के प्रभाव से - गौसेवा से अपने जीवन की सफलता का ज्ञान होने से - गोबर व गौमूत्र का पूर्ण सदुपयोग होना सुनिश्चित है | जहाँ भारत में दूध - दही - घी अमृत है, उसी प्रकार गोबर और गौमूत्र अनमोल है | इनके सम्पूर्ण प्रयोग के बिना - आधारभूत अर्थव्यवस्था और अमृतमयी जैविक कृषि के द्वारा स्वास्थ्य प्राप्त करना व किसानो की खुशहाली स्वप्न ही है | 

10) जब तक विशेषज्ञों की कमेटी के पश्च्यात केंद्रीय विधि व्यवस्था प्रभावी न हो तब तक, वक्फ बोर्ड व अन्यों की सम्पत्तियों की जाँच कर गौचर भूमि का पता लगाना जिसका प्रथम भाग के तथ्य संख्या 21 के उपतथ्य 8 में स्पष्टीकरण है | प्रस्तुत विषय जानता है कि वक्फ बोर्ड की संपत्ति जो औसतन भारत के एक राज्य के बराबर है अथवा रक्षा व रेलवे विभाग के समक्ष है - यह परिणाम कांग्रेस, वामपंथियों और उनके सहयोगी विचारधाराओं का तुष्टिकरण रुपी विष तुल्य परिणाम है क्योंकि इन सभी को गौमाता - गौचर भूमि अथवा सनातन से कुछ भी सदभाव नहीं है | जो संप्रदाय के वोटों के लिए राम को काल्पनिक बता सकते है, सनातन को गाली दे सकते है, हिन्दू समुदाय पर दंगे का कर लगाने की कुचेष्टा करते है - अतः स्पष्ट है कि प्रत्यक्ष रूप में आरोप वक्फ बोर्ड पर है किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से नादानी पूर्ण कृत्य इन सभी का ही है | अतः आप तुष्टिकरण की कट्टरता को छोड़ कर संप्रदाय के अन्य समझदार नागरिकों की तरह खुले दिल से गौचर भूमि को लौटने की कोशिश करें | 

11) पुरे भारतवर्ष में हिन्दू समुदाय (हिन्दू समाज - सिख समाज - जैन समाज - बौद्ध समाज) के कितने मंदिर / धार्मिक स्थल सरकारी नियंत्रण में है - साथ ही हिन्दू समुदाय की समस्त धार्मिक भूमि व अन्य सम्पत्तियों पर कितना अतिक्रमण है ----- साथ ही हिन्दू समुदाय के आस्था - विश्वास के तहत राजा - महाराजाओं सहित और वर्तमान में भक्तों द्वारा अनु. 25(1) के मूल अधिकारों के तहत हिन्दू समुदाय द्वारा आस्था - विश्वास के रूप में अर्पित धनराशि और भूमि - भवन व रत्न भण्डार इत्यादि सुनिश्चित रूप से सुरक्षित है ? भारत सरकार श्वेत पत्र जारी करे | यदि अर्पित की गई राशि पर टैक्स - सरकारी उपयोग होने पर आज दिनांक तक गणना (मय ब्याज) करके समक्ष ट्रस्ट अधिकारियों को सुपुर्द करे - क्योकि यह हिन्दू समुदाय की पूर्णतः धार्मिक मूल अधिकारों की धनराशि है जिसका हिन्दू समुदाय द्वारा त्याग नहीं किया जा सकता | सरकार स्वयं जानती है और समझती भी है कि यह स्पष्टतः - पूर्णतः पंथ-निरपेक्षता व समानता के मूल अधिकारों के विरुद्ध है | क्योंकि प्रस्तुत विषय को पूर्णतः जानकारी है कि अन्य मजहबों के साथ ऐसा नहीं होता है अपितु अन्य मजहबों के नाम पर भारत सरकार व राज्य सरकारें सरकारी खजाने व सरकारी सम्पत्तियों को असंवैधानिक रूप से लुटा रही है एवं लूटने की छूट दे रखी है | इस प्रकार उपरोक्त तथ्य भारतीय संविधान के आधारभूत ढ़ाँचे एवं मूल अधिकारों के तहत स्वयं सिद्ध रूप से असंवैधानिक है | अतः भारत सरकार इस संबंध में कठोर केंद्रीय विधि व्यवस्था को प्रभावी बनावें | मौलिक अस्तित्व की रक्षा - राष्ट्रीय संस्कृति की रक्षा भारतीय संविधान के अनु. 51(क) के तहत "राज्य" व राज्य दोनों का संवैधानिक कर्त्तव्य है | अतः भारत सरकार पुरातत्व विभाग द्वारा वैज्ञानिक ढंग से राष्ट्र के गौरवशाली किले - महल - मंदिरों का पुनरुद्धार करें | साथ ही उच्च स्तर के धार्मिक स्थलों के ट्रस्ट में अध्यक्ष व सदस्यों की केंद्रीय गुप्तचर विभाग स्थानीय नागरिकों - अखाड़ा परिषद का अनुमोदन अनिवार्य करे| ऐसा करना आवश्यक व अनिवार्य भी है, क्योंकि ट्रस्ट के सदस्यों द्वारा ही मंदिर की आंतरिक व्यवस्था – आरती – भोग – श्रृंगार - स्नान आदि, से सम्बंधित सभी कार्यों के लिए नियुक्ति इनके द्वारा ही की जाती है | उपासना स्थल के भवन परिसर इत्यादि की देख-रेख तो सभी वर्गों के द्वारा होती है, सुरक्षा बालों में सभी लोग शामिल होते है जिस प्रकार वक्फ की संपत्ति की देख-रेख में कोई भी हो सकता है क्योंकि यह पूर्णतः निजी उपासना क्रम से सम्बंधित कार्य नहीं है जिसके कारण मजहब के निजी उपासना में हस्तक्षेप भी नहीं होता है क्योंकि यह केवल देख-रेख रख-रखाव का ही कार्य है | जैसे रामेश्वर धाम के सम्पूर्ण मंदिर परिसर में स्थानीय सफाई कर्मचारी ही सफाई कार्य करते है - फर्श को पानी से भी धोते है, उसी भीड़ में भक्त लोग दर्शन के लिए जाते है - सुरक्षा में भी सभी वर्ग समुदाय के होते है - किन्तु गर्भ गृह, मुख्य मंदिर, स्नान स्थान, पूजा, अर्चन भोग इत्यादि सभी कार्यों के लिए पुजारी और उनके सहयोगी ही होते है और सनातन विधि से ही यह सभी कार्य होते है | परन्तु भारत के कुछ क्षेत्रों में तुष्टिकरण के तहत सनातन की मूल प्रवृत्ति के विरुद्ध अपराधीकरण उच्चतम सीमा तक पहुँच गया है | बंगाल का तुष्टिकरण नेता मंदिर के ट्रस्ट अध्यक्ष को भी तुष्टिकरण की बलि चढ़ा दिया | इसी प्रकार दक्षिण भारत के कुछ राजनैतिक घराने पहचान छिपाने का राष्ट्र विरोधी "जघन्य" अपराध करते हुए हिन्दू नाम रखते हुए भी, वो ईसाइयत को मानते है| इनमे राज्य का मुखिया हो, पुलिस का मुखिया हो, चाहे सामान्यजन हो सभी के हिन्दू नाम है | यह विश्व स्तर के "जघन्य" अपराध में शामिल हो जाता है | ऐसी स्थिति में आदिकाल से स्थापित परंपरागत सनातन कार्यों के साथ परमाणु विस्फोट हो सकता है | अतः भारत सरकार उपरोक्त प्रत्येक शब्द को अति गंभीर मानकर – समझकर, पंथ निरपेक्षता - समता के अधिकार व अन्य मूल अधिकारों को नियंत्रण करने वाली शब्दावली - सदाचार और अनु. 51 (क) के आधार पर सुनिश्चित कार्यवाही करके संविधान द्वारा स्थापित अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करे | जिस राष्ट्र में जगन्नाथपुरी के रत्न भंडार की चाबियां गुम होने पर राष्ट्रीय स्तर का गंभीर मुद्दा बन सकता है - मुख़्यमंत्री, प्रधानमंत्री, न्यायपालिका तक इसमें शामिल हो सकते है - तो ऐसी स्थिति में उपरोक्त प्रत्येक शब्दावली पर कठोर विधिक कार्यवाही - दण्ड - जुर्माना तत्काल प्रभाव से युक्ति-युक्त वर्गीकरण करके कार्यवाही करें - अन्यथा जैसा पूर्व में स्पष्ट किया गया ------ परमाणु विस्फोट | भारतीय संविधान में अत्यंत सरल और सहज रूप से सभी राष्ट्र विरोधी कार्यों का क्रियान्वयन अपेक्षित है | हम तो तत्कालिक सत्ता सुख भोग लेंगे (राष्ट्र को खण्ड-खण्ड करके) अथवा विदेशी एजेंट के कार्य स्वरुप धन-दौलत प्राप्त कर लेंगे ----- आने वाली पीढ़ियाँ रोयेगी, उसमे तुम्हारी भी होगी | अतः भारत सरकार उपरोक्त तथ्यों के आधार पर, उपरोक्त के सम्बन्ध में एक कठोर केंद्रीय कानून बनाने की कार्यवाही करें |

12) भारतीय विधि व्यवस्था के तहत नाबालिग की चल-अचल संपत्ति का हस्तान्तरण बेचान इत्यादि नहीं हो सकता | साथ ही भारत में भारतीय विधि व्यवस्था के तहत मूल अधिकारों का त्याग भी नहीं हो सकता - क्योंकि मूल अधिकारों को एक नीतिगत आधारों पर स्थापित किया गया है | ऐसी स्थिति में धर्म-परिवर्तन करने वाले अपने बच्चो को पूर्वजों की आस्था-विश्वास के मूल अधिकारों से त्याग कैसे करवा सकते है, जो कि भारतीय संविधान के मूल अधिकार (अनु. 25) में स्पष्ट है | साथ ही उनके पूर्वजों के साथ चली आयी सामाजिक परंपरा व सांस्कृतिक परंपरा का हनन कैसे हो सकता है ? और इस प्रकार भारतीय संविधान के अनु. 51 (क) के मूल कर्त्तव्य और अनु. 25 के मूल अधिकारों का त्याग स्वयं भी नहीं कर सकते | अंतःकरण की स्वतंत्रता में आप केवल पूर्णतः व्यक्तिगत स्थान पर अथवा बंद कमरे में किसी भी इष्ट का ध्यान - नाम - जप इत्यादि कर सकते है ------- आप भौतिक रूप से उस अंतःकरण की स्वतंत्रता का -- प्रकटीकरण नहीं कर सकते, क्योंकि वह भारतीय संविधान और भारतीय विधिव्यवस्था के तहत विधि शून्य होता है | कोलकात्ता पुलिस कमिश्नर बनाम आनंद मठ (सर्वोच्य न्यायालय - धार्मिक क्रियाओं का भौतिक प्रकटीकरण करने पर) इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं | इसी प्रकार पुष्कर में में एक विदेशी महिला पर्यटक द्वारा आध्यात्मिक क्रिया का भौतिक प्रकटीकरण करने पर उसे गिरफ्तार किया गया | इसका सामान्य भाषा में एक उदाहरण इस प्रकार भी समझ सकते है कि भारतीय नागरिक - भारतीय विधिव्यवस्था के तहत अंतःकरण की स्वतंत्रता का अधिकार रखता है - वह अंतःमन से विश्वसुंदरी से शादी कर सकता है किन्तु किसी कार्यक्रम में --- भीड़ के अंदर वह उसका स्पर्श भी करता है अथवा हाथ भी पकड़ता है, उसका परिणाम आप-हम सभी समझ सकते है - इस प्रकार विश्वस्तर पर अन्तःकरण की स्वतंत्रता सिद्ध होती है किन्तु उसका भौतिक प्रकटीकरण लोक-व्यवस्था, लोक-स्वास्थ्य और सदाचार के तहत ही होता है | दूसरे स्तर पर अनु. 25 के तहत धर्म के प्रचार-प्रसार का अधिकार है, निम्न श्रेणी के नादानो को यह मालूम नहीं है कि प्रचार-प्रसार अपने मजहब का अपने समाज में और अपने उपासना स्थलों में ही होता है अथवा स्थानीय प्रशासन से किसी स्थान विशेष की अनुमति लेकर - उसमे भी स्वयं के मजहब का ही प्रचार कर सकते है न कि - दूसरे धर्म के विरुद्ध अभिव्यक्ति | उदाहरण के लिए भारत में वर्तमान समय चंगाई सभा ईसाई समाज की तरफ से हो रही है - जिसमे सर पर हाथ रख कर रोग ठीक कर देना, व्हीलचेयर वालों को चला देना आदि अनेक प्रकार के रोगों का तत्काल में निदान/उपचार किया जाता है | इसी प्रकार छोटे-मोटे ग्रामीण क्षेत्रों में भोले भाले कुछ हिन्दू समुदाय को इकठ्ठा करके - अटकी हुई गाडी को हनुमान जी के नाम से न चलाना और यीशु के नाम से गाडी दौड़ पड़ती है - ऐसे हास्यास्पद पाखड़ भारत में हो रहे है, भारत सरकार मूक दर्शक है | इस ईसाई चंगाई सभा ने तो हद पार कर दी - आगे 20-25 लोग उनके ही होते है, वे रोग से मुक्त होते है (पाखड़ स्वरुप) तो नाचने लगते है, उनके अनुसरण में पीछे वाले नृत्य की अथवा हिलने-डुलने की मुद्रा बनाते है, यह एक आखों का सामान्य विज्ञान है | दूसरे स्तर पर यह भी होता है कि 10% जागरूक दिमाग तथ्यपूरक - तर्कपूर्ण  होता है और 90% उप-जागरूक दिमाग ऑटो पायलट की तरह होता है जैसे रक्त संचार करना, हार्ट को चलाना अर्थात स्वतः ही क्रियाएँ करता रहता है | इसी 90% दिमाग को पाखंड लोग अपनी कुटिल काली चालाकी से निर्देशित करते है (चिकित्सा के क्षेत्र में इस क्रिया में कुटिलता नहीं होती है क्योंकि चिकित्सक सकारात्मक कार्यों के लिए कार्य करते है न कि नकारात्मक कार्यों ले लिए), अर्थात पाखड़ के अलावा कुछ भी नहीं है - उपरोक्त तथ्य की सत्यता चिकित्सा विज्ञान सिद्ध कर सकता है क्योंकि यह एक सामान्य प्रक्रिया है | भारत की कुछ सामान्य जनता इस चालाकी से बहुत दूर है या ऐसे समझ सकते है कि 10% जागरूक दिमाग को कुछ समय के लिए शांत कर देते है | ईसाई मिशनरी वाले भारतीय जनता को इतना मुर्ख समझते है (कांग्रेस - वामपंथी व अन्य घटक दलों के मूक समर्थन से) | यदि कुछ समय के लिए वास्तव में ऐसा मान लिए जाता है तो फिर ------------------- ईसाई मजहब के विश्व सम्राट पोप जॉन पॉल को व्हील चेयर से छुटकारा क्यों नहीं दिला देते, जो वर्षो से उठ नहीं सकते - चल नहीं सकते (पूर्व के पॉप जॉन पॉल 2 को कई शल्य क्रियाओं - कोलन कैंसर संबंधी, कंधे का डिस्लोकेशन, कूल्हे का प्रत्यारोपण, अपेंडिक्स का ऑपरेशन इत्यादि, से गुजरना पड़ा था) | दूसरे स्तर में यह पाखंडी ईसाई सभा व ऐसे ही धर्म परिवर्तन के लिए इस प्रकार के अन्य पाखण्डों का आयोजन अमेरिका-ब्रिटैन में और मुल्ला-मौलवियों - कट्टरवादियों के पाखंडों का सऊदी अरब - अरब अमीरात देशों में क्यों नहीं होता है | इसमें महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है पाखंड के खिलाफ कार्यवाही करने वाली संस्थाएं उपरोक्त संस्थाओं के खिलाफ कितने वाद किये है यह जाँच का विषय है क्योंकि सनातन कभी भी धर्म परिवर्तन के लिए अन्य मजहबों को निम्न स्तर पर बता कर अपनी अभिव्यक्ति प्रकट नहीं करता है, फिर भी इस प्रकार की संस्थाएँ सनातन के विरोध में प्रदर्शन करना, वाद दायर करना इत्यादि कार्य करते रहते है - यदि सनातन - हिन्दू धर्म सार्वभौमिक न होता, तो उपरोक्त स्थिति होती - किन्तु हिन्दू धर्म का शाश्वत होना ही इस बात का प्रमाण है - बगैर धर्म परिवर्तन के आयोजनों के उपरांत विश्व के 70 से अधिक देशों में इस्कॉन मंदिर है और वहां स्वतः ही वहां के नागरिकों द्वारा सनातन पद्दति से पूजा - अर्चन - भोग इत्यादि होते है | अतः प्रस्तुत विषय का सुनिश्चित मत है कि भारत  सरकार भारतीय संविधान के तहत - संविधान द्वारा स्थापित कर्तव्य व्यवहार का निर्वहन करते हुए धर्म परिवर्तन पर तत्काल प्रतिबन्ध करने हेतु तत्काल कठोर केंद्रीय कानून बनाया जावे | साथ ही आज दिनांक तक जो भी नागरिक ईसाई व अन्य मजहबी बनने के बाद हिन्दू नाम व हिन्दू चिन्हों का प्रयोग कर रहे है उनपर राष्ट्रद्रोही की कार्यवाही के साथ प्राप्त सरकारी सहायता भी जुर्माने के साथ वसूली जावे | भारतीय संविधान में अत्यंत सरल और सहज रूप से सभी राष्ट्र विरोधी कार्यों का क्रियान्वयन संभव है और भारत सरकार से अपेक्षित भी है | हम तो तात्कालिक सत्ता सुख भोग लेंगे (राष्ट्र को जाति, समाज, अमीर-गरीब के आधार पर खण्ड-खण्ड करके) अथवा विदेशी एजेंट के कार्य स्वरुप धन-दौलत प्राप्त कर लेंगे - इस प्रकार के सभी राष्ट्र विरोधी कार्यों की हम प्रदर्शनी देखते है | विशेष तथ्य यह है कि आने वाली पीढ़ियाँ रोयेगी - उसमे तुम्हारी भी होगी |

13) राष्ट्रवादी कांग्रेस बाल-लाल-पाल, नेताजी, पटेल, गाँधी जी तक ------- फिर नेहरू जी और श्रीमती गाँधी जी आये उनके द्वारा समकक्ष नेताओं - क्रांतिकारियों को नकारना प्रमुख रहा | राजीव गाँधी ने दबावपूर्ण कार्य किये - पड़ोस में सेना भेजना, हिन्दू समुदाय में विभेदकारी नीति के तहत "पेड़ गिराना" इत्यादि | वर्तमान कांग्रेस चौकड़ी - वामपंथी दल - सहयोगी अन्य गुट निम्न श्रेणी के नादान है | वह राष्ट्रवाद - राष्ट्र संस्कृति से और सनातन - हिन्दू धर्म से और हिन्दुओं से स्वयं की अन्तःकरण की स्वतंत्रता के तहत नफरत / घृणा करते है (नार्को टेस्ट करवा सकते है) | जिस साइमन कमिशन ने हिन्दू समुदाय की राष्ट्रीय व सामाजिक स्तर पर एकता और अखंडता के खंडन का षड्यंत्र किया, जिसका भारत के तीन लाल …… लाल-बाल-पाल ने विरोध किया | पंजाब में लाला लाजपत राय (लाल) ने बलिदान दिया और उसी बलिदान का बदला शहीद भगत सिंह ने फांसी के रूप में प्राप्त किया ----- | आज उन बलिदानों को भूल कर नादानों (कांग्रेस-वामपंथी व सहयोगी घटक दल) द्वारा ऐसा कार्य किया जा रहा है, कि एक व्यक्ति - कुछ तामसिक पदार्थ खाने के बाद एक ही अभिव्यक्ति में लग जाता है - ठीक उसी तरह जाति गणना - जाति गणना - जाति गणना और ओ.बी.सी. एवं एस.सी. - एस.टी. का रोना ही लगा रहता है | इस प्रकार लाल आतंक - अर्बन नक्सलवाद के साथ मिलकर कांग्रेस व सहयोगी घटक दलों ने बाल-पाल-लाल और भगत सिंह के बलिदान का ---- | इन्ही निम्न श्रेणी के नादानों द्वारा सिख आतंकवाद को समर्थन देकर हिन्दू समुदाय के चारों समाजो में विघटन करना - विशेषकर सिख समाज को हिन्दू समुदाय के अन्य तीन  समाज से अलग करना - राष्ट्र विरोधी सिखों को, जो कांग्रेस - वामपंथ (लाल आतंक व अर्बन नक्सलवाद) से निर्देशित है, उन्हें समर्थन देकर हिन्दुओं के गौरवशाली त्याग और बलिदान के शिरोमणि सिख समाज को बदनाम करके असंतोष - विभेदकारी नीति पैदा कर रहे है| यह सभी निम्न श्रेणी के नादान ओ.बी.सी., एस.सी. - एस.टी. का रोना रोते रहते है, वास्तव में इनको इनसे किसी प्रकार का प्रेम अथवा सहानुभूति नहीं है और न ही विकास में इनके योगदान को शामिल करना चाहते है - इनका वास्तविक उद्देश्य हिन्दू समुदाय की एकता को खंडित करना और अपना राजनैतिक स्वार्थ सिद्ध करना ---- | स्पष्ट है कि राष्ट्र के जामिया - अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालयों में इन निम्न श्रेणी के नादानो द्वारा ऐसी व्यवस्था की गयी, कि आज दिनांक तक ओ.बी.सी., एस.सी. - एस.टी. छात्रों को यहाँ आरक्षण नहीं मिलता - और न ही 75 वर्षों से कश्मीर में धारा 370 के हटने तक ओ.बी.सी., एस.सी. - एस.टी. की स्थिति दयनीय हुई क्योंकि  राज्य में एक भी छात्र-छात्रा को शिक्षा में अथवा सरकारी नौकरी में आरक्षण नहीं मिला ------------ इन निम्न श्रेणी के नादानो के साथ, जो मजहबी कट्टरवादियों का समूह है, वह भी जाती गणना के साथ दलित भाई - दलित भाई करता है | उपरोक्त दोनों मामलो में इन मजहबी लोगो का चेहरा स्पष्ट होता है कि यह दलितों से, पिछड़े वर्ग से, आदिवासी से कितना अपनत्व रखते है क्योंकि आज भी यह सभी घटक दल धारा 370 को पुनः स्थापित करना चाहते है | इसी प्रकार इन निम्न श्रेणी के नादानो द्वारा कर्नाटक-बंगाल में भी ओ.बी.सी. के आरक्षण में, मजहबी कट्टरवादियों के आग्रह-दबाव में, पिछड़े वर्ग में विशेष मजहब की जातियों को भर दिया |

इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों से सुनिश्चित रूप से स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस - वामपंथी और अन्य साथी घटक दलों और मजहबी कट्टरवाद वाले नेताओं का ----- दलित प्रेम, आदिवासी प्रेम, पिछड़ा वर्ग प्रेम नादनपूर्ण विषाक्त अभिव्यक्ति मात्र है | वैज्ञानिक तथ्यों से यह और भी स्पष्ट हो सकता है की उपरोक्त राजनैतिक दलों व इन कट्टरवादियों का दलितों से, आदिवासियों से, पिछड़े वर्ग से कोई लगाव-प्रेम नहीं है ----- | अपितु हिन्दू समुदाय को खण्ड-खण्ड करके, राष्ट्र की एकता-अखण्डता को तोड़ कर भारतवर्ष को खण्ड-खण्ड करना ही, एकमात्र इनका उद्देश्य है | वर्तमान में ये सभी नादान संविधान - जाती गणना - समाज का विकास - आरक्षण को लेकर तोते की तरह रट लगा रखी है, जिसके मूल में भी वोट बैंक के साथ भारत के हिन्दू समुदाय को खण्ड-खण्ड करना अर्थात देश की एकता - अखण्डता को खत्म करना ही है | यह सुनिश्चित रूप से 100% सटीक व सत्य है क्योंकि चिकित्सा क्षेत्र के वैज्ञानिक परीक्षणों से यह स्वयं सिद्ध तथ्य बन सकता है | कांग्रेस चौकड़ी के अंकल सिख दंगो पर कहते है - हुआ सो हुआ, क्योंकि उनको हिन्दू समुदाय से कुछ भी मतलब नहीं है | यहाँ तक कि राजीव गाँधी को भी निम्न श्रेणी का प्रस्तुत करने से न अंकल को परेशानी  है न ही चौकड़ी के अन्य तीन सदस्यों को, अंकल कहते है कि चौकड़ी का एक सदस्य राजीव गाँधी से अच्छा रणनीतिकार है और प्रधानमंत्री योग्य है ---- | यह कितने आश्चर्य की बात है चौकड़ी के अन्य तीन सदस्य मूक समर्थन में रहते है | साथ ही यह चौकड़ी डी.एम.के. से बहुत अच्छा व्यव्हार रखती है जो राजीव गाँधी हत्या काण्ड में नामांकित और घोर रूप से सनातन और हिन्दू धर्म के विरुद्ध है | ऐसा ही कुछ गाँधी जी की हत्या पर महाराष्ट्र में मराठा ब्राह्मणों की सिखों से कई गुना अधिक हत्या होने पर ----- कांग्रेस और वामपंथियों ने सामान्य घटना ---- | यह सार्वजानिक रूप से पूर्णतः स्पष्ट होता है कि चौकड़ी के स्वयं के कुछ प्रमुख सदस्यों की न जात का - न धर्म का - न समाज का स्पष्ट रूप से - प्रामाणिक रूप से - वैधानिक रूप से कोई भी जानकारी नहीं है जबकि इनके द्वारा जातिगत गणना और सामाजिक विभेद का रोना रोया जाता है | प्रांरभ से ही कांग्रेस और वामपंथियों ने मिलकर इतिहास की ऐसी रचना की कि अकबर को महान बताया गया और पाठ्यक्रम में पढ़ाया गया, जबकि सबसे ज्यादा रक्त-पात (युद्ध थोपे गए) अकबर के ही काल में हुआ  और मंदिरों को तोड़ने में भी अकबर प्रमुख रहा | इसका साक्ष्य आमेर के मंदिरों के शिला लेख से स्पष्ट होता है, अकबर की सेना जब मंदिरों को तोड़ती - उससे पूर्व ही सेनापति मानसिंह द्वारा इष्ट देव भगवान् के विग्रहों को निकालकर अपने शिविर में सुनिश्चित रूप से सुरक्षित करना ---- | इस प्रकार अकबर की सेना केवल मिटटी-पत्थर की इमारतों को ही तोड़ पाती | जहांगीर को न्याय प्रिय पढ़ाया गया, जिस प्रकार अकबर को महान पढ़ाया गया ---- इस प्रकार यह सर्वविदित है कि हमारे वाहे गुरु की निर्मम हत्या भी जहांगीर के द्वारा ही कराई गयी, साथ ही इन्होने महा पराक्रमी कश्मीर के महाराजा ललितादित्य, जिसने हिन्दू राज्य के रूप में कश्मीर का बहुत विकास किया - अनेकों मंदिरों का निर्माण हुआ, हज़ारों किलो सोने-चांदी की मूर्तियां लगायी गयी और कश्मीर में सूर्य मंदिर के अवशेष आज भी है | 1300-1400 ईस्वी में भी वहां इस्लाम के नाम पर हत्यारों - लुटेरों का आगमन हुआ, नादान वर्ग आज भी बात करते है - कश्मीर को मुस्लिम क्षेत्र में सुरक्षित करने की | अतः स्कूल - कॉलेज और प्रतियोगी परीक्षाओं में राजा दाहिर सेन से लेकर खुदीराम बोसे व हेमू कालाणी तक राष्ट्रवादी महापुरुषों - आदर्श महापुरुषों - क्रांतिकारियों के सम्बन्ध में पूर्णतः सकारात्मक पाठ्यक्रम बनाया जावे, जिसका पूर्व में विस्तृत विश्लेषण किया गया है | साथ ही सातवीं शताब्दी से पूर्व अर्थात राजा दाहिर सेन से पूर्व के भारतीय संस्कृति के महामना आदर्श महापुरुषों के साथ शाश्वत सत्य शास्त्रों का भी सार रूप में पाठ्यक्रम होना चाहिए, जिससे हमारी आने वाली पीढ़ियां अपने मौलिक अस्तित्व पर - भारतवर्ष पर - सार्वभोमिक शाश्वत सत्य रुपी सनातन धर्म पर गर्व कर सके | भारतीय संविधान से सब कुछ अपेक्षित यही - व्यवहार रूप से साध्य भी है | वर्तमान में हम तो तात्कालिक सत्ता सुख भोग लेंगे (राष्ट्र को खण्ड-खण्ड करके) अथवा विदेशी एजेंट के कार्य स्वरुप धन-दौलत प्राप्त कर लेंगे ---- आने वाली पीढ़ियां रोयेगी, उसमे तुम्हारी भी होगी |

14) भारत सरकार सुनिश्चित व प्रभावी रूप से, ऐसी प्रभावी विधिक प्रक्रिया अपनाकर - ब्रिटिश हुकूमत से कोहिनूर हीरा पुनः भारत सरकार प्राप्त कर "जय जगन्नाथ भगवान" को अर्पण करें, क्योंकि यह हिन्दू समुदाय के महा पराक्रमी व धर्म युक्त महाराजा रणजीत सिंह जी की अंतिम वसीयत का प्रमाण है कि कोहिनूर हीरा "जय जगन्नाथ भगवान" को अर्पण करना है | ब्रिटेन के लिए (बकिंघॅम पैलेस) मंदिर की संपत्ति को रखना दरिद्रता व अशांति का घोतक सिद्ध होना सुनिश्चित है |

उपरोक्त सारभूत अंश को बैनर बनवाकर कोई भी संस्था - संगठन - समाज सुविधा के अनुसार जिला मजिस्ट्रेट - संभागीय आयुक्त, राजधानी होने पर राज्यपाल को बैनर की तस्वीर व पत्र के साथ "विश्वमाता डॉट कॉम" का रंगीन प्रिंट निकलवाकर भारत के प्रधान कार्यकारी - प्रधान सेवक - प्रधानमंत्री को ज्ञापन प्रेषित कर सकते है न की न्यायपालिका में | क्योंकि अंततः इसका क्रियान्वयन भारत सरकार द्वारा ही संभव है | प्रस्तुत विषय में न्यायपालिका अंतिम से अंतिम विकल्प है | 

विशेष - उपरोक्त भूमिका के बिंदु संख्या 18 का प्रस्तुतीकरण कांग्रेस-कम्युनिस्टों और उनके सहयोगी विचारधाराओं की विभाजनकारी नीतियों का स्पष्टीकरण हेतु अनिवार्य हो गया, साथ ही हिन्दू समुदाय के चारों समाज (हिन्दू समाज - सिख समाज - जैन समाज - बौद्ध समाज) की एकता और मानसिक विचारधारा और आध्यात्मिक एकत्व-अपनापन बनाये रखने हेतु और इन विचारधाराओं से सावधान रहने हेतु प्रस्तुत किया गया है - क्योंकि राष्ट्र संस्कृति का आधारभूत ढाँचा और प्राकृत प्रकृति का कार्य (गौवंश की रक्षा और उनका सुखदायी जीवन और उन्नत-सस्ती-गुणवत्ता युक्त कृषि अर्थात गोबर-गौमूत्र का सम्पूर्ण उपयोग) चारों समाज के एकत्व के बग़ैर लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता | जिस प्रकार भारतीय संस्कृति के आधारभूत ढाँचे - गौवंश की रक्षा - का जो प्रस्तुत विषय है उसमे हिन्दू समुदाय के सभी अंगों का जो संस्कृति के घोतक रहे है उन पर भी विधि व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास किया गया है | प्रस्तुत विषय भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का रक्षण करने का जो संवैधानिक प्रस्तुतीकरण है ठीक उसी प्रकार यह अपेक्षित हो जाता है - अनिवार्य हो जाता है - आवश्यक हो जाता है कि भारतीय संस्कृति के बाधक तत्वों का उन्मूलन होना अनिवार्य है | क्योंकि भारतीय संस्कृति के रक्षण पर बाधक तत्त्वों का इतना नादनपूर्ण होना सुनिश्चित है --- कि भारतीय समाज को क्षेत्र वार - भाषागत - जातिगत व अन्य हर रूप से बाटने और विदेशो में देश की बदनामी का प्रयास --- अतः उन बाधक तत्त्वों का भी पूर्ण रूप से उन्मूलन होना अनिवार्य है - आवश्यक है अन्यथा इस भारतीय संस्कृति के प्रस्तुत विषय का शांतिपूर्ण क्रियान्वन होना संशय पूर्ण हो जाता है | 

प्रस्तुत विषय के बाधकपूर्ण तत्व 

 

प्रथम स्तर पर यह विधिक तथ्यों का स्वयं सिद्ध बोध है साथ ही संवैधानिक सक्षम तंत्रों का भी -------------- |  प्रस्तुत विषय 23 से 27 वर्ष पूर्व साक्ष्यों की प्रतिकोपियाँ ------ | निकट समय में प्रस्तुत विषय का भी सभी संवैधानिक व विधिक तथ्यों के साथ सम्पूर्ण प्रकाशन भाग 3 के रूप में सुनिश्चित है |

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भारतीय संस्कृति के आधारभूत ढांचे के रक्षण - संरक्षण - संवर्धन (गौवंश), का कार्य बेगैर किसी कठनाई के क्रियान्वयन हेतु - बाधक तत्व के रूप में दो दशक से भी पूर्व की वेबसाइट आचार्यभगतसिंह.कॉम से कुछ अंश प्रस्तुत है क्योंकि इन बाधक तत्वों की समाप्ति पर भारतीय संस्कृति के अन्य कार्यों का भी राष्ट्रवाद के साथ सुचारु रूप से क्रियान्वयन होना सुनिश्चित है |

प्रतिकॉपी 13 – निर्वाचन आयोग के आदेशों व निर्देशों का उदाहरण (कपास निर्यात को भी रोका गया, उत्तर प्रदेश में हवाई वाहन के दुरुपयोग पर चुनाव निरस्त किये गए --- क्योंकि मतदाता प्रभावित - आकर्षित - पुर्वग्रसित - भ्रमित ना हो)

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प्रतिकॉपी 14 – राष्ट्र प्रतीकों के संबंध में क़ानून के शासन की सक्रियता

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प्रतिकॉपी 2 – मुख्य आयुक्त से प्राप्ति रसीद

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प्रतिकॉपी 10 – आयुक्तों को प्रस्तुतिकरण

प्रतिकॉपी 4 – भारतीय संविधान के अनु. 24 एवं उसकी शब्दावली "स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव" और उसकी अनुपालना में बनी तमाम विधिव्यवस्था और न्यायपालिका के निर्णय - इन सभी का विश्लेषण पूर्णतः भारतीय संविधान के अनु. 132 के तहत विधि के सारवान प्रश्न के रूप में प्रस्तुत विषय को, प्रस्तुत किया गया है | तत्कालीन मुख्य निर्वाचन आयुक्त को सभी कुछ समझ में आने के पश्च्यात भी -- यहाँ तक कि पोस्टर की तस्वीर जिसमे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (ई) 24 अकबर रोड, नई दिल्ली का चुनाव चिन्ह हाथ (पंजा) राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के साथ, राष्ट्र ध्वज के रंगो की समानता के साथ प्रचारित-प्रसारित किया गया | और तत्कालीन मुख्य निर्वाचन आयुक्त मूक दर्शक बने रहे --- जबकि पूर्व में एक प्रधानमंत्री का निर्वाचन न्यायालय द्वारा इस आधार पर रद्द किया गया कि उन्होंने एक राजपत्रित अधिकारी का दुरूपयोग किया -- निर्णय को प्रस्तुत किया गया -- फिर भी मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने पूर्व प्रधानमंत्री के सुरक्षा अधिकारी का कर्तव्य निर्वहन करते-करते कांग्रेस (ई), के सुरक्षा अधिकारी स्वयं सिद्ध हो गए अथवा पद की योग्यता नहीं अथवा आयोग कर्मचारियों पर नियंत्रण नहीं | प्रस्तुत विषय की प्रेषण की कार्यवाही - भौतिक रूप से प्रस्तुतीकरण की कार्यवाही और भौतिक रूप से आयोग व निवास स्थान की कार्यवाही का सम्पूर्ण विश्लेषण शीघ्र ही भाग 3 में स्पष्ट होना सुनिश्चित है | वर्तमान में केवल विश्वमाता.कॉम के भाग प्रथम व भाग द्वितीय में बाधक तत्व के रूप में मुख्य अंश ही प्रस्तुत किये गए है |

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विशेष नोट -- तत्कालीन समय में भारत के सबसे बड़े मीडिया हाउस के प्रधान संपादक प्रभात जोशी जी से लेकर सामान्य मीडिया संस्थानों के संपादक महोदय समझ गए के प्रस्तुत विश्लेषण भारतीय संविधान के अनु. 132 के तहत विधि का सारवान प्रश्न है अर्थात ऐसा विश्लेषण और निर्वचन प्रस्तुत विषय में आज दिनांक तक नहीं हुआ और सम्पूर्ण कांग्रेस का वर्तमान स्वरुप असंवैधानिक अथवा अवैध है, किन्तु मुख्य निर्वाचन आयुक्त व सह आयुक्तों की ---- |

प्रतिकॉपी 11 – समाचार पत्रों में आलेख के रूप में प्रकाशन

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प्रतिकॉपी 6 – गाँधी जी के दूरुपयोग की तस्वीर (मूल प्रतिकॉपी)

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याद रहे इसी राष्ट्र में "कानून के शासन" के तहत एक राजपत्रित अधिकारी यशपाल कपूर के दुरूपयोग करने से प्रधानमंत्री श्रीमती गाँधी का निर्वाचन, भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में आने से न्यायपालिका द्वारा उनके निर्वाचन को अवैध और विधी शून्य घोषित किया गया | प्रस्तुत विषय में उपरोक्त तथ्य तो चुनाव चिन्ह से सम्बंधित है जो सम्पूर्ण पार्टी और उम्मीदवारों पर लागू होता है | साथ ही गठबन्धन के उम्मीदवारों के निर्वाचन पर भी लागू होता है  पूर्व में एक राजपत्रित अधिकारी का मामला ---- | वर्तमान में राष्ट्रपिता के साथ चुनाव चिन्ह का प्रचार प्रसार --- समझने वाले पूर्णतः स्पष्टतः समझते है कि यह पूर्णतः स्पष्टतः भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में आने से तत्काल समय से प्रतिबंध योग्य हो गया और वर्तमान में कांग्रेस व गठबंधन उम्मीदवारों की उम्मीदवारी व निर्वाचन दोनों अवैध सिद्ध होते है |

प्रतिकॉपी 7 - गाँधी जी की अंतःकरण की व्यथा - प्रतिकॉपी 8 – गाँधी जी का वसीहतनामा

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प्रतिकॉपी 15 – कांग्रेस कुनबे द्वारा गाँधी की पल-पल हत्या

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प्रतिकॉपी संख्या 7 और 8 को पढ़ने, समझने और समझाने से गाँधी जी की वैचारिक - व्यवहारिक कार्य प्रणाली सत्य रूप में प्रामाणिक सिद्ध होती है, किन्तु प्रतिकॉपी संख्या 15 को देखने मात्र से कांग्रेस राजनैतिक दल के रूप में भारतीय संविधान के अनु. 324 की शब्दावली - "स्वतंत्र व निष्पक्ष" चुनाव का पूर्णतः अतिक्रमण करती है एवं इनकी नादानी हास्यास्पद रूप से स्वयं सिद्ध है | प्रतिकॉपी संख्या 6 में गाँधी जी के दुरूपयोग की तस्वीर (भारत की प्रथम संसद में सर्वसहमति से राष्ट्रपिता घोषित किया), और उन्होंने प्रतिकॉपी संख्या 7 और 8 में आज़ादी के आंदोलन वाली कांग्रेस को समाप्त करने का निर्देश दिया | प्रथम दृष्टि से प्रतिकॉपी संख्या 6 में वर्तमान समय की राजनैतिक पार्टी कांग्रेस का चुनाव चिन्ह "हाथ" (पंजा) का प्रचार - प्रसार भारतीय संविधान के अनु. 324 व उसकी अनुपालना में बनी विधि-व्यवस्था, साथ ही स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की शब्दावली को स्पर्श करने वाले संविधान के अनु. व भारत में प्रभावी अन्य विधियों का उल्लंघन सिद्ध होता है, अर्थात भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में चुनाव चिन्ह का प्रचार-प्रसार हुआ है | साथ ही इलेक्शन मैन्युअल के आधार पर मतदान केंद्रों पर निश्चित दूरी के पश्चात् चुनाव चिन्ह का प्रवेश अवैध माना जाता है - मतदान केंद्रों की अवैध सीमा में चुनाव चिन्हों का प्रवेश करने पर कठोर प्रतिबन्ध है | ऐसी स्थिति में भी मतदाता हाथ हिला सकते है, संकेत कर सकते है - अब प्रश्न यह उठता है कि अनु. 324 के तहत मतदान केंद्रों पर मतदाता हाथ का पंजा काट कर नहीं जा सकते | दोनों ही परिस्थितियों में चुनाव आयोग द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, 24 अकबर रोड, नई दिल्ली - का चुनाव चिन्ह भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में आने के कारण तुरंत जप्त करने की स्थिति में है | प्रस्तुत विषय ने दो दशक पूर्व ही सभी संवैधानिक व विधिक तथ्यों के साथ इस पर कार्यवाही करने का अनुरोध किया जिसके तमाम साक्ष्य प्रस्तुत विषय के पास है जिसका प्रकाशन "भाग 3" के रूप में निकट भविष्य में होना सुनिश्चित है | ऐसी स्थिति में तत्काल वर्तमान के चुनावी समर में कांग्रेस के उम्मीदवारों व इनके सहयोगी दलों के गठबन्धन वाले उम्मीदवारों  का निर्वाचन होने पर भी भ्रष्ट आचरण के कारण इनका निर्वाचन अवैध - विधि शून्य होना सुनिश्चित है | अतः इन उम्मीदवारों का शारीरिक - मानसिक श्रम व धन का व्यय परिणाम में शून्य होना सुनिश्चित है क्योंकि प्रस्तुत विषय ने इस संबंध में जिला निर्वाचन अधिकारी से लेकर भारत के निर्वाचन आयोग के सभी आयुक्तों को साक्ष्य प्रस्तुत (दो दशक पूर्व) कर दिए गए है | अब जो भी कार्य है वो भारत के निर्वाचन आयोग को ही करना है | और यह भी सार्वजनिक करना है की पूर्व में ऐसा क्यों नहीं किया गया --- |

निकट भविष्य में राजनैतिक दल के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, 24 अकबर रोड, नई दिल्ली - का वर्तमान में राजनैतिक दल के रूप में इसके तमाम क्रियाकलाप भारतीय संविधान के अनु. 324 और उसके अनुपालना में बानी तमाम विधि व्यवस्था और अनु. 324 की शब्दावली "स्वतंत्र व निष्पक्ष" चुनाव के सन्दर्भ में भारतीय संविधान के अन्य अनु. अथवा भारतीय प्रभावी विधि व्यवस्था स्पर्श करती है उस सभी के तथ्यात्मक विश्लेषण के आधार पर वर्तमान राजनैतिक दल कांग्रेस पूर्णतः विधि शून्य सिद्ध होना सुनिश्चित है | साथ ही यह विधि का सारवान प्रश्न है क्योंकि कुछ भाग का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय ---- | 
1) वर्तमान राजनैतिक दल कांग्रेस के नाम का उपयोग ---- विधि शून्य है | 
2) वर्तमान राजनैतिक दल कांग्रेस की विषयवस्तु का उपयोग --- विधि शून्य है | 
3) वर्तमान राजनैतिक दल कांग्रेस का ध्वज का प्रयोग --- विधि शून्य है | 
4) वर्तमान राजनैतिक दल कांग्रेस का चुनाव चिन्ह का उपयोग --- विधि शून्य है | 
5) वर्तमान राजनैतिक दल कांग्रेस की 26 जनवरी 1950 से पूर्व की सभी चल-अचल संपत्ति राष्ट्रीय संपत्ति सिद्ध है और निर्णय की तारीख तक उस संपत्ति का उपयोग-प्रयोग वर्तमान किराया दर अथवा मूल्य के अनुसार भुगतान भी अनिवार्य है | 

       उपरोक्त सभी का संवैधानिक साक्ष्यों - न्यायपालिका के निर्णयों - राष्ट्र में प्रभावी विधि व्यवस्था के गहन विश्लेषण के तहत भाग 3 के रूप में निकट भविष्य में सम्पूर्ण प्रस्तुतिकरण सुनिश्चित है |  

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चलते-चलते सम-सामयिक विशेष -----

       सदियों की गुलामी के बाद अपने बाहुबल से भारत के भू-भाग को आज़ाद करवाया गया - उस प्रथम सरकार, जिसको अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त होना - विदेशों में दूतावास होना, ऐसी सरकार के मुखिया द्वारा उस भू-भाग को स्वराजद्वीप – शहीदद्वीप दो नाम दिए गए वो कहाँ है ? भारत के भू-भाग को आज़ाद कराने वाली उस सेना का नाम - आज़ाद हिन्द फ़ौज - उस सरकार का नाम - आज़ाद हिन्द सरकार, उसके मुखिया का नाम (प्रधानमंत्री - राष्ट्रपति) - विश्व नेता नेताजी सुभाष चंद्र बोस | कानून के शासन को इस पर गम्भीरता से कार्यवाही करना अपेक्षित है (आज़ादी के बाद अराष्ट्रवादी सरकार - कांग्रेस व कम्युनिस्टों ने भारत के स्वाभिमान स्वरुप इन दोनों स्थानों के नाम को लुप्त कर दिया, लेकिन कुछ भरपाई वर्तमान की सरकार ने की है फिर भी प्रस्तुत विषय इसको पर्याप्त नहीं मानता, बाल-पाल-लाल और पटेल, कांग्रेस ने अपने ही भारत माता के लालों को लुप्त कर दिया| वर्तमान सरकार द्वारा कुछ सीमा तक भारत माता के लालों की भरपाई की है किन्तु प्रस्तुत विषय व्यापकता के तौर पर इसको भी अपर्याप्त मानता है) | साथ ही भारत सरकार को पाठ्यक्रम व इतिहास में राजा दाहिरसेन से लेकर डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सर छोटू राम चौधरी जी को कांग्रेस-कम्युनिस्टों द्वारा पूर्णतः विलुप्त कर दिया गया – अतः इनका पाठ्यक्रम में विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए) तक की गौरवशाली परंपरा को - जिसमे खुदीराम बोस से लेकर पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, पन्ना धाय और हेमू कालाणी जैसे सभी क्रांतिकारियों व राष्ट्रभक्तों का समावेश होना चाहिए, और हिन्दू धर्म के लिए वाहे गुरुओं और उनके शिष्यों व भक्तों की लासानी शहादतों से लेकर क्षत्रिय वीरांगनाओं जो सैकड़ों स्थानों पर स्वयं को अग्निकुण्डों में धर्म रक्षा के लिए हज़ारों की संख्या में स्वाहा हो गयी, साथ ही भारतीय सांस्कृतिक स्थानों का भी समावेश अनिवार्य है, इनमें कुछ स्थानों पर ऐसे मंदिर है जो भू-विज्ञान और खगोल-विज्ञान से संबंध रखते है जो विश्व का विज्ञान भी समझ नहीं पाया | मुगलकाल व अन्य शासन व्यवस्था की महिमामंडन पर प्रतिबंध लगाया जावे और इनको हत्यारों और लुटेरों के रूप में परिभाषित करना ---- | इससे भारतीय संविधान के अनु. 51(क) की पालना भी सुनिश्चित है | इस प्रकार कांग्रेस - कम्युनिस्टों ने भारत की इस गौरवशाली परंपरा पर भी अपने तुष्टिकरण का पर्दा लगा दिया |

     

 भारत के संप्रदाय विशेष के लोगों की मूल भावना इस्लाम पक्ष की न होकर हिन्दू समुदाय के चारों समाजों की भावनाओं को ठेस पहुँचाना ही रहता है (जिसका मुख्य कारण कांग्रेस - कम्युनिस्टों और उनके सहयोगी दलों की विषतुल्य तुष्टिकरण नीति है जिसके कारण संप्रदाय विशेष के उग्र स्वभाव का समूह कट्टरवाद और सामान्य अपराधी स्वभाव का समूह माफिया-डॉन में परिवर्तित हो गया और सामान्य लोग आज भी भारत की कानून व्यवस्था के तहत सामान्य रूप से ही भारत में रहते है |) जिसका प्रत्यक्ष उदहारण मंदिरों के विवाद है, जो प्रथम दृष्टि से स्पष्ट होता है कि यह सभी हिन्दू मंदिरों पर ही नाजायज़ तरीके से मस्जिदों का निर्माण करवाया गया है क्योंकि खम्बो पर नक्काशी, हिन्दू समुदायों के धार्मिक चित्रण और विग्रह स्वरुप मुर्तियां स्पष्टतः कह रहे है कि यह मंदिर ही है साथ ही तत्कालीन मुगल शासकों के आदेशों का रिकॉर्ड | क्योंकि मस्जिदों में ऐसा होने से मस्जिद नाज़ायज़ व हराम हो जाती है जिसका प्रत्यक्ष उदहारण अयोध्या के विवादित ढांचे में राम लला की मूर्ति को इमामों और मौलवियों द्वारा अचानक उसी स्थान पर देखने पर सारे मुल्ला, मौलवी भाग कर निकल गए --- मस्जिद नाज़ायज़ व नापाक हो गयी है | इसका भी तात्कालिक प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि किसी भी मस्जिद में नक्काशी व चित्रकारी के खम्बे लगाने पर, घंटी बजने या किसी देवी-देवता की तस्वीर ले जाने पर कठोर पाबंदी है | ये चाद्दरें केवल दरगाहों पर चढ़वाते है और कहते है की सभी के लिए इस्लामिक धार्मिक स्थल खुले है - ये 100% नादान कार्य है क्योंकि दरगाहें स्वयं इस्लाम में जायज़ नहीं है | इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मदीना में मोहम्मद साहब की मजार है - भारत में परवेज मुशर्रफ का अजमेर दरगाह के कार्यक्रम बनने के बावजूद, जबकि 20 वर्ष पूर्व अजमेर दरगाह की यात्रा-व्यवस्था में करोड़ों रुपए लग चुके - किन्तु पाकिस्तान के राष्ट्रपति वहां नहीं गए और ताज महल घूमने चले गए | अब प्रश्न उठता है काशी - मथुरा - भोजशाला - कुतुबमीनार - पास के 21 हिन्दू समुदाय के मंदिर (जिसमे जैन समाज के मंदिर अधिक है) जिनमे देवी-देवताओं की प्रतिमाओं से गर्दन हटा दी गयी और मंदिरों को मस्जिदों का रूप दे दिया गया, कुतुबमीनार के 27 झरोखे हिन्दू धर्म के आधार पर 27 नक्षत्रोँ की जानकारी के लिए है, जो की बनावट के रूप से इस्लाम से पूर्णतः विरूद्ध है और सभी पूर्णतः मंदिर ही है और लगते भी मंदिर ही है | इसी प्रकार केरल में मंदिर का रास्ता ही नहीं है, मस्जिद से रास्ता है - यह भाईचारा नहीं है! क्योंकि भारत मंदिरों का देश है और यहाँ बगैर रास्तों के मंदिर नहीं होते बल्कि पूर्व के मंदिरों में चारो दिशाओं में रास्ते होने के प्रमाण मिलते है| यह नादानीपूर्ण सोच है कि मस्जिद के पीछे बिना रास्ते का मंदिर बनाया गया | क्योंकि भाईचारा शब्द की व्याख्या इनके संप्रदाय में ही सीमित है | यदि ऐसा ना होता तो संप्रदाय विशेष के लोग अपनों के अतिरिक्त अन्यों को काफ़िर समझना और काफ़िरों को नुक्सान पहुँचाना और हत्या करना शबाब का कार्य (पुण्य) नहीं माना जाता | जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि संप्रदाय के एक भी सदस्य ने मंदिरों के नाजायज़ तोड़-फोड़ पर सहानुभूति व्यक्त नहीं की अपितु इसके विपरीत पुरातत्व विभाग के सर्वे का विरोध कर रहे है और जिला अदालतों से उच्च अदालतों तक जा रहे है | यह इनका निम्न श्रेणी का नादान पूर्ण कार्य स्वयं सिद्ध है | आज दिनांक तक संप्रदाय विशेष के समझदार व सामान्य जन काशी - मथुरा जैसी मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने नहीं जाते है क्योंकि वो जानते है कि ऐसी स्थिति में वहां नमाज़ पढ़ना नाजायज़ है, साथ ही वो तुष्टिकरण रुपी कट्टरवाद का और आपराधिक तत्वों का विरोध नहीं कर सकते - यह उनकी राष्ट्रीय शांति को बनाये रखना अथवा इनका भय हो सकता है | अब प्रश्न उठता है कि हिन्दू समुदाय के चारों समाज नादान है या नहीं? हाँ - हाँ - हाँ, क्योंकि हम नादान है यदि चारों समाज के प्रतिनिधि केंद्र सरकार से यह आग्रह करें कि सर्वे रिपोर्ट सऊदी अरब, संयुक्त राज्य अरब अमीरात, इंडोनेशिया, मलेशिया इत्यादि, अगर इतना नहीं कर सकते तो सऊदी अरब के 5 धार्मिक नेता या मक्का के प्रमुख धर्म गुरु को सर्वे रिपोर्ट दिखा कर एक प्रश्न -- इस्लाम की दृष्टि से यह स्थान जायज़ है या नाजायज है? सब कुछ एक दिन में हल हो जायेगा (यहाँ सर्वे रिपोर्ट में भाषा की बाध्यता नहीं है क्योंकि सर्वे में प्रस्तुत हिन्दू देवी देवताओं के चित्र, नक्काशी के खम्बे, हिन्दू देवी देवताओं की खंडित मुर्तिया स्वयं में प्रमाण होगी जो वो समझ सकते है) | अथवा वहां के धर्म गुरुओं के प्रतिनिधि मंडल को बुलवा कर इन स्थानों का सर्वे करवा देना चाहिए, दूध का दूध और ---- | क्योंकि प्रश्न उठना स्वाभाविक है राष्ट्र के आंतरिक मामलों में विदेशी दखल क्यों? जवाब है - जब पंजाब के एक स्थान पर सेना और नागरिकों की हत्याएँ होती है उस समय सरकार पाकिस्तान के पुलिस सहित समस्त ख़ुफ़िया विभागों का सयुक्त दल बुला कर सत्यापन का प्रयास होता है - तो ऐसी स्थिति में मुग़लकालीन लुटेरों और हत्यारों द्वारा हमारे धार्मिक स्थलों को नस्ट भ्रष्ट करके स्वयं के भी धार्मिक स्थल ईमान को त्याग कर नापाक रूप से बनाया, स्वयं सिद्ध प्रमाण सुनिश्चित ---- | हो सकता है इस प्रकार भारत में लोक व्यवस्था बनी रहे, विदेशों में नकारात्मक सन्देश ना जाये क्योंकि यहाँ के कट्टरपंथी वर्तमान में ही बोल रहे हैं कि भारत में मस्जिदें छीनी जा रहे है, मुस्लमान सुरक्षित नहीं है - इन नादानों को मालूम है की विश्व में सर्वाधिक मस्जिदें भारत में है और मुस्लिम भी सर्वाधिक सुरक्षित भारत में ही है और इसी बात का नाजायज फायदा उठा रही है | जहाँ पाकिस्तान में आटे के बैग पर गोलियां चलती है, वहीँ यहाँ पर निम्न आय वाले मुसलमानो को सरकार राशन भी दे रही है और वृद्धावस्था में पेंशन भी दे रही है | लेकिन कांग्रेस-कम्युनिस्ट और इनके सहयोगी दलों द्वारा मिल कर ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जिससे विदेशों में भारत और भारत की संवैधानिक संस्थाएँ और न्याय पालिका बदनाम हो, ये स्वयं के अपराधों को न देख कर हिटलर की तरह एक झूठ को 100 बार बोलते है ताकि उसे सत्य बनाया जा सके|

    

       इस प्रकार यदि नेहरू जी सरदार पटेल साहब को रोकते नहीं, तो सोमनाथ मंदिर की तरह भारत के सभी मंदिरों का पुनर्निर्माण होना सुनिश्चित ----- | इसका परिणाम यह होता कि एक-एक मंदिर के लिए अदालतों में जाना, मुस्लिम समुदाय का विरोध करना, देश में दंगा-फसाद और अयोध्या के तर्ज़ पर गोलियों का चलना और हिन्दुओं का शहीद होना, साथ ही भारत की बदनामी व न्यायपालिका के प्रति नकारात्मक अभिव्यक्ति नहीं होती (जैसा की आज़ादी के समय कश्मीर में धारा 370 हटाने के कारण, यहाँ तक की हमें यूरोपीय यूनियन के सांसदों को संतुष्टि के लिए कश्मीर में निरीक्षण कराना पड़ा - अतः भारत सरकार प्रस्तुत विषय के संकेतों को समझ कर कठोर रूप से क्रियान्वयन करें |) ---- जैसा की अब आगे के मंदिरों के मुद्दों पर लोक व्यवस्था बिगड़ने का भय बना रहता है क्योंकि न्यायपालिका में विचाराधीन धार्मिक स्थलों के कार्य है - निर्णय आने पर लोक व्यवस्था भंग होने का पूर्णतः खतरा है --- क्योंकि हैदराबाद में एक सामान्य आस्था के मामले में जमानत पर वहां के स्थानीय मुस्लिम समाज और वहां के मुस्लिम राजनैतिक दल ने इतना कोहराम मचाया कि अदालत के निर्णय के पश्चात् भी राज्य सरकार को उसे अन्य कारणों से गिरफ्तार करना पड़ा| अतः स्पष्ट है कि यह संप्रदाय विशेष कांग्रेस-कम्युनिस्टों और उनके सहयोगी दलों के तुष्टिकरण के कारण न्यायपालिका के निर्णयों का भी विरोध करते है और चाकू उठाने वाले ए.के.-56 के साथ अपनी गैंग बनाते है और हज़ारों करोड़ रूपए की सम्पति बेईमानी से प्राप्त करते है जिसका प्रत्यक्ष उदहारण उत्तर-प्रदेश है | इतना ही नहीं उनपर किसी भी प्रकार की कार्यवाही को कांग्रेस-कम्युनिस्टों और उनके सहयोगी दल (साइकिल वाली पार्टी व हाथी वाली पार्टी इस कार्य में विशेष है) अनुचित बताते है | यही स्थिति तुष्टिकरण के कारण कश्मीर में हो गयी - जो भारत के एक हिस्से में हिन्दुओं के साथ क्रूरता और मंदिरों को तोडना स्वयं सिद्ध है | यदि नेहरू जी उस समय तुष्टिकरण का भाव त्याग कर "एक भारत-श्रेष्ठ भारत" के आधार पर चलते तो आज हिन्दुओं के अधिकतर उत्सवों पर पत्थरबाज़ी नहीं होती क्योंकि इस्लाम में शैतान को पत्थर मारा जाता है | इसीलिए ये हिन्दू समुदाय के हर धार्मिक समारहों - सरस्वती विसर्जन, दुर्गा विसर्जन, गणेश विसर्जन इत्यादि पर उन्हें शैतान समझकर पत्थर ही मारते है | 370 धारा लगा कर अपने ही देश में कश्मीर हिन्दुओं का यातना स्थान बन गया | यदि नेहरू जी सरदार पटेल जी को उस समय नहीं रोकते ---- तो ये सभी मंदिरों का पुनर्निर्माण हो जाता और पी. ओ. के. सहित सम्पूर्ण कश्मीर में हिन्दू कश्मीरी पंडित गरिमापूर्ण तरीके से रहते और कोई भी मुस्लिम समाज के सदस्यों द्वारा गोला-बारूद और नफरत के कार्य नहीं होते और इनके आकाओं के पास अरबों रूपए की संपत्ति भी नहीं होती, अपितु संप्रदाय विशेष के लोग तुष्टिकरण के अभाव में सामान्य रूप से क़ानून की पालना करते और आतंकवाद - कट्टरवाद की भावना से दूर रहते| इन दो कारणों (सभी रियासतों का विलय करने के बाद नेहरू द्वारा कश्मीर में पटेल के कार्य में हस्तक्षेप करना, सेना को रुकवाना, UNO में जाना, धारा 370 लागू करना, शेख अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री बनाना और मंदिरों को पुनर्निर्माण से रोकना - ये दोनों कार्य देश के लिए विषतुल्य नासूर बनेगे, देश की एकता को भयावह रूप से क्षति होगी यह सभी सोच-सोच कर पटेल जी ---) से ही सरदार पटेल आतंरिक रूप से इतने टूट गए कि वो धाम पहुँच गए | इतना ही नहीं मंदिरों के पुनर्निर्माण पर सरदार पटेल को कहा कि - "मेरे मन में ठेस पहुँचती है", जिसका प्रत्यक्ष उदहारण है कि वो भारत की राष्ट्रीय संस्कृति के पक्षधर न होकर संप्रदाय विशेष के ही पक्षधर रहे और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है की नेहरू जी सोमनाथ मंदिर के कार्यक्रम में नहीं गए और महामहिम राष्ट्रपति जी को भी उस कार्यक्रम में जाने से मना किया, किन्तु राष्ट्रपति जी गए | तत्काल समय का प्रत्यक्ष प्रमाण फ़ारुक़ अब्दुल्लाह के पिता को जेल से निकलवाकर प्रधानमंत्री बनाने की शर्त | संविधान पारित होते ही जब कुछ राज्यों ने गौ रक्षा के लिए कानून बनाना चाहा तो, राज्यो को केन्द्र (कांग्रेस सरकार - कांग्रेस घराना) के सचिवालय ने ऐसा कानून बनाने की जल्दबाजी करने से यह कहकर रोका था कि ‘‘मरे हुए पशुओं की खालों की अपेक्षा मारे हुए पशुओं की खाले बहुत बढ़िया होती है और विदेशी बाजारों से उनके दाम बहुत ज्यादा आते है, अतः संपूर्ण गौहत्या - निषेध करना चर्म-निर्यात व्यापार के लिए हानिकारक होगा।’’ नादानों को पता नही की इस संपूर्ण व्यापार की भरपायी मात्र कुछ प्रतिशत गौवंश के गोबर से हो सकती थी। विशेष तथ्य यह है कि संविधान की मूल पुस्तक पर गौ-वंश की तस्वीरें अंकित है। इस संबंध में और भी अधिक जानकारी प्रथम भाग के तथ्य संख्या 15 में स्पष्ट की गयी है | और आज दिनांक तक जो कांग्रेस के दो-तीन प्रमुख मुखिया है वो केरल में ऐसे व्यक्ति से संबंध रखते है और उनसे मिलते भी है जो व्यक्ति प्रदर्शन के दौरान जो पुतले जलाये जाते है उसके स्थान पर बछड़ों की हत्या करता है | विशेष तथ्य यह है कि उपरोक्त के घटनाक्रम में कांग्रेस-कम्युनिस्ट और उनके सहयोगी दलों द्वारा विरोध करना तो बहुत दूर की बात है अपितु मैत्रीपूर्ण व्यवहार बनाते है जैसे कि उत्तर-प्रदेश में साइकिल और हाथी वाली पार्टी ऐसे माफियाओं का पक्ष ले रही है जिनपर हत्या, लूट-पाट इत्यादि सम्बंधित सैकड़ो केस होने के बावजूद उन सब से सहानुभूति रखते हुए उनका पक्ष भी लेती है | यह सभी घटनाक्रम संविधान की प्रस्तावना में "एकता और अखंडता" के विरुद्ध है - विधि विरुद्ध है - असंवैधानिक भी है | इसी प्रकार दिल्ली के एक नेता के पक्ष में ये सभी इकठ्ठा हो जाते है, उस नेता की सरकार जनता के कार्यों से ज्यादा विज्ञापन करती है | जहाँ देश में 15 करोड़ से अधिक स्थानों पर नल से जल व बिजली पहुंचवाई गयी वहां पर इस सरकार ने न तो यमुना जी की सफाई का कार्य किया न ही नल से जल की व्यवस्था को उत्तम बनाया क्योंकि इसके शासन में आने से पूर्व जहाँ जहाँ पानी की किल्लत 10% थी वह वर्तमान में बढ़ कर 30% हो गयी है | इससे स्पष्ट होता है की ये वास्तविक रूप में काम करना जानते ही नहीं है और केवल फ्री में मौजूदा संसाधन दे रहे है और विज्ञापन कर रहे है (संविधान द्वारा स्थापित कर्तव्य व्यवहारों का त्याग - प्रत्येक सरकार जनता के लिए कार्य करने हेतु ही चुनी हुई होती है, अच्छे कार्यों से संतुष्ट होकर जनता खुश होती है और साथ ही मीडिया उन कार्यों का गुण-गान भी करती है किन्तु इन नेता के द्वारा प्रत्येक कार्य को विज्ञापन के माध्यम से प्रचारित-प्रसारित किया - सबसे बड़ा उदाहरण एक अँधेरी गली में लाइट लगाना और इस प्रकार के सैकड़ों विज्ञापन ऐसे है जहाँ कार्यो से अधिक अपव्यय विज्ञापनों पर किया गया है | मोहल्ला क्लिनिक हज़ार के स्थान पर 200 भी नहीं है, कुछ समय पूर्व तक आधे से अधिक स्कूलों में विज्ञान के विषय और संस्था प्रधान नहीं ---- केवल-केवल बने बनाये साधनों को फ्री में करके जनता को गुमराह करना और आने वाले समय में दिल्ली व पंजाब की जनता पर बोझ लादने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है - क्योंकि किसी भी क्षेत्र में उत्पादकता के बगैर फ्री में संसाधनों को बाँटना उस राज्य की जनता को उसी स्थिति में रखने के समान है, सामाजिक दायित्व के अतिरिक्त फ्री में देना जनता के साथ साथ राज्य और राष्ट्र की भी दीर्घ काल में अपूरणीय  क्षति सिद्ध होती है) | कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों ने ऐसे समाचार समूह के मालिक को भारत में व्यापार करने की अनुमति दी (एमाज़ॉन) जिससे आठ से दस करोड़ खुदरा व्यापारी, लाखों की संख्या में ठेले वाले - आने वाले समय में उनके भविष्य पर प्रश्नचिन्ह स्थापित हो गया है | जो व्यापारी-ठेले वाले सुबह से शाम अपनी दुकानों व ठेलों पर रहते है, उनका किराया देते है औसतन तीन कर्मचारियों को कार्य मिलता है, औसतन उनके परिवार में पाँच सदस्य है - आने वाले समय में उनका भविष्य अच्छा नहीं है और न ही यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है (घर में बैठा व्यक्ति फल-फ्रूट, बच्चो से कपडे एमाज़ॉन से मंगा रहा है जबकि उसके पास में ही फल-फ्रूट के ठेले भी है और बच्चो के कपड़ो की दूकान भी है | इस प्रकार स्वयं सिद्ध तथ्य यह है कि भारत में एक और ईस्ट इंडिया कंपनी का शैशव काल प्रारम्भ हो गया है) | इसमें भी आश्चर्य की बात यह है अमेरिका में स्थित इसका समाचार ग्रुप बी. बी. सी. से भी ज्यादा भारत को बदनाम करता है | दिल्ली के मुख्य नेता का एक मंत्री भ्रष्टाचार में गिरफ्तार होता है और उसी समय उस मंत्री की वाह-वाही अमेरिका में होने लगती है, उसी समय भारत में इनके पार्टी नेता अमेरिका के समाचार के आधार पर उसके गिरफ्तारी को भी अनुचित सिद्ध करने में लगते है और उसे भारत रत्न की योग्यता में सिद्ध करने में लग जाते है, यह इत्तेफाक़ हो सकता है | जबकि उसके मुख्य नेता (कट्टर ईमानदार - जो अत्यंत चालाकीपूर्ण रूप से जनता को गुमराह करके कट्टर बईमान है क्योंकि यदि पुलिस थाने अथवा प्रतिबन्ध क्षेत्र में कोई मांगने वाला फुटपाथ पर सो रहा होता है तब भी उसके मन में यह तथ्य नहीं होता कि उसे गिरफ्तार किया जायेगा जबकि इसके मुख्य नेता के सहित सभी मंत्रियों ने गिरफ़्तारी से पूर्व चिल्लाना शुरू कर दिया - "हमारी गिरफ्तारी सुनिश्चित है --- साथ ही भविष्य में होने वाली गिरफ्तारियों की भी पहले से ही भविष्यवाणी करते है") की जब भ्रष्टाचार में गिरफ्तारी होती है तो फिर इस पर अमेरिका में प्रतिक्रिया होती है - यह इत्तेफाक़ नहीं हो सकता | भारत में सैकड़ो की संख्या में मंत्रियों को गिरफ्तार किया गया है जिनमे मुख्यमंत्री भी शामिल है - प्रत्यक्ष प्रमाण के लिए जया ललिता, लालू यादव, हेमंत सोरेन और यह दिल्ली का मुख्य मंत्री | और इस दिल्ली के मुख्य नेता की गिरफ्तारी होने ही पर जर्मन-अमेरिका ने उसी प्रकार प्रतिक्रिया क्यों की यह किसी भी स्थिति में इत्तेफाक़ नहीं है (दोनों सरकारें जानते हुए, समझते हुए भी कि ऐसा करना अनुचित है फिर भी यह अपकृत्य किया | ऐसी क्या मजबूरी हो सकती है - यह भारत सरकार के लिए जानने व समझने की जरूरत है) | अतः भारत सरकार को फोर्ड फाउंडेशन और उससे सम्बंधित अन्य लॉबी से गोपनीय जानकारी प्राप्त करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा लगता है कि इसमें भारत की संप्रभुता का प्रश्न है | दिल्ली के इस मुख्य नेता पर भी संप्रभुता का प्रश्न आरोपित हो सकता है क्योंकि पुरे घटनाक्रम में प्रथमदृष्टि इनका संलग्न होना भी संभव है | दिल्ली के इस मुख्य नेता के कुछ अपकृत्य भी ऐसे है -- प्रथम कारण - पाकिस्तान इत्यादि देशों से अत्याचार सहन करके आये हिन्दू समुदाय के चारों समाज (हिन्दू समाज - सिख समाज - जैन समाज - बौद्ध समाज) के लोगो को देश के लिए खतरा बताना और उनके लिए आपत्तिजनक - अपमानजनक बयान बार-बार सार्वजानिक रूप से उत्तेजित होकर कानून को जानते हुए भी विधि विरुद्ध असत्य रूप से जारी करना | द्वितीय कारण - राष्ट्र के संसाधनों का सत्ता के लिए दुरूपयोग किया गया | प्रत्यक्ष प्रमाण में बिजली और पानी की पूर्व की सरकारों ने जो व्यवस्थाएं बनायीं उनको फ्री में करना, ऊर्जा बढ़ाने के उपायों के कार्य न करके देश के संसाधनो का दुरूपयोग किया | न पानी की व्यवस्था बनायीं, न अतिरिक्त बिजली की व्यवस्था बनायीं | सिर्फ - सिर्फ एक ही भूख - सत्ता और विज्ञापन जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण ---- कोरोना काल में छिड़काव के समय ट्रैक्टरों पर अपनी तस्वीर के बैनर लगाना, जिस समय दिल्ली के लोग जीवन रक्षा के लिए भयावह रूप से जूझ रहे, उस समय अपने विज्ञापनों की भूख भी नहीं मिटा सके | काम तो कुछ भी करना चाहते नहीं या कर नहीं सकते, किन्तु घटनाओं से स्पष्ट होता है - कि दिल्ली के नागरिकों के जीवन संकट काल में भी चिकित्सा सेवा नगण्य रही -- जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण तीन बार दिल्ली के नागरिकों के जीवन रक्षा का संकट अत्यधिक होने पर तीनो बार राष्ट्र के गृहमंत्री अमित शाह की शरण में पहुँच गए --- इसी प्रकार दिल्ली के दमघोटू वातावरण पर कोई भी कार्य न करके दीपावली पर आतिशबाज़ी पर बैन लगाना, जबकि आतिशबाज़ी का प्रदुषण दिल्ली के चार घंटा वाहन चलने से भी कम होता है - और वर्ष में एक बार ही होता है और साथ ही वातावरण के हानिकारक जीवाणु ख़त्म भी - इससे सिद्ध होता है कि विकास कार्यों के स्थान पर फ्री में संसाधनों को बाँट कर सत्ता में आना अथवा उपचार के कार्यों को न करके आस्था के कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाना | वास्तविक धरातल पर दिल्ली के नागरिकों के लिए स्थायी रूप से सुविधा के रूप में कोई भी विकास कार्य नहीं किया गया | इस प्रकार या तो फ्री कर दो या बैन कर दो जिससे स्पष्ट होता है कि हकीकत के धरातल पर इनसे कुछ भी नहीं होता है | इन तथ्यों के लिए उच्चस्तरीय आयोग से जांच करवाने पर और भी घिनौने अपकृत्य उजागर हो सकते है | इस प्रकार दिल्ली के नागरिक अस्थायी रूप से फ्री का कूपन प्राप्त करके अपनी आने वाली पीढ़ियों को कैसा दिल्ली प्रदेश का दर्शन --- | एक चुनी हुई सरकार राज्य के लिए सभी कार्य करती है - वो संविधान द्वारा स्थापित कर्तव्य व्यवहार होता है किन्तु दिल्ली के इस मुख्य नेता की सत्ता और प्रचार की भूख ने भारत राष्ट्र के सभी स्थापित कर्तव्य व्यवहार पक्ष को समाप्त कर दिया | प्रत्यक्ष प्रमाण के लिए एक अँधेरी रोड पर रोड लाइटें लगायी गयी - स्पष्ट होता है कि उनसे कई गुना उन लाइटों का विज्ञापन किया गया | इसी प्रकार दिल्ली में पराली से खाद बनाने का कुछ स्थानों पर कार्य किया - जितनी धनराशि की खाद नहीं बनायीं गयी उससे कई गुणा भारत के राष्ट्रीय टी. वी. चैनलों पर विज्ञापन किया गया | उपरोक्त तथ्य अत्यंत गंभीर श्रेणी में आता है क्योंकि पंजाब से इनकी सरकार बनने के बाद भी हज़ारों की संख्या में पराली जलने की घटनाये हुई और दिल्ली का दम घुटता रहा | तो क्या दिल्ली में खाद बनाने की घटनाये एक दिखावा मात्र होकर विज्ञापन-स्टंट ही साबित होता है | तृतीय कारण - अब इनकी शराब नीति में सारे सहयोगी बोलते है कि एक भी पैसा बरामद नहीं हुआ और जनता गुमराह होती रही - तथ्य यह है कि सरकार को शराब की एक बोतल पर उत्पादन शुल्क और वैट के रूप में लगभग 330 रूपए मिलने होते है - उसके स्थान पर तीन रूपए तीस पैसे से भी कम मिले, यदि ऐसा मान ले 30 रूपए प्राप्त हो गए सरकार को -- तो प्रति बोतल 300 रूपए कहाँ गए? यह स्पष्ट है और स्वयं सिद्ध तथ्य भी है और रिक्शा चलाने वाला भी जानता है कि प्रति बोतल 300 रूपए दिल्ली के इस मुख्यमंत्री ने कंपनीयों को तो बाँटे ही नहीं | सत्य यह है कि वो पैसा इन्होंने घर में न रख कर गोवा-पंजाब इत्यादि चुनावों में काम में लिया, क्योंकि इसमें सभी उच्च शिक्षा प्राप्त नेता शामिल है, आर्थिक कानूनों का ज्ञान है इसलिए पैसा इनके यहाँ से बरामद नहीं हुआ - परन्तु न्यायपालिका ने शायद समझ कर महसूस कर लिया की पैसों का दुरूपयोग हुआ ही है -- तभी इनके मंत्रियों की, नेताओं की सुप्रीम कोर्ट तक जमानतें नहीं हो रही है | इसी मामले में इनका जनता में कहना है कि कठोर धाराओं की वजह से जमानत नहीं हुई जबकि यह सत्य से कोसों दूर है - जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण उद्धव पार्टी के एक नेता की जमानत, दक्षिण के पिता-पुत्र नेता की जमानत | दिल्ली की इस सत्ता की बेशर्मी और नागरिकों के आंखों में धूल झोकने की इन्तहा हो गयी है - क्योंकि ये अपनी मंत्रियों की बैठक में, जो इस चौकड़ी के राज़दार है, यह निश्चय किया गया की शराब वितरण का कार्य सभी वार्डों में समान तरीके से हो, अर्थात किसी भी वार्ड में दुकाने या सप्लाई अधिक या कम ना हो | इसकी पूर्ति के लिए इन्होने धार्मिक स्थलों और शिक्षण संस्थाओं के पास भी शराब की दुकाने खोल दी ---- परन्तु इन्होने 10 सालो में कभी भी यह निश्चय नहीं किया न ही अपने कर्तव्य का पालन किया --- कि दिल्ली के सभी वार्डों में नल से जल की आपूर्ति समान रहे | 

          वर्तमान में कांग्रेस, वामपंथियों और उनके सहयोगी विचारधारा वाले दलों द्वारा एक मुद्दा उठाया जा रहा है कि चीन ने भारत जमीन पर कब्ज़ा कर किया और सरकार इस सन्दर्भ में क्या कर रही है जबकि वास्तव में चीन को मुँह-तोड़ जवाब दिया गया और वर्तमान में चीन के साथ वार्ता का दौर चल रहा है - उसका प्रमुख विषय यही है की चीन की सेना निश्चित स्थान से कितनी दूर रहेगी और भारत की सेना निश्चित स्थान से कितनी दूर रहेगी | इसमें एक निश्चित स्थान से दोनों सेनाओं की दूरी तय करना है और यह दूरी निश्चित स्थान से 1000-2000 मीटरों में ही है किन्तु यह अपने गिरेबान में देखने का प्रयास न करते हुए हिटलर की नीति अपना रहे है क्योंकि कांग्रेस के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी ने चीन को हज़ारों किलोमीटर भू-भाग गिफ़्ट कर दिया, साथ ही एक देश के मुखिया द्वारा संसद में ऐसा बयान देना - "वहां पर घास का एक तिनका भी नहीं उगता - वह जमीन हमारे काम की नहीं ---- |" ऐसी स्थिति में उनको राजस्थान के रेतीले धोरे भी दे देना सामान्य बात -- क्योंकि वहां पर भी पैदावार नहीं होती | राम जी ही जाने ये क्या चाहते है ----- | इसी प्रकार श्रीमती गाँधी ने तमिलनाडु के समुंद्री इलाके में एक द्वीप को गिफ्ट कर दिया और तमिलनाडु के मछुवारों की रोज़ी-रोटी तबाह कर दी , साथ ही उस द्वीप के जल क्षेत्र में जाने पर उनकी गिरफ्तारियां भी होती है | प्रस्तुत विषय का मानना है राष्ट्रहित व लोकहित में किसने क्या किया है भारत की जनता इसका गंभीरता पूर्वक चिंतन-मनन करें न की मानसिक गुलामी बनाये रखे | इसी प्रकार उपरोक्त दलों द्वारा एक और देश को बांटने की चिल्लाहट करते है वह कुचेष्ठा यह है कि वर्तमान केंद्र सरकार  देश में साम्प्रदायिकता फैला रही है, देश की शांति भंग कर रही है क्योंकि राष्ट्र शब्द तो यह बोलते नहीं है - देश में विभाजनकारी नीतियां चल रही है | इनको सोचना चाहिए भारत की जनता इतनी बेवकूफ - अज्ञानी - मूर्ख नहीं है कि आपकी कुचेष्ठाओं को स्वीकार करें | सत्य रूप में स्पष्ट तथ्य यह है कि नेहरू जी के समय महाराष्ट्र में मराठों (इस प्रकार स्पष्ट है कि 1948 में गाँधी जी की हत्या के बाद में महाराष्ट्र में मराठा चितपावन ब्राह्मणो की हत्याएं हुई, जो श्रीमती गाँधी की हत्या के बाद 1984 में सिख समाज के लोगो की हत्याओं से कहीं अधिक रही | जैसे वामपंथी सम्पूर्ण हिंसक विचारधारा चाहे माववादी हो - नक्सलवादी हो और कम्युनिस्टों की अनेक राजनैतिक शाखाएं हों, यह सभी आंतरिक रूप से कांग्रेस के साथ रही है और भारत राष्ट्र के हिन्दू धर्म और हिन्दुओं के प्रति नफरत और मुसलमानों के प्रति अधिकारपूर्ण लगाव ---- वर्तमान में इनका स्थानांतरण बंगाल के मुख्य नेता की पार्टी में, और दिल्ली के मुख्य नेता की पार्टी में हो गया ---- | शायद इस हिंसक विचारधारा पर कांग्रेस का एकाधिकार वर्तमान में विभाजित हो गया है |) की हत्याएँ कैसे हुई और वीर सावरकर जी के भाई की हत्या कैसे हुई  - इसी प्रकार राजीव गाँधी के समय सिख समाज के लोगों की हत्याएँ कैसे हुई - स्पष्ट है एक सामान्य नागरिक या नागरिकों के समूह को चाकू देकर यह कहें - कि कुत्ते को मरना है अथवा लाठी देकर कहें कि तुम्हें इक्कठे होकर एक व्यक्ति को मारना है - विज्ञान की दृष्टि से मनोवैज्ञानिक तथ्य यह है कि सामान्य जन ऐसा कभी नहीं कर सकते अपितु सामान्य जन खून देखकर चक्कर खा कर गिर जाते है, यहाँ तक की भलाई के लिए उनके स्वास्थ्य के लिए, किये जाने वाले अन्य लोगों के ऑपरेशन भी सामान्य जन देख नहीं सकते | इससे दो बातें स्पष्ट होती है, प्रथम - ये हिन्दू समुदाय के विरुद्ध में ही रहे और तुष्टिकरण के पक्षधर रहे | द्वितीय में इनके पास आपराधिक तत्वों का समूह सिद्ध होता है क्योंकि इनके साथ का मुख्य दल तो माँ के सामने बेटे की हत्या करने वाला भी है जिसे अपराध की उच्चतम सीमा कहते है | इस प्रकार सिद्ध होता है कि सबसे ज्यादा आपराधिक और सांप्रदायिक लोग ये ही है | इसी प्रकार इनके द्वारा एक चिल्लाहट और जारी रहती है कि देश में बेरोज़गारी है, महंगाई बढ़ गयी है, किसान सड़क पर है, किसानों की आय नहीं बढ़ी, देश का विकास नहीं हुआ - यह भी असफल कुचेष्ठा है | 25 से 30 करोड़ लोग गरीबी रेखा से निकलते है - यह स्वयं सिद्ध तथ्य है कि कम से कम 7 करोड़ लोगो को रोज़गार मिला है (परिवार में 4 सदस्य माने तो 7 करोड़ x 4 = 28 करोड़) | दूसरी असफल कुचेष्ठा जनता को गुमराह करने के लिए ही है | अमेरिका, इंग्लैंड से लेकर विश्व के सभी विकसित देशो से और पड़ौसी देशो से महंगाई दर भारत में कम है और यहाँ तक कि 2014 से पूर्व आप सभी दलों की सरकार 10 वर्ष तक रही - उससे वर्तमान में महंगाई दर बहुत कम है | इसी प्रकार 2014 से पूर्व आप सभी सहयोगी दलों की सरकार के समय में अर्थव्यवस्था विश्व में 11 वें स्थान पर होना - वर्तमान में 5 वें स्थान पर होना - यह सिद्ध करता है कि पुरे देश में सड़क, बिजली और पानी का काम हुआ है, रेलवे और हवाईअड्डों का भी नवीनीकरण और नव निर्माण हुआ है, बहुत सी रेल गाड़ियाँ विदेशी स्तर पर आ गयी है  और इनकी विदेशों में मांग भी हो रही है जिससे सिद्ध होता है कि किसानो की आय और खुशहाली में वृद्धि हुई है | अन्यथा 13 करोड़ किसानो में 13 हज़ार किसानो का भी प्रदर्शन नहीं है | जो प्रदर्शनकारी किसान है वो मुख्यतः कांग्रेस और वामपंथी दलों के प्रायोजित है क्योंकि यह देश में कभी विकास और शांति को पसंद नहीं करते जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण लाल झंडे के नाम पर राष्ट्र के कितने कल कारखाने और उद्योग धंधे बंद हुए है - वहां के कर्मचारी जगह-जगह मजदूरी करते है | और इन कम्युनिस्टों के नेताओं के पास इतना पैसा है कि एक नेता ने अपने परिवार की शादी में अनेक प्रकार के मांसाहार विदेश से मंगवाए |  अर्थव्यवस्था में बढोत्तरी और विकास का होना यह अपने आप में स्वयं सिद्ध होता है की सम्पूर्ण राष्ट्र का विकास हो रहा है | दबाव में अथवा वोट बैंक के कारण बगैर उत्पादकता के देश के संसाधनों को फ्री में बांटने से देश की अर्थव्यवस्था में इतना उछाल नहीं आता | सामाजिक सेवा के अतिरिक्त सरकारी संसाधनों को फ्री में बाँटना तात्कालिक सत्ता प्राप्त करने का एक हथियार हो सकता है किन्तु ये निकट भविष्य में राज्य व राष्ट्र के लिए --- | अब इनके द्वारा एक और असफल कुचेष्ठा का मुद्दा जनता में बार-बार चिल्लाहट के रूप में रखते है कि संविधान खतरे में है - लोकतंत्र खतरे में है --- इस पर यह स्वयं के गिरेबान में नहीं देखते है | स्पष्ट है कि आजादी के बाद तत्काल प्रधानमंत्री के उच्चस्तरीय निर्णय में कमेटी के एक भी सदस्य का वोट नेहरू जी को नहीं पड़ा | सारे के सारे वोट सरदार पटेल को पड़े फिर भी नेहरू जी प्रधानमंत्री बन गए | इससे अधिक लोकतंत्र की हत्या क्या हो सकती है! इसके साथ ही आपातकाल लगाना संविधान और लोकतंत्र की क्या निम्नतर स्थिति हुई यह सभी जानते है | हज़ारों किलोमीटर दूर किसी पार्टी के सदस्यों का अयोध्या में जाना और उस पार्टी की चुनी हुई चार सरकारों को बर्खास्त कर देना, जिसे बाद में न्यायपालिका ने असंवैधानिक माना - इससे ज्यादा लोकतंत्र की हत्या क्या हो सकती है! श्रीमती गाँधी ने अपने व्यक्तिगत किन कारणों से संविधान को किस तरह पलटा - इससे ज्यादा संविधान खतरे में कब हो सकता है! राजीव गाँधी ने तीन तलाक से ऊपर शरीयत को रख कर क्या संविधान की रक्षा की! इनके समय में कितने घुसपैठिये आये और कितनों को इन्होनें नागरिकता व पहचान पत्र दिए - असम इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है | इस एक कार्य से संविधान और लोकतंत्र दोनों का अस्तित्व खतरे में हो गया और इनके सहयोगी बंगाल में जो हत्याओं का दौर चलते है - क्या वह लोकतंत्र की रक्षा है! इनके साइकिल वाले साथी आतंकवादियों को जेल से रिहा कर देते है, कोर्ट के हस्तक्षेप से पुनः गिरफ़्तार किया जाता है - क्या यह संविधान और लोकतंत्र की रक्षा है! और इनका प्रमुख दल के घराने का मुखिया किस-किस प्रकार सीता राम केसरी के स्थान पर कांग्रेस का मुखिया बना - क्या यह लोकतंत्र है! जानकार, समझदार और राष्ट्रवादी नागरिकों से अनुरोध है की इनका सम्पूर्ण स्पष्टीकरण जनता के सामने करें | विशेष तथ्य यह है कि कांग्रेस दल का वर्तमान घोषणापत्र भी किसी भी प्रकार से देश की एकता-अखंडता और देश के विकास के संबंध में नहीं है, सिर्फ देशवासियों को गुमराह करना व हिन्दू धर्म को निम्न दिखाना (हिन्दू सनातन धर्म की बीमारियों से तुलना करना, अपमानजनक टिप्पणियाँ करना व विश्व के पूजनीय रामजी को काल्पनिक बताना, वह भी सर्वोच्च न्यायालय में --- समझ में नहीं आता ये किस प्रकार की धर्म निरपेक्षता कर रहे है | असत्य, बेशर्मी, गैरकानूनी, जायज-नाजायज, आतंकवादियों और माफिया डॉन के लिए चुप रहना और हिन्दुओं को भगवा आतंकवादी कहना, वह भी संसद की कार्यवाही में लिखित रूप से - इनकी इस प्रकार के उच्चस्तरीय तुष्टिकरण के कारण स्पष्ट होता है कि कांग्रेस-कम्युनिस्टों के अतिरिक्त अन्य सहयोगी दलों द्वारा भी आंशिक रूप से संप्रदाय विशेष के कट्टरवादिओं, अपराधियों व आतंकवादियों के, और उनके समर्थन करने वाले लोगों के लिए अलग से देश बनाने --- क्योंकि संप्रदाय के सामान्य जन इन कार्यों में संलग्न नहीं है किन्तु कुछ कारणों से वो मूक भी बने रहते है - विरोध प्रकट नहीं कर सकते) | वर्तमान में ही विशेष तथ्य के रूप में इनका घोषणापत्र में प्रतिबंधित पी. एफ. आई. और जिन्ना वाली मुस्लिम लीग का समावेश महसूस होता है | केरल के चुनावों में इनसे सहयोग भी लिया गया है - एक तो देश के विभाजन का कारण बनी हुई है, दूसरी देश में दंगा-फसाद कराने के प्रमाण सिद्ध होने पर प्रतिबंधित है किन्तु दोनों ही केरल में कांग्रेस के प्रियजन है  | इन्होनें अपने घोषणापत्र में अल्पसंख्यकों को खाने-पीने की छूट का वादा किया है वह पूर्णतः स्पष्टतः गोमांस की छूट देने का वादा कर रहे है, साथी दल और भी अन्य समाजों का नाम ले सकते है अल्पसंख्यकों के नाम पर इनकी डायरी में वो इनसे लाखों कोस दूर है, वास्तव में इनके लिए अल्पसंख्यक एक ही समाज है जो इनके केंद्र व राज्यों के शासन से सिद्ध होता है | प्रस्तुत विषय के पास इन तथ्यों का संकलन है जिससे स्पष्ट होता है कि इनके लिए अल्पसंख्यक मात्र संप्रदाय विशेष ही है जिनको इन्होने तुष्टिकरण व हर तरीके से जायज-नाजायज को संरक्षण दे कर आधे समाज को कट्टरवाद, आतंकवाद व अपराध के रास्ते धकेल दिया | यह खाने पीने की छूट प्रथम दृष्टि से हास्यप्रद लगती है, राष्ट्र में इन्होने करोड़ो को मुफ्त राशन और वृद्धावस्था में पेंशन भी मिलती है - खाने पीने की रोक टोक कहाँ से आयी!  स्पष्ट है मुंबई उच्च न्यायालय में गोमांस महाराष्ट्र राज्य के बाहर से मंगवा कर खाने की रिट लगाई गयी जिसका स्पष्टीकरण भाग 2 में पूर्णतः किया गया है | यह खाने पीने छूट पुरे देश में इसीलिए है ताकि उच्च न्यायालय में रिट नहीं लगानी पड़े | 34 वर्ष पूर्व विख्यात एडवोकेट राम जेठमलानी ने राजीव गाँधी से सार्वजनिक रूप से गोमांस खाने या न खाने पर पूछा - इस प्रश्न पर राजीव गाँधी की कोई भी प्रतिक्रिया नहीं हुई, अर्थात मूक रहे | वर्तमान में परिवार शायद सभी की सुविधाओं का ---- | इसी प्रकार 2006 में कृषि क्षेत्र में स्वामीनाथन जी की रिपोर्ट आने पर आठ वर्ष तक कांग्रेस व उनके सहयोगियों की सरकार रही, क्या वो शायद आठ वर्षों में रिपोर्ट को समझ नहीं सके इसलिए वर्तमान में कह रहे है कि हम आएंगे तो कृषि क्षेत्र में स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करेंगे | इसी प्रकार इन्होनें 60 वर्षों में और 4 पीढ़ियों के शासन काल में ये कुछ समझ नहीं सके इसलिए राष्ट्र विकास के लिए कुछ नहीं किया --- अब ये कह रहे है हम वो करेंगे --- हम ये करेंगे --- सब असत्य व राष्ट्रविरोधी है | इनकी समझ तो इतनी भी नहीं है अर्थव्यवस्था विश्व के 11 वे स्थान से 5 वे स्थान पर आने से देश के आबादी के अनुपात के आधार पर 7 करोड़ लोगों के रोज़गार व 28 करोड़ लोगों का गरीबी रेखा से निकलना, उद्योग क्षेत्रों व कृषि व्यवस्था का खुशहाल होना - अर्थव्यवस्था का 6 पायदान आगे आना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है | 

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भगतसिंह आचार्य
पुत्र श्री डॉ विष्णुदत्त आचार्य
जोशीवाड़ा, बीकानेर (राज.)

--- मूल रूप से भाग प्रथम ---

B1T1

भाग 1 - तथ्य #1 

विशेष - जैसे अमेरिका - रूस युद्ध सामग्री से - इटली विलासिता के उत्पादन से - अरब देश तेल क्षेत्र की प्राथमिकता से नकारात्मक होने पर इनके अस्तित्व पर संकट होना सुनिश्चित है - ठीक इसी प्रकार भारत गौवंश - कृषि - गोबर व गौमूत्र से नकारात्मक नहीं हो सकता | नकारात्मक होने की स्थिति में भारतवर्ष का अपने मौलिक अस्तित्व से भटकना स्वयंसिद्ध हो जाता है | इस संसार में प्रकृति सर्वोपरि होती है | प्रकृति के अनुकूल और प्रतिकूल ही आबाद और बर्बाद होना सुनिश्चित है | भारत की प्रकृति कृषि प्रधान व गौपालन केंद्रित है जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण 70% जनसँख्या का इसमें समायोजन होना (किसी न किसी प्रकार से रोज़गार-जीवनयापन), साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था का आधारभूत ढांचा भी है | अतः केंद्र सरकार इस संबंध में प्रस्तुत विषय के आधार पर विधि व्यवस्था प्रभावी करें (सम्पूर्ण गोबर - गौमूत्र का प्रयोग और उनके उपयोगकर्ता गौशाला कर्मचारियों का वेतनमान भी शामिल है) | भारत में मौसमचक्र अनुकूल करने के लिए कृषि भूमि में जहाँ गोबर-गौमूत्र से पैदावार का उत्तम होना वहीं रासायनिक खादों से खेतों में कठोर परत जमने से मुक्ति और भूजल का स्तर भी बढ़ता है | भूजल भारत की लोकव्यवस्था का अत्यंत संवेदनशील प्रश्न है | भूजल न्यून स्तर पर होना अथवा डार्क-जोन में होना भूस्खलन व कम मात्रा के भूकंप में अधिक नुक्सान का हेतु बनता है क्योंकि इसका प्रमुख कारण है भू-जल स्तर की गिरावट से माटी का कमज़ोर होना | अतः चीनी उद्योग, केमिकल उद्योग, छपाई उद्योग ग्रामीण क्षेत्र में हो या शहर की आबादी क्षेत्र में हो, इनका अपशिष्ट पदार्थ व जल किसी भी स्थिति में कच्ची भूमि में नहीं जाना चाहिए (वैज्ञानिक तरीके से निष्पादन होना चाहिए अन्यथा भूजल ख़राब हो जाता है जिसका पूरे विश्व में कोई उपचार नहीं है | 2-4 की लापरवाही के कारण हज़ारों एकड़ की कृषि भूमि का विनाश हो जाता है और ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक प्रकार के रोग पैदा हो जाते है, तत्कालिक उदहारण के लिए मेरठ क्षेत्र) - इसमें कठोर दण्ड व सजा का प्रावधान होना चाहिए | इस संबंध में प्रथम भाग के तथ्य संख्या 12 और तथ्य संख्या 21 के 48 में विस्तृत वर्णन किया गया है और इसको गम्भीरता से लेने की जरुरत है | 

भारतवर्ष गोवंश और कृषि प्रधान राष्ट्र है - क्योकि यहां कि जलवायु - प्रकृति की इस विषय में अनुकूलता है। किन्तु हमनें विनाशक प्रवृति (प्रतिकूलता) को अपनाया (भारतीय गोवंश का विदेशी संकरीकरण व वध और कृषि में महाविनाशक जहर) जिसका परिणाम अर्थव्यवस्था - रोजगार - विदेशी मुद्रा इत्यादि न्यूनता के अतिरिक्त 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या किसी न किसी रोग से ग्रसित है और 30 प्रतिशत कृषि भूमि की समाप्ति और उत्पाद की गुणवत्ता में न्यूनता व विषाक्ता जारी है |

 

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 48 नस्ल के सुधार का आदेश देता है न कि संकरीकरण करने का, संकरीकरण स्पष्टतः देशी नस्ल का वध है। वर्तमान में देशी नस्ल की स्थिति इस प्रकार है- प्रमुख भारतीय 30 नस्लों में शुद्ध देशी नस्ल 25 प्रतिशत है जिसमें 15-16 नस्लों का 4-5 प्रतिशत ही है।

शेष नस्लों की क्रमवार स्थिति - हरियावणी 4.15, गिर 3.38, साहीवाल 3.23, कांकरेज 2.00, कोसाली 1.61, खिलल्लारी 1.33, मालवी 1.13, राठी 0.82, थारपारकर 0.48, आँगोल 0.42, लालसिंधी 0.37, नागौरी 0.34, लालकंधारी 0.30, निमाड़ी 0.30 । कुछ वर्ष पूर्व भारत सरकार की सर्वेक्षण रिर्पोट है। नस्ल संरक्षण व नस्ल सुधार और गोबर - गौमूत्र की खाद पर आदरणीय पंडित श्री श्री रविशंकर जी महाराज अपनी संस्था की और से उपरोक्त विषय में अथक प्रयास कर रहे हैं | इस प्रकार अनु. 48 के "नस्ल सुधार" शब्दावली को "नस्ल समाप्त" शब्दावली में क्रियान्वयन कर दिया गया | और अधिक स्पष्टीकरण के लिए तथ्य संख्या 12 का अंतिम पैराग्राफ और तथ्य संख्या 21 के उपतथ्य 2 का अवश्य चिंतन करें | 

52 हजार करोड़ के आर्थिक जोन की तुलना में 52 हजार करोड़ की दुग्ध की उत्पादन संस्था 100 से 150 प्रतिशत अधीक रोजगार प्रदान करती है जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण अमूल है। 150 से 200 वर्ष पूर्व भारत वर्ष विश्व का लगभग 45-50 प्रतिशत उत्पादन करने के साथ विश्व बाजार में 30 से 35 प्रतिशत व्यापार और 7 दशक पूर्व रूपया - डॉलर समानता की स्थिति में। अतः भारतीय अर्थव्यवस्था का आधारभूत ढांचा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनः गोपालन -गौ आधारित कृषि द्वारा जीवनदान देना चाहिए। ध्यान रहे आर्थिक जोन का अर्थतंत्र वर्तमान में बिट्रेन का भी साथ नही दे रहा है। अतः भारत की आधारभूत ढांचा प्रकृति-प्राकृतिक रूप से कृषि व गौपालन पर आधारित है। जिस प्रकार अमेरिका आयुध, जापान-जर्मनी तकनीक व्यापार पर आधारित है । राष्ट्र ‘‘राज्य” के उत्थान और अर्थव्यवस्था एवं रोजगार हेतु राष्ट्र को इस विषय पर अनिवार्यता से फोकस करना चाहिये। सम्पूर्ण विश्व में वहाँ की स्थिति - परिस्थितियों के आधार पर उत्पादन एवं रोजगार का सृजन होता है।

 

आश्चर्य है कि भारत जैसा कृषि प्रधान राष्ट्र 2 लाख करोड़ का कृषि उत्पाद व अन्य अनावश्यक दूध उत्पाद आयात करता है अतः सरकारी नियंत्रण व अनुमति अनिवार्य ------- |  जब कि 2300 वर्ष पूर्व चाणक्य ने अपने विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्र में गौवंश को अर्थव्यवस्था का आधार बताया और अशोक महान ने अपने राज्य में इसका पालन भी किया । उपरोक्त आधार पर कृषि का गोबर - गौमूत्र से न्यूनतम अथवा शून्य लागत पर होना |

भाग 1 - तथ्य #2 

B1T2

भारतीय संविधान के अनु. 25 (1) के तहत गोवंश का वध असंवैधानिक है, और 26 जनवरी 1950 को भारतीय विधि व्यवस्था के प्रभावी होते ही गोवंश का वध असंवैधानिक हो गया और गोवंश-वेदिक दर्शन को मानने वाले 100 करोड़ नागरिकों के मूल धर्म का मुख्य एवं सर्वोच्च विषय है। गोवंश अवध्य है, के सम्बन्ध में मूल धर्म के स्पष्ट आदेश-निर्देश है। धर्म स्वतंत्रता के अधिकार (अनु. 25) की आज दिनांक तक की रूलिंग के ‘‘आधार’’ पर गोवंश का वध एक ‘‘निमेष’’ (काल गणना की सबसे छोटी इकाई) के लिये भी नहीं हो सकता। ‘‘स्वयंसिद्ध तथ्य के रूप में वर्तमान कि विधि व्यवस्था के अनुसार संविधान के ‘‘आधारभूत ढ़ाँचे’’ उद्धेशिका- मूल अधिकार-मूल कर्तव्य-नीति निर्देशक तत्वों और आज दिनांक तक अनु. 25 कि रूलिंग के आधार पर धर्म स्वतंत्रता के तहत गोवंश का वध अनु. 25(1) के आधार पर असंवैधानिक है, किसी भी स्थति में गोवंश का वध एक पल-क्षण के लिए भी जारी नहीं रह सकता-और “राज्य’’ भारत सरकार ऐसा करने के लिए संवैधानिक रूप से बाध्य भी है साथ ही न्यायिक सक्रियता..........।’’

      

गोवंश का वध समस्त ‘‘मूक सृष्टि एवं पर्यावरण’’ के साथ अपराध है। उपरोक्त विषय में गोवंश संविधान के अनुच्छेद 25 (1) के मूल अधिकारों के तहत मेरे धर्म का विकल्प रहित अभिन्न अंग होने से, मेरी धार्मिक भावनाओं के साथ, मेरे समुदाय विशेष समाज के सभी धार्मिक वर्ग समुदाय (हिन्दू समुदाय =  हिन्दू समाज - सिख समाज - जैन समाज - बौद्ध समाज) वैदिक दर्शन व धार्मिक व्यवहार के आधार पर शामिल है | साथ ही संविधान के अनुच्छेद 25 (2)(ख) के अनुसार भी यह हिन्दू समुदाय के अभिन्न अंग है | अतः इन सभी समुदाय के नागरिकों को भी आघात लगता है साथ ही भारत सरकार द्वारा प्रतिबंध की सुनिश्चित कार्यवाही न करने से ‘‘संविधान का समुदाय विशेष (हिन्दू समुदाय) के लिये औचित्य ही समाप्त हो जाता है।’’ (राजनैतिक विषाक्त के कारण इन सभी को अलग अलग सार्वजानिक रूप से संबोधन करना असंवैधानिक है चारों समुदाय से पहले हिंदू समुदाय का प्रयोग संवैधानिक रूप से अनिवार्य है - जैसे हिन्दू समुदाय का सिख समाज ---- | राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय संस्कृति अर्थात् भारतवर्ष के मौलिक अस्तित्व वैदिक - सनातन  संस्कृति की - धार्मिक भावनाओं पर किसी भी प्रकार से आघात अर्थात् प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष हास्य - विनोद - उपहास, अपमान - बेअदबी के आधार पर हिन्दू समुदाय के चारों समाज के संगठन का सामूहिक रूप से प्रतिरोध ही हिंदू संगठन होना चाहिए | राजनैतिक दृष्टि से सार्वजानिक मंचों पर भारतीय संविधान के आधारभूत ढ़ांचे की शब्दावली "एकता और अखण्डता" के आधार पर किसी भी राज्य में सार्वजानिक रूप से और विधिव्यवस्था के तहत् = बंगाली मानुस - मराठी मानुस - गुजराती मानुस इत्यादि इस प्रकार से अभिव्यक्ति प्रकट करना असंवैधानिक है | क्योंकि इसका वास्तविक संवैधानिक स्वरूप भारत के नागरिक और राज्यों में बंगाल के निवासीगण राजस्थान के निवासीगण महाराष्ट्र के निवासीगण इत्यादि शब्दावली का सम्पूर्ण भारत में उपयोग ही संवैधानिक है | भारत सरकार को उपरोक्त विषय को विधि व्यवस्था के दायरे में रखना अनिवार्य है | ) विशेष - उपरोक्त विषय पर विधि व्यवस्था प्रभावी न होने पर भारतीय संविधान के अनु. 25 (2) (ख) और संविधान के आधारभूत ढ़ांचे की शब्दावली "एकता और अखण्डता" का औचित्य ही समाप्त हो जाता है | 

भाग 1 - तथ्य #3 

B1T3

मेरे द्वारा उपरोक्त विषय के सन्दर्भ में धार्मिक विश्वास एवं धर्म के अभिन्न अंग विकल्प रहित कैसे हो सकते है-क्यों नहीं हो सकते है, धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का आधार किस प्रकार का हो सकता है, सक्षम तंत्रों को सुप्रीम कोर्ट की कुछ महत्वपूर्ण रूलिंग प्रस्तुत है जिससे प्रथम दृष्टया उपरोक्त विषय संवैधानिक सिद्ध हो:-

3.1 - AIR 1987 SC 748:- न्यायालय ने राष्ट्रगान गाने से इंकार करने पर एक संप्रदाय विशेष के कृत्य को धर्म स्वतंत्रता के आधार पर वैध करार दिया, क्योकि उनके धर्म ग्रंथ में जेहोवा (उनके भगवान का नाम) की स्तुति के अतिरिक्त अन्य स्तुति गान की मनाही का आदेश, अतः धार्मिक आदेश-निर्देश के तहत, आस्था विश्वास का होना न्यायालय द्वारा स्वीकार किया गया है। किन्तु जो शब्दावली मूल अधिकारों के नियंत्रण हेतु है-वह शब्दावली महाशक्तिशाली एवं अत्यंत व्यापक होती है ------सदाचार में कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका एवं प्रेस सभी आते है। यहां तक भीख मांगने वाले अथवा सार्वजनिक प्रदर्शन करने वाले भी सदाचार का त्याग नहीं कर सकते। इस निर्णय ने ऋणात्मक संदेश को प्रोत्साहित किया- कुछ समय पश्चात् एक और सम्प्रदाय ने फतवा जारी कर दिया कि ‘‘वंदे मातरम्’’ का एक विशेष सम्प्रदाय बहिष्कार करेगा और कुछ समय बाद "भारत माता" की जय के विरुद्ध  फतवा जारी हो गया - सार्वजानिक रूप से वामपंथी व कांग्रेसी इनका समर्थन भी करते है | साथ ही प्रमाण पत्र के नाम पर 3.2 में कम्युनिस्टों की विकृत नादानी स्पष्ट होती है |  इस प्रकार राष्ट्रीय एकता - अखंडता व अस्मिता खण्ड-खण्ड हो जायेगी। शायद भविष्य में राष्ट्रगान बदला जाये-किन्तु वर्तमान में वह राष्ट्रगान का दर्जा प्राप्त है और ‘‘आप माननीय न्यायालय ने सदाचार को व्यापक-समग्र रूप से विश्लेषण नहीं किया ।  न्यायालय द्वारा धार्मिक आस्था-विश्वास को मानने से निर्णय मेरे विषय हेतु स्वयं सिद्ध तथ्य बन गया है-निर्णय कि स्थति.......।  

3.2 - (1995)1 SCC 189 :- न्यायालय ने एक राज्य सरकार (वामपंथी दल - कम्युनिस्ट) द्वारा सम्प्रदाय विशेष को धर्म स्वतंत्रता के नाम पर गोवंश के वध की अनुमति को नकार दिया - क्योंकि बकरईद पर 7 व्यक्तियों द्वारा गाय या ऊंठ की कुर्बानी होने से न्यायालय ने स्पष्ट किया कि- गाय के स्थान पर अन्य विकल्प भी है अतः गोवध ही धर्म का अभिन्न अंग नहीं हो सकता। वस्तुतः यह घटनाक्रम अत्यन्त हास्याप्रद लगता है, किन्तु जिम्मेवार सक्षम तंत्रों के लिये शर्मसार और समुदाय विशेष के लिए अफसोसजनक भी है। क्योंकि जहाँ वैदिक दर्शन के आधार पर अनुच्छेद 25 (1) के तहत गोवंश के वध पर प्रतिबंध लगना चाहिये- उसी राष्ट्र में तुष्टिकरण के तहत अपने धार्मिक विश्वास के आधार पर अनुच्छेद 25 (1) के तहत सार्वजनिक एवं व्यापक स्तर पर गोवंश के वध की राज्य सरकार से अनुमति प्राप्त कर लेते है। जबकि हकीकत यह है कि भारतीय विधि व्यवस्था के प्रभावी होने के दिन से (26 जनवरी 1950) ही संविधान के अनुच्छेद 25 (1) के तहत गोवंश के वध पर तत्काल प्रतिबंध होना सुनिश्चित हो गया- किन्तु आज दिनांक तक असंवैधानिक रूप से गोवंश का वध हो रहा है। सरकार द्वारा धार्मिक आस्था विश्वास को मानने से निर्णय मेरे विषय हेतु स्वयंसिद्ध तथ्य बन गया-साथ ही न्यायालय का निर्णय उपरोक्त विषय में स्वर्ण अक्षरों के योग्य है । ‘‘क़ानून के शासन’’ में राज्य सरकार व केंद्र सरकार दोनों है , अपितु केंद्र सरकार राज्य सरकारों पर अभिभावी रहती है जैसे - गुजरात कार्यों पर केंद्र का स्टे।  

3.3 - AIR 1962 SC 853:- इसी प्रकार एक दाऊदी समाज (सम्प्रदाय विशेष का ही अंग है) उनके धर्मगुरू के आदेश और मान्यताएँ स्वीकार करते हुए न्यायालय ने विधायिका द्वारा पारित कानून को निरस्त कर दिया- यह तो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण हुआ। किन्तु इससे भी हजार गुणा दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि अनादिकाल से लेकर वर्तमान तक (ऋग्वेद-चण्डीदीवार) वैदिक ग्रंथों के आदेश व निर्देशों हेतु ‘‘कानून के शासन’’ और उनके रखवालों ने गांधीजी के बंदरों का मंचन किया। ‘‘उपरोक्त तथ्य सं. 3 के सभी तीनों तथ्यों में विधि के समक्ष संदेहास्पद मात्र एक-एक शब्दावली को धर्मगुरु व धर्म की आस्था के आधार पर कानून के शासन व न्यायपालिका ने स्वीकार किया -किन्तु प्रस्तुत विषय के संबंध में, अवध्य हेतु वैदिक दर्शन में हजारों आदेश-निर्देश पूर्णतः -स्पष्टतः विधि व विज्ञान सम्मत है।’’ धर्म गुरू कि मान्यताओं को मानने से निर्णय मेरे विषय का स्वयंसिद्ध तथ्य बन गया है। निर्णय कि स्थिति......... ।

भाग 1 - तथ्य #4 

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संविधान कि उद्देशिका जो भारतीय संविधान का आधारभूत ढ़ाँचा है, और संबंध विषय का भी स्वयंसिद्ध आधारभूत ढ़ाँचा बन गया है। क्योंकि आज दिनांक तक की रूलिंग के आधार पर सभी धर्माे को ‘‘राज्य’’ भारत सरकार से समान रूप से व्यवहार एवं  समान संरक्षण का उपचार प्राप्त करने का अधिकार है। इस प्रकार संविधान द्वारा स्थापित कर्तव्य व्यवहार का निर्वहन करने के लिये ‘‘राज्य’’ भारत सरकार ‘‘वचन-बद्ध’’ भी है। यहां कुछ रूलिंग का संदर्भ प्रस्तुत करना अनिवार्य हो जाता है:-  (1994) 6 SCC पृष्ठ संख्या 435 पैरा 135 । AIR 1996 SC पृष्ठ संख्या 1123 पैरा 17 ।  AIR 1996 SC पृष्ठ संख्या 1789 पैरा 78 ।  उपरोक्त तथ्य के आधार पर मेरे विषय का क्रियान्वयन एक निमेष के लिये भी विलम्ब नहीं हो सकता - अन्यथा सम्पूर्ण विधि व्यवस्था.....।

भाग 1 - तथ्य #5 

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जिस राष्ट्र में कानून के शासन के अंतर्गत धार्मिक भावनाओं (क्या वोट बैंक और भारतवर्ष के मौलिक अस्तित्व को नष्ट करना ही धार्मिक भावनाएँ होती है अथवा संविधान के आधार पर?) की तुष्टिकरण के रक्षार्थ, एक वाद में पुस्तक आयात पर प्रतिबन्ध व अन्य एक वाद में एक लेखिका को सात वर्ष प्रवेश की अनुमति नहीं मिलती।  दुःखद तथ्य यह है, कि जहां से पुस्तक प्रकाशित हुई वह राष्ट्र विश्व विख्यात पंथ निरपेक्ष राष्ट्र है लेकिन वहां तुष्टिकरण या वोट बैंक की राजनीति नहीं है। अपितु प्रथम स्तर पर राष्ट्र व राष्ट्रीयता की भावना है। इसी प्रकार ऐसा तुष्टिकरण वोटबैंक, ईटली - फ्रांस - जर्मन - अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्रों में भी नहीं होता। समझ में नहीं आता कि भारतीय राजनीति की विकृति भारतवर्ष को कहां .........।  उपरोक्त दोनों मामले सम्प्रदाय विशेष को धार्मिक आघात न लगे, इसलिये किये गये। और साथ ही वोट बैंक और तुष्टिकरण इसमें निहित था। ठीक इनके विपरीत एक चित्रकार वैदिक दर्शन के देवी-देवताओं की अश्लील तस्वीरें बनाता है -सरकार व राजनेता कहते है - यह तो ‘‘आर्ट’’ है। ‘‘उसी राष्ट्र में, हिन्दू समुदाय के करोड़ों नागरिकों की धार्मिक भावनाओं को (गोवंश की हत्या से) प्रत्यक्षतः आचरण के द्वारा कुचला जा रहा है। जो कानून के शासन के औचित्य को ही नष्ट कर देता है।’’

भाग 1 - तथ्य #6 

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यह कि अनु. 25 की भाषा और धर्म के संबंध में, आज दिनांक तक की रूलिंग के विश्लेषण के आधार पर धर्म स्वतंत्रता के मूल अधिकार का मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैः-

6.1- यह कि समाज एवं राष्ट्र में लोक व्यवस्था सुनिश्चित बनी रहे।

6.2 - यह कि एक वर्ग किसी दुसरे वर्ग के व्यक्ति समूह की धार्मिक भावनाओं पर आघात न करें।

6.3 - यह कि सामाजिक कुप्रथाओं का उन्मूलन हो ।

6.4 - यह कि ‘‘राज्य’’ धर्म के विषय में भेदभाव न करे ।

6.5 - यह कि मानव की मानवता एवं गरिमा बनी रहे ।

6.6 - यह कि राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता बनी रहे ।

6.7 - यह कि किसी भी प्रकार से धर्म स्वतंत्रता के अधिकार का तुष्टिकरण व दुरूपयोग न हो ।

भाग 1 - तथ्य #7 

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यह कि अनु. 25 की भाषा और धर्म के संबंध में, आज दिनांक तक की ‘‘रूलिंग’’ के विश्लेषण के आधार पर अनु. 25 (1) के अंतर्गत धर्म एवं धर्म स्वतंत्रता का अधिकार इस प्रकार हैः-

7.1- यह कि धर्म स्वतंत्रता सैद्धांतिक विश्वासों तक ही सीमित नहीं है । समय-स्थिति के आधार पर अनिवार्य रूप से प्रवर्तन योग्य भी नहीं है।  

7.2- यह कि धर्म स्वतंत्रता में धार्मिक कार्यों, संस्कृति और उपासनाओं और धर्म के अनुसरण में किये गये कर्मकाण्डों का अधिकार है जो धर्म के अभिन्न अंग है।

7.3- यह कि धर्म स्वतंत्रता में, वे सभी कार्य शामिल है जिन्हें समुदाय द्वारा धर्म का भाग समझा जाता है, और जो धर्म के द्वारा निर्देशित हैकिन्तु लोकव्यवस्था, लोकस्वास्थ्य, सदाचार एवं अनु. 25 के अन्य उपबंधों में बाधक नहीं होना चाहिए ।

7.4- यह कि ‘‘राज्य’’ भारत सरकार से अन्य धर्मो के समान, सम्मान और व्यवहार का अधिकार सभी नागरिकों को भी है - किन्तु राष्ट्रीय संस्कृति - सांस्कृतिक धरोहर प्राकृत रूप से सभी पर अभिभावी है । यह तथ्य 6 के तथ्य 3 व 7 के तथ्य 1 के आधार पर है | और भारतवर्ष का मौलिक अस्तित्व तथ्य संख्या 6 , 7 , 8 पर सामान रूप से प्रभावी है |

भाग 1 - तथ्य #8 

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यह कि अनुच्छेद 25 की भाषा और धर्म के संबंध में, आज दिनांक तक की रूलिंग के विश्लेषण के आधार पर, अनु. 25 (1) के अंतर्गत धर्म से संबंध विषय का न्यायालय एवं सरकार द्वारा प्रर्वतन हेतु अनिवार्य तत्व इस प्रकार है:-

8.1- यह है कि प्रस्तुत विषय का धर्म से संबंध है।

8.2- यह है कि प्रस्तुत विषय का धर्म, स्वयं में ‘‘मूल धर्म’’ है- विशिष्ट धर्म है।
8.3- यह कि प्रस्तुत विषय के संबंध में, मूल ग्रंथ के स्पष्ट ‘‘आदेश-निर्देश’’ है।

8.4- यह कि प्रस्तुत विषय मूल धर्म का ‘‘अभिन्न अंग’’ है।

8.5- यह कि प्रस्तुत विषय का धर्म से संबंध होना, मूल धर्म का होना, मूल धर्म के स्पष्ट आदेश-निर्देश होना और अभिन्न अंग होने के साथ ‘‘विकल्प रहित’’ होना चाहिये।

8.6- यह कि उपरोक्त के अतिरिक्त प्रस्तुत विषय पंथ निरपेक्षता में बाधक नहीं होना चाहिए और न ही पंथनिरपेक्षता पर प्रहार हो। जब तक कि विधि द्वारा कोई युक्ति-युक्त वर्गीकरण किया गया न हो।

8.7- यह कि उपरोक्त के अतिरिक्त प्रस्तुत विषय लोकव्यवस्था, लोकस्वास्थ्य, सदाचार एवं अनु. 25 के अन्य उपबंधों में बाधक नहीं होना चाहिए ।

8.8- समय की परिस्थितियां सामान्य होनी चाहिए ।

विशेष - अनु. 25(1), अनु. 25(2) का स्पस्टीकरण उपरोक्त तथ्यों से स्पस्ट हो जाता है |

भाग 1 - तथ्य #9 

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उपरोक्त तथ्यों के तहत विशेषकर तथ्य संख्या 3-4-5 के आधार पर व तथ्य संख्या 6 - 7 - 8 के आधार पर गौवंश पूर्णतः अवध्य है | राष्ट्र में प्रभावि विधि व्यवस्था और उसके व्यवहारिक क्रियारूप के अनुरूप- वैदिक दर्शन में गौवंश का ‘‘अवध्य’’ और ‘‘महात्म्य’’ जो स्वयं में विज्ञान है, इस प्रकार है :-

        उपरोक्त विषय में सनातन धर्म-वैदिक दर्शन के सभी समुदायों के धर्मग्रंथों का आवश्यकतानुसार प्रस्तुती कर रहे है- जिसमें हिन्दू (हिन्दू समुदाय = हिन्दू समाज - सिख समाज - जैन समाज - बौद्ध समाज) वैदिक दर्शन (सनातन धर्म - हिन्दू धर्म) के आधार पर शामिल है | साथ ही संविधान के अनुच्छेद 25 (2)(ख) के अनुसार भी यह हिन्दू समुदाय के अभिन्न अंग है |  माननीय सर्वोच्च  न्यायालय द्वारा अनु. 25 के तहत कुछ अन्य समुदायों के सम्बन्ध में कहा गया- ये संस्थाएं और समुदाय पृथक धर्म नही है वरन् हिन्दू (सनातन) धर्म का ही भाग है। (रामकृष्ण मिशन, आनंद मठ इत्यादि अन्य समाज अर्थात जो भी हिन्दू समुदाय के पंथ समाज व विचारधारा है - कोई भी वैदिक दर्शन से नकारात्मक नहीं है) | एक अन्य वाद में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा ‘‘हमारे धर्म को सनातन कहा गया है। वेदों में इसे  शाश्वत मूल्य कहा है अर्थात वह जो देश और काल दोनों में बंधा हुआ नहीं है।’’ स्पष्ट है सनातन धर्म का न आदि है और न ही अंत अर्थात सनातन धर्म अनादि और अंनत है। अर्थात यह सम्पूर्ण विश्व के जीव जगत पर प्रभावी है जो प्रलय काल तक सुनिश्चित है | गोमाता का अर्थ भारतीय नस्ल की देशी गाय से ही है जो वैज्ञानिक दृष्टि से भी गुण और शक्ति में सर्वोत्तम है।

       इस प्रकार आज दिनांक को राष्ट्र में प्रभावी विधि व्यवस्था के अंतर्गत गोवंश का वध पूर्णतः स्पष्टतः असंवैधानिक है। क्योंकि भारतीय विधि के आलोक में समुदाय विशेष के धर्म ग्रंथों से गोवंश पूर्णतः स्पष्टतः निर्बंधन रहित-विकल्प रहित धर्म का अभिन्न अंग सिद्ध होता है। साथ ही प्रत्येक स्थिति में गोवंश के धार्मिक महत्व व सुखदायी रख-रखाव का आदेश है जिसमें सम्पूर्ण विश्व को आध्यात्मिक एवं भौतिक ज्ञान-विज्ञान देने वाले वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत इत्यादि शामिल है। इस प्रकार वेदों में गोवंश को पूर्णतः अवध्य घोषित किया हैः-

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यदि ‘‘कानून का शासन’’ व ‘‘न्यायपालिका’’ अपने स्वयं के सभी संवैधानिक कृत्यों को और मेरे सभी संवैधानिक तथ्यों को नकार दे - फिर भी इस तथ्य कि तस्वीर और उसका 100 शब्दों का स्पष्टिकरण मात्र से ही- अनुच्छेद 25(1) के आधार पर गौवंश का वध एक पल - क्षण के लिए भी जारी नहीं रह सकता । कांग्रेस - वामपंथी दल और तृणमूल कांग्रेस अपने पूर्व के घिनौने कृत्यों के आधार पर सम्पूर्ण विश्व के विधि विशेषज्ञों को प्रस्तुत विषय के विरोध के पक्ष में शामिल करें - तो फिर भी सम्पूर्ण प्रस्तुत विषय को इसी तस्वीर व अनु. 25 (1) के आधार पर स्वयं सिद्ध किया जा सकता है ------ | 

    ‘‘गौसूक्त’’ नाम से ऋग्वेद के मण्डल 8, सूक्त 101, मंत्र 15 में स्पष्ट रूप से ‘‘अवध्य’’ शब्द को देख सकते है यह विकल्प रहित स्पष्ट आदेश है। ‘‘गाय रूद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, अदिति पुत्रों की बहन और घृत रूप अमृत का खजाना है। प्रत्येक विचारशील मानव को मैने यही समझाकर कहा है कि निरपराध एवं ‘‘अवध्य’’ गो का वध न करो।’’ श्लोक को तस्वीर में देखें। इसके साथ एक और स्पष्ट आदेश को देखें:-‘‘रंभानेवाली तथा ऐश्वर्यो  का पालन करने वाली यह गाय मन से बछड़े की कामना करती हुए समीप आयी है। यह ‘‘अवध्य’’ गौ दोनों अश्विनी देवों के लिये दूध दे और वह बड़े सौभाग्य के लिये बढ़े।’’ इसके अतिरिक्त ऋग्वेद ने गाय को ‘‘अध्न्या’’ कहा है "अर्थात जिसकी हत्या नहीं की जा सकती है।’’ विश्व के सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद - वैदिक दर्शन का प्रथम धर्म शास्त्र है जिसमे गायों की मंत्र रूप नाम से महिमा है और अन्य शास्त्रों में विस्तार से वर्णन भी है |

      इतना ही नहीं समुदाय विशेष के शास्त्रों के अनुसार गाय के पृष्ठ भाग में ब्रह्मा जी का, गले में विष्णु भगवान का, मुख में शिवजी का व रोम-रोम में ऋषि-महर्षियों का वास है और आठ ऐश्वर्यो को लेकर लक्ष्मी माता गाय के ‘‘गोबर’’ में निवास करती है। गाय के इस स्वरूप की तस्वीरें समुदाय विशेष के घर - मंदिर - कार्यालयों इत्यादि करोड़ों स्थानों पर ससम्मान स्थापित है एवं पूजन किया जाता है-देखें तस्वीर।

गुरूनानक देव से गुरू गोविन्दसिंह महाराज तक गोवंश की हत्या को घोर अधर्म बताया है। इस संबंध में दशम गुरू गोविन्दसिंह जी द्वारा चण्डी दीवार में गोवंश की रक्षा हेतु गुरूवाणी इस प्रकार है:- "यह आज्ञा है कि गोवंश की रक्षा-संवर्धन, गोपालन-गोसेवा करो और कहते है, कि सम्पूर्ण विश्व से गो हत्या का दोष मिटाऊँ इसके साथ ही माँ जगदम्बा भवानी से प्रार्थना करते है कि हमारी यही आशा पूर्ण करो - जिससे गायों का कष्ट एवं हमारा भयंकर दुःख समाप्त हो जाये और माँ भवानी से विशेष प्रार्थना करते हुए कहते है - असुर (गौ हत्या करने वाले) को मारकर गौमाता की रक्षा कीजिये |" उपरोक्त के अतिरिक्त अन्य ग्रथों में भी गौवंश के महात्म्य व रक्षा के आदेश है साथ ही गौमाता हो चौदवां रत्न भी माना गया है | गुरूवाणी को तस्वीर में देखें।

तथ्य संख्या 1 से तथ्य संख्या 9 के इस भाग तक संवैधानिक विश्लेषण के आधार पर गौवंश धर्म का अभिन्न अंग है अर्थात् गौवंश का वध असंवैधानिक रूप से स्वयं सिद्ध होता है |

उपरोक्त तथ्यों के आधार पर ही इस प्रकार का श्रृंखलाबद सार्वजानिक प्रकाशन 2004 में हुआ | ठीक इसी प्रकार एक विधिक सार्वजानिक प्रकाशन  किया गया जो राष्ट्र के प्रमुख सामाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ - "जिसमे मुख्यतः अंश इस प्रकार है - एक पल-क्षण के लिए भी गौवंश की हत्या नहीं हो सकती |" यह प्रकाशन भी 2014 में उपरोक्त तथ्यों (तथ्य 1 से 9 के विशेष तक) के आधार पर (व अन्य तथ्यों से भी) ही हुआ (जिसकी कुछ विज्ञापन प्रतिकॉपियाँ भी प्रस्तुत है) | उस समय वेबसाइट का नाम अलग होना और कुछ कारणों से बंद कर दी गयी | 

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विशेष - उपरोक्त तथ्यों तक  विधि के समक्ष गौवंश की हत्या एक निमेष के लिए भी जारी नहीं रह सकती है | शेष तथ्य सरकार - समाज व अंनुतोष की समझ - संवेदना के व्यवारिक पक्ष हेतु है| शेष तथ्य भी विषय के अनुरूप विधिक व सटीक है, किन्तु क्रमवार व संख्याप्रद आंकड़ों में त्रुटि रह सकती है भावार्थ में नहीं - क्योंकि प्रस्तुत विषय 2003 से प्रारम्भ है ....| विशेष तथ्य यह है कि राम जी की इच्छा के बगैर पत्ता भी नहीं हिल सकता - जो कुछ भी घटित होता है प्राकृत प्रकृति में वो हमारे शुभ-अशुभ संस्कारों का प्रतिफल होता है | प्राकृत प्रकृती स्वयं में माया है - विज्ञान है | उदहारण के लिए समुन्द्र की तरंगे - यह ऐसा विज्ञान है - यदि बंद हो जाये तो जीव-जगत दम घुटकर आधे से अधिक प्रलय की चपेट में आ जाते है | 

        इस सम्बन्ध में भगवान महावीर व भगवान बुद्ध के आदेश ही पर्याप्त है:- ‘‘गोरक्षा के बगैर मानव रक्षा संभव नहीं है और गोवंश ही मानव हेतु परम कल्याणकारी है।’’ भगवान ऋषभदेव प्रथमतीर्थकंर का प्रतीक भी गोवंश ही है जो समुदाय के लिये परमपूजनीय है साथ ही मूल दर्शन की विशिष्ट शाखा के प्रचारक-संस्थापक के बतौर स्वामी विवेकानन्द और महर्षि दयानन्द सरस्वती के तथ्यात्मक आदेशों एवं विशेष शाखा के प्रर्वतक गुरू जांभोजी की शिक्षा का सार भी पर्याप्त है। माँ करणी माता का गोवंश के प्रति असीम भक्ति भाव था । इसी प्रकार स्वामी राम सुख दास जी महाराज ने अपने अंतिम पत्र 16-12-2003 में सभी को अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार गौवंश की रक्षा हेतु व्यथित व करुणामय पुकार प्रकट की ------ | कलयुग के अवतार माँ करणी माता और रुणिचे धाम के रामदेव जी महाराज ने गौवंश की रक्षा के लिए (प्रार्थनापूर्ण) धर्मराज के अधिकारों का भी उपयोग किया | 

 

        सभी वैदिक शास्त्रों ने गोवंश की महिमा का दिव्य वर्णन व अवध्य का आदेश किया हैः-‘‘वेदों में अग्नि-सूर्य-जल इत्यादि प्रत्यक्ष देवताओं के समान गोवंश को प्रत्यक्ष देवता घोषित कर पूजनीय सिद्ध किया गया है साथ ही गौ रक्षा हेतु कठोर विधान का निर्देश है।’’ ‘‘सम्पूर्ण सृष्टि के लिये गोवंश को अत्यन्त कल्याणमयी व महिमामयी सिद्ध किया गया है साथ ही एक आदेश में गौ को मत मारो क्योंकि गायों का कोई मूल्य नहीं है अर्थात् गोवंश इस जीव जगत के लिए अनमोल है’’-‘‘गौहत्या व गौ के जल स्थान को दुषित करने पर कठोर दण्ड का विधान है”-‘‘गौ हत्या को अति भयावह पापकर्म के कारण गौ हिंसा को सर्वदा निषेध किया गया है’’- ‘‘गाय सम्पतियों का घर है अर्थात दौलत की रानी है’’-‘‘गाय विश्व की माता है समस्त प्राणियों की माता है’’ ‘‘गौ की उपमा अथवा परिणाम नहीं है गौ के समान और कोई नहीं है।’’ ‘‘वैदिक दर्शन ने गौ-माता के रहस्य को स्पष्ट किया कि सृष्टि भूमि का पोषण सभी गौ-माता पर निर्भर है | गौ माता के शरीर का निर्माण साम्य अवस्था में हुआ है और सम्पूर्ण सृष्टि को जीवन शक्ति प्रदान करती है। पर्यावरण सन्तुलन का मूल स्त्रोत भी गौ-माता ही है, और प्रकृति के विरूद्ध चलने पर ही विष की उत्पति होती है और यही विष प्राकृतिक असंतुलन उत्पन्न करके विनाषकारी उपद्रव पैदा करती है, गौ-माता ही विष-शमन का ‘‘सर्वोत्तम’’ उपाय है। गौ-माता के आनंद से रंभाने मात्र से आकाश तत्व को दिव्य उर्जा प्राप्त होती है। इसी प्रकार सूखे गोबर में गो-घृत की आहूति देने पर वायुमण्डल को असीम (प्राण वायु) उर्जा प्राप्त होती है और पृथ्वी तत्व को गौ-माता के गोबर-गौमूत्र से अत्यधिक उर्वराशक्ति प्राप्त होती है साथ ही भूमि-मिट्टी के विष का भी शमन होता है। इसी प्रकार अग्नि तत्व-जल तत्व का विष-शमन करने में गौ-माता समर्थ है और ऋतुचक्र - मौसमचक्र को व्यवस्थित करने में गौ-माता का महत्वपूर्ण सामर्थ्य (यज्ञ के रूप में) है। ये सभी तथ्य विज्ञान सम्मत है। इसी वैज्ञानिक रहस्य को जानते हुए वेदों ने गौ-माता को ‘‘अवघ्ना-अघ्न्या’’ कहते हुए स्पष्ट रूप से गोवंश के वध की निषेधाज्ञा जारी की गई है। ‘‘चिकित्सा विज्ञान के भगवान धन्वन्तरि जी कहते है- ‘‘गौ-माता पावन-पवित्र-महामंगलमयी है, स्वर्ग की सौपान व मानव समुदाय की उत्तम शाखा और नित्य (सनातन) है।’’ इसी प्रकार पांचवे वेद-आयुर्वेद के महामुनि महर्षि चरक ने गौ-माता के दूध को सर्वश्रेष्ठ रसायन कहा है। भगवान धन्वनतरि जी कहते है, “गौ-माता का गोबर-गोमूत्र दरिद्रता का नाश करने वाला है। परम पवित्र मंगलकारी है तथा गौ-माता से प्राप्त गोरोचन अनिष्टकारी प्रपंचों का विनाष करने वाला है। गौ-माता को आदर-सत्कारपूर्वक रखने एवं दान करने से वे सीधे स्वर्ग को ले जाती है अतः गौ-माता के माहात्म्य से बढ़कर संसार में दूसरा धर्म नहीं है’’- और भावप्रकाश के अनुसार गौ-माता के दूध से बना दही सर्वोच्च-सर्वोच्तम और देव-पितरों को संतुष्ट करने वाला है। ‘‘मुत्रे गंगादयो नद्यः’’ जगत पावनी गंगा जी एवं समस्त नदियां गो-माता के गोमूत्र में ही निवास करती है।  गौ सावित्री स्त्रोत में कहा गया है कि  ‘‘समस्त गायें साक्षात् विष्णु रूप है।’’ उपरोक्त गोबर - गौ मूत्र - दूध - दही - घी का माहात्म्य भारतीय देसी नस्ल की गाय से ही है - इनकी विशेषताएं - गुण इत्यादि 84 लाख योनि के जीवों से अलग है - विशेष है |

    बृहत्पराशरस्मृति के अनुसार:- ‘‘गौओं का सदा दान करना चाहिए, सदा उनकी रक्षा करनी चाहिये और सदा उनका पालन पोषण करना चाहिये। जो मूर्ख उन्हें डांटते तथा मारते-पीटते है, वे गौओं के दुःखपूर्ण निःश्वास से पीड़ित होकर घोर नरकाग्नि में पकाये जाते है’’- बौधायन्तस्मृति के अनुसार:- ‘‘गौ और ब्राह्मण की रक्षा के लिए और वर्णसंकरता से प्रजा को बचाने के लिए ब्राह्मण और वैश्य को भी शस्त्र ग्रहण कर लेना चाहिये।’’ पदम पुराण के अनुसार ‘‘गौ के मुख में षडड्ग और पदक्रम सहित चारों वेद रहते है’’ स्कन्ध पुराण के अनुसार ‘‘गौ सर्वदेवमयी और वेद सर्व गोमय है।’’ सतपथ ब्राह्मण में, गोवंश को अतिमहत्वपूर्ण संज्ञा दी गई है-‘‘अन्न-धान-गौ’’ है। भविष्यपुराण के अनुसार-‘‘अमृत औषध-नीलकमल-लालकमल गोबर से देवताओं के लिये महान संतुष्टिकारक गुग्गुल गो-मूत्र से उत्पन्न हुए है और सभी देवताओं एवं पितरों को तृप्त करने वाला अमृत पदार्थ गो-घृत (भोग सामग्री - हवन -यज्ञ इत्यादि ) ही है।’’ यमस्मृति के अनुसार-‘‘गौ-माता के सभी पदार्थ सभी प्रकार के महापापों के नाशक है।’’ वशिष्ठस्मृति के अनुसार-‘‘गौ-माता के सभी पदार्थ सर्व कल्याण-सर्व सिद्धि करने हेतु सर्वोत्तम है।’’ विष्णुस्मृति के अनुसार - ‘‘गौ-माता पवित्रकारी-मंगलकारक तथा गौ-माता में समस्त लोक प्रतिष्ठित होते है। गो-माता यज्ञ का विस्तार करती है तथा समस्त पापों का नाश करती है। इनके अतिरिक्त गो-माता के 6 पदार्थ सर्वथा पवित्र व महामंगलकारी होते है। इसके साथ ही गौ-माता का स्वप्न मात्र में दिग्दर्शन कल्याणकारी-व्याधिनाश्क है। यात्रा प्रारंभ के समय गौ-माता का दर्शन अति शुभ दायक होता है।’’ पद्मपुराण, सृष्टि के अनुसारः- ‘‘जो मनुष्य प्रतिदिन स्नान करके गो का स्पर्श करता है। वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। जो गौओं के खुर से उड़ी हुई धुलि को सिर पर धारण करता है, वह मानों तीर्थ के जल में स्नान कर लेता है और सभी पापों से छुटकारा पा जाता है’’-‘‘जो मनुष्य गौंओं के लिए यथाशक्ति गोचर भूमि छोड़ता है, उसको प्रतिदिन सौ से अधिक ब्राह्मण भोजन का पुण्य प्राप्त होता है। गोचर-भूमि छोड़ने वाला कोई भी मनुष्य स्वर्ग से भ्रष्ट नहीं होता। जो मनुष्य गोचर भूमि को रोक लेता है और पवित्र वृक्षों को काट डालता है, उसकी इक्कीस पीढ़ी रोरव नरक में गिरती है जो व्यक्ति गौओं के चरने में बाधा देता है, समर्थ ग्राम-रक्षक को चाहिए कि उसे दण्ड दे’’- वर्तमान में कानून का शाशन | विष्णुधर्मोत्तर के अनुसारः-‘‘गौ-रूपी तीर्थ में गंगा आदि सभी नदियों तथा तीर्थो का आवास है। उसकी परम पावन धुलि में पुष्टि विद्यमान है, उसके गोबर में साक्षात लक्ष्मी विराजमान है और उसे प्रणाम करने से धर्म सम्पन हो जाता है। अतः गौ माता सदा-सर्वदा प्रणाम करने योग्य है’’-‘‘गौओं के चरने के लिये गोचर भूमि की व्यवस्था करके मनुष्य निःसन्देह अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है।’’ इस प्रकार मनुष्य अंतःकरण से गौभक्ति - गौसेवा - और भौतिक संसार के विकारों में न्यूनता अथवा मुक्त है उसे सभी फल प्राप्त हो सकते है | 

     उपरोक्त के अतिरिक्त अन्य पुराणों के अनुसार:- ‘‘गोबर व गौमूत्र दरिद्रता का नाश करने वाले है अतः इनके प्रति श्रद्धायुक्त आदर भाव रखना चाहिए’’-‘‘अपने माता-पिता की तरह ही गौ-पालन करना चाहिए’’-‘‘अकाल-युद्ध के समय भी गोवंश की पूर्णतः सेवा होनी चाहिए’’-‘‘गायों की प्रदक्षिणा महान कल्याणकारी व मंगलकारी है’’- गौ-माता की स्तुति करते हुए ब्रह्मा विष्णु महेश कहते है -‘‘तुम सभी देवताओं की माता, यज्ञ की कारणरूपा और सम्पूर्ण तीर्थो की तीर्थरूपा हो, तुम्हारे ललाट में सूर्य-चन्द्रमा, अरूण आदि है’’- ‘‘गौभक्त और गौदान करने वाला यमपुरी की ‘‘वैतरणी’’ को पार कर जाता है’’-‘‘सुखपूर्वक गायों के रहने के स्थान पर यदि किसी की मृत्यु हो जाती है तो वह तत्काल मुक्त हो जाता है’’-“गौमाता के गोबर में लक्ष्मी जी अपने सर्वोच्च स्वरूप में प्रतिष्ठित रहती है। गौ-मूत्र में भगवती स्वरूपा गंगा जी, दूध-दही घी में सोम तथा गोरोचन में भगवती सरस्वती विराजमान रहती है’’- यहां तक कि पूतना के विषयुक्त स्तनपान के पश्चात् शुद्धिकरण व विष-शमन हेतु माँ यशोदा ने गोबर व गौमुत्र का ही प्रयोग किया । वर्तमान में अनेक संस्थानों के अतिरिक्त इंदौर के डॉ जैन गौमूत्र से गंभीर रोगो का सफलता पूर्वक उपचार कर रहे है | 

   महाभारत के अनुसार:- ‘‘अंगों व मंत्रों सहित समस्त वेद हर्षित होकर नाना प्रकार के मंत्रों से गौ की स्तुति करते है’’-‘‘गौ भक्त मनुष्य जिस-जिस वस्तु की इच्छा करता है, वह सब उसे प्राप्त होती है। स्त्रियों में भी जो गौओं की भक्त है, वे मनोवांछित कामनाएँ प्राप्त कर लेती है। पुत्रार्थी मनुष्य पुत्र पाता है और कन्यार्थी कन्या, धन चाहने वाले को धन और धर्म चाहने वाले को धर्म प्राप्त होता है। विधार्थी विद्या पाता है और सुखार्थी सुख। भारत ! गौ भक्त के लिये यहां कुछ भी दुर्लभ नहीं है’’ - ‘‘जब गौएँ स्वच्छन्दतापूर्वक विचर रही हों अथवा किसी उपद्रवशून्य स्थान में बैठी हों, तब उन्हें पीड़ित नहीं करना चाहिये। यदि वे प्यासी होकर देखती है तो उत्पीड़क के सम्पूर्ण वंश को नष्ट कर देती है’’-‘‘गौरक्षा, अबला स्त्री की रक्षा और गुरू तथा ब्राह्मण की रक्षा के लिये जो प्राण दे देते है, राजेन्द्र युधिष्ठर! वे मनुष्य इन्द्रलोक में जाते है’’-‘‘गौओं का समुदाय जहां बैठकर निर्भयतापूर्वक साँस लेता है, उस स्थान की शोभा बढ़ा देता है और वहां के सारे पापों को खींच लेता है’’-‘‘जो एक वर्ष तक प्रतिदिन भोजन के पहले दूसरे की गाय को एक मुठ्ठी घास खिलाता है, उसका वह व्रत सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है’’-‘‘गौ माता मातृशक्ति की साक्षात् प्रतिमा है । जिस दिन विश्व में गौऐं नहीं रहेगी उस दिन विश्व मातृशक्ति से वियुक्त हो जायेगा और उस दशा में कोई भी प्राणी नहीं बचेगा ।’’

      भगवान कहते है कि:- ‘‘यह जो मैने गायों का महात्म्य कहा है सो केवल उनके गुणों के एक अंश का दिग्दर्शन मात्र है गौओं के सम्पूर्ण गुणों का वर्णन तो कोई कर ही नहीं सकता’’-‘‘हे अर्जुन! गौए दूध से, घृत से, दही से, गोबर से, मूत्र और चर्म से, तथा हड्डियों, बालों, सीगों से भी हमारा उपकार करती है’’-‘‘गौएँ समस्त प्राणियों की माताएँ एवं सारे सुख देने वाली है। वृद्धि की आकांक्षा करने वाले मनुष्य को नित्य गौओं की प्रदक्षिणा करनी चाहिए’’-‘‘गाय ही यज्ञ के फलों का कारण है और गाय में ही यज्ञ की प्रतिष्ठा है’’-‘‘गौओं के निवास करने से वहां की पृथ्वी भी शुद्ध हो जाती है। जहां गायें बैठती है वह स्थान, वह घर सर्वथा पवित्र हो जाता है।’’ ‘‘गाय के खुर से उत्पन्न धूलि समस्त पापों को नष्ट कर देने वाली है । गाय के गोमय से उपलिप्त स्थान सब प्रकार से पवित्र स्थान कहा गया है।’’ इसीलिये वर्तमान में लोग घर बनाने से पूर्व उस भूमि पर चारा डालकर गोवंश को खिलाते है जिससे भूमि गोबर-गौमूत्र से सिंचित होकर शुद्ध हो जाती है। ताकि वहां भविष्य में कोई अनिष्ट न हो और घर का निर्माण करते समय भी गौ मुत्र का प्रयोग करते है-विशेषकर आंगन व मुख्य द्वार पर ।

      देवों के देव महादेव की कथा शिवपुराण व महारूद्राभिषेक के अनुसार:- गोवंश समुदाय विशेष के उपासना स्थलों का अभिन्न अंग है। इनके अतिरिक्त साक्षात ब्रह्म सदाशिव को भी गौमय (गोबर,मृतिका इत्यादि) से बनाने एवं पंचगव्य (गोबर-गौमूत्र इत्यादि) से पूजन का विधान है जिससे पुनर्जन्म नहीं होता। इतना ही नहीं भगवान विष्णु का अभिषेक भी साक्षात् ब्रह्म ने ‘‘गौशाला’’ में किया और अपनी अखंड शक्ति के साथ अपना परम धाम ‘‘गौलोक’’ भी प्रदान किया और प्रथम पूजन करके सदाशिव इस सृष्टि के प्रथम वैष्णव बन गये। सर्वशक्तिमान द्वारा सृष्टि का सर्वोच्च कार्य गौशाला में ही संपन्न हुआ है और आज भी दीपावली की प्रथम अष्ठमी - गौपाष्ठमी को गौशालाओं को मंदिरों की तरह सजाया जाता है, प्रकाश उत्सव की तरह दीप जलाये जाते है और सभी साधुः-संत अनिवार्य रूप से गौशालाओं में गौवंश का पूजन करते है | अतः उपरोक्त व पूर्व के संवैधानिक तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर गौशाला भी धर्म का अभिन्न अंग है | इसी प्रकार नारायण - विष्णु भगवान और ब्रह्मा जी ने शिवलिङ्ग का प्रथम पूजन किया और महाशिवरात्रि का शुभारम्भ हुआ | इसके साथ ही महारुद्राभिषेक में भगवान विष्णु द्वारा एक कमल पुष्प कम होने पर अपने कमल नयन को अर्पण कर पूजन पूर्ण किया | इस प्रकार स्पष्ट होता है शैव भक्त भगवान विष्णु - राम - कृष्ण और अन्य देवी-देवताओं के पूजन के बगैर उनकी शिव भक्ति नहीं हो सकती | इसी प्रकार वैष्णव भक्तों के द्वारा शिव भक्ति के बगैर विष्णु भक्ति नहीं हो सकती | गौलोक में गौ सेवा हेतु भगवान श्रीकृष्ण स्वयं विराजमान है। इसी प्रकार ब्रह्म मंत्र की दीक्षा में ‘‘गौशाला’’ का सर्वोच्च स्थान है। सर्वोच्च पवित्र महाभस्म भी गोमय है और सर्वोच्च दान में गोदान प्रथम है। वैदिक दर्शन के मूलमंत्र की दीक्षा से पूर्व भी पंचगव्य (गोबर-गौमूत्र इत्यादि) ग्रहण करना अनिवार्य है साथ ही ‘‘गौ’’ स्थानों पर सम्पन होने वाले अनुष्ठान दस गुना फलदायक होते है। इनके अतिरिक्त नंदीश्वर ने सम्पूर्ण मानव प्रजाति के लिए ‘‘कामशास्त्र’’ की रचना की जो वर्तमान में पूर्णतः वैज्ञानिक सिद्ध है। 18 वास्तुशास्त्र के उपदेष्टा में नंदीश्वर का भी स्थान है जिसे सम्पूर्ण विश्व स्वीकार कर रहा है। इसके अतिरिक्त सदाशिव ब्रह्म का सर्वोच्च पूजन अनुष्ठान महारूद्राभिषेक के संकल्प में विष्णु भगवान की स्तुति है तथा पांचवे अध्याय में संसारातीत- जीवनमुक्त विष्णुरूप रूद्र के लिये नमस्कार है। साथ ही गोबर की गोरी (माता गौरी) को अक्षतों पर स्थापित कर सकते है। गणेश-गौरी के पूजन के बाद नंदीश्वर (गोवंश) का पूजन किया जाता है- ऊँ आयं गौः .........। इनके अतिरिक्त भी शिवपंचाक्षर स़्त्रोत में ‘‘नंदीशवर प्रमथ नाथ महेश्वराय........। अतः स्पष्ट है गौ-सेवा के माहात्म्य व गौशाला को सर्वोच्च स्थान ब्रह्म सदाशिव ने भी प्रदान किया। अतः हिन्दू समुदाय के अनु. 25 (1) के अधिकारों के, औचित्य को बनाये रखने के लिए भारत सरकार सुनिश्चित योजना के तहत् (क) गाँव - तहसील - शहरों के मध्य खली भूमि को 2000 - 5000 गौवंश की गौशाला हेतु आरक्षित करें (ख) सम्पूर्ण चार दीवारी के पश्चात आवश्यकता अनुसार ट्रस्ट व सरकार राज्य आयोग के देख - रेख में मौसम व क्षेत्रिय आधार पर निर्माण कार्य करें (ग) स्थापित गौशालाओं के आस - पास की खाली भूमि का विक्रय न करें और अन्य निर्माण कार्य यदि गौशालाओं में कठिनाई उत्पन्न करते है उनको हटाया जाये क्योंकि आवागमन सुगमता से होना चाहिए | स्थापित गौशालाओं को आस - पास की खाली भूमि विस्तार हेतु (हरा चारा व खाद इत्यादि कार्यों के लिए) गौशाला को देना अनिवार्य हो जाता है | पानी - बिजली - मार्ग की सुगम व्यवस्था सरकार अनिवार्य रूप से प्राथमिक स्तर पर करें | (घ) उपरोक्त कार्यों में भारतीय संविधान के अनु. 25 (1) के अतिरिक्त अनु. 51 (क) और विषाक्त कृषि के सभी संवैधानिक तथ्य व अनु. प्रभावी है --------- देखें तथ्य संख्या 12 -------- | 

      गोस्वामी तुलसीदास जी के अनुसार:- ‘‘धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष’’ चारों फल गायों के चारों थन में है भगवान राम ने भी वन गमन से पहले असंख्य गो-दान किया। भगवान राम के वनवास जाने के बाद भरत जी महाराज ने आहार के साथ 14 वर्षो तक गो-मूत्र का सेवन किया, और आध्यात्मिक उन्नति के साथ पूर्णतः स्वस्थ रहे। श्रीमद् भागवत में कहा गया है, कि इसी प्रकार स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी ने अमृत के स्थान पर गो-घृत का पान किया। महर्षि पाराशर जी कहते है- ‘‘गौ-माता से प्राप्त ऐसा कौनसा द्रव्य है जो अपूज्य है अर्थात् सभी कुछ पूजनीय है।’’ ‘‘गौ-माता के द्रव्यों से देवता संतुष्ट होते है अतः गौ-माता सब प्रकार से पूजनीय है।’’ संत एकनाथ नामदेव गोवंश को ईश्वर रूप ही समझते रहे-सिद्ध संत योगी ज्ञानेश्वरजी ने कहा है कि ‘‘गायों के उपकारों की कोई गणना नहीं कर सकता अर्थात गोवंश की उपयोगिता अनमोल व असीम है।’’ इसी प्रकार महामुनि पाणिनी ने अपने उपदेश में कहा कि ‘‘यह देश धन-धान्य से सुसम्पन दिखता है, क्यों दिखता है- क्योंकि यहां बहुत गायें दिखती है।’’ इसके साथ ही विधि-नीति के महाज्ञाता महामुनि कौटिल्य (चाणक्य) ने अपने विश्व-विख्यात अर्थशास्त्र में लिखा है कि- ‘‘जो व्यक्ति स्वयं गायों का हनन करे या अन्य से कराये उसको मृत्यु दण्ड मिलना चाहिए।’’ ‘‘च्वयन ऋषि ने चक्रवर्ती साम्राज्य से भी अधिक एक गो दान को सिद्ध किया, ब्राह्मण व गौएँ एक ही कुल के है परन्तु दो रूप में प्रविभक्त है ब्राहमण मंत्र रूप है-गौएँ हविष्य रूप है और ब्राह्मणों एवं गौओं का मूल्य नहीं लगाया जा सकता।’’ इतना ही नहीं सर्वज्ञ चारभुजा अवतारी महामुनि आदरणीय कृष्ण द्वैपायन- वेदव्यास जी कहते है ‘‘गाय से यह स्थावर जंगम अखिल विश्व व्याप्त है, उस भूत-भविष्य की जननी गौ को मैं सिर नवाकर प्रणाम करता हूँ’’ साथ ही व्यास जी ने गायों को स्वर्ग की सीढ़ी बताया है। मानव का कोई भी ग्रहदोष गौमाता कि सेवा से समाप्त हो जाता है, यहां तक चार ग्रहों कि युति राहु से होने पर पितृदोष सबसे बड़ा दोष होता है उसमें भी गौमाता को भक्ति भाव से प्रतिदिन रोटी, गुड़ व चारा खिलाने से दुर हो जाता है । गुरु कमजोर होने पर गौमाता के शिवलिंग समान ऊपर का उभरे स्थान के दर्शन करने व रोटी में गुड व चने कि दाल रखकर खिलाने से दोष मुक्ति होती है । इसी प्रकार सुर्य-चन्द्र दोषपूर्ण होने से गौमाता कि आंखों के दर्शन करने से लाभ होता है, शनि की दशा में भी गोदान-गोसेवा अति महत्वपूर्ण है - अथर्वज्योतिष में भी ग्रह - नक्षत्रों की शान्ति हेतु गोदान - गोसेवा को महत्वपूर्ण बताया गया है। वैज्ञानिक आधार पर सूर्य नाड़ी - चन्द्र नाड़ी  इनके प्रत्यक्ष साक्षी है। सार-रूप में सभी कार्य फलदायी उसी स्थिति में होते हैं जब अंतःकरण पूर्णतः गौ-सेवा , गौ-भक्ति के भाव से स्वार्थरहित स्थिति में है |

       महर्षि अत्रिमुनि कहते है ‘‘जिस घर में गौमाता न हो, उसका मंगल-मांग्लय कैसे हो सकता है।’’ स्पष्ट किया गया है कि भूमि-घर का, वास्तुदोष-वंशवृद्धी, सुख-शान्ति, धन-वैभव इत्यादि गौमाता के सुख पुर्वक रहने पर ही वह ‘‘कामधेनु’’ बन कर ऐश्वर्य प्रदान करती है, इसके विपरित......। इसप्रकार चाहे अत्रिसंहिता हो-वास्तुप्रदीप हो-अपराजितपृच्छा हो अथवा मयमतम् हो या वशिष्ठस्मृति-यमस्मृति-पाराशरस्मृति-विष्णुस्मृति हो अथवा वेद-पुराण-महाभारत-भागवत्-उपवेद-वेदांग हो- सार रुप में गोवंश को घर में सुख पुर्वक रखने कि स्थति नहीं होने पर, दुध-दही-घी चाहे अल्प मात्रा में हो, घर में रखने चाहिए और अच्छे दिन-पर्व आदि में नियमित गोबर-गोमुत्र भी रखने चााहिए। साथ ही गोशाला में एक गोवंश का खर्च देना चाहिए । गोशाला के ट्रस्टी, कर्मचारी, कम-अधिक गोवंश रखने वाले गोपालक हो चाहे रोग उपचार के चिकत्सक- जिस समय जिसके नियंत्रण में गोवंश है- सामान्य स्थति में सुख पुर्वक है-रोग कि स्थति में उसे आराम व शांति मिल रही है, ऐसी स्थति में नियंत्रणकर्ता को इस संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं है बशर्ते वह सेवा भाव- भक्ति भाव से गोवंश का कार्य कर रहा है अर्थात् ‘‘उसके लिए वह कामधेनु’’ है इसके विपरीत .....। गर्मी में छाव से-सर्दी में धुप से गोवंश को हटाना, साथ ही बैठे गोवंश के उपर से जाना व पैरों से उठाना या मारना तो प्रत्यक्ष यम भय है, इसके विपरीत गोभक्ति-गोसेवा-गोदान करने से यम का भी भय नहीं होता है । उपरोक्त के अतिरिक्त गोवंश की पूंछ पकडने - कमर पर हाथ फेरने - मक्खी मच्छर हटानें तक के अत्यंत गुढ़ रहस्य है, जो सभी मानव जीवन को सफल बनानें वाले है। सनातम धर्म में अग्रपूज्य गणेश भगवान भी गोबर में प्रतिष्ठित होकर पूजा ग्रहण की और सौभाग्य  प्राप्ति के लिये माँ पार्वती का पवित्र गोबर से प्रतिमा बनाकर पूजन का विधान है। इस प्रकार गोवंश की भक्ति - भाव से सेवा करने के पश्चात, ज्योतिष शास्त्र व वास्तु शास्त्र का सामान्य उपचार करने पर भी शीघ्र कार्यसिद्ध होता है।

       उपरोक्त के अतिरिक्त समुदाय विशेष का सर्वोच्च धार्मिक अनुष्ठान ‘‘यज्ञ’’ की प्रतिष्ठा भी गौमाता में है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी प्रतिष्ठा भी गौमाता में ही बतलाई है। अतः स्पष्ट है, कि समुदाय विशेष के धर्म में गोवंश का महात्म्य सर्वोच्च है। अनिर्वचनीय है। धर्मानुसार जहां गायों के चरण पड़ते है वहां देवताओं का वास होता है और पापों का विनाश हो जाता है। शास्त्रों में गीता की तुलना गाय से व वेद-उपनिषदों के सार रूप ज्ञान की तुलना गौदुग्ध से की गयी है। यहां तक कि हम जिस देवी-देवताओं की उपासना करते है वे स्वयं भी ‘‘गौपूजन’’ करते है। जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के आठ दर्शनों में तृतीय स्थान पर ‘‘ग्वाल’’ दर्शन है और स्वयं भगवान विष्णु भी ‘‘गोप’’ स्वरूप है। यह अत्यंत गंभीर तथ्य है कि गोवंश के ऊपर से मक्खी-मच्छर-जोंक इत्यादि हटाने से, उनके पितृ अत्यंत हर्षित होते है। कोई भी गोवंश कहीं भी किसी के भी घर-खलिहान आदि में सुखपूर्वक आराम कर रहा है तो वह वहां के सभी पापों को खींच लेता है। आश्चर्य है कि यह तथ्य वैज्ञानिक रूप से गोबर-गौमूत्र-पंचगव्य की तरह सिद्ध हुआ है। इनके विपरीत प्रताड़ित करने वालों के पितर अद्योमुखी होकर पीड़ा को प्राप्त करते है। चैरासी लाख यौनियों में गौ-माता ही एक दिव्य प्राणी है जो विज्ञान सम्मत ही है। चिकित्सा-सृष्टि-आर्थिक-वैज्ञानिक सभी तथ्य सर्वोच्च होने के साथ सूर्यकेतु नाड़ी-गोरोचन और अपने शरीर से सम्पूर्ण ‘‘विटामिन ए’’ निकाल देना साथ ही जिसके गोबर व गोमूत्र तक का धार्मिक-आर्थिक-चिकित्सा और वैज्ञानिक महत्व है जो गौ-माता की दिव्यता को पूर्णतः सिद्ध करती है। पंचगव्य और उसके पाँचों पदार्थ भी दिव्य सिद्ध होते है क्योंकि गोवंश ही सृष्टि में ऐसा दिव्य प्राणी है जो फसल उत्पादनों का सूखे भूसे का आहर होने पर भी (वर्तमान में तो कीटनाशक व रासायनिक खाद से विषयुक्त भी है) किन्तु फिर भी अमृत के तुल्य पदार्थ प्रदान करती है। इस प्रकार वैदिक दर्शन के धर्मग्रंथों में जो विकल्परहित आदेश-निर्देश है वो किसी भी अन्य जीव के लिये नहीं है यहां तक कि समुदाय विशेष के देवी-देवताओं से भी अधिक गोवंश का महात्म्य है। स्वयं सिद्ध तथ्य के रूप में ‘‘गोवंश धर्म का विकल्परहित-अभिन्न अंग है जिसे नकारना दिन में सूर्यदेव को नकारने के समान है।’’ इतना ही नहीं कलयुग के देवी - देवताओं द्वारा भी गौभक्ति - गौरक्षा के आदर्श प्रस्तुत किये गए है (बाबा रुणिचे धाम के अवतार बाबा रामदेव और देशनोक धाम की अवतार विश्व विख्यात माँ करणी माता) | 

        स्पष्ट है कि हजारों वर्ष पूर्व की देववाणी व सैकडों वर्ष पूर्व की गुरूवाणी में कुछ भी भेद नहीं, अपितु अभेद्य है। स्वयंसिद्ध तथ्य के रूप में आदिकाल से आज दिनांक तक गोवंश का महत्व समुदाय विशेष के लिए धर्म के अभिन्न अंग (कोई भी धार्मिक विकल्प नहीं) के रूप के अनुकरणीय एवं पूजनीय है साथ ही विशेष समुदाय के 100 करोड़ नागरिकों के स्वयं द्वारा निर्मित अनेकों मत-मतांतर होने के बावजूद धर्म के मूल धरातल में सभी मत ‘‘एकमत’’ है । ‘‘इस प्रकार संवैधानिक शोध व विश्लेषण के तहत संबंध विषय के पक्ष में सैकड़ों तथ्य है तमाम अकाट्य व विधि बल से युक्त है अतः एक निमेष के लिये भी गोवंश का वध जारी नहीं रह सकता।’’

      किन्तु भारतीय विधि व्यवस्था के अंतर्गत उपरोक्त प्रमाण किसी सामान्य जख्म हेतु विश्व प्रसिद्ध शल्य चिकित्सकों के समूह द्वारा उपचार करने के समान है। क्योंकि अनेकों रूलिंग में अन्य सम्प्रदायों द्वारा जिस प्रकार से धार्मिक अस्तित्व एवं धर्म के आदेश-निर्देश को प्रस्तुत किया गया है और ‘‘कानून के शासन एवं अन्य सक्षमतंत्रो’’ ने जिस प्रकार से स्वीकार किया है उस स्तर पर गुरूवाणी ही पर्याप्त है। 

      गुजरात सरकार के मामले में अक्टूबर 2005 को सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया ‘‘कि गौवंश की हत्या करने के स्थान पर उसे बचाना आर्थिक रूप से ज्यादा जरूरी है  गौवंश की हत्या के तमाम तर्कों को खारिज कर दिया गया। उपरोक्त निर्णय में अनेक धार्मिक उदाहरणों का भी हवाला दिया गया - साथ ही कहा,  राज्यों और नागरिकों को गौवंश के संरक्षण की जिम्मेदारी निभानी चाहिए।’’ इसी प्रकार बिहार के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने चारे की समस्या को नकार दिया |

भाग 1 - तथ्य #10 

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उपरोक्त विषय के संबंध में सनातन धर्म की संस्कृति एवं उपासनाओं में बच्छबारस, गोपाष्ठमी अथवा ऐसे अन्य (अनंत चौदहस और क्षेत्रवार गौउत्सव के और भी दिन निर्धारित है) धार्मिक आयोजन, जिसमें गौ-पूजन किया जाता है। जिसमें समुदाय के सामान्य वर्ग से लेकर साधु-संतों तक गौ-पूजन किया जाता है, जो धर्म के निर्देशानुसार राष्ट्र के लाखों स्थानों पर करोड़ों नर-नारियों का शामिल होना समुदाय विशेष द्वारा गोवंश को ‘‘व्यापक-व्यवहारिक’’ रूप से धर्म का ‘‘अनिवार्य और अभिन्न’’ अंग समझना एवं अबाध रूप से आचरण को सिद्ध करता है क्योंकि यह पूजन कार्य व्रत उत्सव इत्यादि धर्म के अनुसार निश्चित धर्म-दिवस पर होते है। समुदाय विशेष के विवाह कार्य, मृत्यु कर्म, दीपावली, होली, भाईदूज इत्यादि धार्मिक कार्यो में गोबर की विकल्परहित अनिवार्यता है। समुदाय विशेष का कोई भी धार्मिक कार्य या उत्सव ऐसा नहीं है जिसमें पंचगव्य एवं पंचामृत हेतु गोबर, गौ-मूत्र, गौ-दूग्ध, गौ-दही, गौ-घृत की विकल्परहित अनिवार्यता न हो। धर्म के 16 संस्कारों में आधारभूत ‘‘उपनयन-यज्ञोपवीत संस्कार’’ में पंचगव्य का  सेवन धार्मिक कर्म है। धर्म विशेष के 16 संस्कारों में महत्वपूर्ण ‘‘पाणिग्रहण संस्कार’’ का सर्वाेतम समय गौधूलि वेला है-जब गायों के खुर से मिट्टी उड़ती है और बछड़ों से मिलने की आनंद में रंभाती है साथ ही तत्काल गो-दान का संकल्प भी विकल्परहित अनिवार्य अंग है। इसके अतिरिक्त आयुर्वेद में धातुओं- रसों-महारसों-विष-महाविषों का और अन्य महत्वपूर्ण दवा उपयोगी पदार्थो का विष-शमन, गोबर-गोमूत्र के द्वारा ही किया जाता है। धर्म विशेष में मृत्यु के पश्चात् ‘‘गरूड़-पुराण’’ का वाचन अनिवार्य रूप से किया जाता है जिसमें जीव का कष्टों से मुक्त (सद्गति) करने में गोवंश के गोबर से गोदान तक के धार्मिक महत्व को सिद्ध किया गया है। साथ ही समुदाय विशेष का सर्वोच्च पर्व दीपावली की रात्रि पूजन इत्यादि के बाद सुबह से पूर्व गोबर का पहाड़ बना कर गोवर्धन की पूजा के पश्चात् ही दीपावली के धार्मिक कार्य सम्पन होते है।

भाग 1 - तथ्य #11 

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गोवंश का प्रकृति संतुलन में वैज्ञानिक रूप से योगदान इस प्रकार है:-

        वर्तमान में शब्द विज्ञान के समस्त अनुसंधानों के अनुसार गायों के रंभाने हुकारने की 84 ध्वनियां ‘‘प्रकृति की विकृति’’ समाप्त करती है और चित्कार रूदन की 64 ध्वनियां ‘‘प्रकृति की विकृति’’ उत्पन्न करती है इसी प्रकार सदी-गर्मी-भूख-प्यास अथवा अन्य रूप से प्रताडि़त करने इत्यादि से गोवंश की दृष्टि का प्रकोप जो वैदिककाल के ऋषि-मुनियों ने बताया है उसे भी विज्ञान ने सुनिश्चित रूप से सिद्ध कर दिया है। अतः आदेश-निर्देश धार्मिक ही नहीं अपितु वैज्ञानिक भी है। जिन विकसित राष्ट्रो के द्वारा पशुओं के मल-मूत्र प्रयोग पर भारत का उपहास करते उन्हीं राष्ट्रों के वैज्ञानिकों द्वारा गोबर-गोमूत्र को ‘‘अमृत तुल्य’’ संज्ञा दी जा रही है। जिसमें अमेरिका गौमूत्र का पेंटेंट कराने हेतु प्रथम पंक्ति की दौड़ में रहा। पंचगव्य - गौमूत्र इस विश्व की प्रथम चिकित्सा पद्धति रही है और वर्तमान को देखते हुए भविष्य की भी प्रमुख चिकित्सा पद्धति का पद प्राप्त करना सुनिश्चित है क्योंकि कैंसर और एड्स जैसे रोगों का सफलतापूर्वक निदान हो रहा है जो विज्ञान सम्मत भी है। पाराशर स्मृति ने पंचगव्य को पवित्र एवं पापनाशक बताया है। गौमाता का दही-मठ्ठा संक्रमणनाशक एवं नशा-निवारक में असाधारण रूप से सहायक सिद्ध होता है साथ ही गाय-बछड़ों के रंभाने मात्र से पास में खड़े मनुष्य के मानसिक व अन्य रोग स्वयं न्यून हो जाते है, उपरोक्त सभी तथ्य विज्ञान सम्मत है। क्योंकि प्रकृति की विकृति न्यून हो जाती है |

भाग 1 - तथ्य #12 

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गोवंश से लोकव्यवस्था-लोकस्वास्थ्य व सदाचार के अतिरिक्त राष्ट्र का सम्पूर्ण आधारभूत आर्थिक ढ़ाँचा और समस्त पर्यावरण को कृषि द्वारा नवजीवन प्राप्त होता है और इस प्रकार विषाक्त कृषि संवैधानिक आधार पर पूणतः स्पष्तः असंवैधानिक हो जाती है - जो तथ्य 9,10,11 के अतिरिक्त गौवंश के अवध्य व वैदिक दर्शन कि वैज्ञानिकता को सिद्ध करता है, जो इस प्रकार है:-


       वर्तमान समय में राष्ट्र में अरबों रूपयों की विदेशी मुद्रा के खर्च से कीटनाशक व रसायनिक खाद का निर्माण व आयात हो रहा है। जिससे प्रतिवर्ष 6 टन मिट्टी में पादप पोषक तत्वों की कमी हो रही है। माटी को बचाने का एक मात्र उपाय है - गोबर और गौमूत्र क्योंकि बंज़र भूमि को भी उसकी स्थिति के हिसाब से मुलायम करके (4 -5 इंच) गोबर - गौमूत्र का मिश्रण अथवा स्लेरी खाद या अन्य गोबर - गौमूत्र का मिश्रण पानी के टैंकर में घोल कर बंज़र भूमि में उपयोग करने पर 6 माह में ही वहाँ घने जंगल हो जाते है और माटी में जैविक तत्त्व बने रहते है | रासायनिक खाद और कीटनाशक से भूजल, बाहरी जल स्त्रोत - तालाब , बावड़ी इत्यादि विषाक्त - डार्क जोन की स्थिति में आ जाते है | यह स्थिति जल और भूमि की अति भयावह है जिसको इसी तथ्य में आगे पूर्णतः स्पष्ट किया गया है | इसके साथ ही इसका अन्य तथ्यों में भी स्पष्टीकरण किया गया है | इस सम्बन्ध में आदरणीय जगदीश जग्गी वासुदेव जी (सद्गुरु) सराहनीय प्रयास कर रहे है | मानसून समय में नदियों का जल-स्तर बढ़ने पर जान-माल की हानि के साथ तटबंधों के कमज़ोर होने के कारण हज़ारों टन पोषक व उपजाऊ मिट्टी बह जाती है | राष्ट्र में विशेषकर यह स्थिति बिहार के क्षेत्र में होती है | अतः नदियों के कमज़ोर तटबंधों को चिन्हित करके प्राथमिक स्तर पर बांध के स्तर की मज़बूती के तटबंध बनाये जावे - साथ ही 200 मिटर तक के क्षेत्र  में पौधारोपन किया जावे क्योंकि वैसे ही रासायनिक खादों व कीटनाशकों से व्यापक स्तर पर मिटटी के पोषक तत्व समाप्त हो रहे है |  छिड़काव के समय व पश्चात् कई बार नागरिक, पशु-पक्षी काल-ग्रसित हो जाते है, साथ ही खेतों के विषाक्त तत्वों से वर्षा में आस-पास के जलाशय पूर्णतः प्रदूषित हो जाते है। छोटे किसानों व मजदूरों को फेंफडें का कैंसर हो जाता है। साथ ही भूमि की उपज क्षमता के अतिरिक्त खाद्य पदार्थो  की गुणवता, महक एवं स्वाद भी नष्ट हो रहे है । इतना ही नहीं हम जहर का अंश ग्रहण करते-करते रोगों की बाढ़ में घिर कर दवाओं के पुजारी बन गये और दवा का व्यापार 50 हजार करोड़ से भी अधिक हो गया (वर्तमान में अधिक है)। इसका मुख्य कारण है कि रासायनिक खाद से फसल कम समय में पकने लगती है प्राकृतिक अवस्था के विपरीत ऐसी स्थिति में उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है परिणामस्वरूप उनमें रोग लगने पर हम जहरीले कीटनाशकों का उपयोग करते है। यदि हम गोवंश की दुध के साथ गोबर व गोमूत्र की महत्ता समझे तो एक भी गोवंश बाहर निःसहाय रूप में नहीं देख सकते। राष्ट्र की प्रत्येक पंचायत तहसील व शहर में एक दो आदर्श गौशालाऐं स्थापित कर, अथवा कृषि विभाग कि उत्पादन इकाईयों में गोशालाओं से गोबर-गोमुत्र कि आपुर्ति करें उनमें गोबर गैस संयत्र लगा (शून्य डिग्री वाले कुछ छेत्रों को छोड़कर) कर बिजली उत्पादन शुरू करने एवं खाना बनाने की व वाहन चलाने की प्रदूषण रहित गैस प्राप्त होने के साथ ग्रामीणों का अपना बिजलीघर भी बन सकता है। इससे खाना पकाने की गैस और हल्के वाहन चलाने में पेट्रोल की विदेशी मुद्रा में बचत और बिजली की छीजत व चोरी भी नहीं होगी। इसके साथ अवशिष्ट पदार्थ को अतिरिक्त खाद के रूप (स्लेरी खाद) में बनाया जा सकता है जिससे भूमि का मुख्य भोजन प्राप्त होगा इसके साथ अन्य कम्पोस्ट खाद (गोबर दाने की खाद) भी बना सकते है। जिससे पर्यावरण को नवजीवन सुनिश्चित रूप से प्राप्त होना है। गोमूत्र से उच्च किस्म का प्रदूषण रहित कीटनियंत्रक व्यापक स्तर पर निर्माण हो सकता है, जिससे किसान रोग मुक्त रहेंगे-फसल भी रोग मुक्त रहेगी। इस प्रकार सस्ती खेती से किसान कर्ज के बोझ से खुदकुशी (पूर्व दशक में 2,50,000 से अधिक कर चुके) नहीं करेंगे और गोवंश के प्रति आस्था-विश्वास जागृत होगा, सरकार द्वारा किसानो को अनुदान देने पर विवेकपूर्ण तरीके का प्रयोग करना चाहिए - जिसमे  काश्तकारों का वो परिवार जो भूमि मालिक से जमीन लेकर कृषि कार्य करते है, संविदा पर कृषि करते है | इस प्रकार मरने वालों में छोटे किसानो के साथ इनकी संख्या भी होती है कुछ ही वर्षो  में सरकार उपरोक्त कार्यों  का क्रियान्वयन करके विदेशीमुद्रा-अनुदान और दवा की बचत के रूप में और रोग रहित नागरिकों के होने के कारण कार्य घटों के विस्तार से अरबों रूपयों की बचत कर सकती है। ऐसी स्थिति में हम गौशालाओं में अच्छा धन लगा सकते है और पूर्णतः वैज्ञानिक प्रबंधकीय रख-रखाव के लिए प्रबन्ध विशेषज्ञ व तकनीक विशेषज्ञों को रख सकते है क्षेत्रवार इस कार्य को हम धीरे-धीरे पूरे राष्ट्र में विस्तार कर सकते है। इस प्रकार लोकव्यवस्था-लोकस्वास्थ्य दोनों का अमल होगा और रोजगार में वृद्धि। गोवंश के सुखमयी जीवन होने से ‘‘सदाचार’’ भी होगा। यह आश्चर्य की बात है कि अमेरिका भारत से चार-पांच गुणा अधिक रसायनिक खाद का प्रयोग करता है इतना करने पर भी प्रति एकड़ भारत से कम उत्पादन है। यदि उपरोक्त परियोजनाओं को राज्यवार स्थापित करते है तो कुछ ही वर्षो में करोड़ों नागरिकों को रोजगार व जनता को उच्च गुणवता वाले खान-पान होने से रोगों व दवा में अवश्य कमी होगी। प्रदूषण मुक्त जल और वायु अनु. 21 के तहत् ‘‘प्राण के अधिकार’’ में है । इस आधार पर उपरोक्त विषय को न्यायालय द्वारा प्रवर्तन कराने का अधिकार है। उपरोक्त तथ्यों में प्रदूषण से कई गुणा अधिक विषाक्त वायु है जिसके कारण फेंफड़ों का कैंसर व अन्य भंयकर रोगों के साथ भूमि, भू-जल व जलाशय भी विषाक्त हो रहे हैं- इन क्षेत्रों में प्रर्यावण नाम मात्र का रह गया है, इस प्रकार अनु. 47 - 48(क) -51 (क) का (छ) का भी हनन् हो रहा है। अनु. 51 (क) में जल संरक्षण के स्पष्ट आशय में भू-जल भी शामिल है | विषाक्त कृषि पर पूर्णतः प्रतिबंध करना "राज्य" का संविधान द्वारा स्थापित कर्त्तव्य व्यवहार स्पष्टतः सिद्ध होता है | इस कार्य को क्षेत्र वार ही किया जा सकता है| अतः सरकार अपना संवैधानिक दायित्व का निर्वहन शुरू करें | 

      सन् 1905 में ब्रिटिश सरकार का विशेषज्ञ दल इसी तथ्य को जानने के लिये आया कि-भारतीय फसलों में रोग क्यो नहीं लगते तथा रस व स्वाद से भरपूर क्यों है? अपनी रिपोर्ट में ‘‘गोबर-गौमूत्र’’ ही मुख्य कारण बताया और कृषि व पर्यावरण के लिये गोवंश को अनमोल बताया। ब्रिटिश सरकार की तरह 1909 में अमेरिका सरकार का भी एक विशेषज्ञों का दल भारत आया रिपोर्ट के मूल में ‘‘गोबर-गोमूत्र’’ को ही बताया गया। दुनिया के सिरमौर वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन ने भारत को सावधान करते हुए कहा ‘‘केवल चार सौ साल भी नहीं हुए और अमेरिका की कृषि जवाब दे रही है। इधर दस हजार वर्षो  से चली आ रही भारत की कृषि आज भी चल रही है अतः भारत कृषि में अमेरिका की नकल करके रसायनिकखाद-कीटनाशक व यंत्रों इत्यादि को प्रवेश न दें।’’ इस प्रकार स्पष्ट है कि हमारी कृषि विधि सर्वोत्तम एवं वैज्ञानिक है। अमेरिका के राष्ट्रपति कार्टर ने उर्जा विशेषज्ञों के सेमीनार में ‘‘गोबर’’ से प्राप्त ईंधन को उर्जा के ‘‘अक्षय स्त्रोत’’ (इसमें कहा गया है कि अक्षय स्त्रोत "प्रदुषण रहित और प्राकृतिक सम्पदा के विनाश से रहित है) के रूप में वर्णित किया है - गाय के गोबर में 16 प्रकार के खनिज पाये जाते है जो जलने के बाद भी सबसे अधिक समय तक ताप देने वाला केवल एक मात्र गोबर ही है। जापान के कृषि वैज्ञानिक गांव-गांव जाकर यही संदेश देते है-मशीन नहीं-गाय चाहिए। वर्तमान में जापान की कृषि में गोबर-गौमूत्र गाय-नंदी (बैल) आदि का उपयोग शुरू हो गया है। नानाजी देशमुख को विदेश में देशी गायों के फार्म हाऊस के मालिक ने कहा-‘‘यदि भारत में गोवंश की इसी प्रकार उपेक्षा होती रही और संकरीकरण चालू रहा-तो आप भारतीय नस्ल की गाय हमारे यहां से मंगायेंगें।’’ इस तथ्य में रहस्य छिपा है कि संकरीकरण नस्लें देशी नस्लों की तुलना में रोग-प्रतिरोधक क्षमता व गुणवता में न्यून होती है साथ ही खाने पीने व उपचार में एवं मौसमी रख-रखाव में 70 प्रतिशत अधिक व्यय है। तथ्य यह है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 47 में "राज्य का प्राथमिक कर्त्तव्य लोक स्वास्थ्य में सुधार " का है - अनुच्छेद 48 (क) "पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार" का निर्देश देता है - अनुच्छेद 51(क) का (छ) "प्राकृतिक पर्यावरण जिसमें वन-नदी-वन्य जीव भी है उनकी रक्षा करें" । रासायनिक खाद व विषाक्त कीटनाशक से (विषाक्त कृषि) से उपरोक्त संवैधानिक व्यवस्थाओं का औचित्य ही समाप्त हो जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद  13 के  "अधित्याग का सिद्धांत"  के आधार पर कृषक विषाक्त कृषि नहीं कर सकते और न  ही विषाक्त खाद्य पदार्थों को नागरिकों के उपयोग हेतु तैयार  कर सकतें है, उपरोक्त कारणों से सरकार की अनुमति, प्रोत्साहन व अनुदान भी "संविधान द्वारा स्थापित कर्त्तव्य व्यवहार के विरुद्ध है |" अतः इन दोनों स्थितयों में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के आधार पर "जीवन जीने के अधिकार" को खतरा हो जाता है जिसे हम सभी समझ रहें है और जानते भी है किन्तु सत्य यह है कि अधित्याग सिद्धांत के  आधार पर जीवन जीने को खतरे में डालना अनुच्छेद 21 और अनु. 51(क) के घोर विरुद्ध है जिसके लिए सरकार संवैधानिक रूप से उत्तरदायी है। कुछ राज्य विषाक्त  कृषि से मुक्त भी हुए है |

      विख्यात कृषि - वैज्ञानिक सर अल्बर्ट हावर्ड ने अपने प्रयोगो के द्वारा निर्णय दिया है – कि भूमि के स्वस्थ रहने पर पौधे , वृक्ष (कृषि) स्वस्थ रहते है | इनसे फिर स्वस्थ पशु एवं स्वस्थ मनुष्य - सब की जड़ में जो भूमि का स्वास्थ्य है, उसे ठीक रखने के लिए धरती को तमाम जैविक अवशेष वापस मिलने चाहिए | स्पस्टीकरण - गोबर - गौमूत्र में समस्त कृषि व भूमि के हेतु संसार में जितने तत्व चाहिए वह सभी कुछ इनमे है गौमूत्र तो पूर्णतः तरल रूप में मिट्टी (भूमि) का ही रूप है | क्योंकि मिट्टी के सभी पौषक तत्व इस विश्व में (जैविक रूप में) एक मात्र गौमूत्र में ही है जो गोबर के साथ मिलकर कृषि की गुणवत्ता व मात्रा को उन्नत करते है | अतः भूमि को स्वस्थ एवं उर्वर बनाये रखने में गाय - बैलों का योगदान अप्रतिम है |

      ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने कहा कि-‘‘भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सम्पूर्ण ढ़ाँचे को गाय-नंदी (बैल) ही अपने कंधों पर ढ़ोते आये है।’’ इटली में विज्ञान ने सिद्ध किया है ताजे गोबर में रोगों के कीटाणुओं को नाश करने की शक्ति है-रूस में विज्ञान ने सिद्ध किया है कि-गोबर में अणु-विकरण तक रोकने की शक्ति है। जर्मन विज्ञान ने सिद्ध किया है कि- तत्काल गोबर उठाने वाले को विटामिन-बी प्राप्त हो जाता है। अमेरिका विज्ञान ने सिद्ध किया है कि - गाय के गोबर खाद से उत्पादों में ऐसे जीन्स होते है जो मानव के विषाक्त तत्वों को बाहर निकालते है।  न्यूज़ीलैंड ने सिद्ध किया कि भारतीय नस्लों की गायों का दूध ही उत्तम और रोग नाशक है और गोवंश का गोबर व गौमूत्र - रेडियोधर्मी विकिरणों को रोकने में सक्षम है (माँ के दूध की गुणवत्ता का प्रोटीन मिलना और धर्मराज द्वारा दूध को अमृत की संज्ञा देना - दोनों स्वयं सिद्ध होते है)विज्ञान ने सिद्ध किया है कि वनस्पति जगत में भी भय व दुःख होता है - एक पौधे को तोड़ने व काटने पर पास वाले पौधे भी दुखी व भयभीत होतें है ऐसी स्थिति में उनकी गुणवत्ता प्रभावित होती है ।  वैदिक दर्शन में अनादि काल से इस संबंध में समय-पक्ष-उत्तम योग - दिन - रात और मंत्र का विधान रहा है - यहाँ तक शहद निकालने का समय-दिन-पक्ष निश्चित है । अतः खेतों में अनुपयोगी घास व फसल कटाई उत्तम योग में अति शीघ्र एक साथ करनी चाहिए ।  कटाई के औज़ार लेकर खेतों में ज्यादा समय नहीं रहना चाहिए । सांप के घूमने से और संगीत सुनाने से (बांसुरी वादन इत्यादि) फसलों का उत्पादन अच्छा होता है साथ ही खेतो में अग्निहोत्र करने से फसलों में रोग से बचाव होता है और गुणवत्ता में अधिकता |

विशेष - उपरोक्त तथ्यों तक विषाक्त कृषि पूर्णतः स्पष्तः - असंवैधानिक - महँगी - और राष्ट्रवाद के विरुद्ध है | शेष तथ्य सरकार - समाज - सक्षम तंत्रो में जाग्रति व संवेदना हेतु है जिससे इनके अनुतोष तत्काल व्यवहारिकता प्राप्त कर सकें |

      यह उल्लेखनीय है कि अर्थव्यवस्था में  5 वर्षो  में 20 प्रतिशत की अधिकता होना कोई आश्चर्य नहीं है। वर्तमान में ग्रामीण भारत के 70 प्रतिशत में कम से कम 35 प्रतिशत नागरिकों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष आर्थिक हित गोवंश से जुडा है साथ ही शहरी नागरिक 10 प्रतिशत लगभग 40 से 45 करोड़ जनता किसी न किसी रूप में गोवंश के आर्थिक हित से जुड़ी है। इसी आधार पर कृषि निर्भर है जिससे 70 प्रतिशत जनसंख्या होती है क्योंकि दोनो एक दुसरे के पुरक है। आज से 10 वर्ष पूर्व 55-60 हजार डेयरी की सहकारी संस्थाओं में भूमिहीन व गरीब किसान थे, जिसमें 4 करोड़ से अधिक महिलाएँ थी इनमें तीन करोड़ सदस्यों का गरीबी का कलंक समाप्त हो गया वे निम्न स्तर से मध्यम श्रेणी में आ गये। साथ ही गोवंश के पदार्थो में नियोजित सामान्यतः उच्चतम श्रेणी में है। जैसे चमड़ा व अन्य सम्बद्ध सामग्री के व्यापारी। थोक दूध-दही-घी के व्यापारी भी उच्च श्रेणी में है। इसके साथ मिठाई-दूध-दही-घी के 50 प्रतिशत व्यापारी उच्च व मध्यम दोनों श्रेणी में है। शायद यह तथ्य भारत सरकार को भी मालूम नहीं है। पंचगव्य व गोमूत्र चिकित्सा व दूध के अतिरिक्त गोबर-गोमूत्र के आर्थिक-स्वास्थ्य के साथ ही निम्न लागत की विषाक्त रहित कृषि के आधारभूत लाभ को समझें-तो भारत फिर से सोने की चिड़िया- विश्वगुरू (रोग मुक्त व बेरोजगार मुक्त, श्रम को समायोजित करने और विषाक्त रहित उत्पादन का इतना समग्र अन्य कोई विकल्प नहीं है) बन सकता है।  भारतीय नस्ल की गाय विदेशों में विश्व रिकार्ड दूध देती है अतः हमें विधिक रूप से नस्ल सुधार एवं गोपालन में प्रबन्धकीय एवं वैज्ञानिक सुधार करना अति आवश्यक है। स्पष्ट है कि गोमाता का दुध व दुध के उत्पादों को व कृषि उत्पादों को राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक उपभोग करता है, इस प्रकार उत्पादन एवं मांग का-जो मार्ग स्वयं राष्ट्र में निहित होने से गोवंश का आर्थिक क्षेत्र में आधारभूत ढ़ाँचा होना स्वयं सिद्ध है क्योंकि -गोवंश से ही कृषि सस्ती और विषाक्त रहित होती है। इस संबंध में सुस्पष्ट विधिक नीति का रेखा लाईन सिद्धान्त के आधार पर अमल हो- तो भारत कि यही 70 प्रतिशत जनसंख्या उच्च-मध्यम श्रेणी कि बन जाएगी ।
   
        वैज्ञानिक आधार पर गोबर में किसी भी प्रकार घातक विकिरणें प्रवेश नहीं कर सकती। इस सृष्टि को उर्जावान बनाने के साथ वातारण को शुद्ध व सात्विक बनाये रखने हेतु गोबर (गोबर में अनादिकाल के ऑक्सीजन निर्माण के जीवाणु अभी तक मौजूद है) व गोघृत के समान अन्य कोई पदार्थ नहीं है क्योंकि इनसे अकल्पनीय ऑक्सीजन पैदा होती है। साथ ही वातावरण मे एटमिक रेडियेशन समाप्त होते है इसलिए यज्ञ हवन आदि किए जाते है साथ ही गोबर खाद व अन्य उत्पादों से अरबों रूपयों कि विदेशी मुद्रा की बचत व विषाक्त उत्पादन से बचाव और रोग मुक्त राष्ट्र का निर्माण । गोबर के उपरोक्त सभी ऐश्वर्यों को देखते हुए शास्त्रों का यह कथन भी विज्ञान की कसौटी पर सत्य है कि गोबर में ‘‘लक्ष्मीमाता’’ निवास करती है, लापरवाही है तो प्रबन्धकीय आधार पर उपयोग की। साथ ही गोमूत्र विषशून्य होने पर भी उतम विषशोधक-रोगप्रतिरोधक-कीटनियंत्रक-संक्रमणनाशक और हृदयघात आदि में परम उपयोगी है-तभी तो फसलों के लिये उत्तम कीटनियंत्रक है। सत्यता तो यह है, कि गोबर खाद की फसलों में कीटाणु रोग नहीं होते है क्योंकि फसल समय अनुसार परिपक्व होती है फिर भी रोग लगने पर हानि रहित गोमुत्र का कीटनियंत्रक स्प्रे उपयोग में लिया जा सकता है जिससे किसानों में फेफडों का कैंसर  नहीं होता है, फसलें जहर युक्त नहीं होती है, खेत में पानी के साथ सादा गोमुत्र सिंचाई के समय मिलाने से 20 प्रतिशत खाद का और स्प्रे करने से 10 प्रतिशत खाद (पोषक तत्वों) की पूर्ति होती है साथ ही अरबों रूपए के किटनाशक से बचाव यह कथन भी वैदिक दर्शन का सत्य है कि गोमुत्र में ‘‘गंगा माँ’’ निवास करती है, माँ कि तरह अपने बच्चों (40% से अधिक सिंचाई व अमृत रूप जल भी)  कि सैकड़ों रोगों से रक्षा करती है और रोग मुक्त राष्ट्र के निर्माण में सहयोगी है। गौमाता का नाम भी वैज्ञानिक सत्य है क्योंकि गाय अपने दूध में प्राणी मात्र के लिये उच्चतम रोग प्रतिरोधक स्वर्णक्षार निकाल देती है क्योंकि संसार में मात्र एक दिव्य प्राणी ‘‘गौ-माता’’ है जिसमें ‘‘सूर्यकेतु नाडी’’ होती है जो स्वर्णक्षार का निर्माण करती है। इसलिये गाय के दूध-दही-घी में पीलापन होता है जो ‘‘विटामिन ए’’ का व रोगप्रतिरोधक क्षमता का  प्रमाण है जिसे हमारी रक्षार्थ निकाल देती है स्वयं संग्रह नहीं करती-किन्तु हम पर्याप्त मात्रा में हरा चारा अथवा ‘‘विटामिन ए’’ की पूर्ति नहीं करते है तो गायें स्वयं अंधी हो जाती है अपने बछडे को भी अंधा पैदा कर देती है और गर्भस्खलन जैसा भंयकर दुःख भी सहन करती है। ऐसी शक्ति और त्याग इस संसार के अन्य प्राणी मे नहीं है। सुखदायी गोवंश का पानी में गोमूत्र डालकर फर्श आंगन इत्यादि साफ करना-गोबर का धूप करना, स्थान विशेष के प्रकोप व अशुद्धता का नाश होता है। गोवंश की सेवा-भक्ति शब्द भी वैज्ञानिक सिद्ध होते है कोई भी प्राणी गोवंश के प्रति कृतज्ञता-सेवाभाव, भक्तिभाव नहीं रखता है, उसे प्रत्यक्ष देव किसी न किसी रूप से दण्ड अवश्य देते है। जो स्वयं में पूर्णतः विज्ञान है। अतः स्पष्ट है कि अमृत का-स्वास्थ्य का-मुक्ति व वैभव का-पर्यावरण एवं प्राणवायु का-पंचमहाभूतों को ऊर्जा देने (सृष्टि को) हेतु स्वयं सिद्ध तथ्य के रूप में एक मात्र इस विश्व का दिव्य प्राणी गोवंश ही है। अतः यह सत्य है कि गौभक्ति-गौसेवा से इहलोक व परलोक के सभी ‘‘ताप-दुःख-आपदा’’ आदि नष्ट हो जाते है। पांडे जी  जो काका नाम से विख्यात है तीन गायों के गोबर से एक वर्ष में करीब 2.5 लाख से अधिक की आमदनी करते है जिसमें नॅडेप कम्पोस्ट खाद व धूप अंगराग इत्यादि है। नागपुर स्थित गौ-विज्ञान अनुसंधान केन्द्र में 143 गोवंश पर आधारित उत्पादों से 50 परिवारों को रोजगार मिल रहा है। इस प्रकार गोवंश को आधारभूत उपचारों के साथ रखकर, उनके गोबर - गोमूत्र से ग्रामों में कुटीर उद्योगों का विस्तार होगा - रोजगार वृद्धि होगी। इस प्रकार अनु. 43 की अनुपालना भी होगी।

         यह वैज्ञानिक तथ्य है कि गाय में दूध बढ़ाने की अन्य प्राणियों की तुलना में उच्चतम सीमा होती है किन्तु भारतवर्ष में इस वैज्ञानिक विशेषता का समुचित उपयोग नहीं हो रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार दुनिया भर में 30 करोड़ एकड़ भूमि खराब हो गयी है। अमेरिका के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मांसाहार से 160 रोगों के हो सकने की पुष्टि की है जब कि गौमुत्र कुल ज्ञातव्य रोग के 47% रोगों में लाभकारी रहता है |

       हम नॅडेप कम्पोस्ट अन्य कम्पोस्ट खाद द्वारा गो हत्या पर प्रतिबंध के दो वर्षों में  100 प्रतिशत खाद की पूर्ति के अतिरिक्त (नॅडेप व अन्य कम्पोस्ट खादों से कई राज्यों में जैविक खेती सफलता पूर्वक हो रही है।) अन्य कार्यों के लिये गोबर का उपयोग कर सकते है जैसे नॅडेप अंगीठी से ग्रामीण ईंधन का सम्पूर्ण समाधान हो सकता है इस प्रकार प्रतिवर्ष लगभग 2 करोड़ पेड़ों की रक्षा हो सकती है  साथ ही अंगराग, धूप, साबुन, मंजन आदि के अतिरिक्त गोमूत्र दिव्यरोगनाशक के साथ कीटनियंत्रक भी है इनके अतिरिक्त सुविधानुसार-क्षेत्रवार, राज्यवार फसल आधारित अन्य जैविक खाद भी बना सकते है - कल्चर खाद - स्लेरी खाद - दानेदार खाद व अन्य अनेक प्रकार की सुविधा युक्त खाद बना सकते है जैसे सेन्द्रिय खाद-केचुंआ खाद, झटपट खाद, बीजों को भिगोने के लिये अमृतपानी और खेतों में वहीं उपयोग हेतु गीली खाद बना सकते है- और आवश्यक स्थानों पर परिवहन हेतु हम सूखी खाद भी बना सकते है विषेशज्ञों द्वारा इस संबंध में एक सटीक व स्पष्ट नीति बनाने कि अवश्यकता है।  गोमूत्र से कीटनियंत्रक तो कई प्रकार से हम लाखों गैलन तक बना सकते है जो फसलों के पोषक तत्वों के रूप में खाद की भी पूर्ति करता है, ट्रेक्टर व रासायनिक खाद व कीटनाशक का उपयोग प्रथम तो कृषक के लिये रोगयुक्त व मंहगा दुसरे में नीचे की भूमि कठोर होने से फसलें जमीन से पानी अवशोषित नहीं कर सकती - अतः अधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है साथ ही भू-जल स्तर में गिरावट और खेत के पेड़ों का विकास भी धीमा रहता है- ये सभी तथ्य कृषकों, कृषि एवं लोकव्यवस्था-लोकस्वास्थ्य सभी के लिये हानिकारक है। इस प्रकार हम एक गम्भीर राष्ट्रीय अपराध से बच सकते है (पृथ्वी के तापमान का मुख्य कारण माटी होती है क्योंकि उपरोक्त कारणों से बारिश का व अन्य पानी कठोर भूमि से खेत-खलिहानो से बह जाता है और उस सारे क्षेत्र की मिटटी का तापमान भी बढ़ता है, यही कारण है की इनके उपयोग से फसलें अप्राकृतिक रूप से तीव्रतापूर्वक बढ़ती है जिसके कारण प्राकृतिक प्रकोप भी होते है - जिसका प्रत्यक्ष उदहारण अमेरिका देश है | वह अपनी कृषि में कई गुना अधिक रसायनिक खादों का उपयोग करता है जिसके परिणाम स्वरुप भूमि की गर्मी से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है और वहां जंगलों में आग, अत्यधिक बर्फ़बारी, तूफ़ान, बाढ़ और यहाँ तक विश्व में ग्लेशियर का पिघलना सर्वाधिक एवं सर्वप्रथम अमेरिका में ही होगा - जिससे वहां पानी के लिए एक महायुद्ध जैसी स्थिति भी बनाना स्वाभाविक है | ग्लोबल वार्मिंग में पृथ्वी के तापमान बढ़ने के अनेक कारणों में एक मुख्य कारण यह भी है|) साथ ही विदेशी मुद्रा की बचत और राष्ट्र की शुद्ध बचत अलग से, किन्तु इसमें राष्ट्र और राष्ट्रीय संस्कृति की असीम भावना के साथ राजनैतिक इच्छाशक्ति का होना भी अनिवार्य है ।अरबों डॉलर की बचत करते हुए  गोबर-गोमूत्र से हम आवश्यकता की नॅडेप व अन्य कम्पोस्ट खाद और कीटनियंत्रक बना सकते है उससे अधिक अमृत युक्त उत्पाद के साथ हजारों करोड़ रूपयों के अन्य उत्पाद भी बना सकते है। ऐसे प्रयोग राष्ट्र के कई स्थानो पर सफलता पूर्वक हुए है- अंगूर व अन्य उत्पादों पर किय गए प्रयोग इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है। और इस प्रकार गौ-वंश के उत्पाद स्लेरी खाद व अन्य-खाना पकाने की गैस-वाहन चलाने की गैस व बिजली के साथ सैंकड़ो रोगों में गोमूत्र का उपयोग, साबुन, तेल, मंजन,धुप अंगराग  इत्यादि हमारे स्वास्थ्य को शुद्ध व पवित्र भी बनाते है साथ ही उपभोग भी मंगलकारी है इस प्रकार गोवंश की हत्या प्रतिबंध (केंद्रीय क़ानून) होने से भारतवर्ष में गोबर व गोमूत्र की कोई कमी नहीं रहेगी। अतः शास्त्रों का कथन कितना शाश्वत है-‘‘गोमय वसते लक्ष्मी-पवित्रता सर्वमंगला’’ गोरखपुर की गोविन्द गौशाला ने 700 ग्राम गोबर गैस से 60 किलोमीटर से भी अधिक मारूति वैन चलाई जिसका पेट्रोल 300/-रूपये खर्च आता है। कुछ केन्द्रों पर गोमूत्र पेट्रोल से भी डेढ़ गुना महंगा बिक रहा है । कुछ आयुर्वेदिक - गौवंश संस्थाओ द्वारा 47% के रोगों की रोकथाम के लिए जो सिद्ध गौमूत्र है वो 450 एम. एल. 100 रुपये से भी अधिक का है | जो पेट्रोल से भी मंहगा सिद्ध हो रहा है | साथ ही गोबर गैस टंकी 200 रूपये से कम लागत में प्राप्त हो सकती है। इस प्रकार राष्ट्र जैविक उत्पाद के साथ आवश्यकता के अनुसार रासायनिक खादों व कीटनाशकों का भी निर्यात कर सकता है | 

        इस प्रकार सरकार ‘‘गोबर-गोमूत्र’’ के उत्पादों से  कुछ ही वर्षो में लगभग रोजगार की समस्या-विदेशी कर्ज की समस्या समाप्त होकर विदेशी मुद्रा भण्डार कई गुणा तक कर सकती (विषाक्त कृषि की समाप्ति - उसके खर्च की समाप्ति और गौवंश आधारित कृषि के कारण विदेशी मुद्रा की बचत उत्पादन की गुणवत्ता में वृद्धि, साथ ही कृषि उत्पादों का निर्यात) है । उपरोक्त विषय पर भारत सरकार ने भी एक कमेटी बनाई जिसमें अपनी रिपोर्ट में कहा-‘‘जब तक भारत में सम्पूर्ण गो-वध बन्द नहीं होगा तब तक भारत की आत्मा को शांति प्राप्त नहीं होगी और रोग-मुक्त अधिक अन्नउपजाऊ की योजना भी सफल नहीं होगी।’’  स्पष्ट है कि इस कमेटी ने भी वैदिक दर्शन की सत्यता को स्वीकार किया है साथ ही सैकड़ों वर्ष पूर्व ब्रिटिश व अमेरिका सरकार के विशेषज्ञों के रिपोर्ट की पुष्टी साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई व संत विनोबाभावे जी की अंतिम इच्छा - "केंद्रीय क़ानून" की भी पुष्टि होती है। गाय हमारी हर कामना की पूर्ति करती है इसलिये उसे ‘‘कामधेनू’’ कहते है और स्वास्थ्य की भी उत्तम संरक्षिका है इसी कारण वैदिक भाषा में उसे ‘‘अमृतनाभी या पीयुषनाभि’’ कहा जाता है जो वैज्ञानिक तथ्यों से स्वयंसिद्ध है। विशेष तथ्य यह है कि इसमें औद्योगिक घरानों को आगे आना चाहिये जिससे प्रबन्ध-विज्ञान का समुचित उपयोग हो-जैसे पहले डालमिया घराना और वर्तमान में डायनामिक्स है जिसके सूखे दूध के लिये विकसित राष्ट्र अग्रिम राशि देकर कतार में रहते है और बड़े-बड़े यज्ञ आयोजनों में भी इसी घी का प्रयोग होता है न कि संकरीकरण गायों का, क्योंकि ये पूर्णतः भारतीय देशी नस्ल पर आधारित है। स्पष्ट है, कि धनाढ्य व विकसित देश के उच्च वर्ग भी संकरीकरण गायों का उत्पाद उपयोग नहीं करते है। इसके अतिरिक्त गुजरात की अमूल व दक्षिण भारत की सहकारी संस्थाए, महाराष्ट्र व राजस्थान की डायनामिक्स - लोट्स - सरस इत्यादि जैसी भी अनेक संस्थाएं राष्ट्र में है | इनको भी राज्यवार सरकारी सहायता से शाखाओं का विस्तार करना चाहिये। इन घरानों को पूरे राष्ट्र में चमड़ा शोधन व इससे संबंध कार्यो में आधुनिक तकनीक से प्रवेश करना चाहिए।

          गीता के प्रथम अध्याय में वर्णसंकर सन्तानों से पितर-देव आदि, तर्पण-हविष्य ग्रहण नहीं करते है वे अद्योमुखी व पतनोमुखी होने लगते है, जिसके कारण (वंश - परिवार से) ईश्वर भी उनसे रूष्ट हो जाते है। इसी प्रकार संकरीकरण गायों का दूध, महादेव के अभिषेक में श्रीकृष्ण भगवान के भोग में और पितरों आदि के हेतु हम सामग्री कैसे बना सकते है? हम गौवंश के गौत्र व्यवस्था को नष्ट - भ्रष्ट करके भारतवर्ष की देसी गायों की प्राकृत अस्तित्व को समाप्त नहीं कर सकते - राष्ट्र के प्रधानकार्यकारी जी आप योजनाबद्ध तरीके से शीघ्र ही इस महाकलंक को समाप्त करें और नस्ल सुधार की राष्ट्रीय योजना प्रभावी बनावें, क्योंकि हम भारतीय संविधान के अनु. 48 को इस विषय में नकार ही नहीं सकते ------------- | क्योंकि हमारे धार्मिक अनुष्ठान पूर्णतः शुद्ध व पवित्र न होने से हमारी धार्मिक भावनाओं को आघात लगता है और संविधान द्वारा प्राप्त अनु. 25 (1) मूल अधिकारों का हनन होता है | कुछ मंदिरों - मठों में धार्मिक अनुष्ठान के लिए भारतीय गौवंश रखने मात्र से समस्या का समाधान नहीं हो सकता क्योंकि समुदाय विशेष के अन्य नागरिकों को वह सुविधा प्राप्त नहीं होती | यक्ष प्रश्न में सत्यवादी युधिष्ठर कहते है गाय का दूध ‘‘अमृत’’ है। धर्मराज को ज्ञात है कि ‘‘गौ-माता’’ अमृत तत्वों का ही निकास करती है और विष-तत्वों को अपने शरीर में ही सोंख लेती है इस प्रकार ‘‘अवध्य’’ शब्द भी वैज्ञानिक है क्योंकि गोमांस ‘‘विषाक्त’’ होता है अतः लोकस्वास्थ्य के आधार पर भी ‘‘गोवंश का वध’’ असंवैधानिक है। उपरोक्त के अतिरिक्त संकरीकरण गायों का खान-पान, रख-रखाव व उपचार इत्यादि देसी गायों की तुलना में 70% अधिक ------- साथ ही दूध व अन्य पदार्थों की निकासी में देसी गायों की तुलना में 70% से अधिक विषाक्त पदार्थों की निकासी करती है जबकि देसी गाय व अन्य गौवंश विषाक्त तत्वों का अपने शरीर में ही  में ही संघर्ण हो जाता है अर्थात अमृततुल्य पदार्थो की ही निकासी करती है जो विज्ञान द्वारा भी सिद्ध है उदहारण के लिए "स्वर्णक्षार" ---- "सूर्यकेतू नाड़ी" ---- | नंदी (बैल) के उपयोगी 2 यंत्रों के (राजेंद्र यादव का योगदान जिसकी राष्ट्र के सभी पत्र-पत्रिकाओं में उपयोगिता को स्वीकार किया गया) आधार पर कामधेनु ट्रेक्टर व पानी निकालने का टर्बाइन के बनने से खेतों में बिजली की व डीजल की आवश्यकता नहीं रहेगी। आरम्भकाल में बिजली व खनिज तेल की खेतों में बचत के अतिरिक्त हम ईधंन गैस, वाहन गैस, बिजली, धूप, मंजन, अंगीठी, खाद व कीटनियंत्रक इत्यादि से कम से कम 50 हजार करोड़ की बचत कर सकते है। साथ ही नन्दी अपने जीवनकाल में (5 से 20 वर्ष की आयु तक) 5-10 लाख रूपये बचा सकता है बशर्ते रख-रखाव विधिवत हो। किसान धान निकालने सफाई इत्यादि हेतु कोई भी यंत्र उपयोग करे-किन्तु नंदी के दो यंत्र  ट्रेक्टर व पानी निकालने के यंत्र को उपयोग करने से (कृषि भूमि की कठोरता व अधिक पानी की आवश्यकता समाप्त हो जाती है) खेती की लागत 20 प्रतिशत कम हो सकती है (गोबर-गौमूत्र की उपयोग से ही संभव है) और गोबर-गोमुत्र की खाद-कीटनियंत्रक का उपयोग करने से खेती की लागत 60 से 70 प्रतिशत कम हो सकती है। साथ ही खेतों में दो-चार गोवंश, खेत के किनारों पर नीम-पीपल व छायादार पेड़, साथ ही खेत की कुछ भूमि पर इमारती लकड़ी के पेड़ लगाने से कृषको की आर्थिक स्थिति में और भी सुधार हो सकता है। शम्मी का पेड़ जिसकी आयु 600-1000 वर्ष होती है अर्थ लाभ के साथ कृषि पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है किसानो को फसल काटने के बाद ‘‘खलयज्ञ’’ करना चाहीए (कृषि आय में सें दान इत्यादि) जिससे आगे की कृषि भी उत्तम होती है (पराशरस्मृति)

भाग 1 - तथ्य #13 

B1T13

उपरोक्त विषय के पक्ष में भारतीय संस्कृति का इतिहास अनिर्वचनीय है इस संबंध में सतयुग-त्रेतायुग-द्वापरयुग-कलिकाल (वर्तमान) तक की घटनाओं के त्याग बलिदान से गो महात्म्य सिद्ध होता है। यहां तक कि आदिकाल की एक घटना में शंकर महादेव का मूल्य एक गो के बराबर रखा गया है। मर्यादा पुरूषोतम भगवान श्री राम व कृष्ण के अवतार कारणों में गौ-माता भी प्रमुख रही है। भगवान श्री राम के पूर्वज राजा दिलीप द्वारा गौरक्षा हेतु अपने जीवन का बलिदान करने को तत्पर हो गये। इसी प्रकार भगवान परशुराम एक हजार वर्षो की तपस्या का संकल्प गौ-रूदन सुनकर त्याग दिया और भयंकर युद्ध किया। साथ ही गौमाता के लिये गुरू वशिष्ठ जी महाराज और विश्वामित्र द्वारा भी बड़ा भंयकर युद्ध किया गया। गौ माता के कारण ही भगवान परशुराम का पराक्रम व देव-रूप विश्वामित्र का तप-ज्ञान और भीष्म जैसा अद्वितीय चरित्र संसार को प्राप्त हुआ | स्वर्ग की अप्सरा के निमन्त्रण को ठुकराने वाला मर्यादित अर्जुन गौरक्षा हेतु गांडीव लेने हेतु धर्मराज के शयनकक्ष में प्रविष्ट हो गये और गौ रक्षा हेतु 12 वर्षो का वनवास स्वीकार किया । इसी प्रकार अज्ञातवास के अंतिम दिनों में दुर्योधन के षड़यंत्र के परिणामस्वरूप गौ-रूदन सुनकर अर्जुन गांडीव लेकर पहुँचे तो पुनः 12 वर्षो के वनवास व एक वर्ष का अज्ञातवास के स्थान पर गौ-माता की कृपा से उस दिन ही अज्ञातवास समाप्त हो गया अर्थात् कालचक्र भी पलट गया। इस प्रकार अर्जुन ने गौ रक्षा हेतु प्रथम 12 वर्ष का वनवास स्वीकार किया, द्वितीय में षड्यंत्र पूर्वक फिर 12 वर्ष का वनवास व 1 वर्ष का अज्ञातवास मिला, तृतीय में फिर 12 वर्ष का वनवास व 1 वर्ष के अज्ञातवास को गौ रक्षा हेतु तुच्छ समझा | राष्ट्र के प्रधानकार्यकारी जी आपको गौ रक्षा हेतु 25 वर्षो का वनवास और अज्ञातवास की भी बाध्यता नहीं है | इसी प्रकार पंजाब के महाराजा रणजीतसिंह जी द्वारा एक व्यक्ति को गौ-माता के लिये अपशब्द बोलने पर कारावास की सजा दी गई किन्तु माँ के सत्य भाषण पर क्षमा-दान किया । इसी प्रकार छत्रपति शिवाजी महाराज की जय जयकार भी गौ-ब्राह्मण प्रतिपालक के प्रतीक रूप में विख्यात रही है, साथ ही वीर तेजा जी का गौवंश की रक्षा हेतु अद्वित्य त्याग पुरे भारत वर्ष के लिए गर्व की बात है । गोरक्षा हेतु कूका-सिखों के नामधारी पंथ द्वारा किया गया आन्दोलन जिसमें सैकड़ों सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया-जिसे इतिहास की विख्यात घटना माना जाता है। कूका विद्रोह की तरह हरिद्वार के पास कटारपुर-कनखल आदि स्थानों पर भी ऐसा ही विद्रोह हुआ-जिसमें एक सम्प्रदाय विशेष के थानेदार के उकसाने पर सम्प्रदाय के लोगों ने गौ-हत्या करने का निर्णय लिया। परिणामस्वरूप गौ-भक्तों द्वारा उग्र व तीव्र प्रतिकार किया गया -जिसमें गौ-भक्तों ने गायों को तो बचा लिया, किन्तु स्वयं को बचा नहीं सके। कुल 172 हिन्दुओं को गिरफ्तार किया गया जिसमें कई फांसी पर लटका दिये गये 135 को काले पानी की सजा दी गई तथा कुछ को 10 से 7 वर्षो तक का कठोर कारावास मिला। स्पष्ट है गौ वंश के माहात्म्य को शब्दों में स्पष्ट करना अत्यंत दुष्कर है | जैसा की भगवन श्री कृष्ण ने कहा कि गायों के सम्पूर्ण गुणों का कोई वर्णन ही नहीं कर सकता | सार रूप में इतिहास काल के आधार पर भरत के भारतवर्ष (राष्ट्र) के राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय संस्कृति के महानत्तम आदर्श महाबली सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पश्चात् ही गौवंश - हिन्दू संस्कृति (वैदिक सनातन संस्कृति) का पतन प्रारम्भ हो गया | जिसका ऐतिहासिक समय एक हज़ार तीस वर्ष पूर्व का है जो आज दिनांक तक उपरोक्त दोनों कलंक भारत भूमि पर हो रहें है |

    उपरोक्त विषय में समय-समय पर गांधी जी ने कहा कि- “यह मेरा स्पष्ट मत है ग्रामीण अर्थव्यवस्था और विकास के परिणाम में सम्पूर्ण देश की अर्थव्यवस्था गौवंश पर ही निर्भर है | गाय कटती है तो ऐसा महसूस करता हूँ की मेरी गर्दन कट रही है | गायों को मैं सारी सुख-समृद्धि की जननी मानता हूँ। भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जहां गौ पूजी जाती है। गौशालाएँ जिस ढंग से चलती है उससे दया प्रकट नहीं होती है अर्थात प्रबन्धकीय- वैज्ञानिक ढंग अपनावें। गौ की रक्षा का अर्थ है परमात्मा के बनाये सभी मूक प्राणियों की रक्षा करना। मेरी यह आकांक्षा है कि सारी दुनिया में गौ की रक्षा की जाये और सभी इस सिद्धान्त को मानें लेकिन इससे पहले मेरा अपना घर ठीक करना (भारत) जरूरी है।” गौ हत्या के प्रश्न पर कहते है कि “इसी तरह हम फालतू-बीमार और कमजोर मनुष्यों को मारकर इस देश को गरीबी से मुक्त कर सकते है। गौ रक्षा सारे संसार को हिन्दू धर्म की देन है और हिन्दूत्व तब तक जीवित रहेगा, जब तक हिन्दू गौ की रक्षा करता रहेगा। गौ का सवाल भारत में आर्थिक-धार्मिक दोनों तरह का है। भारत की इस दीन दशा का गौ रक्षा में हमारी असमर्थता से इतना घना सम्बन्ध है। गोधन की उन्नति में डेनमार्क नहीं भारत को आदर्श राज्य होना चाहिए। सभी गौशालाओं की देखरेख वैज्ञानिक ढंग से की जाए। गौ रक्षा का प्रश्न स्वराज्य के प्रश्न से भी अधिक महत्वपूर्ण है।’’ महर्षि दयानन्द सरस्वती ‘‘गौ करूणानिधि’’ में कहते है कि-‘‘एक गाय अपने जीवनकाल में 4,10,440 मनुष्यों का एक समय का भोजन जुटाती है जब कि मांस 80 मनुष्यों का।’’ लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने कहा कि-‘‘स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कलम की एक नोक से पूर्णतः गौ-हत्या बन्द कर दी जायेगी। चाहे तुम मुझे मार डालो पर गाय पर हाथ मत उठाओ।’’ भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्रप्रसाद ने कहा कि-‘‘भारत में गौ-पालन सनातन धर्म है। भारतीय गौ-माता दिव्य गुणों से पुर्णतः युक्त है।’’ पूज्य देवराहा बाबा कहते है-‘‘जब तक गो-माता का रूधिर भारत भूमि पर गिरता रहेगा, तब तक कोई भी धार्मिक-सामाजिक अनुष्ठान सफल नही होंगे।’’ भाई हनुमानप्रसाद जी पौद्धार कहते है कि-‘‘जब तक भारत की भूमि पर गौ-रक्त गिरेगा तब-तक देश सुख-शांति और धन-धान्य से वंचित रहेगा।’’ जयप्रकाश नारायण जी कहते है कि-‘‘हमारे लिये गौ हत्या बन्दी अनिवार्य है।’’ विनोबाभावे कहते है कि-‘‘अगर हिन्दुस्तान में हम गौ-रक्षा नहीं कर सके, तो आजादी का कोई अर्थ नहीं होगा, भारत के लिये यह जीवन-मरण का प्रश्न है।’’ 16-8-1981 विनोबाजी ने  गौसेवा  कार्यकर्ता सम्मलेन के लिए दिये संदेश में उन्होने लिखा था।

1. गाय हमारी माता है। गौहत्या मातृहत्या है।

2. गौहत्याबंदी भारतीय संस्कृति का आदेश है।

3. वह भारतीय संविधान का निर्देश है।

4. उसके लिए भारत सरकार वचनबद्ध है।

5. भारतीय संसद का संकल्प है। इसलिए सारे भारत में तुरंत गौहत्याबंदी होनी चाहिए।

गौवंश के सरंक्षण के लिए बने मौजूदा कानूनों को संत विनोबा जी ने विधि शून्य - विधि कहा क्योंकि केंद्रीय क़ानून के आभाव में राज्यों के कानून प्रस्तुत विषय में बेमानी सिद्ध हो रहे है। स्वीट्जर्लैंड की मिसेज मूरा ने एक लेख में लिखा था ‘‘विनोबा एक ऐसी गैर कानूनीयत से जंग कर रहे है, जिस गैर कानूनीयत ने दुनिया का रिकॉर्ड तोड़ दिया है।’’ अर्थात उस समय से ही कांग्रेस विकृत नादानी सिद्ध कर रही --- | गांधी जी ने कहा जब तक गौवध होता है तब तक मुझे लगता है कि मेरा खुद का वध हो रहा है। मेरे सारें प्रयत्न गौवध रोकने के लिए है। मेरे विचार से गौरक्षा का प्रश्न स्वराज्य के प्रश्न से छोटा नहीं। कई बातों में, मै इसे स्वराज्य के प्रश्न से भी बड़ा मानता हूँ। जब तक हम गाय को बचाने का उपाय ढूंढ नहीं निकालते तब तक स्वराज्य अर्थहीन कहा जाएगा।

आचार्य विनोबा भावे जी गौ-वध बन्दी के लिये अन्न और दवा लेना बन्द कर दिया। इस सम्बन्ध में उन्होने सरकार से स्पष्ट कह दिया-किन्तु फिर भी प्रधानमंत्री ने ध्यान नहीं दिया और विनोबा जी ने प्राण त्याग दिये। इससे पूर्व विनोबा जी ने कहा- ‘‘अब सरकारें जनता के सामने निवेदन देंगें और बतायेंगें कि गाय भारतीय कृषि ग्राम व्यवस्था की रीढ़ है।” भारत में गोवंश की दुर्दशा की स्थिति इस प्रकार है अर्जेन्टाइना व डेनमार्क में प्रति हजार आबादी पर गौ-धन क्रमशः 2200-1700 है और भारत में 200 भी नहीं है। इतना सभी कुछ विज्ञान सम्मत होने के बाद भी हमारी राजनैतिक व्यवस्था ..............। इसी प्रकार महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी ने, पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने गौ-वध बन्दी की प्रतिज्ञा लेकर उस पर अमल भी करना शुरू कर दिया, स्पष्ट है कि गोवध भारतीय समाज में जीवन-मरण का राष्ट्रीय प्रश्न है। जय प्रकाश नारायण जी ने कहा “गाय और उनकी संतान, उसका मल-मूत्र और मरने के बाद उसका कलेवर हमारे कृषि संबंधी तथा ग्रामीण अर्थशास्त्र का अविभाज्य अंग है जो लोग यंत्रीकृत ‘फार्मो के और तथाकथित वैज्ञानिक पद्धतियों के सपने देखते है, वे एक अवास्तविक संसार में रहते है जिसका भारत की परिस्थिति से कोई संबंध नही है।

गौहत्या-बंदी की मांग मनुष्य के सांस्कृतिक जीवन के लिए प्रगतिशील और पुरोगामी मांग है, जोउसे दकियानुसी, प्रतिक्रियावादी कहते है, जो आधुनिकता के नाम पर जीर्ण मतवाद का प्रतिपादन करते है। सर्वोदय विचारक धर्माधिकारी का कहना है कि ‘‘जीवननिष्ठा क्या प्रतिक्रियावादी मूल्य हो सकता है?’’

भारत सरकार द्वारा सर दतारसिंह की अध्यक्षता में 1947 में गठित पशु-संरक्षण एवं संवर्धन के विशेषज्ञों की समिति ने पूरे देश में दो वर्षो में संपूर्ण गोहत्याबंदी की सिफारिश की थी।

इस प्रकार विश्व के सभी धार्मिक पंथ स्पष्ट रूप से उपरोक्त विषय का समर्थन करते है किन्तु उनका पक्ष रखना यहां संवैधानिक रूप से युक्ति-युक्त नहीं है क्योंकि वे सभी भारतीय वैदिक दर्शन से द्वेषपूर्ण शैली के कारण आचरण से घृणित कार्य (गौ-हत्या) करते है। स्पष्ट है कि भारतीय संस्कृति में ही नहीं अन्य संस्कृतियों में भी गोवंश अत्यंत महत्वपूर्ण है।

भाग 1 - तथ्य #14 

B1T14

उपरोक्त विषय आदिकाल से ईसा पश्चात् 1000 वर्षो तक सामुहिक रूप से उत्पन्न ही नहीं हुआ क्योंकि उस समय तक हिन्दूओं का प्रभुत्व रहा, परन्तु 1200 से 1700 ईस्वी में सामुहिक आधार पर उत्पन्न हुआ, क्योंकि मुगलकाल का प्रभुत्व शुरू हो गया किन्तु आरंभकाल में कम हुआ।

इंडिया ऑफिस लाईब्रेरी, लंदन के अनुसार:- इस संबंध में धर्मपाल जी ने लंदन में अच्छा शोध कार्य किया | गौ वध और ब्रिटिश हुकूमत नाम से प्रकाशन भी हुआ जिसका अतिसूक्ष्म अंश प्रस्तुत है -

14.1- उपरोक्त विषय व्यापक रूप से 1750 ईस्वी के पश्चात् ही उत्पन्न हुआ (जिसमें विशेष संप्रदाय को पूर्णतः समर्थन प्राप्त हो गया) जो मुख्यतः अंग्रेजों की साम्राज्यवाद नीति का परिणाम है। ब्रिटिश काल में भी इंग्लैण्ड व भारत में उपरोक्त विषय के पक्ष में लाखों हस्ताक्षरों से युक्त याचिकाएँ प्रस्तुत की गई और अंग्रेजों से संधि में देशी रियासतें ‘‘गोवध’’ पर प्रतिबंध की शर्ते रखते।

14.2- एक अखबार ने स्पष्ट लिखा कि इस्लाम अपने अनुयायियों से ऐसे किसी भी पशु की हत्या सार्वजनिक रूप से करने को नहीं करता-जिससे गड़बडी फैल सकती है यानि मुसलमानों के लिये गाय की हत्या करना आवश्यक नहीं है। इसी प्रकार खैरख्वाह-ए-कश्मीर-लाहौर ने लिखा ‘‘शिया द्वारा संचालित इम्पीरियल पेपर तथा सुन्नी द्वारा संचालित रफीक-ए-हिन्द इस प्रकार के हो सकते है तो गो-हत्या के मुद्दे पर हिंदूओं का ऐसा होना क्यों नुकसानदेह है?

14.3- ब्रिटिश शासन ने भी स्वीकार किया कि ‘‘यह एक ऐसी सामान्य जमीन बना रही है जहां शिक्षित भारतीय व अनपढ़ जनता एक है” इसलिए इसे अन्य राजनैतिक संगठनों से खतरनाक मानते है| (गौ-आन्दोलन)

14.4- पंजाब के उपराज्यपाल डेनिस फिट्जपैट्रिक ने 1894 को एक नोट में लिखा कि ‘‘गौ हत्या का मुद्दा भारत में अंग्रेजों के खिलाफ सबसे गंभीर मसला है और अगर यह सेना, पुलिस के बीच में फेल गया तो भारत के बड़े हिस्से से हमारा शासन समाप्त होने की संभावना है।’’

14.5- आन्दोलन की जांच करने वाले एक मजिस्ट्रेट के अनुसार ‘‘यह घटना केवल इसी रूप में बताई जा सकती है कि संवैधानिक सत्ताओं के प्रति ....................... सभी समुदायों (हिन्दू समुदाय = हिन्दू समाज - सिख समाज - जैन समाज - बौद्ध समाज) द्वारा ऐसी घृणा मैने कभी नहीं देखी।’’ (गौ-वध बन्दी के लिये)

14.6- वायसराय लॉर्ड लैंसडासन के अनुसार ‘‘गदर के बाद यह पहला ऐसा बड़ा विद्रोह है जिससे सरकार को सतर्क हो जाने की जरूरत है।’’ ‘‘हमारी कवायद केवल कानून तोड़ने वालों को सजा दिलवानी नहीं होनी चाहिए अपितु हिन्दू मान्यताओं को ठेस पहुंचाने वाले नियमों को भंग करने से बचना चाहिये।’’ (गोवध बन्दी आन्दोलन के लिये) इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रस्तुत विषय का आन्तरिक विस्फोट अति भयावह है सत्ता एवं लोक-अव्यवस्था का भय ब्रिटिश हुकूमत ने भी अनुभव किया।

भाग 1 - तथ्य #15 

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उपरोक्त विषय के सम्बन्ध में आजादी के दूसरे दशक 7 नवम्बर-1966 (गोपाष्टमी) को भारतीय उप महाद्वीप के ‘‘विशालत्तम सत्याग्रह’’ को जनरल डायर की शैली पर भारत सरकार ने कुचल दिया- जिसमें संविधान के  अनुच्छेद  25 (2) (ख)  के अनुसार हिन्दुओं (हिन्दू समुदाय के हिन्दू समाज - सिख समाज - जैन समाज - बौद्ध समाज) के सभी धर्माचार्य करपात्री जी के निर्देशन में दस लाख से भी अधिक अपने अनुयायिओं के साथ संसद भवन पहुँचने लगे। बगैर सावधान किये लाठी चार्ज-रासायनिक गैस व गोली वर्षा की गई। परिणाम स्वरूप संसद मार्ग पर तत्कालीन सरकार ने बेख़ौफ़ खून की होली खेली, जिसमें 4000-6000 से अधिक गौ-भक्त घायल और शहीद हो गये और संसद मार्ग खून से लथपथ हो गया । महात्मा रामचंद्र वीर ने इन हत्याओं के विरुद्ध 166 दिन का अनशन किया। 1882 में पंजाब में सर्वप्रथम गौ रक्षिणी सभा की स्थापना से लेकर आज दिनांक तक इस सम्बन्ध में सक्रिय रूप से क्रिया-कलाप निरतंर जारी है। इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि गौवध न तो वैदिक काल में था न ही परम्परा के रूप में रहा और न ही अन्य पंथों के धर्म का अनिवार्य भाग है। अपितु वैदिक दर्शन को मानने वाले समुदाय विशेष के 100 करोड़ नागरिेकों के धर्म का विकल्प रहित- अभिन्न अंग होने से संवैधानिक आधार पर तत्काल प्रतिबंध करना “राज्य’’ (भारत सरकार) का संवैधानिक कर्तव्य है। अंत में कांग्रेस घराने ने ऐसे अपराध को जिसकी श्रेणी अति कठोर थी उससे गुलज़ारी लाल नंदा को आऱोपित करके - गोभक्तों के रक्त से अभिषेक किया (कलंकित किया) जबकि वे गौ रक्षा का आंदोलन कुचलने और भारत माता की भूमि पर हो रही गौ हत्या दोनों के विरुद्ध थे | उपरांत इसके सात दिन बाद ही यशवंत राव को गृह मंत्री बना दिया गया और करपात्री जी को कपटपूर्ण आश्वासन दिया कि अगले सत्र में गोहत्या बंदी का अध्यादेश लाया जाएगा। परिणाम शून्य ही रहा | कारण-कार्य का मूल स्त्रोत संस्कार ही होते है - उपरोक्त घटनाक्रम में उनके (कांग्रेस घराने का) संस्कार ही मूल स्त्रोत थे ---- क्योंकि (15.1 से 15.6),

 

15.1- गौ रक्षा हेतु पटना हाईकोर्ट में न्यायालय का निर्णय सकारात्मक हुआ | विशेष संप्रदाय ने  उसकी सर्वोच्य न्यायालय में अपील की, 1958 में सर्वोच्य न्यायलय के पांच न्यायधीशों के बेंच ने एकमत से निर्णय किया, लेकिन कुछ छिद्र होने के कारण वह निर्णय न के बराबर हो गया (सरकार व प्रशासन के कारण)। लेकिन इस आंशिक छूट का नतीजा यह हुआ की गौहत्याबंदी के सारे उद्देश्य अर्थहीन और निकम्मे हो गये। बूढे, बेकाम बैलों के नाम से उत्तमोत्तम बैल और बैल के नाम से नंदी व गायों का भी कत्ल पुनः तीव्र वेग से शुरू हो गया। जिसके कारण जिन राज्यों में कठोर कानून थे वो भी औपचारिक कानून में बदल गये।

15.2- संविधान पारित होते ही जब कुछ राज्यों ने गौ रक्षा के लिए कानून बनाना चाहा तो, राज्यो को केन्द्र (कांग्रेस सरकार - कांग्रेस घराना) के सचिवालय ने ऐसा कानून बनाने की जल्दबाजी करने से यह कहकर रोका था कि ‘‘मरे हुए पशुओं की खालों की अपेक्षा मारे हुए पशुओं की खाले बहुत बढ़िया होती है और विदेशी बाजारों से उनके दाम बहुत ज्यादा आते है, अतः संपूर्ण गौहत्या - निषेध करना चर्म-निर्यात व्यापार के लिए हानिकारक होगा।’’ नादानों को पता नही की इस संपूर्ण व्यापार की भरपायी मात्र कुछ प्रतिशत गौवंश के गोबर से हो सकती थी। विशेष तथ्य यह है कि संविधान की मूल पुस्तक पर गौ-वंश की तस्वीरें अंकित है।

 

विशेष - नादान = अबोध बालक - मुर्ख - नासमझ - समझते हुए भी नासमझी करना - साधन-साध्य का अनुचित होना - पूर्वाग्रसित व अतिआसक्त रूप में मानसिक गुलाम - राष्ट्रवाद - राष्ट्रीय संस्कृति और सांस्कृतिक धरोहर विरोधी - स्वःधर्म की त्याग स्थिति (कुल – वंश - गोत्र व धर्म के आदेश) और परिस्थिति जन्य धर्म का त्याग (किसी भी प्रकार का पद - नियुक्ति के सम्बन्ध में निष्ठावान कर्तव्य कर्म से च्युत) | शत्रुदेश का पक्षधर व मित्र देश का विरोधी अति निम्न कृत्य | द्वेष व ईर्ष्या पूर्ण अन्यो का दुष्प्रचार (समाज व संस्कृति को विभक्त करना) करना | क्षति पहुँचाना - राष्ट्रीय सम्पत्ति व सार्वजनिक सम्पत्ति को और अन्य कारणों से राष्ट्र का अहित करना (जान-माल से)| सार्वजनिक रूप से गरिमा का हनन करना (संवैधानिक पदों एवं संस्थाओं व उच्च स्तर की संस्थाओं और व्यक्तिगत रूप से अन्यों का भी)| उपरोक्त नादानी में कुछ नादान कृत्य शूकर-कूकर योनी देने वाले होते है |

15.3- 1967 में आंदोलन ज्यादा तेज हुआ। पुरी के शंकराचार्य श्री निरजदेवतीर्थ, श्री प्रभुदत ब्रहम्चारी तथा स्वामी श्री करपात्रीजी महाराज ने गौहत्याबंदी के लिए आमरण उपवास किया। 72 वें दिन भारत सरकार ने गौ हत्या बंदी लागू करने के लिए गोरक्षा कमेटी बनाने के घोषणा की और उस कमेटी की सिफारिशों को माननें का वचन दिया और अनशन समाप्त हो गया । परिणाम फिर भी शुन्य रहा।

15.4- प्रधानमंत्री श्री मोरराजी देसाई ने विनोबा जी को वचन देने पर और संसद में घोषणा कर देने पर, कि केन्द्रीय काननू के द्वारा सारे देश में गौहत्याबंदी की जायेगी, विनोबाजी ने पांचवें दिन (26 अप्रेल 1979) उपवास छोड़ दिया। उपरोक्त कार्यवाही हेतु संसद में बिल पेश भी हुआ लेकिन उक्त लोकसभा के भंग हो जाने से (कांग्रेस घराने द्वारा सरकार को गिराना) बिल विधेयक फिर लटक गया। परिणाम फिर शुन्य रहा ....।

15.5- 1980 में जैन मुनि श्री ज्ञानचन्द्र जी महाराज ने गौहत्या बंदी के लिए लम्बे उपवास के बाद जब सरकार ने उन्हे बल पुर्वक आहार में कोई सामिष आहार भी दिया जा सकता है वे तटस्थ रहे, किन्तु अधिक दबाव के कारण उपवास छोड़ दिया। परिणाम फिर शुन्य रहा ....।

15.6- 1982-1983 के मध्य अखिल भारतीय कृषि गौ सेवा संघ संसद भवन के सामने साप्ताहिक सत्याग्रह शुरू किया जो 3-4 वर्ष तक चला। किन्तु परिणाम फिर भी शुन्य रहा।

इसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (संघ परिवार) का संस्कार उदय होना चाहिए - कारण स्पष्ट है कि यह परिवार राष्ट्र वाद व राष्ट्रीय संस्कृति का प्रतीक है - संस्कार से समान (आचरण - व्यव्हार का) आवल्बन उपस्थित हो गया है अतः इनको क्रियाशील होना सुनिश्चित है --- क्योंकि (15.7 से 15.9),

15.7- 1966 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारतीय जनमत की प्रभावकारी अभिव्यक्ति के कार्यक्रम रूप में गौहत्याबंदी के लिए 2 करोड़ हस्ताक्षर एकत्रित करके सरकार को सुपूर्द किये। परिणाम फिर भी शुन्य रहा ---।

15.8- 15-11-1981 को केशवकुज, झंडेलवाला, देशबंधु गुप्त मार्ग से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपने सभी ब्लॉक स्तर पर निर्देश जारी किया कि श्रद्धेय विनोबा जी की प्रेरणा से कृषि गौसेवा संघ, वर्धा की ओर से एक गौरक्षा सौम्य सत्याग्रह का आयोजन हो रहा है, आप सभी सक्रिय सहयोग करें। भवदीय: शिवप्रसाद, मा. रज्जूभैया, सरकार्यवाह। परिणाम फिर भी शुन्य रहा ---|

15.9- अपने स्थापना काल से आज दिनांक तक संघ परिवार ने राष्ट्रवाद - राष्ट्रसंस्कृति के उत्थान हेतु - संरक्षण हेतु - संवर्दन हेतु - अथक कार्य किये जो इनके संस्कार को सिद्द करते है | क्योंकि संस्कार अटल सत्य है और गौरक्षा संस्कृति का आधारभूत ढांचा है, संघ के मुखिया जी सोचना-समझना नहीं है | किन्तु कारण और कार्य पूर्णतः स्पष्ट है ---- ------- आपके संस्कार रुक नहीं सकते ----------------------------------|

भाग 1 - तथ्य #16 

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इस प्रकार उपरोक्त विषय के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 51 (क) के (ख) (च) एवं (छ) का स्पष्ट उल्लंघन हो रहा है। क्योंकि अनुच्छेद 51 (क) के (ख) के अनुसार स्वतंत्रता आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोये रखे और उनका पालन करें । किन्तु अफसोस वे सभी उच्च आदर्श वाले गोहत्या पर तत्काल प्रतिबंध के पक्ष में रहे। अतः ‘‘राज्य’’ भारत सरकार अपना मूल कर्तव्य निर्वहन कर संवैधानिक मर्यादा का पालन करें। क्योंकि सभी नागरिकों में ‘‘राज्य’’ भी अनिवार्य रूप से सम्मिलित है-देंखें तथ्य संख्या (13) में। क्योंकि सभी उच्च आदर्श गोवध को तत्काल प्रतिबंध करने के पक्ष में रहे।

      इसी प्रकार उपरोक्त विषय के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 51 (क) के (च) का स्पष्ट उल्लंघन हो रहा है क्योंकि संस्कृति की गौरवशाली परम्परा के महत्व को समझने एवं परीरक्षण करने का मूल कर्तव्य प्रत्येक नागरिक का है। गौरक्षा भी इसी संस्कृति का अंग है और भारतीय संस्कृति का अतिमहत्वपूर्ण एवं अतिसंवेदनशील अध्याय है जो आदिकाल से चला आ रहा है। ‘‘किसी देश राष्ट्र को ध्वस्त-तबाह करने हेतु वहां की संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करना ही पर्याप्त है।’’ अतः उपरोक्त विषय पर कार्य करना ‘‘राज्य’’ का अनिवार्य रूप से संवैघानिक मूल कर्तव्य भी बनता है। वैदिक संस्कृति आधुनिक विज्ञान के साथ मिल कर आवाज पर आवाज दे रही है किन्तु ‘‘राज्य’’ मूक है। देखें तथ्य संख्या (9,10,11) में।

      इसी प्रकार उपरोक्त विषय के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 51 (क) के (छ) का भी उल्लंघन हो रहा है क्योंकि - प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा - प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखें। सबसे सर्वोतम-उत्तम पूजनीय और पर्यावरण (कृषि क्षेत्र) को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से शुद्ध एवं सृष्टि को जीवनशक्ति देने वाली गौ-माता हेतु ‘‘राज्य’’ भारत सरकार तत्काल गौवंश की हत्या पर प्रतिबन्ध हेतु अपने संवैधानिक कर्तव्य का निर्वहन करे। जिस गोवंश से (सृष्टि) पंचमहाभूतों को जीवन ऊर्जा मिलती है ऐसी स्थिति में पर्यावरण व कृषि क्षेत्र  के लिये तो गोवंश प्राणदाता है। देखें तथ्य संख्या (12) में। इस प्रकार अनुच्छेद 51 (क) के तहत नागरिकों में, प्रथम नागरिक आदरणीय राष्ट्रपति महोदय है अतः उनको भारत सरकार को उपरोक्त विषय के क्रियान्वयन हेतु आदेश-निर्देश देना चाहिये। साथ ही कार्यपालिका-विधायिका-न्यायपालिका व सूचना तंत्र को भी अपना संवैधानिक कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए। क्योंकि अनु. 51 (क) पर विधि न बनने से यह मात्र प्रर्दशन हेतु नहीं है, अपितु इस पर आदेश-निर्देश, दिशा-निर्देश जारी किए जा सकते है। सरकार द्वारा कर्तव्य पालना करवाना व पालन करना दोनों संविधान द्वारा स्थापित कर्तव्य व्यहवार में पूर्णतः-स्पष्ट: "राज्य" का संवैधानिक दायित्व होता है। 

भाग 1 - तथ्य #17 

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उपरोक्त विषय में संविधान के अनुच्छेद 48 में नीति निर्देशक तत्व ‘‘राज्य’’ को निर्देश देते है कि ‘‘कृषि व पशुपालन’’ को आधुनिक और वैज्ञानिक आधार पर संगठित करेगा। विशेषतया गायों व बछड़ों की नस्ल के परीरक्षण और सुधार के लिये और उनके वध का प्रतिषेध करने के लिये के लिये ‘‘राज्य’’ कदम उठायेगा। स्पष्ट है कि भारतीय संविधान का अंतःकरण गौवंश की रक्षा करने के लिए और संकरीकरण नस्ल को व विषाक्त कृषि को तत्काल प्रतिबन्ध करने का निर्देश देता है | उपरोक्त अनुच्छेद 48 की अनुपालना में अनुच्छेद 48 (क) के पर्यावरण (विषाक्त कृषि से मुक्ति) की भी पालना होती है। यह स्पष्ट है कि मूल अधिकार व नीति निर्देशक तत्व एक-दुसरे पर अभिभावी नहीं है, किन्तु एक दुसरे के पूरक है (सर्वोच्च न्यायालय) | अतः आवश्यकता और परिस्थितियों के आधार पर इनकी पालना कराई जा सकती है | अनु. 45 इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। साथ ही इस संबंध में (सर्वोच्च न्यायालय) अनु. 44 में समान सिविल संहिता में आदेश – निर्देश और (सर्वोच्च न्यायालय) अनु. 48 (क) में प्रर्यावरण के तहत् आदेश - निर्देश है। इस प्रकार अनु. 48 व 48(क) की भी पालना से अनु. 47 की भी पालना स्वयंसिद्ध है ।

भाग 1 - तथ्य #18 

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उपरोक्त विषय के सन्दर्भ में संविधान के आधारभूत ढ़ाँचे, उद्धेशिका का - मूल अधिकारों का - मूल कर्तव्यों का - और संविधान के अंतःकरण "नीति-निर्देशक तत्वों" का और इस संबंध में आज दिनांक तक की रूलिंग का पूर्णतः - स्पष्टतः उल्लंघन हो रहा हैः-

18.1- उपरोक्त विषय के सम्बन्ध में उद्धेशिका के ‘‘पंथ निरपेक्ष’’ शब्द का औचित्य पूर्णतः और स्पष्टतः समाप्त हो जाता है। इस संबंध में कोई भी युक्ति-युक्त वर्गीकरण भी नहीं है ।

18.2- उपरोक्त विषय में उद्धेशिका के ‘‘विश्वास-धर्म-उपासना’’ शब्दों की उपादेयता समाप्त हो जाती है क्योंकि इनकी समग्रता अनु. 25 (1) में स्थापित है। किन्तु मेरे अनु. 25 (1) के अंतर्गत मूल अधिकारों के स्पष्ट उल्लंघन होने से कानून के शासन पर प्रत्यक्ष प्रहार है।

18.3- उपरोक्त विषय में उद्धेशिका के ‘‘समानता’’ शब्द की समग्रता अनु. 14 में स्थापित है किन्तु मेरे लिये उपरोक्त विषय के सम्बन्ध में अनुच्छेद 14 के मूल अधिकारों की उपादेयता एवं औचित्य शून्य सिद्ध हो रही है क्योंकि सभी धर्मो के साथ समानता का व्यवहार करना ‘‘राज्य’’ का संवैधानिक कर्तव्य है। राजनीति रूप से तुष्टिकरण के अतिरिक्त-विधिक रूप से कोई भी युक्तियुक्त वर्गीकरण नहीं है। अतः समुदाय विशेष (हिन्दू समुदाय = हिन्दू समाज - सिख समाज - जैन समाज - बौद्ध समाज) के लिये भी अनु. 14 यथावत रूप से प्रभावी है। किन्तु भारत सरकार ------ |

18.4- उपरोक्त विषय के संबंध में उद्धेशिका के ‘‘उन सब में व्यक्ति की गरिमा’’ शब्दों का औचित्य समाप्त हो जाता है क्योंकि इनकी समग्रता अनु. 39 (क), अनु. 42, अनु.43 में है। किन्तु मुख्य रूप से अनु. 21 में स्थापित है जिसके अंतर्गत मानव जीवन में भौतिक अस्तित्व ही नहीं वरन् आध्यात्मिक अस्तित्व भी है (सर्वोच्च न्यायालय) के अनुसार जो ‘‘मानव जीवन को पूर्ण बनाने के लिये आवश्यक है’’ स्पष्ट है कि धर्मग्रंथों में मृत्युलोक एवं परलोक हितार्थ गोवंश को महत्व दिया गया है और ‘‘परमधाम’’ गोलोक बताया है। ‘‘गोलोक’’ हमारी अन्तःकरण की स्वतंत्रता में आता है | एक मात्र यह अधिकार आत्यांतिक है किन्तु भौतिक क्रियारूप रूप देने पर पुष्कर में विदेशी महिला पर्यटक को गिरफ्तार किया गया और कोलकाता पुलिस कमिश्नर बनाम आनंद मठ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक रूप से कार्यक्रम को प्रतिबंध किया । अर्थात भौतिक रूप से क्रिया-कलाप अन्य अधिकारों से सामान प्रतिबन्ध योग्य है | प्रस्तुत विषय में  भौतिक क्रियारूप नहीं है अतः विधिक तथ्य की श्रेणी में है अतः अनु. 21 के मूल अधिकारों का औचित्य भी समाप्त हो जाता है। साथ ही विषाक्त कृषि के कारण "शुद्ध प्रर्यावरण के अधिकारों" का पूर्णतः हनन हो रहा है, (सर्वोच्च न्यायालय) । शुद्ध वायु और जल अनुच्छेद 21 के तहत् ‘‘प्राण के अधिकारों’’ में माना गया है (सर्वोच्च न्यायालय) । (क्योंकि 70-80 प्रतिशत भोजन जीव जगत का प्राण वायु ही है चाहे वे समुन्द्र की तलहटी के जीव भी क्यों ना हो) वायु और जल में स्वाभाविक रूप से खान-पान भी शामिल है | इस प्रकार "राज्य" का प्राथमिक कर्तव्य अनु. 47 "लोक स्वास्थ्य" व अनु. 48(क) "प्राकृतिक पर्यावरण" निम्न स्तर पर है (देखें तथ्य संख्या 12 में) |

18.5- उद्धेशिका का उद्देश्य संविधान के उपबंधों के प्रयोजन के साथ उपबंधों के निर्वचन में दिशा-निर्देश प्रदान करना भी है किन्तु उपरोक्त विषय के सम्बन्ध में उद्धेशिका की इस अतिमहत्वपूर्ण उपादेयता का औचित्य ही समाप्त हो जाता है, क्योंकि उद्धेशिका का ‘‘न्याय’’ शब्द ही 100 करोड़ से अधिक नागरिकों के लिये ‘‘अन्याय’’ के रूप में स्वयं सिद्ध हो रहा है। प्रधानकार्यकारी जी ---- न्याय होना ही महत्वपूर्ण नहीं है - न्याय हुआ है ऐसा दिखना भी चाहिए | यह विधि के विश्व धरातल का आधारभूत ढ़ांचा है |

भाग 1 - तथ्य #19 

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प्रस्तुत विषय के पक्ष में, सभी तथ्य रूलिंग और संविधान के अनुच्छेदों एवं संविधान की उद्धेशिका के आधार पर उपरोक्त विषय को पूर्णतः संवैधानिक सिद्ध करते है और ‘‘राज्य’’ (भारत सरकार) पर उपरोक्त विषय के क्रियान्वयन का संवैधानिक भार अधिरोपित करते है क्योंकि:-

19.1- उपरोक्त विषय अनुच्छेद 25 (1) के उद्देश्य में पूर्णतः सकारात्मक है, औचित्यपूर्ण है। क्योंकि धर्म के नाम पर अनुचित-अवांछित कृत्य नहीं है और न ही समाज कल्याण व राष्ट्र की एकता-अखण्डता के लिये खतरा है। देखें तथ्य संख्या (6) में

19.2- उपरोक्त विषय अनुच्छेद 25 के निर्बंधन किसी भी स्थिति परिस्थितियों में लागू नहीं होते है, क्योंकि मेरे द्वारा उपरोक्त विषय पूर्णतः ‘‘रचनात्मक एवं  धनात्मक’’ है साथ ही धर्म और धर्म स्वतंत्रता का अतिक्रमण नहीं करते और न ही तुष्टिकरण का अंग है। देखें तथ्य संख्या (7) में

19.3- उपरोक्त विषय मूल दर्शन का विकल्प रहित-अभिन्न अंग है और अनु. 25 (1) की सभी ‘‘अनिवार्य एवं आवश्यक’’ शर्तों का पूर्णतः पालन करता है। देखें तथ्य संख्या (8) में।

19.4- उपरोक्त विषय अनुच्छेद 25(1) के अतिरिक्त ‘‘उद्धेशिका’’, अनु. 14, अनु. 21, अनु. 47, अनु. 48 व अनु. 48 (क) एवं अनु. 51 (क) के (ख) (च) (छ) के साथ भी युक्ति-युक्त एवं संवैधानिक है। विषाक्त कृषि व गोवंश की हत्या पर पूर्णतः प्रतिबन्ध न करने से संविधान का आधारभूत उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।

19.5- इस प्रकार संवैधानिक ‘‘शोध और विश्लेषण’’ द्वारा भारतीय संविधान के सर्वाधिक व्यापक अनुच्छेद 14-सर्वाधिक संवेदनशील अनुच्छेद 25(1)-सर्वाधिक महत्वपूर्ण अनुच्छेद 21-सर्वाधिक नैतिक अनु. 51(क) और संविधान के अन्तःकरण नीति निर्देशक तत्वों अनु. 47, अनुच्छेद 48 व 48 (क) के साथ और आधारभूत ढ़ाँचे-उद्धेशिका के आधार पर उपरोक्त तथ्य पूर्णतः संवैधानिक एवं अकाट्य है।

19.6- उपरोक्त विषय को नकारने की स्थिति में संविधान की उद्धेशिका-संविधान के मूल अधिकार-संविधान के मूल कर्तव्य-संविधान के नीति निर्देशक तत्व और आज दिनांक तक अनु. 25 की रूलिंग का विधि के समक्ष औचित्य ही समाप्त हो जाता है। देखें तथ्य सं. (3)(4)(5) । साथ ही कृषि क्षेत्रों में जहरीले किटनाशकों व रसायनिक खाद्य के उपयोग  से खान - पान व जल और वायु  के प्रदूषण से भयावह रोगों का होना, अनु. 21 व अनु. 47 का औचित्य ही समाप्त हो जाता है।

19.7- उपरोक्त विषय को किसी भी स्थिति में नकार नहीं सकते-सामान्य स्थिति में ‘‘अन्तःकरण की स्वतंत्रता’’ के अतिरिक्त सभी मूल अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाये जा सकते है। परन्तु वे परिस्थितियां युक्ति-युक्त रूप से उपरोक्त विषय में लागू नहीं होती है। उदाहरण के लिये संविधान के अनुच्छेद 368 - 352 - 34 - 33 अथवा अन्य कोई भी युक्तियुक्त वर्गीकरण। राष्ट्र के प्रधानकार्यकारी जी --------------- उचित समय पर कार्य का क्रियान्वयन न करने से समय उस कार्य के औचित्य - उपादेयता के औचित्य को ------------------ |

भाग 1 - तथ्य #20 

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उपरोक्त विषय के सन्दर्भ में, सतयुग-त्रेतायुग-द्वापरयुग-कलिकाल के अतिरिक्त ईसा काल के आरंभिक एक हजार वर्षो के साथ मुगल काल-ब्रिटिश काल और गणतंत्र भारत के घटनाक्रम के सभी तथ्य प्रस्तुत किये गये है साथ ही ‘‘राज्य’’ भारत सरकार द्वारा धार्मिक भावनाओं के कृत्यों का स्पष्टीकरण तुष्टिकरण के साथ किया गया है। इसी प्रकार आज दिनांक तक की ‘‘रूलिंग’’ एवं संविधान के आधारभूत ढ़ाँचा, ‘‘उद्धेशिका’’ - मूल अधिकारों-मूल कर्तव्यों के साथ संविधान के अंतःकरण के नीति निर्देशक तत्वों के आधार पर क्रमशः संवैधानिक एवं तथ्यात्मक समग्र विश्लेषण  प्रस्तुत किये है साथ ही प्रत्येक तथ्य क्रमवार श्रेणी से प्रस्तुत है और उत्तरोतर मेरे उपरोक्त विषय (गोवंश की हत्या और विषाक्त कृषि को प्रतिबंध) को संवैधानिक सिद्ध करते है। अंततः ‘‘राज्य’’ (भारत सरकार) मेरे उपरोक्त विषय पर त्वरित कार्यवाही करने हेतु संवैधानिक आधार पर  सुनिश्चित रूप से बाध्य है।  इस प्रकार उपरोक्त सभी तथ्य - शब्दावली अनुतोष की श्रेणी में है किन्तु तथ्य संख्या 21 अनुतोष के तौर पर नागरिकों की जानकारी के लिए व विशेषकर - विशेषज्ञों की कमेटियों व आयोग जो भी राष्ट्र के प्रधानकार्यकारी जी उचित समझे | 

भाग 1 - तथ्य #21 

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अतः ‘‘राज्य’’ भारत सरकार ‘‘कानून के शासन’’ का औचित्य बनाये रखने हेतु त्वरित रूप से अनुतोष के रूप में निम्न कार्य करें - प्रस्तुत विषय के  अनुतोष इस प्रकार (विशेष रूप से सभी तथ्य - संविधान के अनु. और उनकी शब्दावली का निर्वचन - विश्लेषण स्वयं में अनुतोष है फिर भी विशेषज्ञों व सरकार की जानकारी के लिए ------) है :-


21.1- भारतवर्ष की सम्पूर्ण राजनैतिक सीमा में - ‘‘गोवंश की हत्या और विषाक्त कृषि’’ (विषाक्त कृषि की क्षेत्रवार, कार्य योजना बनाकर साथ ही प्रथम वर्ष में कुछ अनुदान राशि देकर) पूर्णतः तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध की जाये और गौ को राष्ट्र माता का दर्जा प्रदान किया जाये। जबकि वैदिक उद्घोष तो विश्वमाता का ‘‘गावो विश्वस्य मातरः’’ है। गोवंश की हत्या के समान भयावह व वीभत्स गोवंश की तस्करी का परिवहन भी है क्योकि गोतस्करी इतनी समग्र व कुटिलतापूर्ण है, कि पिछले कुछ वर्षो में लाखों गोवंश छुड़ाने व हजारों मामले दर्ज हाने के बावजूद- इससे कई गुना अधिक गोवंश तस्करी द्वारा कटने वाले स्थानो पर पहुच  जाते है। तस्करी - गोवंश की हत्या प्रतिबंध वाले राज्यों - जो गोवंश की रक्षा में अति कठोरता का प्रयोग करते है, अतः उन चार-पाँच राज्यों में हत्या कर नही सकते - परिणाम स्वरूप वहाँ से तस्करी करते है। साथ ही प्रतिबंध वाले अन्य 15-16 राज्यों में सरकारी उपेक्षा व तुष्टिकरण के कारण गोवंश की हत्या भी होती है और आसानी से तस्करी भी -  उनकी हत्या राष्ट्र के गैर प्रतिबंध राज्यों व बांग्लादेश में करते है। गोवंश रक्षा संगठनो से बचने के लिए दोनों प्रकार के राज्यों में तस्करी का स्वरूप अति भयावह है स्पष्ट है कि तस्करी व गोवंश छुडाने के उपरोक्त मामले केवल 4-5 राज्यों के ही है, वास्तविक मामले इससे कई गुणा है। मान्यता प्राप्त गो रक्षा दल इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है जिनके विवाद में विश्व का सर्वोच्च संगठन व सर्वोच्च न्यायलय भी संज्ञान ले रहा है । इस प्रकार पिछले 5-7 वर्षो में गोवंश में 10 प्रतिशत की कमी हो गई और इस तरह वर्ष भर के औसतन के आधार पर  वर्तमान में 21-22 लाख लीटर दूध कम हो रहा है। इस संबंध में राष्ट्र की प्रमुख संस्था के प्रधानकार्यकारी का कथन है कि, ‘‘हत्याओं  के कारण दूध उत्पादन का लक्ष्य हासिल करना कठीन हो रहा है।’’ इन सभी का निकृष्ट परिणाम यह है कि वर्ष भर के औसतन आधार पर कम से कम गणना करने पर भी 1500 टन से ज्यादा गोमांस का प्रतिदिन उपभोग - खपत। दुसरे में घोरत्तम जहरीला परिणाम:- नकली दूध - मावा - घी और इनसे बने उत्पाद, इनकी फैक्ट्रीयों को ‘‘सीज करने’’ से पूर्व  न जाने कितने वर्षो तक, कितनी मात्रा  में - इनके द्वारा निर्मित जहर बाजार में परोसा गया - कल्पना से बाहर है। इस कारण से कितनी जनसंख्या रोग ग्रस्त - काल ग्रस्त हुई - सरकार तो क्या विश्व की तमाम गुप्तचर संस्थाए भी सही आंकलन प्रस्तुत नही कर सकती, जिस प्रकार कृषि के विषाक्त उत्पादों के परिणाम का आंकलन नही है। साथ ही वर्तमान में जहर बनानें वालों की संख्या व स्थान कितने है, उनको बन्द करना भारतीय संविधान के अनु. 47 के तहत ‘‘लोकस्वास्थ’’ के आधार पर सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है। जिसे कठोरत्तम कानून की हद में लाना अनिवार्य है। सामान्य स्थिति में गौवंश की रक्षा हेतु बनाये गयें कानून कुछ राज्य सरकारें स्वीकार करती है कुछ नही करती - साथ ही सरकार बदलने पर कानून भी बदला जा सकता है। अतः संविधान की अनिवार्यता के आधार पर पूर्णतः गोवंश की हत्या पर प्रतिबंध की तत्काल कठोर विधि व्यवस्था (अनु. 25 (1) के आधार पर केंद्रीय क़ानून) और विषाक्त कृषि के प्रतिबंध की सुनिश्चित व्यवस्था की कार्य योजना प्रस्तुत करें- जो भविष्य में विधि का स्थान ग्रहण करें।  अतः कठोर राष्ट्रीय क़ानून अनिवार्य है। तत्काल प्रभाव से "राष्ट्रमाता रक्षा - संरक्षण - संवर्धन अधिनियम" और "अमृत - जैविक कृषि अधिनियम" राष्ट्र में सुनिश्चित रूप से प्रभावी करने के लिए राष्ट्र के प्रधानकार्यकारी जी ----- आयोग अथवा कमिटी का गठन करें |

21.2- संविधान के अनु. 48 के तहत संकरीकरण को तत्काल प्रतिबंध किया जावें और भारतीय देशी नस्ल सुधार को तत्काल शुरू किया जावे। ‘‘क्योंकि अनु. 48 नस्ल के परीरक्षण और सुधार व वध प्रतिषेध का निर्देश देता है न कि नस्ल व गोवंश समाप्त करने का ..............|" “इसी प्रकार अनु. 48 कृषि में विज्ञानिक सुधार का निर्देश देता है’’ ना कि कृषि भूमि के विनाश (प्रर्यावरण प्रदूषण के साथ 30 प्रतिशत कृषि भूमि के पोषक तत्व सामाप्त) का..................। इस प्रकार राष्ट्र में अनु. 21, अनु. 48, अनु. 48 (क), अनु. 51 (क) के (छ) के प्रर्यावरण की पालना कल्पना मात्र ही है। भारतीय नस्ल की देशी गाय का 25-30 लीटर दूध देने का प्रयोग सफल हो गया है। जिस प्रकार देसी रियासतें अंग्रेजों से गोवंश रक्षा की शर्त रखती - उसी प्रकार विदेश में देसी नस्ल भेजने पर हत्या के प्रतिबन्ध की शर्त होनी चाहिए ।

21.3- बांग्लादेश-पाकिस्तानी सीमा पर गोवंश की तस्कारी के साथ ही क़त्लखानों में तस्करी अथवा अन्य उपायों से गोवंश पंहुचने पर प्रतिबन्ध हेतु सुनिश्चित कार्य योजना बनाई जाये। - पंजाब हरियाणा उत्तरप्रदेष बिहार और नजदीक राज्यों के गौवंश 20-30 प्रतिशत पश्चिम बंगाल के कत्लखानों में और पश्चिम  बंगाल की सीमा प्रारंभ होने के साथ ही गौवंश असम के दो जिलों में भी पहुंचता है जहां से बांग्लादेश के लिये तस्करी होती है, नदी पार होते ही 10,000 का गौवंश कम से कम 30,000 से 40,000 का हो जाता है (औसत रूप से कीमत 3 से 5 गुणा हो जाती है)। इस सबंध में एक वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारी के सार्वजनिक बयान के अनुसार इस खेल में नौकरशाह व सफेदपोश नेता शामिल है और अंतरराष्ट्रीय माफिया के दो प्रतिनिधि भारत मे इस कार्य को अंजाम दे रहे है। यही स्थिति तस्करी के क्षेत्र में बंगाल सीमा क्षेत्र की है | सीमा थाना क्षेत्र से एक गाड़ी का निकलना 750- 1000 रूपये तक है, किन्तु सभी थाना क्षेत्र इस प्रकार नहीं है। 80 प्रतिशत सूचना तंत्र का अभाव व सूचना पर तत्कालिक कार्यवाही और उस क्षेत्र से सभी थाना क्षेत्रों को नाकाबंदी का अभाव आधारभूत कारण है। इसी प्रकार दक्षिण के राज्यों व आस-पास के राज्यों से गौवंश इसी आधार पर नकारात्मक कार्ययोजना के कारण केरल पहुंच जाता है। उपरोक्त तस्करी वाले राज्यों में, कुछ राज्यों ने 6-7 दशक पूर्व गौवंश व अन्य पशु के राज्य से बाहर ले जाने पर कठोर विधि व्यवस्था बनाई और वर्तमान में भी है व्यवहार में परिणाम शून्य, कारण शासन-प्रशासन की सक्रियता शून्य। जिसका मुख्य कारण केंद्रीय कानून का ना होना, जो पकड़े जाते है पुलिस पर फायरिंग करके भागने में भी सफल हो जाते है। अतः प्रत्येक जिला प्रवेश व निकास व राज्य सीमा मे प्रवेश व निकास पर कठोरता और क्षेत्रीय थानों को सूचना तकनीक व्यवस्था के साथ अनिवार्य रूप से जोड़ना होगा |

विशेष- प्रस्तुत विषय के सभी कार्यो में लापरवाही व भ्रष्ट आचरण होने की स्थिति में अपराध व लापरवाही के आधार पर वेतनवृद्धि-पदौन्नति को दो-चार साल तक प्रतिबन्ध करें अथवा गंभीरता की स्थिति में बर्खास्त व नुकसान की वसूली इत्यादि | प्रस्तुत विषय में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम व अन्य अधिनियम का प्रयोग न हो ‘‘युक्ति-युक्त वर्गीकरण’’ करें ।

21.4- संवैधानिक अधिकारों से युक्त ‘‘राष्ट्रीय गो सेवा आयोग’’ की स्थापना की जाये और राज्यों में ‘‘राज्य गो सेवा आयोग’’ की स्थापना की जावे। इन सभी  को विधिक अधिकार और मंत्रालय की तरह ‘‘बजट’’ भी प्राप्त हो। जिस राष्ट्र में अपराधियों - राज  द्रोह - राष्ट्र द्रोह - आतंकवाद के  पक्ष में भी वोट बैंक के तहत आवाज उठाई  जाती  है - जिस प्रकार "महिला आयोग" - "मानवाधिकार आयोग" बेमानी  सिद्ध होते है साथ ही अधिकार प्राप्त होने के बाद भी इनके आज दिनांक तक के कार्य ---- । अतः वोट अधिकार से रहित मूक सृष्टि के लिए "गौ सेवा आयोग" को शक्तिशाली विधिक अधिकार अनिवार्य है क्योंकि संबंध विभाग का बजट उपयोग - दवा की गुणवत्ता - चिकित्सकों के स्थापित कर्त्तव्य व्यवहार इत्यादि - सीमा से अधिक गोल-माल है।  मीडिया को भी इस क्षेत्र से परहेज है अथवा शायद कुछ और --- भी। दवा क्रय का जिला - तहसील - पंचायतों को प्राप्त करने अथवा खरीदने का भौतिक सत्यापन अनिवार्य हो और निश्चित अवधि से मीडिया भी इस क्षेत्र में अनियमितताओं को उजागर करे | ऐसी विधि वयवस्था अनिवार्य भी है (मूक क्षेत्र के कारण) | अतः स्वयं के (अथवा नियुक्त अधिकारी व सदस्यगण) निरिक्षण - शिकायत मिलने पर गोवंश के हितार्थ कठोर कार्यवाही करने हेतु इनके अधिकार औचित्यपूर्ण है। ऐसा न होने पर उपरोक्त विषय औचित्यविहीन हो जाएगा। 

21.5- उपरोक्त आयोगों में संस्कृति रक्षण से संबंध संगठन के 5-5 सदस्य सलाहकार बोर्ड के सदस्य हो-यथा संघ - विश्वहिन्दू परिषद - बजरंग दल इत्यादि । ये सदस्य स्थायी होने चाहिए संगठन द्वारा परिर्वतन किया जा सकता है राज्य आयोग शिकायत मिलने पर अथवा स्वेच्छा से गोशाला, डेयरी उद्द्योग व गोपालकों इत्यादि का समय-समय पर निरीक्षण कर सकते है - करवा सकते है। तात्कालिक कार्यवाही हेतु कोई भी नागरिक - जिला मजिस्ट्रेट व पुलिस से कार्यवाही करवा सकता है (जहाँ कहीं भी गौवंश का अहित हो रहा है) | रिपोर्ट आयोग को प्रेषित करें जिससे आयोग को इस संबंध में भविष्य में इस प्रकार सुनिश्चित व्यवस्था करने में सुलभता होगी |

21.6- प्रति वर्ष सभी आयोग का अंकेक्षण हो-साथ ही प्रतिवर्ष कार्यप्रगति की रिपोर्ट राष्ट्रीय आयोग भारत के प्रधानकार्यकारी को प्रस्तुत करे (ऐसा वैदिक दर्शन का आदेश भी है कि "गौवंश की देख-रेख का कार्य राजा स्वयं अपने पास रखें")। जिस पर संसद में एक दिन की बहस हो। प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल में भी ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए - जिससे आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किये जा सकते हैं |

21.7- गोवंश के हितार्थ ‘‘आयोग’’ का कोई भी आदेश-निर्देश विधिबल से युक्त हो। जिसमें गोपालन के अनुज्ञा-पत्र निरस्त करने का (प्राकर्तिक व विधिक व्यवस्था के विरुद्ध कृत्य होने पर अथवा गौवंश के विरुद्ध कोई गंभीर आरोप होने पर) अधिकार भी शामिल है। भारतीय संविधान के अनु. 25 के आधार पर लोकहित - राष्ट्रहित में किसी भी विधि को बनाया जा सकता है क्योंकि अनु. 25 इसको निवारित नहीं करता |

21.8- सम्पूर्ण राष्ट्र में गोचर भूमि व ओरण भूमि ‘‘स्थानीय प्राधिकारी’’ मुक्त कराने के साथ स्थानीय राज्य आयोग के नाम से नामांकन करके आयोग को दस्तावेज प्रस्तुत करे । साधु संत के स्थान छोड़ दिए जाए क्योंकि उनके शिष्यों के आवागमन व सहयोग से भूमि का विकास ही होगा । अतिक्रमण के अतिरिक्त  पुर्णतः आबादी बसने पर आस-पास कि खुली जमीन का सरकार अधिग्रहण करें और इसके अतिरिक्त गांवों  व तहसील के मध्य मे खुली जमीन को उपजाऊ कर के गौशाला ट्रस्ट को  तारबंदी कर सुपुर्द करें | ट्रस्ट सेवणघास – ज्वार – जई – मक्का - बाजरा - भुट्ट का हरा चारा लगावें, और सरकार 3.5 करोड़ एकड़ गौचर भूमि (जो लापरवाही की भेंट हो चुकी है) का लक्ष्य कर - गोवंश हेतु तत्काल आयोग को सुपुर्द करें (इस प्रकार हम 2002 के सेवणघास आयत करने के नादान कृत्य से बचाव कर सकते है) - जिससे दूध उत्पादन में 70 प्रतिशत की लागत कम होगी - जिसमें सर्दी गर्मी, वर्षा से बचाव हेतु टीन शेड या प्लास्टिक  शेड व पानी पीने का स्थान भी हो। इनके अतिरिक्त प्रत्येक गोशाला के आस पास की खाली भूमि का विक्रय ना हो| बड़ी गौशालाओं को 10 से 15 एकड़ भूमि चारा व खाद के लिए उपलब्ध करावें जो आसानी से उपयोग हेतु प्राप्त हो सकती है।  साथ ही सेवण घास के क्षेत्रो को गौचर भूमि घोषित कर आयोग को सुपर्द करें - जैसे:- जैसलमेर के सीमावर्ती  क्षेत्रो में सेवण घास के अथाह क्षेत्र। इसी प्रकार अन्य राज्यों में स्थानीय हरें चारे उगने वाले स्थानों को रेखांकित कर राज्य आयोग को सुपर्द करें। जिससें गौचर व ओरण भूमि की कुछ सीमा तक भरपाई होगी। किन्तु 3 करोड़ एकड़ से अधिक गौचर भूमि की भरपाई करना, जो तत्कालीन राजा-महाराजाओं ने सुरक्षित रखी थी, सरकार के लिए अत्यंत कठिन है किन्तु असंभव नहीं है | गौचर व औरण भूमि की जानकारी प्राप्त करना, आबादी क्षेत्र व अतिक्रमण को न हटाने की दशा में सरकार को दो गुनी भूमि गौचर को देना ही होगा ------ | ऐसा न होने पर ज़िम्मेवार सक्षमतंत्र अन्य इकाई महापाप से भी अधिक ------ | सेना-लोकव्यवस्था के लिए उपयोग भूमि का दो गुणा - अन्य अतिक्रमणों को सरकार द्वारा तत्काल हटाना अन्यथा परिस्थिति वंश (सम्पूर्ण आबादी बस जाना - शहरीकरण हो जाना - औद्योगीकरण हो जाना) दो गुणी भूमि का आवंटन करना | इस प्रकार महत्वपूर्ण भूमि के मूल्य को महत्त्व के आधार पर (धनराशि को) शून्य मानकर दो गुणा भूमि के निर्णय अनेक क्षेत्रों में हुए है | 

विशेष - दूध से दही - छास - घी - घी से बानी मिठाईयाँ प्रत्येक ऋतु काल में अमृत के समान हम सभी को प्राप्त होती है | सम्पूर्ण स्तनधारियों के बच्चो को जब उनकी माँ का दूध नहीं मिलता है, इसमें शेर के बच्चे और मानव के बच्चे भी शामिल है, उन्हें भी गाय का दूध ही पिलाया जाता है - गाय के दूध का पोषण अनिवार्य आवश्यकता के रूप में है | लेकिन हम स्वयं निम्न श्रेणी के नादान बन कर गौवंश के लिए - सूखे घास की भूमि (गौचर भूमि) को लापरवाही - अज्ञानता - अकर्तज्ञता के कारण 3 करोड़ एकड़ गौचर भूमि को सामान्य जानकार नादानीवंश शांत हो गए |

इस प्रकार गौचर भूमि के सम्बन्ध में राजा - महाराजाओं के कुछ अभिलेखों से स्पष्ट होता है (अनु. 13 का सरक्षण प्राप्त होता है) कि गौचर भूमि के रक्षण हेतु दिवार या तारबंदी भी गौचर भूमि से बाहरी हिस्से में होती है अर्थात गौचर भूमि में सुई के नोक के बराबर भी गौवंश के घास के तिनके कम न हो | इस प्रकार की कठोरता  - ऐसा महापाप पंचम वेद भी स्पष्ट करता है | पिछले 70 सालों में सरकार की नादानी यह है कि तुष्टिकरण के तहत कानून बनाकर संप्रदाय विशेष के वक्फ बोर्ड को ऐसे अधिकार दे दिए गए और न ही उनका सर्वे जांच रिपोर्ट बनायीं जाती | जिसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय सेना और भारतीय रेल के समकक्ष संपत्तियों को प्राप्त कर लिया ------ किसी भी सरकार ने (राज्य व केंद्र की 70 वर्षो की) दान दाताओं की कोई भी जानकारी - कानूनी दस्तावेज प्राप्त नहीं किये और यह व्यवहारिक रूप से भी पूर्णतः विधि विरूद्ध है परन्तु तुष्टिकरण के साथ है | जो संप्रदाय कब्रिस्तान की चार दीवारी के लिए सरकार से बजट लेता है (प्रत्यक्ष प्रमाण उत्तर प्रदेश की पूर्व की सरकारें है) वह संप्रदाय इतने उच्च स्तर पर सम्पत्तियों का दान कैसे कर सकता है | स्पष्ट है कि यह सम्पत्तियाँ गैर कृषि भूमि, सरकारी भूमि, गौचर-औरण भूमि इत्यादि का अवैध रूप से अतिक्रमण सिद्ध होता है | अतः कठोर सर्वे व उच्चस्तरीय जांच अनिवार्य हो जाती है | इनके द्वारा सामान्य रूप से भी अतिक्रमण करना बहुत ही सामान्य तथ्य (तथ्य विधि का बल रखते है) है | इस सम्बन्ध में भी एक प्रत्यक्ष उदाहरण विश्व प्रसिद्ध करणी माता मंदिर की 10,000 बीघा गौचर भूमि में भी इनके द्वारा कुछ भाग पर किया गया अतिक्रमण उपरोक्त तथ्यों को स्पष्ट करता है | अतः विधिक कार्यवाही के द्वारा इनके अतिक्रमण से पूरे राष्ट्र में गौचर भूमि को मुक्त करवाना और साथ ही सरकार द्वारा अन्य अतिक्रमणों को भी हटाना - ताकि 3.5 करोड़ एकड़ गौचर भूमि की कुछ हद्द तक भरपाई हो सके - साथ ही सरकार द्वारा शहरीकरण, औद्योगीकरण, लोकव्यवस्था और विकास के नाम पर जो गौचर भूमि - औरण भूमि को विधि विरुद्ध उपयोग किया गया है उससे दो गुना भूमि जिला, तहसील और पंचायत के मध्य की भूमि से भरपाई करना अनिवार्य है | 

विष्णुधर्मोत्तर व पद्मपुराण के अनुसार – “गौओं के चरने के लिये गोचर भूमि की व्यवस्था करके मनुष्य निःसन्देह अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है -- जो मनुष्य गौंओं के लिए यथाशक्ति गोचर भूमि छोड़ता है, उसको प्रतिदिन सौ से अधिक ब्राह्मण भोजन का पुण्य प्राप्त होता है। गोचर-भूमि छोड़ने वाला कोई भी मनुष्य स्वर्ग से भ्रष्ट नहीं होता। जो मनुष्य गोचर भूमि को रोक लेता है और पवित्र वृक्षों को काट डालता है, उसकी इक्कीस पीढ़ी रोरव नरक में गिरती है|’’

पंचम वेद के अनुसार मांसाहारी पक्षी का मांस कुत्ते की खोपड़ी में गांव से बाहर पका रहा चांडाल उसको किसी जानवर की खाल से ढ़क कर उसके आगे बैठ कर उसको छिपाने का प्रयास कर रहा था, आने-जाने वालों में से किसी ने पूछा कि तुम ऐसा क्यों कर रहे हो - जवाब मिला कि आस-पास में गांवों के लोग इधर से आते-जाते है, हो सकता है कि किसी ने अपने घर-खेत इत्यादि स्थानों में गोचर भूमि को शामिल कर लिया है - अतिक्रमण कर लिया है - नुक्सान कर दिया है | ऐसे महापापी की नजर इस पर पड़ जायेगी तो ................... यह खाना मेरे खाने लायक नहीं होगा | इसको गहराई व संवेदना से समझने का प्रयास करें शायद ------------| अर्थात गोचर भूमि को नुकसान करना "महापाप" - गोचर भूमि की रक्षा-संवर्धन "महापुण्य" है | निम्न श्लोकों में और उसके अर्थ में गोवंश को चारा खिलाने का असिमित माहात्म्य है - तो ऐसी स्थिति में गोचर भूमि का विकास- रक्षा व खोजकर विकास करना इत्यादि कार्यो की महिमा के "महापुण्य" का शब्दो में वर्णन नहीं हो सकता | गौचर भूमि व गौवंश के घास की महिमा हिंदू समुदाय में इस प्रकार है कि अधिकतर धार्मिक स्थानों पर शास्त्रोत बैनर भी लगाए जाते है जो इसकी महत्ता को भी सिद्ध करते है | अतः प्रत्येक हिन्दू समुदाय (चारों समाज) के सदस्यों को गौचर भूमि के लिए अपनी पूर्ण शक्ति से रक्षा करनी चाहिए | गौवंश को घास (चारा) खिलाने के धर्मं का शास्त्रों में वर्णन इस प्रकार है जो अन्य शास्त्रों के आदेशों से विस्तृत व स्पष्ट है जिसकी तस्वीर प्रस्तुत की गयी है | 

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इस प्रकार आप समझ सकते है कि पंचम वेद क्या कहना चाह रहा है, जिसमे विश्व की सृष्टि का सारवान ज्ञान है जिसके एक अंश के विश्व में 778 भाष्य है (गीता)| जिसमें भीष्म का चरित्र है और गौ-रक्षा के लिये अर्जुन का अज्ञातवास, वनवास शामिल है। अपने भाईयों और पत्नी के साथ 12 वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अंतिम अज्ञातवास की तिलांजलि देकर पुनः वनवास की सजा भुगतने को तैयार रहा किन्तु गौ-रक्षा हेतु प्रकट हो गया। गौ-रक्षा के लिये सर्वत्यागी - वैरागी और अतिरथी के लिए अज्ञातवास के अन्तिम दिन कालचक्र भी पलट गया और उसी दिन अज्ञातवास का समय पूर्ण हो गया। अतः सिद्ध होता है कि गौ-सेवा, गौ-भक्ति से कालचक्र भी पलट जाता है। सम्पूर्ण राष्ट्र में गोचर भूमि का सरकार की उपेक्षा से शासन-प्रशासन द्वारा गौचर भूमि का शहरीकरण और औद्योगिकीकरण हुआ और जिसमें सरकारी कार्यालय संस्थाऐं भी शामिल है-जानते हुए समझते हुए उपयोग किया। कुछ गौ-भक्त पटवारियों व गौ-भक्त संगठनों द्वारा हजारों एकड़ भूमि की रक्षा की गई उनको चिन्हित किया गया और गौ-वंश के लिये उपयोगी बनाया गया। उनके मध्य में छांव के लिये टीन-शेड और पानी पीने की भी व्यवस्था बनाई गई । अतः गोचर भूमि की डिजिटल सर्वेक्षण से जितनी जानकारी प्राप्त हो- उतनी सरकार उसको गोचर भूमि बना कर उसे आयोग को प्रदान करे । यह इसलिये अति- आवश्यक है कि मानवीय जीवन मूल्यों की रक्षा के लिये सबका भरण-पोषण करने वाली विश्व माता की कृपा प्राप्त करने के लिये और सरकार का संवैधानिक दायित्व (संविधान द्वारा स्थापित कर्तव्य व्यवहार) पूर्ण करने के लिये अति-आवश्यक है। जो तथ्य संख्या 9 - 12 से की पालना अर्थात राष्ट्र के अर्थतंत्र को मजबूत करने के लिये अनिवार्य रूप से आवश्यक भी है। इस प्रकार स्पष्ट है तथ्य संख्या 1 से तथ्य संख्या 8 तक संवैधानिक विश्लेषण के आधार पर गौचर भूमि भी धर्म का अभिन्न अंग है क्योंकि ऐसे आदेश - निर्देश धर्म के अन्य अभिन्न अंग से भी अधिक है | 

वक्फ बोर्ड के सरकारी तुष्टिकरण नियमों के अनुसार संप्रदाय विशेष का कोई भी व्यक्ति वक्फ बोर्ड को सम्पत्ति दान दे सकता है और वक्फ बोर्ड के द्वारा संप्रदाय के किसी भी व्यक्ति  व संस्था को सम्पत्ति दे सकता है | इस प्रकार वक्फ बोर्ड की सम्पतियाँ भारतीय सेना और भारतीय रेल के समकक्ष हो गयी है | यह अत्यंत नादानीपूर्ण कृत्य राज्य सरकारों की जानकारी में तुष्टिकरण के तहत हो रहा है | जो नाजायज़ीकरण से जायजीकरण का हास्यास्पद खेल स्पष्ट होता है | क्योंकि जो संप्रदाय विशेष कब्रिस्तान की भूमि की दीवार बनवाने के लिए सरकारों से धनराशि लेती है अथवा उनसे दीवारें बनवाती है वह संप्रदाय इतनी विशाल मात्रा में सम्पत्तियों का दान कैसे कर सकता है | राष्ट्र के अनेक स्थानों पर गौचर भूमि पर संप्रदाय विशेष द्वारा कब्रिस्तान व अतिक्रमण और अनेक अन्य कार्य हुए है | साथ ही राज्य सरकारों द्वारा अनेक गौचर स्थानों व अन्य सामान्य स्थानों पर भी पर इनको अनावश्यक भूमि आवंटित की गयी अथवा राज्य सरकारें मूक दर्शक बनी रही | अतः प्रश्न बनता है कि नाजायज से जायज बनाने का खेल किस प्रकार हो रहा है?

(क) संप्रदाय विशेष के लोग एक सुनिश्चित नेटवर्क के द्वारा गैरकृषि भूमि - शहरों के बाहरी क्षेत्र की खुली भूमि और तहसील क्षेत्र की खुली भूमि - बंज़र भूमि - कब्ज़ादारी भूमि इत्यादि को नाजायज व गैरविधिक तरीके से प्रपत्र बना कर वक्फ बोर्ड को दे देते है | वक्फ बोर्ड में प्रविष्टि होने पर राज्य सरकार की सहमति पर वह भूमि जायज बन जाती है, साथ ही उस भूमि को वक्फ बोर्ड पुनः संप्रदाय विशेष को दे सकता है | उपरोक्त तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत विषय की मांग स्वाभाविक है  -------- | क्योंकि इतने विशाल स्तर पर भू सम्पतियाँ होना स्वयं में एक गंभीर प्रश्न है | 

(ख) उपरोक्त कार्य वक्फ बोर्ड भूमि सम्पतियों की घेराबंदी करके स्वयं भी करता है | कोई भी रोकने वाला नहीं क्योंकि सांप्रदायिक ताकतों का अत्याचार सात समुद्र पार पहुँच जाता है और साथ ही तुष्टिकरण सरकारें उनको किसी सार्वजानिक कार्यों के नाम से उन्हें जायज भी बना देती है | 

 

(ग) संप्रदाय विशेष के लोगों द्वारा वक्फ बोर्ड को भूमि व सम्पत्तियाँ दान करना और वक्फ बोर्ड के स्वयं द्वारा अधिग्रहण करना और तुष्टिकरण सरकारों द्वारा वोट बैंक के लिए गैर जरूरी आवश्यकताओं हेतु भूमि व सम्पतियों का वक्फ बोर्ड में स्थांतरण करना अथवा मूक दर्शक बने रहना | ऐसी स्थिति में सब कुछ अंतिम रूप से जायज और विधिक हो जाता है | 

(घ) अतः भारत सरकार प्रत्येक राज्य स्तर पर आयोग का गठन करके यह सुनिश्चित करें - कि संप्रदाय विशेष के जो लोग भूमि व संपत्ति वक्फ बोर्ड को दान कर रहे है वह विधिक रूप से पट्टेदार, पुश्तैनी है अथवा पंजीयक कार्यालय से धनराशि देकर रजिस्ट्री करवाई गयी है, वक्फ-ईमान का जायज नियम यही है | उसी प्रकार वक्फ बोर्ड के द्वारा भूमि - सम्पत्तियों को स्वछंद होकर प्राप्त करके वक्फ बोर्ड में प्रविष्टि की गयी है उन सभी की आयोग जाँच करें - क्योंकि अनेक विवाद इस विषय में ऐसे है जिसपर तुष्टिकरण का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है | हिन्दू समुदाय के अनेक उपासना स्थलों के पास वक्फ बोर्ड का विवाद है | उदहारण के लिए कोटा मार्ग पर मालपुरा उपासना स्थल | साथ ही वक्फ बोर्ड द्वारा संप्रदाय विशेष के लोगो को बड़ी मात्रा में भूमि और संपत्ति दान की गयी है क्या वो विधिक तौर पर जायज है? क्योंकि वक्फ बोर्ड के प्रमाण पत्र के साथ प्राप्त भूमि व सम्पति की कोई भी स्थानीय निकाय, संस्था, विभाग, अधिकारीगण उसकी जाँच करने की हिम्मत नहीं जुटा सकते | उदाहरण के लिए एक मुख्य बाज़ार में पचास फुट चौड़ाई की सड़क के दोनों और व्यापारियों के 2-2 फुट के कब्ज़े भी तोड़ दिए गए - जबकि बाई और 30 फुट की सड़क होने पर भी 5 फुट x 10 फुट का स्थायी कब्ज़ा और 15 फुट की ऊंचाई तक संप्रदाय विशेष का होने से वैसा का वैसा ही रहा | जबकि लोकव्यवस्था के तहत कोई भी स्थानीय निकाय - प्रशासन - राज्य सरकार - न्यायापालिका उसको विधिक मान्यता नहीं दे सकता|  उपरोक्त मामले में अगर यह स्थान विधिक भी होता - तो पट्टे की भूमि का सरकारी दर और मुआवजा देकर कब्ज़ा सुनिश्चित तौर से हटाना ही पड़ता | राजस्थान के पश्चिम क्षेत्र के एक पर्यटक शहर में मुख्य स्थानों पर - कई जगहों पर अरबों रूपए की भूमि इनको अनावश्यक रूप से (वोट बैंक - तुष्टिकरण) आवंटित कर रखी है क्योंकि वे सभी भूमियाँ अभी उपयोग में नहीं है | इस प्रकार की स्थिति भारत के सैकड़ो शहरों में है | पूर्व में राजा-महाराजाओं के समय गौचर भूमि का क्षेत्र शहरी क्षेत्र से कुछ दूरी पर होने से वर्तमान में वे शहरी क्षेत्र के पास ही है | हो सकता है इस प्रकार की भूमि आवंटन राज्य सरकारों द्वारा गौचर भूमि में से की गयी हो |  

 

(ड़) हो सकता है उपरोक्त सभी तथ्य राजनैतिक इच्छाशक्ति के पश्च्यात ही स्पष्ट हो | साथ ही नाजायज - अविधिक सम्पत्तियों का सरकार कुछ भी करें ---- | प्रस्तुत विषय का स्पष्ट उद्देश्य यह है कि इस नादानीपूर्ण खेल में जो गौचर भूमि का भाग है उसे सम्बंधित ट्रस्ट - संस्था अथवा राज्य गौसेवा आयोग को गौचर भूमि के अतिरिक्त उस भूमि की कीमत के बराबर जुर्माने के साथ सुपुर्द करें | गौशाला व गौचर भूमि को अनु. 25 (1) के तहत धर्म का अभिन्न अंग होना सिद्ध होता है किन्तु वर्तमान की राजनैतिक व्यवस्था को देखते हुए इनको लोकव्यवस्था की श्रेणी में भी रखा जावे - जिससे इनकी सभी प्रकार की बाधाओं - समस्याओं का समाप्तीकरण हो सके | शहरीकरण - औद्योगिकरण - राजमार्ग - सेना के उपयोग इत्यादि लोक व्यवस्था हेतु जिस गौचर भूमि का उपयोग सरकार ने कर लिया है - उसके लिए पूर्व में दोगुनी जमीन का स्पष्टीकरण विधिक रूप से किया गया है | इन क्षेत्रों के आस-पास भी तुष्टिकरण का खेल हुआ है अथवा माफियों द्वारा - दोनों ही स्थितियों में भूमि निरस्त की जावे और भूमि के क़ीमत के बराबर का जुर्माना राज्य आयोग अथवा स्थानीय गौचर ट्रस्ट / संगठन आदि को दिया जावे | जो संप्रदाय सार्वजनिक निर्माण विभाग की भूमि, वन भूमि, रेलवे भूमि पर अतिक्रमण करता है और अन्य भूमियों पर भी अपने मज़हब के स्थान बनता है उस संप्रदाय के लोगों द्वारा इतनी बड़ी मात्रा में भूमि वक्फ बोर्ड को कैसे दी जा सकती है | यह एक गंभीर विषय है | प्रस्तुत विषय कठोर विधिक कार्यवाही द्वारा जांच करके गौचर भूमि व उसका जुर्माना प्राप्त करने का अधिकार रखता है | 

विशेष - वक्फ में ईमान व रहम अनिवार्य शब्द है - ऐसा मोहम्मद साहब ने सर्वप्रथम वक़्फ कार्य को व्यव्हार रूप में करके आने वाली नस्लों के लिए आदर्श प्रस्तुत किया | उपरोक्त ईमान - रहम की शब्दावली अत्यधिक समग्र रूप में है | इसमें कुछ भी नाजायज - अन्यों का हक़ - विवादस्पद कार्यो से प्राप्त आय व संपत्ति वक्फ में शामिल नहीं होती, यहाँ तक कि स्वयं की मेहनत से प्राप्त सम्पत्ति भी स्वेच्छा से कल्याणकारी कार्य के लिए ही दान करने पर ही वक्फ की संपत्ति मानी जाती है - अल्लाह की संपत्ति - मजहब का कोष (धनराशि) | इसमें भी चल-अचल संपत्ति ईमान-रहम वालों की ही होनी चाहिए अर्थात सिर्फ - केवल सच्चे मुसलमानों की मेहनत रूप पसीने से कमाई गयी संपत्ति | अब प्रश्न उठता है की वक्फ कार्य का आदर्श प्रस्तुत करने से पूर्व के तमिलनाडु का गांव - शिव मंदिर वक्फ की संपत्ति कैसे हो सकता है | हरियाणा में गुरुद्वारा की संपत्ति वक्फ की कैसे हो सकती है - ये तो पूर्णतः नाजायज श्रेणी में है | इसी प्रकार न्यायपालिका की संपत्ति अन्यों के मंदिर उपासना स्थलों की संपत्ति - सड़क परिवहन विभाग की भूमि - सेना की भूमि - रेलवे की भूमि - सार्वजानिक निर्माण विभाग की भूमि - इनके अतिरिक्त राज्य व केंद्र सरकार से हजारों की संख्या में भूमि विवाद होता - जिससे किसी कारणवश उपयोग हेतु सर्वेक्षण नहीं किया| यदि कार्य प्रोजेक्ट की कार्य योजना होती और भौतिक रूप से सर्वेक्षण भी होता - तो ऐसी स्थिति में वक्फ बोर्ड का सेना - रेलवे की तरह राज्य सरकारों व केंद्र सरकार की हज़ारों संख्या में विवादस्पद सम्पत्तियों का मामला बन जाता | इनके विवाद के सम्बन्ध में केंद्र व राज्य सरकारों के विभागों ने जब वहां सर्वेक्षण कार्य किया और कार्य योजना शुरू करने का समय आया - तो वक्फ बोर्ड आ गया, कि यह सम्पत्तियाँ तो हमारी है | इस प्रकार सेना - रेलवे से लेकर सामान्य विभागों तक विवाद हो गया | वक्फ बोर्ड में लेखा-जोखा सामान्य क्रिया स्वरुप ----- क्योंकि कांग्रेस सरकार की वर्तमान में उच्च स्तर की चौकड़ी व अन्य घटक दल - यह सभी तुष्टिकरण वाले दल - सनातन हिन्दू संस्कृति को भारत में देखना नहीं चाहते, और सनातन संस्कृति को धीरे-धीरे नष्ट करना चाहते है - ऐसा इनके कृत्यों से सिद्ध भी हो चूका है | अब प्रश्न उठता है कि - ऐसा हुआ कैसे ---- इसका उत्तर विश्व का प्रथम आश्चर्य है क्योंकि वक्फ बोर्ड कानून, जिस प्रकार भारत में बनाया गया है वह स्वयं इस्लामिक देशों में भी नाजायज है | दूसरा आश्चर्य यह है कि यह वक्फ अधिनियम विश्व के सभी न्याय सिद्धांतों को "परमाणु कचरे" की तरह दफन करके बनाया गया है | इस प्रकार का अधिनियम पूर्णतः भारतीय विधि व्यवस्था और विश्व स्तर की न्याय व्यवस्था के भी विरुद्ध है - विधि शून्य है - एक अच्छे कल्याण के कार्य को दहशतगर्दी का रूप प्रदान किया गया है | कांग्रेस चौकड़ी व सहयोगी दलों की प्यार भरी चेहती कमेटी और मजहब विशेष की भी सबसे प्यार भरी कमेटी ने, 2006 में वक्फ की सालाना आय 1000 करोड़ स्पष्ट की - उसके बाद तो वक्फ की सम्पातियाँ 10 लाख एकड़ हो गयी | ऐसी स्थिति में वक्फ आय कितनी होनी चाहिए उसका किस कार्य में प्रयोग हुआ, यह भी कठोरत्तम जांच - वसूली - दंड का विषय है | इस प्रकार सनातन पर - हिन्दू धर्म पर - हिन्दुओं पर - भारतवर्ष पर चोट प्रहार के स्थान पर वक्फ के मुलभुत - आधारभूत ढांचे को ही इस अधिनियम द्वारा तोड़ दिया गया (ईमान-रहम रहित बनाकर) | अब प्रश्न उठता है कि कल्याणकारी ईमान-रहम के वक्फ को दहशतगर्दी - कट्टरवाद - बेईमान - अन्य के अधिकारों को छिनना जैसे नाजायज़पूर्ण कार्यों में, क्यों रंगा गया ? चूँकि सम्बन्ध संप्रदाय को हाथ रखते ही, लेखा करते ही असीमित सम्पत्तियाँ प्राप्त करने का अधिकार मिल जाने से इन्होने इस कानून का विरोध क्यों नहीं किया, कि यह इस्लाम के विरूद्ध है - यह मोहम्मद साहब के वक्फ कल्याण का व्यावहारिक आदर्श प्रस्तुत करने के विरुद्ध है | यह शरीयत के विरूद्ध है | यह सम्पूर्ण इस्लाम के निति-नियमों के आधार पर हराम है अर्थात यह इस्लामी निधि नहीं है अर्थात ईमान और रहम से शुन्य होने की स्थिति में "वक्फ संपत्ति" - "अल्लाह की संपत्ति" नहीं रहती है | 2014 में मोदी सरकार के आने से पूर्व और कांग्रेस गठबंधन के सारे नादानों की सरकार जाने से पहले एक ही दिन में उस व्यक्ति ने (संवैधानिक पद न होते हुए भी, कांग्रेस का वह व्यक्ति सम्पूर्ण गठबंधन सरकार का सर्वे-सर्वा बनकर अपने - सभी राष्ट्र विरोधी - राष्ट्र को अस्थिर करने का खेल खेलता रहा | व्यक्ति इसलिए कि - संबंध सरकार के नागरिक अधिनियम के तहत भारतीय विधि व्यवस्था की प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरुप यह पूर्णतः स्पष्तः भारतीय नागरिक नहीं हुआ | अतः इसको व्यक्ति कहना ही उचित ----- भूमिका के बिंदु 18 में भी व्यक्ति शब्द का ही प्रयोग किया गया है | इसका प्रत्यक्ष प्रमाण पिछले वर्षों के संसद सत्र के पूर्व के इनके द्वारा किसी विदेशी संकेत पर देश को बदनाम करने का खेल और इससे पूर्व यह यह कांग्रेस सारे नादानों के गठबंधन में सत्ता में रहते हुए हिन्दू विरोधी कानून - सर्वोच्च सनातन पर्व पर - सर्वोच्च धार्मिक पद पर आसीन की गिरफ्तारी - सनातन के विरुद्ध सभी हिन्दू समुदाय को विभक्त करने की साजिश इत्यादि -- |) 20 हज़ार करोड़ की संपत्ति वक़्फ़ बोर्ड को दे दी ---- लगता है यह संपत्ति भारतवर्ष की न होकर इटली अथवा फ्राँस से आई - इसी प्रकार इसके गठबंधन वाली राज्य सरकारों ने करोड़ो रूपए आर्थिक रूप से प्रदान किये | दूसरी और हिन्दू मंदिरों की स्थिति का स्पष्टीकरण भूमिका के बिंदु संख्या 18 में स्पष्ट है --- ऐसी स्थिति में यह कितना हास्यास्पद है कि ये पंथनिरपेक्षता और संविधान की दुहाई दे रहे है | इतना ही हास्यास्पद तथ्य इस संप्रदाय के मुल्ला-मौलवियों के कथनों से होता है कि वक़्फ़ की संपत्ति अल्लाह की संपत्ति है - हमारे पुरखों की संपत्ति है जबकि शुद्ध रूप से भारतीय विधि व्यवस्था में वक़्फ़ की अवधारणा ही नहीं है, यदि सरकार करती है तो वह 26 जनवरी 1950 के पश्च्यात ईमान और रहम की संपत्ति - इच्छा और खुशी से अर्थात न तो विवाद होना चाहिए और न ही किसी के अधिकार क्षेत्र की होनी चाहिए - का वक़्फ़ में पंजीयन होने वाली ही संपत्ति इस्लाम के अनुसार होती है अर्थात वह अल्लाह की ईमान और रहम के अनुसार ----- | शेष सम्पत्तियों का (500 एकड़ के अतिरिक्त) संप्रदाय के कट्टर मुल्ला-मौलवी स्पष्ट करें सक्षम तंत्र के समक्ष कि शेष सम्पत्तियाँ कहाँ से और कैसे आई | परन्तु आश्चर्य है जब इस दहशतगर्दी व नाजायज को हटाने की बात होती है या राष्ट्र में ऐसा वातावरण तैयार होता है, तो उस समय ये कट्टरवादी व दहशतगर्द लोग चिल्लाने लगते है कि हमारे पुरखों की संपत्ति, हमारे अल्लाह की संपत्ति को कोई छीन नहीं सकता| जबकि वास्तविक वक्फ नियमों के हिसाब से समुदाय विशेष के लोगों द्वारा 26 जनवरी 1950 से अपनी ईमान की और रहम की पट्टाधारी अथवा पंजीयन कार्यालय में पंजीयन की हुई संपत्ति 500 एकड़ भी नहीं होगी - 10 लाख एकड़ की बात तो स्वप्न जैसी है | वक्फ कानून से पहले तीन बातों को समझना जरूरी है - प्रथम जिस संपत्ति को वक्फ के दहशतगर्द अंगुली - हाथ अथवा वक्फ में लेखा करने से वह संपत्ति वक्फ बोर्ड की हो जाती है | द्वितीय में जिस संपत्ति को अन्यों के अधिकार छीन कर प्राप्त करते है - उसे ही सिद्ध करना होगा कि यह संपत्ति (व्यक्तिगत नागरिक - सार्वजानिक संस्थाएं - सरकारी विभाग - राज्य व केंद्र की सरकारें) उसकी है | तृतीय - किसी भी स्थिति में अपनी संपत्ति को प्राप्त करने के लिए कोई भी न्यायपालिका नहीं जा सकता - यह आधुनिक समय का विधि क्षेत्र में विश्व का एक आश्चर्य है | इस प्रकार वक्फ कानून प्रथम तो "पंथनिरपेक्षता" के आधार पर विधि शुन्य है | क्योंकि अन्यों की आस्था-विश्वास के लिए इस प्रकार की कोई विधि व्यवस्था (ऐसा कभी भी नहीं हो सकता, क्योंकि इस प्रकार की विधि व्यवस्था कोई भी देश अपने अधीन उपनिवेश – अधीन क्षेत्र में भी नहीं कर सकता) नहीं है, अतः यह अधिनियम विधि शुन्य है | द्वितीय में इसमें "समानता के मूल अधिकारों" की अन्यों (आस्था-विश्वास और अन्य पंथ - समाज - संप्रदाय इत्यादि को ऐसा कोई भी अधिकार प्राप्त नहीं) के लिए पूर्णतः समाप्ति हो जाती है | अतः वक्फ अधिनियम विधि शुन्य है | तृतीय में - लोकतंत्र का प्रमुख पायदान न्यायपालिका को कानून में निष्क्रिय बनाना - भारतीय संविधान की उद्देशिका के "लोकतंत्र" व "न्याय" शब्द की वक्फ अधिनियम में शून्यता होने से यह स्वतः ही विधि शून्य है | इस प्रकार रेल - सेना - सड़क - परिवहन विभाग इत्यादि की - जो कार्य योजनाएं विवादस्पद हो गयी और उसके कारण जो लोक व्यवस्था का औचित्य समाप्त हो रहा है - इस कारण से भी यह वक्फ अधिनियम विधि शून्य है, क्योंकि लोकव्यवस्था मूल अधिकारों पर भी अभिभावी है - यह तो एक सामान्य तुष्टिकरण रुपी, कांग्रेस चौकड़ी व अन्य घटक दलों और मजहबी कट्टरवादियों द्वारा कुटिल चाल है | अब प्रश्न उठता है कि वक्फ के नाजायज - दहशतगर्दी कार्यों का निष्पादन के लिए प्रथम स्तर पर इस्लाम के नाम पर जितने हत्यारे - लुटेरे भारत में आये - उनके द्वारा दी गयी तमाम संपत्ति सरकार कुर्क करें (इस आधार पर मुल्तान की जामा मस्जिद भी नाजायज है ----- वर्तमान में वह क्षेत्र पाकिस्तान में चला गया, यह भारत का प्रथम वक्फ कार्य माना गया - जो इस्लाम के प्रथम वक्फ कार्य से पूर्णतः विरूद्ध होने के कारण नाजायज श्रेणी में सिद्ध होता है) क्योंकि वह संपत्ति न ही अपने देश से लाये, न ही वह ईमान और रहम का तत्व रखती है | अपितु लूट-पाट के कारण नाजायज सम्पत्तियाँ ही सिद्ध होती है न कि इस्लाम की निधि - अल्लाह की संपत्ति - मजहब की निधि | द्वितीय में विभाजन के समय विशेष संप्रदाय के लोग पाकिस्तान जाते समय - यदि सपने संपत्ति वक्फ को दे गए है, वह भी सरकार कुर्क करे, क्योंकि वह उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं रही | तृतीय में विधि शुन्य इस वक्फ अधिनियम के तहत जिन सम्पत्तियों का लेखा-जोखा वक्फ ने किया उसे भी सरकार तत्काल अधिग्रहण करें | क्योंकि वक्फ बोर्ड केवल - वह सिर्फ एकमात्र 26 जनवरी 1950 से मजहब के अनुयायियों द्वारा ईमान और रहम से प्राप्त की गयी धनराशि देकर पंजीयन संपत्ति है अथवा उनकी विधिक रूप से पट्टाधारी संपत्ति है - इनके अतिरिक्त अन्य समस्त संपत्ति की जांच अनिवार्य है क्योंकि ऐसे अनेक मामले है जहाँ संप्रदाय के लोगों द्वारा अतिक्रमण करने पर (सामाजिक - मजहब - सार्वजानिक) वक्फ द्वारा अपना स्थान बताकर अपनी सम्पति घोषित कर देता है - परिणामस्वरूप विरोध दब जाता है | समता के अधिकारों का न्यायपालिका तत्काल संज्ञान लेती है - उदहारण के लिए हरियाणा की सितारा होटलों द्वारा शराब पिलाने के अधिकार की मांग, जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा संज्ञान लिया गया | ऐसे अनेक अन्य मामले है जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है परन्तु इस वक्फ अधिनियम को विधि शून्य घोषित क्यों नहीं किया गया, क्योंकि मोहम्मद साहब के निर्देशन में इस्लाम का जो प्रथम वक्फ कार्य हुआ, उसमे संपत्ति से आय प्राप्त होना - संपत्ति का ईमान - रहम तत्व युक्त होना - दीन-हीन, लाचार-बेबस, मजहबी भाषा में "फाका परस्त" लोगो के लिए खान-पान व अन्य सहयता करना सिद्ध होता है | ऐसी स्थिति में मस्जिदों का - कब्रिस्तानों का वक्फ संपत्ति में शामिल करना अथवा इसी प्रकार की अन्य सम्पत्तियों को शामिल करना, जिनसे आय प्राप्ति के स्थान पर (इस्लाम निधि - अल्लाह की धनराशि) उस सम्पत्तियों की देख रेख में वक्फ की आय खर्च होती है - अतिक्रमणों के मामले में प्रथम स्तर पर उन सम्पत्तियों के अतिक्रमण पर वक्फ का पैसा खर्च होता है - द्वितीय में सक्षम तंत्रों के निर्देश-आदेश पर उन अतिक्रमणों को हटाने में वक्फ का पैसा खर्च होता है --------- तो ऐसी स्थिति में "फाका परस्त" लोग कहाँ गए? अथवा उनके उपयोग हेतु इस्लाम निधि (धनराशि) नाजायज और दहशतगर्द कार्यों में खर्च होती है - यह एक गंभीर प्रश्न है|  उपरोक्त तथ्यों में केंद्र सरकार - राज्य सरकारें - न्यायपालिका - जांच आयोग कुछ करे या न करे प्रस्तुत विषय का कुछ भी लेना-देना नहीं है | किन्तु प्रस्तुत विषय की सशक्त मांग है - अधिकार है कि एक उच्च स्तरीय जांच आयोग द्वारा 10 लाख एकड़ भूमि की जांच करवा कर - उसमे जो गौचर भूमि है वह जुर्माने सहित - उस भूमि से प्राप्त आय अथवा स्थानीय सरकारी दर से किराये सहित गौवंश से संबंध सक्षम संस्थाओं को सुपुर्द करें |

विशेष - गौचर भूमि पर मंदिर - साधू संतों के स्थान जो गोचर भूमि को संरक्षण करने व विकास करने में सहायक है, के अतिरिक्त किसी भी प्रकार से किसी भी परिस्थितियों में गोचर भूमि का सुई की नोक के बराबर भी नुकसान नहीं होना चाहिए | आदिकाल से राजा - महाराजा गौवंश के भोजन व पोषण हेतु गौचर भूमि का आवंटन स्वयं सिद्ध है | गोचर भूमि से संबंध रखने वाले सभी राजाओं द्वारा किये गए आवंटन स्वयं में विधि है क्योंकि उस समय के राजाओं द्वारा आबादी क्षेत्र में आवंटन की गयी भूमि वर्तमान में भी क़ानूनी हक़ रखती है - यहाँ तक कि राजस्थान के जैसलमेर का विश्व प्रशिद्ध सोनार किले में भी तत्काल समय का आबादी क्षेत्र यथावत रहता है | पुरातत्त्व के आधार पर रक्षण - संरक्षण के लिए उनको अन्य स्थान दिया जा सकता है किन्तु भूमि अन्य उपयोग में नहीं ली जा सकती | और सभी नागरिक वहाँ के मकानों - दुकानों - होटलों पर अपना हक़ रखते है क्योंकि यहाँ के नागरिक और सम्पूर्ण भारत के नागरिकों, जिनको राजाओं से भूमि प्राप्त है - सभी मतदाता है - सभी बोलते भी है | अफ़सोस है कि - किन्तु गौवंश मतदाता भी नहीं है और बोलता भी नहीं है --------- मुख्य -------- कार्यकारी जी ------- | अनेक अभिलेखागारों के अनुसार गौचर भूमि के रिकॉर्ड से ज्ञान व स्पष्टीकरण होता है कि गौचर भूमि के लिए तार बंदी व दीवार भी गौचर भूमि के बाहर होनी चाहिए अर्थात गौचर भूमि में घास के कुछ तिनके भी ख़राब ना हो या वो तार बंदी अथवा दीवार के नीचे ना हो जाये |

पाँच - दस किलो गीला - हरा चारा मुख्य आहार के रूप में अन्य खाद्य के साथ गौवंश के लिए अनिवार्य है - दूर के क्षेत्रों में गोचर भूमि का हरा गीला चारा सूखा कर (धूप - ड्रायर) और कटिंग करके (कुत्तर के रूप में) दूर के स्थानों पर भी प्रेषण किया जा सकता है | हम जिसके अमृतमय पदार्थों का (दूध - दही - घी - गोबर - गौमूत्र - साथ ही इनसे बने सैंकड़ो पदार्थ) अनिवार्य आवश्यकता के रूप में प्रयोग करते है ------ | क्या हम उस गौवंश के प्राकृत भोजन के भाग को नष्ट - भष्ट करते है ? आज दिनांक तक सभी सरकारें मूक बनी हुई है - ऐसी स्थिति में हिन्दू समुदाय के करोड़ों नागरिकों की धार्मिक भावनाओं को आघात लगता है - मन में ग्लानि होती है जो भारतीय संविधान के अनु. 25 (1) के मूल अधिकारों का स्पष्ट हनन है | इसके साथ ही सभी मूल अधिकारों की प्रतिबंधित शब्दावली (लोक व्यवस्था - लोक स्वास्थ्य - सदाचार) के स्पष्ट विरुद्ध है | देखें तथ्य संख्या 9 - 10 - 11 - 12 ----------- |  राष्ट्र के प्रधानकार्यकारी जी -------- 3 करोड़ एकड़ से अधिक गौचर भूमि का -------- आपको ----------- | क्योंकि स्पष्ट रूप से गौवंश के भोजन की अन्य कोई व्यवस्था अथवा अन्य कृषि क्षेत्र में भी गौवंश के भोजन के रूप में कोई भी उत्पादन नहीं होता था | आज दिनांक तक भी वही स्थिति है | अतः गौचर भूमि का कोई मौल नहीं है क्योंकि यह गौवंश की प्राकृत व पोषण युक्त भोजन की व्यवस्था है | अतः सरकार द्वारा अथवा सरकार की लापरवाही से शहरीकरण - औद्योगीकरण और व्यक्तिगत व सामूहिक कब्ज़ा इत्यादि में जितनी भी गौचर भूमि का विनाश हुआ है उससे दो गुनी आस-पास से क्षेत्रो में भूमि का आवंटन गौचर भूमि के लिए किया जाए | इस कार्य में यदि सक्षम तंत्रों द्वारा भ्रष्ट आचरण - संवेदनहीनता प्रकट होती है, तो ऐसी स्थिति में भौतिक रूप में दंड स्वरुप युक्तियुक्त वर्गीकरण - आध्यात्मिक रूप में परिणामों को उपरोक्त तथ्यों से समझ सकते है ----------------|  आबादी क्षेत्र (अतिक्रमण द्वारा) के क्षेत्रफल के आधार पर सम्पूर्ण भारतवर्ष में सरकार को गोचर के लिए अन्य भूमि की व्यवस्था करनी ही होगी | (अति संवेदनशील व राष्ट्र की लोकव्यवस्था और लोकस्वास्थ्य व भविष्य को देखते हुए अनेक तथ्यों में भाषा को दबावपूर्ण रूप से कुछ अंश में पुनः प्रकट किया गया है) 

21.9- एक आदर्श गोशाला का “मॉडल’’ (गौ शालाओं की स्थिति और क्षेत्रवार के अनुसार) तैयार किया जावे, 500-1000-2000-5000  (आयोग व ट्रस्ट स्थति अनुसार 2000-5000 गोवंश के लिए भूमि प्राप्त करें आरम्भ में 500-500 गोवंश का भवन बनावे - फिर आवश्यकतानुसार बढ़ाते जावें।)  जिसमें छत एवं नीचे गोवंश के स्थान पर पानी निकासी की उत्तम व्यवस्था हो - जिसे भवन व गोवंश दोनों सुरक्षित रहे। धूप-छांव दोनों की व्यवस्था हो - पेड़ आवश्यकतानुसार अनिवार्य रूप से हो ।  नई व्यवस्था के लिए भूमि जिले - तहसील - पंचायत -   गांवों  के मध्य आसानी से मिल सकती है। विस्तारीकरण हेतु (पुरानी गोशालाएं ) - गोबर गोमूत्र उपयोग - हरे चारे इत्यादि के लिए आसपास खाली भूमि भी प्राप्त करें। पुरानी गोशालाओं के विस्तारीकरण में भी इन तथ्यों को ध्यान में रखा जाये। नई गौशाला का भूमि चयन एवं विस्तार हेतु  (आयोग द्वारा चयन करने पर ) भूमि के दस्तावेज स्थानीय प्राधिकारी शीघ्र ही आयोग के नाम नामांकित करके आयोग को प्रेषित करे।  नई गोशालाओं का निर्माण व पुरानी का विस्तारीकरण शतभिषा नक्षत्र व उत्तम योग में शुरू किया जायें- साथ ही अच्छे पर्व के शुभ योग में निम्न मंत्र  किसी धातु के कटोरे में अन्दर लिख कर गोशाला में लटका दें ।

अर्जुनः फाल्गुनो विष्णुः किरीटी श्वेतवाहनः।
वीभत्सुर्विजय पार्थः सव्यसाची धनन्जयः।।
कपिध्वजों गुडाकेशो गाण्डीवी कृष्णसारिथिः।
एतान्यर्जुनमामी गहाँगोष्ठेषु यो लिखेतः।।
गोवस्तस्य न सीदन्ति परचक्रभयंनहिं।

इस प्रकार गोशालाओं व गोवंश दोनो का संवर्धन होगा। हम गोशालाओं में रोगग्रस्त - अपंग गोवंश की कल्पना ही क्यों करें - अपितु हम दुध, खाद, कीटनियत्रंक के उपकेंन्द्रो की धारणा करें। गोशालाओं का  कारागृह से संबंध करना भी उत्तम होगा जो राष्ट्र  के सुधारगृह नागरिकों के लिए अमूल्य है (इस कार्य में कुछ श्रेणी के अपराधिगण को छोड़कर)। 

गौ-वंश को खुजलाने के लिये दीवारों पर रबड़ के नुकीली चटाई की व्यवस्था हो अथवा अन्य कोई साधन जो विशेषज्ञ उचित समझे और घिसने पर बदलने की भी व्यवस्था हो । गौ-वंश में श्वांस पीड़ितों हेतु गौ-शालाऔं में दीवारों के पास 9 इंच ऊँचाई – 18 इंच चौड़ाई -12 इंच लम्बाई की 4-5 फुट की दूरी पर उचित स्थान परचैकियां बनाई जाय - साथ ही 10-10 गौ-वंश के बैठने हेतु धरातल से एक 12 इंच-18 इंच तक की ऊँचाई तक का मिट्टी इत्यादि का टैपर बनाया जाय, जिससे गौवंश आगे के पैरों से खड़ा हो सके और बैठना चाहे तो आगे के पैरों से ऊँचाई की और बैठ सकता है ताकि उन्हें श्वांस की तकलीफ से अत्यधिक आराम की प्राप्ति होगौ-शालाऔं में उत्तर दिशा की और दीवारों में 4 से 6 फुट के एंगल लगाये जायें - ताकि सर्दियों में वहां तिरपाल लगा कर सर्दी से गौ-वंश का बचाव हो सके (सर्दी के मौसम में यह अति आवश्यक है अथवा कोई टिन शैड हो तो उत्तर की दिशा पूर्णतः कवर होनी चाहिये) | अन्य दिशा पूर्व-पश्चिम में भी इस प्रकार होने पर गौवंश की धूप से रक्षा हो सकती है - सुबह के समय पूर्व की तरफ तिरपाल हो सकता है और दोपहर के बाद पश्चिम की तरफ तिरपाल हो सकता है। कमर और सिर के ऊपर व गर्दन के नीचे खुजलाने से हाथ फेरने से सूर्यकेतु नाड़ी और चन्द्रनाड़ी से अथाह ऊर्जा स्त्रोत प्राप्त होता है जो मानसिक अवसाद में लाभदायक है। यह व्यवस्था 84 लाख यौनियों में केवल गौवंश में ही होती है साथ ही सूर्याेदय के समय सर्वप्रथम ऊर्जा स्त्रोतों का भण्डार यही होता है।

नई गौ-शालाऔं के लिये प्रत्येक जिले-तहसील-पंचायत के मध्य खाली भूमि उपलब्घ करायें और गोबर गैस संयत्र और खाद बनाने के लिये व हरा चारा उगाने के लिये भी इनको भूमि उपलब्ध कराने का आयोग को अधिकार दें। ये गो-शालाऔं के आस-पास 5-10 कि.मी. में भी हो अथवा बंजड़ (गौशालाऐं जमीन को नम करके वहां गोबर गौ-मूत्र अथवा स्लेरी खाद गीली करके उसको उपजाऊ बना सकते है) हो तो उसको उपयोग हेतु गौशालाऐं तैयार कर सकती है और उपयोग ले सकती है।

21.10- सरकार व आयोग दक्षिण भारतीय सहकारी संस्थाओं, डायनामिक्स, अमूल व अन्य सहकारी और निज़ी दुग्ध संस्थानों को प्रोत्साहन देवें। इसी स्तर के और संस्थान खोले जावें। इनके द्वारा अपने गौ-पालकों को दूध, गोबर, गौ-मूत्र के उत्पादों हेतु अभिप्रेण करने के साथ गौवंश के रख-रखाव व उपचार और नस्ल सुधार के मानकों के लिए पेपर लेखन - भौतिक प्रशिक्षण – दिशा-निर्देश और अन्य उपायों द्वारा उनमे जागृति और अभिप्रेरण दिया जाता है । अतः सरकार इस प्रकार की संस्थाओं को बढ़ावा देने की प्रक्रिया करें ।

21.11- ऑक्सीटोसिन पर कठोरतम कार्यवाही- जुर्माना व सजा दोनों, क्योंकि यह अप्रत्यक्ष गोहत्या के साथ दूध उपयोग लेने वालों की भी अप्रत्यक्ष हत्या है । साथ ही गोवंश को गोशाला मे स्थानान्तरित करें और भविष्य के लिये आयोग अनुज्ञापत्र निरस्त करें। क्योंकि संबंध अधिनियम कि धारा 27 बी -2 और 28 अपराध कि तुलना में शून्य है। यह किशोर युवतियों के सदाचार के हनन से सुरक्षा का भी शरीर की रासायनिक क्रियाओं द्वारा मुख्य सुरक्षा है | 

21.12- आयोग एवं कृषि व पशुपालन मंत्रालय की आपसी सहमति से गोवंश की रक्षा-रखरखाव-उपचार-संवर्धन व विषाक्त कृषि मुक्त राष्ट्र के हेतु एक विस्तृत नीति बनायीं जाये- अथवा आयोग की नियुक्ति करें । पाँच एकड़ से कम कृषि भूमि का विभाजन नहीं अर्थात नौ एकड़ - नौ एकड़ ही रहेगी --- | सेना व लोक व्यवस्था के अतिरिक्त अन्य कार्यों के लिए कृषि भूमि का किसी भी प्रकार से रूपांतरण  के लिए विक्रय नहीं होगा अर्थात कृषि भूमि पर कृषि ही होगी | उपरोक्त के अतिरिक्त (क) सभी राजमार्गो पर जो गाँवों - कस्बों में निकलते है और रात्रि में गौवंश विचरण करता है, उन क्षेत्रों में गौवंश के सींग या गले में रस्सी - लोहे की चैन पर लाल रेडियम लगाकर पहनावे - ऐसा गौपालकों के लिए अनिवार्य करें | (ख) सरकार उस क्षेत्रों में मार्गों के दोनों तरफ पचास - सौ मीटर की दूरी पर तीन से पांच कोलतार या कंक्रीट के स्पीड ब्रेकर लगवाएं क्योंकि प्लास्टिक के खोल दिए जाते है (हवाई पट्टी के मार्गों को छोड़ कर) | (ग) ऐसे सभी क्षेत्रों पर सी. सी. टी. वी. कैमरे लगवाए जावें ताकि दुर्घटना की स्थिति में प्रभावी विधिक कार्यवाही हो सके | (घ) मृतक गौवंश को ले जाने की स्थिति में चिकित्सक की पर्ची अनिवार्य हो अर्थात मृतक गौवंश का उपचार हुआ अथवा नहीं - दुर्घटना से मृत्यु हुई - आकस्मिक मृत्यु इत्यादि की सभी जानकारियां प्राप्त हो सकती है | ऐसी स्थिति में त्रुटि होने पर गौपालकों पर विधिक कार्यवाही भी प्रभावी ढंग से हो सकती है | ऐसा भय अनिवार्य भी है | (ड़) उपरोक्त विषय में चोरी की भी एक प्रमुख समस्या है इसको पुलिस प्रशासन द्वारा नकारा जाता है जबकि इसमें गौपालकों की आजीविका का पूर्णतः संबंध रहता है | अतः इस संबंध में कठोर विधि व्यवस्था के साथ व्यक्तिगत जिम्मेदारी सुनिश्चित की जावे | जिसका स्पष्टीकरण आगे के तथ्यों में विशेष तौर पर किया गया है | 

विशेष- इस प्रकार तथ्य संख्या 12 तक विधि व्यवस्था को सुनिश्चित रूप से कठोरतापूर्ण प्रभावी बनावें । शेष तथ्यों की जानकारी तथ्य 13 से प्रस्तुत है जिस पर अन्तिम निर्णय सक्षम तंत्र - विशेषज्ञों की कमेटी द्वारा अपेक्षित है। साथ ही मृतक गौवंश ले जाने के समय पर गौवंश रखने वालों को उसपर एक सफ़ेद चद्दर रखनी चाहिए | 

21.13- दूध का व्यापार करने वाले गोपालक इत्यादि के विरूद्ध, ऑक्सीटोसिन के प्रयोग  रख-रखाव-खानपान-उपचार इत्यादि के संबंध में आयोग को शिकायत मिलने पर, आयोग स्थानीय प्राधिकारी से व अपने सदस्यों से जांच करवाये-तथ्य सही होने पर गोवंश को गोशाला में स्थानांतरित करे भविष्य के लिए अनुज्ञापत्र भी निरस्त करें।  गोशाला की कोई भी शिकायत होने पर आयोग स्वयं उसमें सुधार हेतु तत्काल कार्यवाही करें। इसमें कोई भी व्यक्ति अथवा गोभक्त शिकायत कर सकता है।

21.14- तीन माह के बाद बछिया-बछड़े आदि का सभी रोग प्रतिरोधक रोगों के टीकाकरण किये जायें। साथ ही प्रत्येक गोशाला के पूरे क्षेत्र में पत्थर-ईट इत्यादि के टुकडे न हो, क्योंकि खेल कुद अथवा झगडे में उस पर गिरने पर पसली टुटने कि पुरी आशंका रहती है। 50-100 नंदी में से 2-3 ही झगड़ा करतें है उन्हे अन्य परिसर या गौशाला भेज सकतें है और आगे कि तरफ सीधे नुकीले सींग होने पर चिकित्सक से ठीक करवावें-जिससे अन्य गोवंश या कर्मचारी घायल न हों ।

किसी भी स्थिति में गौवंश का स्थान परिवर्तन अथवा पकड़ने हेतु शक्तिपूर्ण तरीके से पूंछ को नहीं पकड़ना चाहिये क्योंकि यह अप्रत्यक्ष गौवंश की हत्या है (शक्तिपूर्ण तरीके से पूंछ टूट जाती है अथवा उसमें आंतरिक रूप से नर्वस कार्यप्रणाली नष्ट होने का खतरा रहता है। इसी प्रकार गौवंश को सींग से रस्सी बांधकर न रखा जाये | इससे गौवंश को प्राकृतिक रूप से अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है | यदि आवश्यकता है तो चिकित्सक - विशेषज्ञ की जानकारी प्राप्त करनी चाहिए | ) नंदी के आपस में झगडा करने पर डंडे़-राड़ आदि से छुड़ाना मूर्खतापूर्ण एवं अव्यवहारिक है। घुटने के स्थान घायल हो जाते है सींग अथवा अन्य हड्डी टूट जाते है अथवा गंभीर चोंटें आती है जिससे वे चलने-फिरने मे लाचार हो जाता है। शरीर व आंतरिक व भारी चोट के अतिरिक्त कुछ भी परिणाम नहीं होता क्योंकि उस समय उनका शरीर वेग- शक्ति और गर्मी से युक्त होता है विशेषज्ञों की कमेटी इसका समाधान अवश्य करें । जैसे:- अग्नि-गन इत्यादि |

21.15- गोवंश में उत्पादन वृद्धि-रोगों की न्युनता विशेषकर ‘‘अंधापन’’ रोकने हेतु आंतरिक व बाहरी परजीवी नाशक उपचार व ‘‘विटामिन ए’’ की पूर्ति वर्ष में दो बार- 30 अप्रेल व 30 नवम्बर तक सुनिश्चित की जावे। कुछ वर्ष पूर्व वाद संख्या (2003/241) द्वारा उच्च न्यायालय में वाद दायर कर-लगभग 10 करोड़ 13 लाख़ 64 हज़ार 30 के उपरोक्त तीनों उपचार राज्य में करवाये - जो इन उपचारों की महत्ता को सिद्ध करते है। यह सब राम जी की कृपा से ही हुआ | सम्पूर्ण प्रस्तुत विषय भी राम जी की अपार कृपा का परिणाम है अन्य कुछ भी नहीं --------- | आश्चर्य है कि पूर्व के दो वर्षों में भौतिक सत्यापन व व्यहवारिक उपचार 30% भी नहीं रहा, परन्तु धन राशि में विशेष अंतर नहीं -  क्योंकि राजनैतिक व मीडिया जगत के लिए गौवंश मतदाता नहीं है --- | इन तीनों उपचारों से गोवंश शायद ही रोगग्रसित हो। दूध देने वाली गौ माता व प्रजनन करने वाले नंदी को ‘‘विटामिन ए’’ आजीवन अनिवार्य है साथ ही गोमाता को फास्फोरस व कैलशियम कि पूर्ति भी अनिवार्य है (उठने-बैठने में लाचार गौवंश को बूँद-बूँद कैल्शियम लगाना अति लाभप्रद है)। क्योंकि इससे शरीर बहार नहीं निकलता। स्पष्ट है कि गौमाता दूध में सभी कुछ निकाल देती है। अतः पूर्ति करना अनिवार्य है। अन्य गोवंश को ‘‘विटामिन ए’’ कि पूर्ति बचपन में 2-3 बार और 18-20 वर्ष कि आयु में 2-3 बार अवश्य करें। किन्तु आन्तरिक परजीवी नाशक और बाहरी परजीवी नाशक उपचार सभी गोवंश को वर्ष में दो बार अनिवार्य है अन्यथा स्वास्थय और उत्पादन में गिरावट साथ ही गोबर - गोमूत्र की गुणवत्ता में गिरावट व दवा ख़र्च की अधिकता - क्योकि यह सभी अति महतवपूर्ण है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण भी प्रस्तुत किया जा रहा है -------------- | गौवंश को प्रातःकालीन  गुड़ आंतरिक परजीवी नाशक और बाहरी परजीवी नाशक चाटे-बाटे-आटे में बोलस अथवा टेबलेट देने के लिए आधा घंटा पूर्व ही उपयोगी होता है | इसके अतिरिक्त सुबह के समय गुड़ चाटे-बाटे के साथ ही दे सकते है (गर्भाधान के बाद) | अन्य शेष परिस्थितियों में दोपहर के बाद अथवा रात्रि में गुड़ देना सर्वोत्तम है | 

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विशेष - उपरोक्त प्रस्तुति का उद्देश्य उपचारों की अनिवार्यता व महत्व और गौवंश - गौपालकों की सुरक्षा सिद्ध करना ही है | 

21.16- गौशाला के सभी कर्मचारीयों को रोगों कि आधारभूत जानकारी दी जावे - जिससे समय पर ही प्राथमिक उपचार हो। जैसे:- खान-पान में अनिच्छा-सुस्ती-अकेले में बैठना-जुगाली न करना - गोबर-गोमुत्र का अनियमित या असामान्य करना-श्वास की गति-नाड़ी व तापमान इत्यादि । उदाहरण के लिए तेज रक्त प्रवाह होने पर चिकित्सक आने तक दो तीन बार हल्दी दाबना-पट्टी बाधंना और दर्द निवारक गोली के टुकडे कर के चाटे - आटे इत्यादि में खिलाना - रक्त प्रवाह रोकने का टीका देना आदि । गोमाता का शरीर बाहर निकलने पर अन्य उपायों के स्थान पर मूत्र द्वार पर गोल कपड़े के साथ रस्सी बाँधने का उपाय सर्वोत्तम है - ऐसी स्थिति में शरीर जब तक मूत्रद्वार के पास (विशेषकर बैठने की स्थिति में) रहता है - हाथ से शरीर अंदर दबाकर मूत्र निकालने की क्रिया करें। अन्यथा गोवंश को भयावह कष्ट  होता है।  उपरोक्त के अतिरिक्त विषेश रूप से आफरा - रक्तआघात - मानसिक आघात तत्काल मुत्यु का कारण बन सकतें है, अतः इनकी प्रभावी दवा गोशाला में रखी जावें और साथ ही चिकित्सक आने तक कर्मचारी उनका प्रयोग करें - इनके लिये कर्मचारीयों को प्रशिक्षण भी दिया जावें । इनके अतिरिक्त गोवंश के दो भयावह संकट है - खुरपका मुंहपका (FMD) व पॉलिथीन - इनके  उपचार में नागपुर क्षेत्र के वर्धा इत्यादि स्थानों पर खुरेन  होमियो  दवा (FMD) से कुछ उपचार होता है। और पॉलिथीन का बंगलोर की संस्थाएं तमिलनाडु की खान से सूजीकल नामक पदार्थ से से कुछ उपचार किया है। अतः उपरोक्त सभी उपायों के निरिक्षण का व सुझावों का विशेषज्ञ व आयोग के सदस्य विशेष ध्यान देवें जिससे विधि-व्यवस्था प्रभावी हो सके । अथवा अन्य विज्ञान-सम्मत उपचारों की समय पर सुनिश्चित व्यवस्था करें | बोटुलिज़्म रोग के लक्षण व उपचार पर भी विशेष ध्यान - मृत्यु के पश्चात भी संक्रमण कर सकता है |

21.17- सभी गोवंश को सेंधा नमक और मौसम के अनुसार एफ़-एम-डी का टीकाकरण अवश्य किया जाये | जिससे खान-पान व शारीरिक क्रिया (खान-पान, उठना-बैठना) सुचारू रूप से रहे और अखाध्य पदार्थ न खायें साथ ही इससे अनेक रोगों से मुक्ति मिलती है। इस प्रकार उपरोक्त आधारभूत उपचार-सावधानी से होने पर दुध के साथ गोबर-गौमुत्र भी स्वाभाविक गुणों से युक्त प्राप्त हो सकते है। अन्यथा गोबर दस्त के रूप में अनुपयोगी प्राप्त होता है । उपरोक्त (4-5) उपचारों से उपचारित 4-5 गोवंश के मात्र गोबर से एक लाख से अधिक की आमदनी कुछ केंन्द्र कर रहे है। अन्तिम निर्णय तथ्य संख्या 13 से विशेषज्ञो की कमेटी- आयोग पर ही निर्भर है - जो तथ्य संख्या 1 के अधिनियमों दिशा-निर्देशों के नियमों में स्थान प्राप्त कर सकें (इनकी पालना भी व्यक्तिगत दायित्व पर सुनिश्चित करें)।

21.18- राष्ट्र के सभी राज्यों में गोवंश की स्थिति के अनुसार जिला एवं तहसील स्तर पर एक या एक से अधिक रोग उपचार वाहन की व्यवस्था हो अथवा क्षेत्रीय चिकित्सक आपात स्थिति में निर्धारित शुल्क पर स्थान विशेष पर पहुंच कर उपचार करेगा - आवश्यक स्थिति में फोन द्वारा परामर्श प्रदान करेगा, जिसकी अधिनियम में सुनिश्चत  व्यवस्था होनी चाहिए । जो गम्भीर स्थिति, उठने-बैठने, चलने-फिरने में असर्मथ बड़े पशुओं कि तरह जैसे अश्व, भैस, ऊँट इत्यादि कि तरह गौवंश भी लाने- लेजाने में और अधिक गंम्भीर स्थति को प्राप्त होते है । अतः खेतों व ढ़ाणियों - दुर के स्थानों पर उपचार समय रहते स्थान पर ही हो सके । साथ ही आस-पास के गोपालको का निरीक्षण कार्य भी करें । जिसमें आखँ, बाल व कमर की हड्डी के उभार व धनुषाकार को प्राथमिकता से निरीक्षण करें - क्योंकि ये सभी व्यवस्थाओं का नकारात्मक परिणाम है। अति कमजोर, उठने-बैठने में असमर्थ गौ-वंश में बूंद-बूंद कैल्शियम चढ़ानें व शरीर को दायें-बांयें करना - पैरों को थप-थपाना-पैरों को ऊपर-नीचे करना, हाथ फेरना, अति प्रभावी उपचार है। आवश्यकता अनुसार परजीवी नाशक उपचार देना और सर्दी में हल्का गर्म पानी (गुड़ का), गर्मी में सामान्य पानी (गुड़ का) पिलाना भी अति प्रभावी है |

21.19- गौवंश के पानी पीने के टैंक में, गोशालाओं एवं डेरी संस्थानों इत्यादि में, अन्दर से सफेद टाईल्स या सफ़ेद सीमेंट के साथ पत्थर के दाने मिला कर प्लास्टर करें (इससे कचरा-गन्दगी का स्पष्ट ज्ञान हो सकता है) | अथवा महिनें में दो बार चूने कि पुताई करें- जिससे पानी की शुद्धता स्पष्ट रहें। साथ ही चारे में मिट्टी न हो इसकी  सुनिश्चित व्यवस्था हो । क्योंकि ये रोगों के निमंत्रण है । चारे की सफाई - चारा मशीन से की जावे  और साथ ही विक्रेता और निर्माणकर्ता खाद्य सामग्री हेतु मेटल मशीन का उपयोग करें – कील-पत्थर इत्यादि  आने से ये गोवंश की मृत्यु का कारण बन जातें है । इसपर विशेषज्ञ विशेष ध्यान दें | साथ ही चारे के गोदाम 3 फुट से अधिक गहराई के ना हो व दरवाज़े के आगे 1 फुट की दिवार होनी चाहिए - नई गौशालाओं में चारें के गोदाम धरातल से 1 फुट ऊपर रहने चाहिए व दरवाज़ों के आगे 1 फुट की दिवार - जिससे चारा गौवंश के लिए सीलन भरा व अनुचित गंध वाला ना हो - क्योंकि मौसम व वर्षा के कारण ऐसा अनिवार्य रूप से होता है | इसमें गौवंश का शारीरिक व धन का अपव्यय होता है | पानी पीने की कुण्डी गौवंश के धरातल से कुण्डी का धरातल 6 से 8 इंच ऊपर होना चाहिए - जिससे कम पानी की स्थिति में गौवंश आसानी से पानी पी सकता है | साथ ही गौवंश स्वयं पानी को गन्दा न करें, इसके लिए 2 या 3 फुट की उचाई पर लोहे का पाइप होना चाहिए | यह कार्य बड़े गौवंश व छोटे गौवंश दोनों के लिए अनिवार्य है | छोटे गौवंश के पानी पीने की कुण्डी लगभग 4 फुट चौड़ी या चौरस होनी चाहिए - ताकि बछड़े गिरने की स्थिति में आराम से पुनः निकल सके - सकड़ी होने की स्थिति में कमर के बल गिरने पर पुनः न निकल पाने से पानी में ही वे काल  के ग्रास हो जाते है | ऐसे हादसे होते है | विशेषज्ञ इसपर पूर्ण संवेदना के साथ ध्यान दें |

21.20- प्रत्येक पंचायत स्तर पर भी एक चिकित्सक व एक सहायक चिकित्सक की नियुक्ति अनिवार्य रूप से हो, जिससे उस क्षेत्र में उपचार बाधित न हो। साथ ही गोशाला के चिकित्सा कक्ष में 1-1 मीटर रेगजीन के 15-20 टुकडे़ होने चाहिए - जो गंभीर गोवंश के सिर व मुख के नीचे लगाये जा सके (टाट-बारदाना की स्थिति में धुलाई अनिवार्य है), ताकि उन के नीचे कि आँख व श्वास में मीट्टी इत्यादि न जाये और उन कि आँखें-मुख को फिटकरी पानी या सादा पानी से किसी भी कागज अथवा कपड़े  द्वारा दोनो समय साफ करें । मक्खी-मच्चर से बचाव हेतु ऊपर के हिस्से में अत्यंत पतला सूती वस्त्र रख सकते है |

21.21- प्रत्येक चिकित्सक अपने क्षेत्र की गोशाला का सात दिन में एक बार निरीक्षण करेगा और आपात स्थिति में बुलाने पर तत्काल पहुँच कर उपचार करेगा (यदि गौशाला बड़ी है तो सरकार स्थायी रूप से एक चिकित्सक व सहायक चिकित्सक की नियुक्ति करें) । क्योंकि निजी डेरी - गोपालकों के यहाँ उपचार की तुलना में गोशालाओं में भयमुक्त - घोरत्तम - प्रमाद - लापरवाही होती है। साथ ही प्लास्टर बाँधने की स्थिति में दोनों किनारों पर जख़्म होना - कुछ स्थिति में लोहे के भारी (40-50 किलो तक) रॉड इत्यादि बांधना - लाल दवा (पी. पी.) को गहरे जख्मों पर गाढ़ा लेपन करने से ऊपर से सूखा, किन्तु अंदर जख़्म में संक्रमण फैलता जाता है - जबकि पी पी का उपयोग पतले पानी के रूप में जख्म की सफाई अथवा मामूली जख्म पर ही इसका उपयोग होना चाहिए।  यही स्थिति आफरा में है | अतः इस सम्बन्ध में रोग विशेष का दिशा-निर्देश व प्रभावी प्रशिक्षण अनिवार्य है। साथ ही उपचार हेतु  लकड़ी का चौखट (ट्रेविस) गोवंश कि संख्या के आधार पर अनिवार्य रूप से हो । शल्य क्रिया के साधनों की सुनिश्चित व्यवस्था (चेतना शून्य करने की मात्रा व औज़ार) विशेषज्ञों द्वारा सुनिश्चित रूप से विज्ञान सम्मत होना चाहिए | चेतना शून्य अधिक मात्रा में होने से कई बार गौवंश का उठना-बैठना बंद हो जाता है अथवा कुछ समय में काल ग्रसित हो जाते है | इसी प्रकार हाथ - पैर की शल्य क्रिया में वाहनों के तारों से रगड़ के काटना पाषाण युग है | विधि व्यवस्था में कठोरता अपनाई जावें | 

21.22- चिकित्सक परामर्श से विशेष प्रकार का घोल रखें । जो गोवंश के मुख आँख व थनों पर बैठने वाले मक्खी मच्छरों को हटाने के लिए आवश्यक है-क्योंकि उनके कारण आँखों व थनों के रोगों कि संभावना व निद्रा में परेशानी बनी रहती है । जो आसानी से स्प्रे किया जा सकता है।

21.23- प्रत्येक गौशाला में पानी-बिजली कि आवश्यकतानुसार तत्काल निःशुल्क व्यवस्था हों| क्योंकि कृषि-गौपालन स्वतः ही एक दूसरे के पूरक है- 70 से 75 प्रतिशत आबादी का रोजगार और राष्ट्र के अर्थतंत्र का आधारभूत ढांचा भी है। कोई भी राष्ट्र-देश रोजगार के नाम पर सभी को सरकारी नौकरियां नहीं दे सकता यह तथ्य अति-महत्वपूर्ण है कि सरकारी नौकरी सरकार चलाने के लिये होती है। पूरा देश सरकार नहीं चला सकता न चलाया जा सकता है न ही व्यवहारिक है ऐसी स्थिति में - अन्य क्षेत्र शून्ये हो जाते है, मांग-लोच का महत्व नहीं रहता। सम्पूर्ण विश्व में आबादी के आधार पर 1.75 से 2.15 प्रतिशत तक ही सरकारी नौकरी हो सकती है - शेष रोजगार राष्ट्र अपनी विशिष्टता के आधार पर पैदा करता है और भारत की विशिष्टता आदिकाल से कृषि और गौपालन ही है जिसकी मांग अनिवार्य रूप से नित्य प्रतिदिन है और इसमें रोजगार श्रृंखला असीमित है साथ ही विदेशी मुद्रा की बचत व प्राप्ति भी।

21.24- प्रत्येक गौशाला के पास 300-500 मीटर तक रेलवे स्टेशन-बस स्टैंड - एयर पोर्ट - आतिशबाजी-तेज शोरगुल व टावर आदि न हों - गोशाला के बाहर दोनों किनारों पर 200 मीटर तक ऐसी सूचना होनी चाहिए "गोशाला क्षेत्र है, शांत रहें , शोरगुल , आतिशबाज़ी , वाहन भोंपू करने पर आर्थिक दंड व कानूनी कार्यवाही होगी "। जिससे रात्री को 10 से सुबह 5 बजे तक, दिन में 12 से 4 बजे तक गौशाला में शांति रहे और गोवंश अपनी निद्रा व आराम को पूर्ण कर सके और साथ ही आराम का गौशाला कर्मचारी भी ध्यान रखें, क्योंकि गोवंश का निद्रा व आराम का समय भी होता है। आराम (निद्रा) में विघ्न न हों-इस कारण पूर्व में प्रधानमंत्री को भी गौशाला का निरीक्षण करने से मना किया गया और प्रधानमंत्री ने इसे सहज रूप से मान लिया।

21.25- नस्ल सुधार के लिये सुधार केन्द्रों पर नंदी के 1,2,3,4 इत्यादि नम्बर लगाये जावें और जिला-तहसील-पंचायत स्तर पर चिकित्सालयों में सीमन प्रेषित करने वाले एलएन-2 जार पर 1,2,3,4 नम्बर भी अंकित करें, ताकि जिस नम्बर से गाय का गर्माधान किया गया है- तो दूसरे किसी नम्बर से उसकी बछिया का गर्भाधान करें - क्योंकि गोवशं में गौत्र व्यवस्था प्राकृत रूप से लागु होती है । ऐसी स्थिति में तीसरी-चौथी पीढ़ी की बछिया का दूध 20 से 30 किलो तक हो सकता है क्योंकि गो-माता में ऐसी क्षमता होती है और चैथी पीढ़ी का बछड़ा उत्तम नस्ल का होने से 4-5 वर्षो के बाद गौशालाओं एवं गौ-पालकों के पास उत्तम नस्ल के नंदी होने पर कृत्रिम प्रजनन को समाप्त किया जायें- क्योंकि यह अधिक समय के लिये उचित भी नहीं है। कुछ राज्यों में कुछ नस्लें दूध के स्थान पर  उत्त्तम नस्ल के शक्तिशाली नंदी -जो माल ढ़ोने में व खेती कार्याे में अति उत्तम है, उनकी विशेषज्ञों की राय अनुसार कार्य योजना बनावें। जैसे-राजस्थान में नागौरी नस्ल। इस प्रकार मालवाहक व खेती कार्यों में उन्ही 5-7 नस्लों के नंदी का उपयोग किया जावे जो इस में सक्षम है अन्य नस्लों को इस कार्य के लिए प्रतिबंध किया जावे, इसके साथ ही विधिक व्यवस्था द्वारा यह सुनिश्चित किया जाए - नंदी से बैल (नंदी) बनाने के लिए उम्र - वजन - नस्ल का प्रमाण पत्र, साथ ही शल्य क्रिया के लिए अनुज्ञा पत्र भी अनिवार्य रूप से होने चाहिए, जिनको सक्षम तंत्र को प्रेषित करना भी अनिवार्य हो क्योंकि अधिकतर स्थानों पर बलात् पूर्वक छोटे बछड़ो को उठा कर ले जाना और उनको बैल (नंदी) बनाना सामान्य बात है | अतः ऐसे समुह और स्थान की जाँच के लिए पुलिस को निर्देश करें और सामान्य नागरिकों को जाँच कराने का अधिकार प्रदान करें | उपरोक्त तीन कार्यो के अतिरिक्त नंदी जो गोशालाओं में रहेंगे उनके समय अनुसार कृत्रिम प्रजनन (AV) का उपयोग होना चाहिए ताकि हिंसकता (क्रूरता - गौवंश में हिंसकता की विचारधारा) न हो। 

21.26- राष्ट्र में 30 नस्लों में 25-26 उत्तम नस्लें है जिसमें उत्तम नंदी के लिए 14-15 नस्लें ही शेष  है जिसमें कुछ अपनी जलवायु में ही अपने गुणों के साथ रह सकती है और कुछ नस्लें अन्य जलवायु में भी अपने गुणों के साथ रह सकती है- विशेषज्ञों कि राय से ऐसी नस्लों के उत्तम नंदी असम - बंगाल - बिहार - उड़ीसा - केरल राज्यों में कृत्रिम प्रजनन केन्द्रों में रखें जाए - क्योंकि इन राज्यों में नस्ल नाम मात्र ही है। इन राज्यों में प्राथमिकता के साथ व अन्य राज्यों में भी उत्तम नंदी के प्रजनन केन्द्र खोले जावे- साथ ही गोशालाओं में भी उत्तम नंदी चिकत्सक की देख रेख नियंत्रण में तैयार करें ।

21.27- गोशाला में कार्य करने वाले कर्मचारी-लेखाकार-प्रबंधक आदि को "राज्यों" के आधार पर कर्मचारियों को चतुर्थ श्रेणी व तृतीय श्रेणी का वेतनमान दिया जावे और वर्ष में दो बार बोनस दिया जाये - साथ ही सुरक्षा जूते - सुरक्षा टोप तथा चारे के कार्यों में विशेष रूप से मास्क अनिवार्य रूप से होना चाहिए - साथ ही वहां स्थाई रूप से रहने वालों के लिये आवास-शौचालयों आदि की पूर्ण व्यवस्था हो और ट्रस्टीगण  बहुमत से नियुक्ति कर सकते है क्योंकि कार्य इनको ही करवाना है (गोवंश की संख्या के आधार पर नियुक्ति करें) । गोवंश की देख - रेख, रख - रखाव सूचना इत्यादि सभी कुछ इन पर निर्भर है अतः घनात्मक अभिप्रेरण अनिवार्य है। क्योंकि कर्मचारियों के अभाव - लगन में  कमी के कारण मानव व कृषि के लिए अमृत का वरदान स्वप्न मात्र है।  इस अभिप्रेरण के बगैर गोबर - गोमूत्र - दूध व दूध से बने सैंकड़ों पदार्थों व गोशाला की व्यवस्था गोवंश का हित औचित्य से च्युत हो जाएगा। गोशाला की स्थिति अनुसार भविष्य में भी आयोग द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान की जायें। वेतनमान निरस्त करने पर भी कम से कम 30,000 व 20,000 का पैकेज हो - राज्य व केन्द्रीय सरकार और गौ सेवा आयोग इनके खाते में 2500/- रूपये प्रति माह जमा करावे और केन्द्र व राज्य सरकारों के अवकाश का भी भुगतान हो साथ ही प्रशिक्षण के अतिरिक्त गौ-सेवा का महात्म्य की भी शिक्षा दी जावे, क्योंकि कृषि और गौवंश के उत्पादों का विशेष कर गोबर-गौमूत्र का उपयोग इनके द्वारा ही होना है और राष्ट्र की कृषि व कृषि उत्पादों का संवर्धन व राष्ट्र के अर्थतंत्र का आधारभूत ढांचा यही व्यवस्था है। अतः विषाक्त कृषि इत्यादि को रोकने के लिये गौ-वंश कोष में सरकारी-अर्द्धसरकारी सेवारत सदस्यों का वेतन भत्तों इत्यादि के 2 प्रतिशत तक  आसानी से प्राप्त कर सकते है। वोट बैंक के लिये वेतन - भत्ते बढ़ाना अन्य विकास - विहीन योजनाऐं लागू करना ये राष्ट्रहित में नहीं होते है। फ्रांस जैसे राष्ट्र में भी 30 सालों से भत्ते इत्यादि नहीं बढ़नें पर आन्दोलन हुए है - हम साल में ऐसा दो बार कर देते हैं। केन्द्र व राज्यों में अनुदान व मुफ्त की सुविधा - पूर्वाग्रसित हेतु सामग्री प्रदान करने की प्रतियोगिता मची है जो शासन की कमजोरी को छिपाना ही है। शायद भारत में प्रस्तुत विषय के गौवंश का वोट नहीं लगता है | उपरोक्त आधार पर गौवंश का पूर्णतः ध्यान रखने पर और गोबर - गौमूत्र का पूर्णतः उपयोग होने से दो वर्षों के बाद अर्थ व्यवस्था में गौपालन व कृषि का 30% योगदान सुनिश्चित है जो वर्तमान में 22% के आस पास ही है | 

21.28- गोशाला को अनुशासित रखने हेतु किसी भी कर्मचारी को ट्रस्ट के बहुमत से निकाला जा सकता है- किसी भी कारण से यह तथ्य वाद योग्य न हो । कर्मचारी जमा धन राशि प्राप्त कर सकते है। ऋणात्मक अभिप्रेरण भी अनिवार्य है जिससें गोशाला की व्यवस्था उत्तम रहे।

21.29- गोशाला और उससे संबंध की भूमि पर किरायेदारी के रूप मे अथवा अन्य किसी भी प्रकार से रहने वालों को ट्रस्ट के बहुमत के निर्णय पर पुलिस तीन दिन में स्थान खाली करवायें। यह तथ्य भी किसी स्थिति में वाद योग्य नहीं होना चाहिये। साथ ही विस्तारीकरण हो सकने वाली गोशाला के आस-पास कि भूमि सरकार विक्रय न करें और विक्रय भूमि को निरस्त करें | इस कार्य में भी युक्ति-युक्त वर्गीकरण होना चाहिये - क्योंकि गौवंश पूर्णतः स्पष्टतः लोकहित-राष्ट्रहित में है क्योंकि रोजगार की लम्बी श्रृंखला व नित्य प्रतिदिन पोषण की आवश्यकता और विषाक्त रहित कृषि इसके महत्वपूर्ण कारण है जो अर्थव्यवस्था का आधारभूत ढांचा है। यह माँग व लोच की भारत में सबसे बड़ी सशक्त कड़ी है | यही भारतीय अर्थव्यवस्था की स्वाभाविक प्रकृति है | 

21.30- इस प्रकार संस्थाओं को अभिप्रेरण हेतु 5-10 वर्ष बाद, 1 वर्ष का खर्च जमा होने के पश्चात्- आगामी वर्ष से लाभांश का 30 प्रतिशत ट्रस्टी और 20 प्रतिशत कर्मचारी प्राप्त कर सकते है और 50 प्रतिशत विस्तारीकरण - आधुनिकीकरण हेतु खाते में जमा। यह केवल गोशाला ट्रस्ट के लिये ही युक्तियुक्त वर्गीकरण होगा-ऐसी स्थति में ट्रस्ट के सदस्य स्थाई हो और रोग ग्रस्त अथवा अन्य कारणों से रिक्त स्थान होने पर उनके परिवार का सदस्य ट्रस्टी बन सकता है। हम गोशालाओ को सहकारी डेयरी, अमूल इत्यादि जैसे संस्थानों के उपकेंद्रों के साथ-साथ, गोबर-गोमूत्र के भण्डारगृहों के रूप में धारणा करें, क्योंकि ऐसी संस्थाएँ निरंतर प्रगति के पथ पर चलती रहे स्पष्ट है कि इनसे कृषि का उत्तम विकास-कृषकों का आर्थिक हित और गौ उत्पादों से रोजगार होने से लोकहित-राष्ट्रहित स्वयंसिद्ध है। गोशालाओं व गोवंश  के संवर्धन हेतु सभी नियम व कानून युक्ति-युक्त वर्गीकरण की श्रेणी में रखें जायें।

21.31- प्रसुति गौमाता को बाहर खुली सड़क-गली इत्यादि स्थानों के स्थान पर चार दिवारी में रखें - साथ ही अनजान व्यक्ति पास में जाए तो बाँधने वाली रस्सी से 5 फूट दूर ही रहें । जिससे गौवंश पर हिंसकता का आरोप ना हो |

21.32- प्रजनन करने वाले नंदी को गोशाला में अथवा वन विभाग कि भूमि में समाधी दी जावे।

21.33- गर्भाधान के समय गोमाता को बाहर खुली न छोड़ें -अनेक नंदी (आपस में) अन्य नागरिक चोटिल हो सकते है परिणामस्वरूप गोवंश बदनाम होता है । अतः नजदीक के उत्तम नंदी व गोशाला अथवा चिकत्सक से गर्भाधान करावें । बाहर घनी आबादी में खुली रखने पर प्रतिबंध करें । शहरों के मुख्य बाज़ारों, मुख्य मार्गों के अतिरिक्त कम आबादी क्षेत्र व खुले क्षेत्र में, जो मुख्य शहरो से बाहर की तरफ होते है, कोई परेशानी नहीं है | अर्थात इससे न तो गौवंश चोटिल-आरोपी, द्वितीय में अन्य को कोई नुक्सान नहीं होगा | अन्यथा गौवंश (गाय) को गौशालाओं में ले जाने का अधिकार रहेगा (सूचना प्राप्ति पर)|

21.34- निम्न प्रकार से गर्भाधान कराने वाले व्यक्तियों को कठोरतम सजा का प्रावधान हो साथ ही गैर जमानती हो। किसी भी व्यक्ति के फोन करने पर पुलिस तुरन्त पहुंचें । कुछ विशेष प्रकार के 5-7 व्यक्ति एक गर्भाधान के समय में गोमाता को रात्रिकाल में बांध कर लाते है- बहुत से नंदी उसके पीछे हो जाते है एक व्यक्ति को छोड़कर जो गोमाता को बांध कर रखता है -शेष सभी के पास लोहे सरिये-डंडे होते है वे पास आने वाले नंदी पर अत्यंत क्रूरता के वार करते है- पैर टूटना-गंभीर चोटें समान्य बात है आंखें तक फट जाती है कहने पर कहते है- हम इनसे गर्भाधान नहीं करवाना चाहते - दूसरे से करवाना चाहते है वो इधर उधर है आने वाला है- विशेष तथ्य यह कि उनका उद्देश्य गर्भाधान न होकर गोवंश की अप्रत्यक्ष हत्या होता है। आप समझ सकते है कि ऐसी स्थिति में नंदी के वेग को रोकने के लिए ----- कितनी शक्ति से वार होते है | ऐसा कार्य अंग्रेज़ो के शासन काल में उत्तम नंदी को नाकारा करने के लिए प्रत्यक्ष रूप से करना सामान्य ---- | 

21.35- मेट्रो सिटी होने पर भी शहर में गोवंश का निगम-महानिगम अनुज्ञा पत्र जारी कर सकता है बशर्ते रख-रखाव की उत्तम व्यवस्था हो, क्योंकि गौवंश-गोबर-गौमूत्र के आभाव में वह क्षेत्र प्रायः मृत समान रहता है | अन्य स्थिति में शहर के नगर निगम बनने के बाद 5 से अधिक गोवंश वाले गोपालकों को शहरी (मुख्य मार्गो - घनी आबादी) परकोटे से बाहर चारों दिशाओं में-उपनगर-कालोनी क्षेत्र अथवा अन्य खुले क्षेत्र में निर्धारित शुल्क (जैसा सरकार उचित समझे) पर भूमि लेनी होगी (स्वयं के मकान-जमीन में गौ पालन हो सकता है)। इसमें गोवंश की संख्या के आधार पर भूमि- रख-रखाव इत्यादि पर्याप्त होने चाहिये। गोवंश नहीं रखने पर सरकार भूमि वापस प्राप्त कर सकती है और अन्य गोपालक को जारी कर सकती है। इसी प्रकार महानगरों के सोसाइटी क्षेत्रों में सरकार सौ - पांच सौ गौवंश की योजना को अनिवार्य कर सकती है - वाहनों के पार्किंग की तरह जिससे वहां रहने वालों के लिए सकारात्मक ऊर्जा व शुद्ध और पवित्र गौवंश के पदार्थों की प्राप्ति होगी | समय निर्धारण करके दो से चार घंटे बछड़े व गायों को अलग - अलग खोल सकते है जिससे सोसाइटी क्षेत्र में सुख पूर्वक गौवंश के बैठने से, गोबर - गौमूत्र होने से वहां की नकारात्मक ऊर्जा व पापों का विनाश होगा , स्थान पवित्र व शुद्ध - भयमुक्त होगा | साथ ही महामुनि पाणिनी का आदेश - निर्देश व्यहवारिक रूप प्राप्त कर सकते है | 

21.36- पंचायत में - नगरपालिका - परिषद - निगम - महानिगम में एक लिपिक गोवंश विभाग के नाम से रखा जाये और एक निर्धारित फार्म बनाया जावे-जिसमें गोपालक-गोशाला का नाम गोवंश की कुल संख्या और उनकी प्रकृति (छोटे बछिया व बछड़े ओर गोमाता व नंदी आदि की संख्या व दूध की मात्रा) जिसे लिपिक कम्प्युटर डाटा तैयार करें और विभाग भी रख-रखाव इत्यादि की निरिक्षण प्रक्रिया पूर्ण होने के पश्च्यात अनुज्ञापत्र जारी करे और सम्पूर्ण रिपोर्ट संबंध राज्य के आयोग को प्रेषित कर दें। राज्य आयोग - राष्ट्रीय आयोग को और राष्ट्रीय आयोग राष्ट्र के प्रधानकार्यकारी को, जिससे सम्पूर्ण जानकारी संसद के पटल पर हो.  प्रति वर्ष इस प्रकार गोपालक व गोशाला अपनी रिपोर्ट पेश करते रहें। गोवंश को एक स्थान से दुसरे स्थान पर लाने - ले जाने (दोनों स्थानों के सक्षम तंत्र का प्रमाण पत्र व एवं रास्ते में चेक पोस्टों का निरिक्षण) वाले वाहन पर "गोवंश का बैनर" व गति सीमा का निर्धारण अनिवार्य रूप से होना चाहिए। विधिक व्यवस्था का उल्लंघन होने पर कठोर कार्यवाही सुनिश्चित करें। 

21.37- वर्तमान में बाहर छोड़ दिये गये गोवंश  को शहर-तहसील की बड़ी गोशालाओं में जहां गोबर गैस संयत्र  (खाद  - कीटनियंत्रक - गोबर -गोमूत्र का पूर्ण उपयोग ) स्थापित करने है वहां स्थानान्तरण करें-भविष्य में गोपालक गोवंश को निश्चत धनराशि देकर गोशाला में जमा करवायें अथवा आजीवन उसका रख-रखाव करें, ऐसा न करने पर दण्ड की व्यवस्था हो । विशेष कर बछड़ों को 2 से 3 वर्ष में जमा करवायें वे पुर्णतः स्वस्थ होने चाहिए । चार पांच माह से एक वर्ष तक के बछड़े को अकेला निकालने पर पशुपालकों के विरूध गोवंश की हत्या का वाद दर्ज होना चाहिए। क्योंकि ऐसी स्थिति में कुत्ते उन को मार देते है अर्थात यह गैर-इरादतन गौवंश की हत्या है। अतः कम से कम 1-2 वर्ष के पच्चात माँ के साथ ही बाहर निकाला जाए । ऐसी स्थिति में लावारिस गोवंश नहीं होगा किन्तु गोपालक के पालतू गोवंश को घूमना अनिवार्य होता है (डेरी -गोशाला-संस्थानों  में ऐसी व्यवस्था होती है) अतः इस स्थिति में सर्दी -गर्मी में धूप -छाँव में लोक व्यवस्था के अतिरिक्त गली - मोहल्लों व अन्य स्थानों में सुख पूर्वक बैठे गोवंश को वहां से निकालने - हटाने को प्रतिबन्ध किया जावे (वाहनों के टैक्स रोड पर चलने के है न कि  पार्किंग स्थानों के लिए) क्योंकि गोवंश जीवित अवस्था व मृत्यु के पश्चात् भी मानव के लिए व सरकार के लिए आर्थिक रूप से लाभ प्रदान करती है।  अतः इसे युक्तियुक्त श्रेणी में रखा जावे।  शहरी निकायों द्वारा गोवंश की पकड़ होने पर गोशालाओं में ही ले जाना चाहिए - न की स्वयं के बाड़े में  अथवा शहर से 15-20 किमी की दूरी पर छोड़ना।  दोनों स्थिति अप्रत्यक्ष  मृत्यु का कारण है।  पंचायत द्वारा भी फसल  के समय पकडे गए गोवंश का पूर्णतः रख-रखाव करें, क्योंकि वे जुर्माना भी प्राप्त करतें है। रख-रखाव के लिए पंचायत को प्रत्यक्ष जिम्मेवार करना चाहिए, साथ ही गौवंश के प्रमापीकरण के टोकन इत्यादि में बदलाव सक्षम तंत्र के अतिरिक्त होने पर अपराध की श्रेणी में रखा जावें | नई  व्यवस्था पूर्ण होने पर पकड़ने वाले स्थानीय निकायों के वाहन गौशालाओं को प्राप्त होने से पशुओं को लाने ले जाने में आसानी होगी। 

         क्योंकि गौवंश को 4-5 घंटे खुला छोडना अनिवार्य है अन्यथा दूध उत्पादन गौमूत्र-गौमय (गोबर) गुणवता निम्न होने के साथ स्वास्थ्य भी निम्न स्तर हो सकताा है तो ऐसी स्थिति में शिकायत होने पर तत्काल कार्यवाही होनी चाहिये और उस गौवंश को गौशाला में भेजना चाहिये ।

      उपरोक्त तथ्य व्यवहार रूप में न करने से यह कर्म पापयुक्त व अकृतज्ञ श्रेणी के है। हम इस संसार में माँ के समान गौ माता के भी ऋणी-कृतज्ञ है। अकृतज्ञता समान्य स्थिति में भी महापाप व विनाशक माना जाता है- तो फिर ऐसी स्थिति में गौवंश के प्रति ...............................।

21.38- यदि चमड़ा उद्योग में औद्योगिक घराने नहीं आये तो पंचायत स्तर पर अनु.जाति-जनजाति के लोग चमड़ा शोधन व उनसे संबधित कार्य करते है, और खुले बाजार में बेच कर अपना परिवार चलाते है-इसी प्रकार तहसील स्तर पर 5 परिवारों की सहकारी संस्था को- पालिका व परिषद स्तर पर 10 परिवार की संस्था निगम में 15 परिवार व महानिगम में यह कार्य क्षेत्रवार होता है, (महा निगम क्षेत्रों में मुख्य शहर - मुख्य मार्ग - मुख्य बाज़ार इत्यादि में गौवंश की संख्या कम होती है क्योंकि उचित रख-रखाव स्थान विशेष के आधार पर ही अनुज्ञा-पत्र जारी होता है) 5 परिवार की संस्था अथवा सदस्यों की संख्या निश्चित करें | प्रति वर्ष अलग-अलग संस्थाओं को ऐसा अधिकार मिले,  इस प्रकार राष्ट्र के हजारों परिवार मध्यम श्रेणी में शामिल होंगें। वर्तमान व्यवस्था को समाप्त करें। गाँधी जी की भावना - निर्देश के अनुरूप यह कार्य अति-उत्तम है | साथ ही इससे अवैध बूचड़खानो से बचाव हो सकता है | इसी प्रकार गोबर धूप की तरह - तीन फ़ीट लम्बे, छ: इंच चौड़े और छ: इंच मोटे गोबर के लक्कड़ बनाये जावें - तो सूखे गोबर डालने के स्थान पर अति उत्तम रहेगा | प्रथम स्तर पर 25 से 30 प्रतिशत पेड़ो की कटाई कम होगी क्योंकि अन्य लकड़ियों के साथ इनका भी उपयोग होगा, द्वितीय स्तर पर यह देसी गाय के गोबर से बना होगा जिसका ताप बहुत अधिक समय तक रहता है जो कि अंतिम संस्कार के लिए अनिवार्य भी है, तृतीय स्तर पर अंतिम संस्कार में सूखे गोबर पर घी डालने की जो परंपरा है वो वैदिक दर्शन के आधार पर पर्यावरण के लिए महान शुद्धिकारक है जिससे संविधान अनु. 48 (क) की भी पालना होगी क्योंकि हिन्दू समुदाय में सूखा गोबर और घी इसी कारण से उपयोग में लेते है किन्तु वह एक नाम मात्र सा बन जाता है - परन्तु यह कार्य पूर्णतः संविधान और वैदिक दर्शन के अनुरूप होगा - गौपालकों और गौशालाओं की आय में वृद्धि व पेड़ो की कटाई भी कम होगी | ये गोबर के लक्क्ड़े चार - पांच की संख्या में नीचे के स्थान पर लगाए जाएँ जिससे दीर्घ काल का ताप और घी डालने से पर्यावरण की शुध्दि होने से - हिन्दू समुदाय के अंतिम संस्कार की क्रिया पूर्णतः धार्मिक आधार पर होने से - भौतिक व आध्यात्मिक दोनों कार्य सिद्ध होंगे, इसी प्रकार होलिका दहन में लकड़ी व गोबर के लक्कड़ का उपयोग पर्यावरण व धर्मसंगत है | इसी प्रकार गौशालाओं में धूप के साँचे भी आमदनी हेतु स्थिति (छोटी गौशालाएं जो खाद इत्यादि नहीं बनाते) अनुसार अनिवार्य करें | इसी प्रकार डेयरी संस्थान - गौशालाएं - गोपालक प्रति छ: माह से गोबर व गौमूत्र के उपयोग का लेखा आयोग को प्रस्तुत करें, जिससे इनके उपयोग में त्रुटि - साधनों का आभाव होने पर आयोग द्वारा उनका समाधान हो सके |  

21.39- मृत गो-वंश को ले जाने हेतु ट्रेक्टर के दांये-बायें लोहे की छड़ी लगायें- आवश्यकतानुसार 4 फीट ऊपर तक हो सकते है, मध्य में भी रॉड लगाकर तिरपाल लगायें तीनों (दायें-बांये-पीछे) तरफ । जहां ट्रेक्टर, हाथ गाडी नहीं जा सकती- वहां दो तिरपाल अतिरिक्त रखें एक तिरपाल पर गोवंश को रखे दूसरे से ढ़क देंवें, फिर खींचकर ट्रेक्टर या गाड़े तक ले आवें। छोटे बछड़ों को साईकिल के पीछे बांध कर लाना प्रतिबंध करें- इसके स्थान पर छोटी बंद टैक्सी का उपयोग करें। टैक्सी मुख्य स्थान पर न जाने पर बोरी आदि डालकर उठा कर लावें घसीटकर कदापि नहीं। क्योंकि जिस स्थित में ले जाया जाता है वह स्थिति अत्यंत भयावह होती है- अतः इसकी कठोरता से पालना हो। इससे हमारी धार्मिक भावनाओं को आघात लगता है बच्चों व गर्भवती स्त्रियों पर ऋणात्मक प्रभाव पड़ता है। स्पष्ट है - भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25(1) के अधिकारों के विरूद्ध भी है।

21.40- इस संबंध में एक विभाग और है बिजली घर-आम तौर पर खम्भों में करंट प्रवाहित होते रहते है आस-पास कि भूमी से गोवंश के निकलने मात्र से मृत्यु को प्राप्त हो जाते है जिसकी संख्या प्रतिवर्ष हजारों में है । अतः कठोर नियम अनिवार्य है। साथ ही ऐसे हादसे नागरिको में भी होते है - यह तो मतदान भी करते है ------ | गौवंश को दुर्घटना से बचाव हेतु रेडियम के साथ सभी राष्ट्रीय मार्ग व राज मार्गों पर (जो गांव व छोटे कस्बों के गौवंश जो यहाँ आते - जाते हैं) सी. सी. टी. वी. कैमरा भी लगाए जावें |

21.41- कुछ गोपालक गोबर का प्रयोग नहीं करते है अतः गोशाला छोटे वाहन रखें जिसमें 2-4 दिनों से गोबर लाए-इसके लिए गौपालक पास कि गोशाला में अपना नाम व पता दर्ज करवादें साथ ही वन भूमि, न्यायपालिका क्षेत्र, सरकारी कार्यालय व आवास स्थानों और पास के पार्कों, पेड़-पौधों इत्यादि स्थानों के पत्ते व कचरा (वनस्पति कचरा सूखने पर भी उपयोगी रहता है अतः समस्त कचरे के साथ कटाई की दूर्वादूब इत्यादि सभी कचरे को सूखे रूप में भी जैविक खाद के उपयोग में लाने से अति उत्तम खाद का निर्माण होता है | इस प्रकार इनके संरक्षण की विधि व्यवस्था होनी ही चाहिए)| अर्थात् गोबर व वनस्पति कचरे से बनने वाली खाद सोना पैदा करने वाली होती है ।

21.42- साथ ही कृषि उत्पाद के सूखे भूसे को (जो गोवंश हेतु उपयोगी नहीं, जैसे सरसों का भूसा-पराली इत्यादि के अतिरिक्त अन्य कृषि अपशिस्ट पदार्थो के हेतु अन्य उपयोग व उद्योग स्थापना की योजना तैयार करें) ईटं व चुने के भट्टों में ईंधन के रूप में (उपयोगी कृषि चारा) प्रयोग पर कठोर क़ानून बनावें । क्योंकि गोवशं को हरा चारा 25 प्रतिशत भी प्राप्त नहीं होता है। इस विषय पर नयी व्यवस्था होने पर गोशालाओं को खाद - हरे चारे के लिए भी भूमि प्राप्त होगी - कुछ सीमा तक गोचर भूमि की भी भरपाई होगी ---। हरे चारे के साथ सर्दी में धूप भी अनिवार्य है।  

21.43- यह तथ्य गोवंश संवर्धन व कृषि संवर्धन के मध्य की महत्वपूर्ण कड़ी है - क्योकि कृषि विश्वविद्यालय, पशु विश्वविद्यालय, कृषि व पशु पालन मंत्रालय  के अधीन है। इनके विभागों से ही रख रखाव - उपचार और कृषि के दिशा - निर्देश होते है- अतः इनका आर्थिक पोषण व समय समय पर सुनिश्चत नीति के तहत समीक्षा होना अनिवार्य है साथ ही इस संबंध में राज्यों और केन्द्र का, एक - दुसरे पर आरोप - प्रत्यारोप से बचना भी अनिवार्य है तभी कार्य सिद्धि होगी। संविधान के निर्देशक  तत्वों में भी  कृषि - पशुपालन को साथ में निर्देशित किया गया है, क्योकि दोनो एक-दुसरें के पूरक है। गौवंश मंत्रालय की स्थापना अनिवार्य है | वैदिक दर्शन के अनुसार यह विभाग राजा स्वयं रखता है |

21.44- समस्त प्रकार की जैविकखाद-कीटनियंत्रक की विधि व उपयोग हेतु कृषि विशेषज्ञ क्षेत्रवार-पंचायत-तहसील स्तर पर छोटी पुस्तिका प्रसारित-प्रचारित (प्रयोग व प्रशिक्षण देकर भी) करे, जिससे कृषि-कृषक दोनों का हित होने से लोकहित व राष्ट्रहित स्वयंसिद्ध है। केंद्र सरकार के अधिनियमों के तहत राष्ट्रीय राज्य गोसेवा आयोग कृषि व पशुपालन मंत्रालय भी आपसी समझ से कार्य करें । उपरोक्त कार्यों में प्रशिक्षण ही व्यवहारिक है । इन सभी का सूचना-संचार तकनीक का एक अनुभाग होना चाहिये।

21.45- इसप्रकार 3 वर्षो में 70-80 प्रतिशत से अधिक जैविक खेती होने पर रसायनिक खाद व कीटनाशक पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा देवें। राष्ट्र के बांधों की सफाई की अवधि का निर्धारण व अनिवार्यता को सुनिश्चित करने के साथ ही नहर वितरिकाओं का कृषि हेतु मानक निश्चय करके व्यवहारिक रूप प्रदान करें । सीमेंट-कंक्रीट की वितरिकाएं बनाने पर निश्चित दूरी पर 6 इंच का पैर रखने का स्थान होना चाहिए जिससे गौवंश गिरने पर निकल सकें - अन्यथा गौवंश निकालने की सुनिश्चित व्यवस्था होनी चाहिए | साथ ही सिंचाई की वितरिकाओं के धरातल को कच्चा रखना चाहिए ताकि भू-जल का पुनर्भरण आसानी से हो सके |

21.46- गोवंश व कृषि से संबंध उत्पादों का आयात प्रतिबंध करें इसके विपरीत कार्य योजनाओं को व्यवहारिक रूप प्रदान करें । क्योंकि हम अरबों डालर का कृषि के लिए कीटनाशक जहर व युरिया का कच्चा माल आयात कर रहें है उसके 50 प्रतिशत से भी कम राशी में हम गोबर खाद-गोमूत्र का कीटनियंत्रक पूरे राष्ट्र में प्रयोग कर सकते है और भविष्य में खाद व कीट नियंत्रक और कृषि उत्पादों को दोगुना मूल्य पर निर्यात कर के विदेशी मुद्रा का अर्जन भी कर सकतें है। गोमूत्र कि अतिरिक्त व्यवस्था आवश्यक नहीं है क्योंकि दुध निकालते समय और प्रातः उठते समय समस्त गोवंश मुत्र का निकास करते है। अतः इसको एकत्रित करने के लिए 5-5 लिटर के पात्र जिसमें दो फुट के डंडे लगे हुए हो और स्टॉक करने के लिए 100-100 लिटर के ड्रम हो - दोनो पात्र इस प्रकार के बने हुए हो जिसमें गोमूत्र कि रसायनिक क्रिया न हो । ऐसी स्थति में पर्याप्त मात्रा में गोमुत्र कि आपुर्ति हो सकती है।

21.47- साथ ही कृषि विभाग स्थान-आवश्यकतानुसार भंण्डार गृहों का शीघ्र निर्माण करें-क्योंकि प्रतिवर्ष 40-45 हजार करोड़ के कृषि उत्पाद व्यर्थ में नष्ट हो जाते है। इतनी ही राशी के भण्डार गृहों कि आवश्यकता है, जो एक वर्ष में खर्च बराबर कर सकते है सभी भण्डार गृह उच्चतम तकनीक के बनाये जावें | कृषि उपज मंडी में अथवा पास में रेलवे स्टेशन हो या सड़क मार्ग भी हो सकता है | भण्डारगृह - उत्तम विद्युत लाइन की सुनिश्चित व्यवस्था हो |  सभी प्रभारी अधिकारियों अथवा सक्षम तंत्रों पर कृषि उत्पाद का किसी भी प्रकार से नष्ट होना गुणवता प्रभावित होना अथवा उनका वास्तविक स्वरूप ऋणात्मक होने पर उन पर व्यक्तिगत जिम्मेवारी तय की जावे - साथ ही कृषि क्षेत्र के उत्पादों - भंडारगृहों  इत्यादि को मुक्त बाजार - निज़ी क्षेत्र में प्रवेश का अवसर मिलना चाहिए | मुख्य रूप से कृषि उत्पाद की गाडी-ट्रक इत्यादि खराब अथवा दुर्घटना होने पर अन्य गाडी में गंतव्य स्थान पर पहुंचाने की जिम्मेवारी स्थानीय पुलिस प्रशासन पर होनी चाहिये क्योंकि चारा व कृषि उत्पाद राष्ट्रीय सम्पति है इसके पश्चात् विधिक कार्यवाही कर सकते है। दूध व दूध से बने पदार्थो अथवा गौवंश के किसी उत्पाद का अथवा किसी कृषि उत्पाद का प्रदर्शन धरने इत्यादि पर नष्ट या भौतिक स्वरूप को ऋणात्मक करना अपराध की श्रेणी में माना जावे क्योंकि इसमें नागरिको की श्रम-शक्ति व राष्ट्र की भूमि व माटि - जल व विद्युत ऊर्जा स्त्रोत , के उपयोग के पश्‍चात् इनका उत्पादन होता है चूँकि ये सभी प्रत्यक्ष राष्ट्रीय संपत्ति है | अतः उपरोक्त विषय की कठोरतम विधि व्यवस्था हेतु संविधान का कोई भी शब्द बाधक नहीं है साथ ही युक्तियुक्त वर्गीकरण भी कर सकते है।

21.48- जैविक खेती की प्राथमिकता एवं कार्य की रूपरेखा तैयार करके मंत्रालय व आयोग उस पर कठोरतापूर्वक अमल करे। क्योंकि इसमें लोकहित-राष्ट्रहित के साथ प्रत्यक्षतः गोवंश का हित भी है। लगभग 2 अरब डॉलर का 40 हजार टन कीट नाशक जहर और 11 अरब डॉलर  कि राशी का रसायनिक खादों पर अनुदान- जो कच्चे माल के आयात व बनाने में यह राशी कई गुना होती है। साथ ही किसानो को 5 से 10 लाख करोड़ का ऋण उसमें भी कई प्रकार के अनुदान। राष्ट्र की इतनी धन राशि खर्च करने का परिणाम-  राष्ट्र की कृषि हेतु व अति उपयोगी जल का - जलस्त्रोत्र भूजल स्त्रोत्र जहरीला - अनुपयोगी व सूखा हो रहा है, पशु-पक्षियों-नागरीकों -किसानो को रोग ग्रस्त व कालग्रस्त भी कर रहा है । क्योंकि रासायनिक खादों से कृषि भूमि के नीचे परत कठोर बन जाती है और परिणामस्वरूप वर्षा के जल का भूजल में रिसाव नहीं होता-और न ही फसले मिट्टी से प्रयाप्त मात्रा में (जिसके कारण प्रतिदिन कृषि में अधिक पानी की आवश्यकता हो रही है) जल अवशोषित कर पाती- जिससे फसलों को ज्यादा पानी कि आवश्यकता पडती है। वर्षा के समय वह सम्पूर्ण जहर पानी के साथ अन्य जल स्त्रोतों में चला जाता है। जिससे पशु - पक्षी इत्यादि भी रोग ग्रस्त - काल ग्रस्त हो रहे है। इसप्रकार जल स्रोत विशाक्त और भूजल स्रोत डार्क जोन में बदल रहें है। वर्तमान समय में राष्ट्र की स्थति यह है कि एक राज्य में 280 भुजल जोन में 80 जोन भी नहीं रहे अर्थात डार्क ज़ोन में बदल गए । इस प्रकार रसायनिक खादों व कीटनाशकों कि वजह से लोक स्वास्थ्य के साथ लोक व्यवस्था भी स्पष्टतः खतरे में है। जल हम हिम नदीयो के रूप में निश्चत समय पर ही उपयोग कर सकते है, वास्तव में शुद्ध जल के स्थायी  विपुल भंडार भूजल ही है क्योंकि अन्य जल जो वर्षा के रूप में हमें समुन्द्र से प्राप्त होता है वो परिस्थितियों पर निर्भर रहता है जबकि उसकी मात्रा अत्यधिक होती है | अतः हमें शहर-गाँवों के तालाब-बावड़ियों-पोखरों का शुद्धिकरण-शक्तिकरण के साथ नए स्थानों पर जहाँ भूजल का पुनर्भरण हो सकता है, बनाये जाएँ। साथ ही कच्ची भूमि के स्थानों पर व अन्य जल स्त्रोत्रों में वर्षा जल के अतिरिक्त अन्य गन्दे नाले - रासायनिक पदार्थो इत्यादी का जल न जाए। भूजल एक बार खराब होने के बाद सही करना दुष्कर है- स्थानीय प्रशासन-पंचायत आदि अपने अपने क्षेत्रों में इन जल स्त्रोंतों का समय समय पर निरिक्षण करें - पानी में या आस पास गंदगी हो तो सफाई व प्रतिबन्ध की व्यवस्था करें। इसीप्रकार रेल लाइनों के बिछानें व मार्गों को चौड़ा करनें के लिए लाखों पेड़ पौधों को काट दिया गया जबकि गोबर विधि के द्वारा (ऐसा कार्य भारत में कई स्थानों पर हुआ है विशेषकर जयपुर और अहमदाबाद में) रात्रि के समय उनका अन्य स्थान पर रोपण हो सकता था। जिससे संविधान के अनुच्छेद 48(क) व 51(क) के (छ) कि अनुपालना हो सकती थी। अतः इस संबंध में तत्काल विधि व्यवस्था हो। भविष्य में नदियों को जोडनें के कार्यक्रम में पारिस्थितिकीं का ध्यान रखा जाये | भुजल पुनर्भरण के स्थान अधिक से अधिक आये तो राम जी कि असीम कृपा होगी | इस प्रकार हमें कृषि की भूमि को समझना जरूरी है- फसल योग्य कृषि भूमि में फसले पैदा होती  है और कृषि योग्य भूमि में  सब्जी - फल इत्यादि अन्य खेती के उत्पाद होतें है। हम यहाँ पर कुल कृषि योग्य भूमि की बात करतें है यह सही है की आकड़ो के मकड़-जाल के तहत् कृषि भूमि कुछ दशको से स्थिर है, लगभग दो हजार लाख हेक्टर से अधिक....। कम से कम 20 लाख हेक्टर कृषि भूमि का, जो पूर्णतः उपजाऊ थी- उसका पिछले 10 वर्षो में शहरीकरण और औद्योगिकीकरण में उपयोग (विनाश) हुआ - यह तथ्य पूर्णतः सटीक है। आकड़ों के मकड़ - जाल का रहस्य यह है कि मरू क्षेत्र, पहाड़ी क्षेत्र व समुन्द्र तट का क्षेत्र कृषि कार्यो में उपयोग किया जा रहा है तर्क यह भी है की बंजर भूमि को उपजाऊ बनाया जा रहा है - लेकिन उत्तम कृषि योग्य भूमि का गैर कृषि कार्य में विनाश किये बगैर, बंजर - परती भूमि को उपजाऊ बनाकर यथार्थ में  कुल कृषि योग्य  भूमि का क्षेत्रफल बढ़ाया जाना चाहीयें था। सरकार को शहरी - ग्रामीण कृषि भूमि की बजाय, जिला - तहसील - पंचायत के मध्य जहाँ - जहाँ अनुपयोगी जमीन है, वहाँ यातायात - पानी - बिजली के साथ अनिवार्य आवश्यक, जो भी व्यवस्था हो करने के पश्चात् इन उद्योग क्षेत्रो व उपनगरों को स्थापित करना चाहिए। विश्व बैंक ने भारत को 1996 में कहा ‘‘40 करोड़ ग्रामीणो को  शहरों में पुर्नवास करें- 2008 में कहा की आबादी के बदलाव में तेजी से कार्यवाही करें।’’ यह पूर्णतः वैश्विक षड़यंत्र है, जैसा की विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन ने पूर्व में ही भारत को कृषि विषय में सावधान किया। विश्व बैंक को शायद वैदिक दर्शन का ज्ञान नही है जिसमें कहा गया है। ‘‘सबसे उत्तम व्यापार कृषि  है - और सबसे उत्तम धन भी कृषि है’’ वैदीक दर्शन में, हल चलाने का - धान रोपने का - धान काटने का  - धान निकालने इत्यादि सभी के मुहूर्त है, जैसे:- उदाहरण के लिए हल चलाने के कार्यो मे - शनिवार, रविवार, तिथियो में 4-9-14 व अमावस्या को छोड़कर सभी दिन शुभ होते है। ‘‘चाणक्य’’ ने भी राज संचालन के लिये ज्योतिष के अनुसार  कार्य करने की सलाह दी।  सर्वोच्च न्यायलय और नासा ने भी इस विज्ञान को स्वीकार किया है। इसी प्रकार कूप-तालाब आदि के लिये भी उत्तम योग - नक्षत्र व भूमि पूजन होना चाहिए, जो सभी प्रकार से लाभदायक सिद्ध होते है। इसी प्रकार सभी कार्यो हेतु उत्तम योग, नक्षत्र और शुभ मुहूर्त होतें है जो स्वयं में अकाट्य  है | अतः इन सभी को पंचायत - तहसील व कृषि विभाग के सूचना बोर्ड पर स्थानीय भाषा में लिखना व किसानो को इसकी जानकारी देना भी सरकार का कर्तव्य है। कृषि में प्राकृतिक संसाधनो का विनाश नही होता - अपितु 50 प्रतिशत से अधिक उद्योग जगत को कच्चे माल के रूप में कृषि उत्पादों पर ही निर्भरता है, जितनी मात्रा में भी आर्थिक विकास व रोजगार इन उद्योगों से होता है- वे सभी कृषि खाते की श्रेणी में हैं। साथ ही निर्यात व्यापार का अनिवार्य अंग है, राष्ट्रहित के आधार पर कृषि उत्पादो का और कृषि उत्पादन के कच्चे माल से बनाये गये उत्पादों का निर्यात प्रथम श्रेणी का निर्यात है - प्राकृतिक संसाधनों के कच्चे माल से बनाये गये उत्पादों का निर्यात द्वित्य श्रेणी का है  - प्राकृतिक संसाधनो का  कच्चे माल के रूप में प्रत्यक्ष निर्यात तृतीय श्रेणी का है, इसमें तकनीकी व्यापार शामिल नही है। क्योकि माटी - जो गोबर, गोमूत्र से प्रलय काल तक उत्पादन दे सकती है, श्रमबल को समायोजित कर सकती है - गोवंश के उत्पादों की तरह कृषि में भी उपभोक्ता तक रोजगार की विशाल श्रखंला है। आवश्यकता है ठोस विधियुक्त नीति की। विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिए कुछ समय पूर्व 50 हजार हेक्टर भूमि अधिग्रहित की गई - आधे पर कार्य हुआ - वहाँ पर भी न रोजगार - न उत्पादन और न ही आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ावा मिला। अन्य सभी विशेष आर्थिक क्षेत्र  लगभग 500 अच्छा प्रदर्शन करने में अपेक्षा से अति निम्न रहे है। सरकारी उपक्रम तो हजारों करोड़ के घाटों  में चल रहे है। कुछ राज्यों में तो आज दिनांक तक हजारो एकड़ अधिगृहित भूमि खाली पड़ी है परिणाम स्वरूप वह भूमि कृषि कार्यो से भी वंचित है। उद्योग जगत श्रमबल को कृषि - गोवंश की तुलना में समायोजित नही कर सकता। उच्च आर्थिक वृद्धि दर - बगैर श्रमबल के समायोजित, लगड़ी अर्थव्यवस्था का घोतक है। जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण पिछले 10 वर्षो में उद्योग क्षेत्र 2 करोड़ भी रोजगार पैदा नही कर सकें। राष्ट्र में कुल कृषि भूमि का 30 प्रतिशत क्षेत्र की पैदावार शक्ति समाप्त हो रही है, रासायनिक खाद व कीटनाशको से और 20 प्रतिशत भूमि मरूस्थलीकरण से प्रभावित है - अतः इनके लिये गोवंश संवर्धन पर स्पष्ट ठोस निति हों औैर मरूस्थलीकरण के लिये जहां रेगिस्तान है वहां पर्वतमालाओ का खनन तत्काल प्रतिबंध  करे- क्योकि कृषि भूमि का संकुचन होता है तनोट के रास्ते की तरह टीबा स्थिरीकरण किया जावें। भविष्य तो राम जी जानें। 2007 - 2008 में विश्व स्तर पर कृषि संकट होने पर 30 से 40 देशों में रोटी के लिये झगड़े - संघर्ष हुए। भारत के प्रधानकार्यकारी जी  आप कहां पर........ खनिज तेल की तरह, क्या कृषि उत्पादो पर भी....... ऐसी स्थिति में रोजगार - विदेशी कर्ज व आयात......। सारभूत तथ्य यह है कि लोकव्यवस्था व आधारभूत ढ़ाँचे हेतु - रेल मार्ग, राज्य व केन्द्र के राजमार्ग, सेना के कार्यो व राष्ट्र की परियोजनाओं और भूमिगत  भण्डारों के अतिरिक्त कृषि भूमि का उपयोग (विनाश) नही होना चाहिए। वह भी इन कार्यो की आवश्यकता मात्रा तक। यह स्पष्ट है कि लोकव्यवस्था के कार्यो में कृषि भूमि तो क्या, शहरी आबादी व गांव के गांव हटा सकते है, क्योकि की कोई भी संवैधानिक अधिकार लोकव्यवस्था पर अभिभावी नही है। भारत के प्रधानकार्यकारी जी आप - हम बहुमंजिला इमारतों में रह सकते हैं - किन्तु कृषि व गोसंवर्धन बहुमंजिला इमारतों में नही हो सकता - साथ ही पांच एकड से कम कृषि व कृषि योग्य भूमि का बंटवारा प्रतिबंध करें। शहरीकरण का कृषि भूमि पर पिछले 10 वर्षो में इतने अधिक दबाव को देखते हुए - लोकव्यवस्था हमें जनसंख्या नियत्रंण करने का संकेत कर रही है। ध्यान रहें विश्व विख्यात वैज्ञानिक संस्था ‘‘नासा’’ मे भी वैदीक दर्शन के शास्त्रों का अध्ययन होता है, वेदो की बात अलग है, अभी तक उपवेद - वेदांग से भी विज्ञान 100 कदम नीचे है, वर्तमान में सूर्यसिद्धान्त - गोवंश - गोबर - गोमूत्र तक ही विज्ञान समान्तर  में आया है। विशेष तथ्य यह है कि राष्ट्र की जनसंख्या - विश्व की 16 प्रतिशत से अधिक है और  राष्ट्रीय क्षेत्रफल - विश्व के 2 प्रतिशत से ही अधिक है । ऐसी स्थिती में कृषि भूमि - गोशाला भूमि - गोचर भूमि - ओरण भूमि - वन भूमि पर अतिक्रमण लोक व्यवस्था की समाप्ति का संकेत है। अतः लोकव्यवस्था - लोकस्वास्थय के आधार पर सुनिश्चित कार्यवाही करना भारत सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है।  

      61 प्रतिशत भू-जल डार्क जौन में बदल गये है अर्थात् भू-जल समाप्त हो गया है और हमारी विधि व्यवस्था के कारण निरन्तर भू-जल व स्वच्छ जल समाप्त अथवा काम के अयोग्य हो रहे है। तमिलनाडू उच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी नोय्यला नदी से 80 हजार से एक लाख एकड़ कृषि क्षेत्र प्रायः नष्ट हो गया। साथ ही लाखों की संख्या में जीव भी मर गये है। इसी प्रकार भू-जल,  कच्ची भूमि में अथवा मिट्टी वाले स्थान पर गंदा पानी या किसी उ़द्योग अथवा किसी भी छोटे से कैमिकल के काम वाले उद्योग से लगातार प्रदूषित पानी आने से भू-जल खराब हो जाता है । भू-जल एक बार खराब होने के पष्चात् दुबारा सही नहीं होता । यह राष्ट्र की बहुत बड़ी क्षति होती है। अतः नागरिकों द्वारा शिकायत करने पर पटवारी से लेकर जिला प्रशासन तक उसपर तत्काल प्रतिबंध की कार्यवाही करें; इसके लिए भारत सरकार शीघ्र ही इनको अधिकार प्रदान कर विधिव्यवस्था सुनिश्चित करें - इसके लिये जिला अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से उतरदायी बनाया जावे, वहीं युक्ति-युक्त वर्गीकरण वेतनवृद्धि, पदौन्नति - रोकना व बर्खास्तगी, लापरवाही - भ्रष्ट आचरण के आधार पर । भू-जल का डार्क जोन में बदलने से कृषि भूमि का मूल्य व उत्पादन औसतन 50% से न्यून हो जाता है और अनेक स्थानों पर कृषि वर्षा पर ही निर्भर रहती है |

      जल स्त्रोतों के आस-पास ऊँचाई होने पर वहां कचरा - मलमूत्र इत्यादि नहीं होना चाहिये क्योंकि वे सभी वर्षा के पानी के साथ उस जल स्त्रोत में मिल कर खराब करते है साथ ही साबुन से नहाना-कपड़े धोना भी प्रतिबंध करें; नदी सफाई परियोजना में भी यह उत्तम कारगर है। यह संविधान के अनुच्छेद 51 (क) के अनुरूप संवैधानिक कर्तव्य भी है क्योंकि जल संरक्षण में भू जल भी शामिल होता है अतः सभी नदियों-सागर के आस-पास या सागर में मिलने वाले नदी-नाले, जिला-तहसील-पंचायत के तालाब-पोखर इत्यादि सभी को स्वच्छ रखना संवैधानिक कर्तव्य है। ऐसी पालना सक्षम तंत्रों द्वारा नहीं करने पर वहीं युक्ति-युक्त वर्गीकरण लागू होना चाहिये, क्योंकि ये संवैधानिक कर्तव्य है और राष्ट्रीय सम्पदा है। राष्ट्र के विधि व्यवस्था की स्थिति यह है – “सर्वोच्च न्यायालय ने आश्चर्य प्रकट किया कि अरावली पहाड़ के 31 भाग कहाँ चले गये?” इस प्रकार यह कृषि क्षेत्र के लिए अत्यंत विनाशक है क्योंकि बालू रेत इत्यादि से कृषि को हानि पहुँचाने वाले अन्य कारण उत्पन्न हो गए | 

21.49- इस प्रकार उपरोक्त कार्यो में नीतिगत कठोरता के साथ व्यवहारिक कठोरता होने  पर ही कार्य सिद्धि होगी। साथ ही लोक व्यवस्था व लोक स्वास्थय कि भी पालना होगी । अतः ‘‘राष्ट्र के शासन’’ के ‘‘प्रधानकार्यकारी’’ जी को उपरोक्त संबंध में गहनता से समझ कर वैज्ञानिक-प्रबंधन के संबंध में शीघ्र ही कठोर व सुस्पष्ट नीति बनाकर उसे कानुनी रूप प्रदान करें । यह अर्थव्यवस्था का आधारभूत ढ़ाँचा है- जिससे अच्छा भविष्य अवश्य आएगा । विशेष तथ्य यह है कि भारत कृषि प्रधान देश है जिसका प्रत्यक्ष संबंध आदि काल से गोवंश से ही है। अतः विदेशी हाथों में कृषि भूमि  का विक्रय नहीं होना चाहिए- ऐसा है तो निरस्त करने के उपाय करें । जीएम फसलों का व बीटी बीजों का परीक्षण पूर्ण सावधानी के साथ करें (पेप्सी लाओ देश बचाओं कि स्थति नही होनी चाहिए - क्योंकि कंपनी के खाते में 450 करोड़ रूपए भारतीय राजनेताओं को समझाने के नाम पर दर्ज़ है ---------)। किसी भी स्थति में बीजों पर किसानों का अधिकार रहे । इसप्रकार वैदिक दर्शन के गोबर-गोमूत्र के गुणों पर सम्पूर्ण विज्ञान जगत गीत गा रहा है- तो अन्य आदेशों-निर्देशों की शाश्वत सत्यता आप समझ सकते है। राष्ट्र में गोवंश सुखदायक स्थति में होने से राष्ट्र का कायाकल्प हो सकता है। इसी प्रकार गोपालक के घर में गोवंश सुखदायक स्थति में रहता है तो उस घर के सभी प्रकार के अनिष्ठ समाप्त हो जाते है । इसके विपरीत........ । अतः आप माँ-माटी  का कर्ज उतारने का प्रयास करें - जिससे गोवंशसंवर्धनं कृषिसंवर्धनम् राष्ट्रसंवर्धनम् इतिश्री। अंत में आपको स्पष्ट निर्णय लेना है कि गोबर खाद - गोमूत्र किटनियत्रंक, गोशालाऐ, गोपालक अथवा किसान बनाये या कृषिविभाग....कृषि विभाग बनाने पर गोबर - गोमूत्र का सरकार को समर्थन मूल्य घोषित करना चाहिए - गोशालाए और गोपालक बनाये तो  खाद - किटनियंत्रक का समर्थन मूल्य घोषित करना चाहिए। जैविक उत्पादों से कृषि करने पर अन्य लाभ के साथ 2-3 वर्षो में भूमि मुलायम हो जाती है जिससे 10 घंटे मे हल जोतने का कार्य 4 घंटे में ही पूरा हो जाता है। साथ ही भूजल स्तर में अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। गोबर-गोमूत्र व अन्य प्रकार से अमृतजल आसानी से तैयार होता है - जो कृषि के लिए अमूल्य है ।

सार-रूप:- सभी डेरियों गौ-शालाऔं जिसमें 10-20  से अधिक गौवंश है गोबर-गौमूत्र के उपयोग की अनिवार्यता सुनिश्चित करें । व्यवहार रूप में महाराष्ट्र में अरहर की दाल 100 एम0एल0 तारपीन के तेल से एक एकड में कोई भी रोग नहीं हो सकता ऐसा प्रयोग वहां सफल है। इसी प्रकार राजस्थान के कृषि वैज्ञानिको का चने की फसल पर निम्बू के सत् के साथ अन्य पौधों का कुछ विशेष प्रकार से प्रयोग एकदम खराब फसल को भी नवजीवन प्रदान कर देता है। इसी प्रकार गौमूत्र में नीम-आक आदि पत्तों के साथ नमक हींग के प्रयोग से फसलों में तैलीया रोगों की सफल रोकथाम हो सकती है। साथ ही कुछ संस्थाऐ जो तथ्य संख्या 51 में है वो अपने किसानों को समस्त प्रकार के रोगों जीवाणुओं से बचाने के लिये गौमूत्र में पांच प्रकार के पेड़-पौघों के पत्तो से बनाये गये स्प्रे का उपयोग सफलता से करवा रहे है। चूंकि गौमूत्र भूमि तत्व से सबंधित है जिसके कारण गौ-मूत्र का कीट नियंत्रक फसलों में 25 प्रतिशत खाद का काम भी करता है। इनके अतिरिक्त जो किसान अपने खेतों पर गौवंश रख सकते है दो गौवंश से एक एकड़ पर खाद व कीट नियंत्रण की पूर्ति हो सकती है तो ऐसे किसानों को खाद और कीट नियंत्रक का व्यवहारिक प्रशिक्षण दिया जावे । अन्य गौशालाऔं और डेयरी उद्योगों में गोबर गैस संय़त्र से गैस-बिजली व स्लेरी खाद जो सूखने के बाद भी गीला करके खेतों के उपयोग हो सकती है और जैविक खाद व गौमूत्र कीट नियंत्रण का व्यवहारिक प्रशिक्षण दिया जाये । चूंकि यह जैविक खाद सूखी होने से दूसरे स्थानों पर इसका परिवहन कर उपयोग किया जा सकता है। सरकार इसको चाहे तो समर्थन मूल्य पर खरीद कर आवश्यककृषि क्षेत्रों में प्रेषित कर सकती है अथवा गौ-संस्थान को आवश्यक दिशा-निर्देष दे सकती है । समर्थन मूल्य परीक्षण के आधार पर निश्चित कर सकते है कम गुणवता होने पर आवश्यक दिशा-निर्देश अथवा स्थिति अनुसार अभिप्रेरण कर सकती है। विशेषज्ञ आयोग द्वारा सार्वजनिक रूप से दिशा निर्देश सभी कृषि वैज्ञानिकों को (ज़ारी करने का) और आम नागरिकों को अपने-अपने क्षेत्रों में जैविक खाद व कीट नियंत्रण के प्रयोगों को तकनीक प्राप्त करने के लिये सार्वजनिक सूचना अथवा सार्वजनिक प्रशिक्षण प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए ।

‘तथ्य यह है कि 110 वर्ष पूर्व ब्रिटीश वैज्ञानिकों के दल ने भारत की कृषि पर जो जांच परिणाम प्रस्तुत किये उसमें भारत की फसलों पर रोग इसलिये नहीं लगते है - कि भारतीय कृषि गौवंश पर ही आधारित है अर्थात् सम्पूर्ण कृषि जैविक है।’’ अतः हम जैविक कृषि के द्वारा कुछ ही समय में अपनी मिट्टी की उपजाऊ शक्ति सही कर सकते है भविष्य में जैविक खाद व कीट नियंत्रक की कम आवश्यकता होगी और उत्पादन अधिक होगा - तो ऐसी स्थिति में हम निर्यात करके विदेशी मुद्रा का अर्जन भी कर सकते है और राष्ट्र के लोगों को रोग मुक्त भी जिसमें अर्थव्यवस्था का और आधारभूत ढांचा कृषि भूमि, गौवंश की सुरक्षा के साथ नागरिकों को विषाक्त खान-पान से मुक्ति व वायु - जल - भूमि के विषाक्त होने से भी मुक्ति मिलेगी जिससे राष्ट्र में कार्य के घंटों का विस्तार होगा और दवा व्यपार कम से कम जिसमें विशेष कर विदेशी है 5-10 हजार करोड़ की विदेशी मुद्रा बच सकती है यह भी शुरूआत के समय मे भविष्य में और अधिक संभावना है। 

          ध्यान रहें:- ऋणात्मक विचारधारा मे धनात्मक कार्य नही होते- परिणाम स्वरूप, परिणाम भी रचनात्मक नही होते है।

21.50- गोवंश को सरकारी बैठकों-कार्यशालाओं इत्यादि में आवारा-लावारिश पशु इत्यादि से संबोधन न करें अपितु गोमाता अथवा राष्ट्र माता - विश्व माता व नंदी शब्द का प्रयोग करें, यह वैदिक आदेश है । शास्त्रों के अनुसार ‘‘तिलम् न धान्यम्-पशुवः न गावः।’’ अर्थात जिस प्रकार तिल धान नहीं है ठीक उसी प्रकार "गौवंश" भी पशु श्रेणी में नहीं है | तथ्य 21 के "1" के अनुतोष के आधार पर नए केंद्रीय अधिनियम में "गौवंश एवं पशु चिकित्सालय", "गौवंश एवं पशु महाविद्यालय", "गौवंश एवं पशु विश्वविद्यालय" और राज्यों व केंद्र की अन्य इस क्षेत्र की संस्थाओं के नाम भी ------ | तथ्य संख्या 1 से तथ्य संख्या 9 तक में पूर्णतः स्पष्ट किया गया है कि उपरोक्त सभी तथ्य वैदिक शास्त्रों व विज्ञान के साथ संवैधानिक भी है | मानव सृष्टि से मूक सृष्टि तक माँ की समझ, हम समझ सकते है | इसीलिए त्रिकाल में भी सत्य सिद्ध वैदिक आदेश - गावो विश्वस्य मातरः ------- | 

21.51- अन्य कोई नियम इत्यादि जो आयोग-चिकित्सा विशेषज्ञ-कृषि विशेषज्ञ उचित समझे। इन सभी को कानून में स्थान प्रदान करें-उपरोक्त तथ्य संख्या 13 से सभी अनुतोष अधिनियम की विषय वस्तु को ‘‘ध्यान केन्द्रित’’ करने हेतु है।  उपरोक्त विषय में "गोवंश" के आयोग - कमेटी में सम्बंधित विशेषज्ञों के साथ श्रीमान राजनाथ सिंह जी का योगदान महत्त्वपूर्ण होगा - अतः इनको उचित स्थान प्राप्त होना चाहिए।  इसी प्रकार "विषाक्त कृषि " के आयोग - कमेटी  में "शून्य लागत पर जैविक कृषि " के पद्मश्री श्री सुभाष पालेकर जी और देवलापार गो अनुसंधान  केंद्र के प्रभारी, दोनों महाराष्ट्र, साथ ही मध्य प्रदेश के "जैविक कृषि क्षेत्र" के नीतिगत - क्रियात्मक विशेषज्ञों (पिछले वर्षों में कृषि उत्पादन दोगुना से अधिक किया  है )  को भी विधि - चिकित्सा - भूजल - पर्यावरण – तकनीकी व आर्थिक और अन्य विशेषज्ञों के साथ उचित स्थान मिलना चाहिए। साथ ही अखिल भारत कृषि-गौ सेवा संघ के सदस्य -गौरक्षा सत्याग्रह संचालन समिति के सदस्य-संयोजक, गोरखपुर की गोविन्द गौशाला  जिसने गोबर गैस से मारूति वैन 60 कि.मी. तक चलाई। साथ ही डायनामिक्स - अमूल इत्यादि और श्रीमान् राजीव दीक्षित की वाँग्भट्ट संस्था के सदस्य - मध्यप्रदेश की इस क्षेत्र की संस्थाऐं, जो कम्पनी रूप में कार्य कर रही है उनके सदस्यों को भी आमंत्रित करना चाहिये। ये सभी विशेषज्ञों की कमेटी के कार्य को आसान-तत्काल एवं प्रभावी बनाने में निश्चित रूप से कारगार सिद्ध होना सुनिश्चित है । दक्षिण भारत की सहकारी संस्थाऐं इत्यादि, जो गौवंश के देखरेख उपचार हेतु अभिप्रेरण करने के साथ किसानों को कृषि हेतु प्रशिक्षण भी देते है उनके शोध पत्र भी आंमत्रण अथवा एक-एक सदस्य को शामिल करना चाहिये। इनके अतिरिक्त सरकार जो उचित समझे । अंतिम व्यवस्थाओं - विधि - नियम - दिशा निर्देश इत्यादि की पूर्णतः जानकारी सम्बन्ध विभागों - निवारण विभाग - रक्षण विभाग - शिक्षण संस्थाओं   के  साथ आम नागरिकों को भी होनी चाहिए - जिससे विधि व्यवस्थाओं का उल्लंघन होने से शिकायत व निवारण की विधिक व्यवस्था व्यवहार रूप प्राप्त कर सकती है।  इस प्रकार उपरोक्त विषय  का व्यावहारिक पक्ष शक्तिशाली होगा - जो लोकहित और राष्ट्रहित में अमूल्य है।  विश्व में सबसे उत्तम व्यापार "कृषि " है , पर्यावरण - नागरिकों - कृषि का उत्तम पौषण करने वाला "गोवंश" ही है।  घास-भूसा खाकर "गोवंश" अमृत देता है – भूमि, गोबर-गोमूत्र से राष्ट्र को धन-धान्य से पूर्ण  करती  है यही कारण है कि बिहार के एक मामले में सर्वोच्च न्यायलय ने चारे की समस्या को नकार दिया। (उपरोक्त कार्यक्रम विश्व के लिए भी वरदान है)| द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से विषाक्त कृषि का परिणाम विश्व को रोगों के रूप में भोगना पड़ रहा है क्योंकि उनके आयुद्धों के बचे शेष रसायनों से रसायनिक खादों का प्रचलन हुआ। इसके अतिरिक्त भारत में आर्थिक ज़ोन के लगाव (ब्रिटेन की देखा-देखी में जो वर्तमान में सफल नहीं है) से भी कृषि व गौपालन उपेक्षित हुए। उपरोक्त कार्यक्रमों के अतिरिक्त गांधी जी के अन्तःकरण और भावनाओं के धरातल पर यदि भारत के 2-4 औद्यौगिक घराने 2 से 5 हजार गौवंश की आधुनिक गौ शाला खोलकर नस्ल सुधार- सूखे दूध का पाऊडर- आयुर्वेद के वांग्भट्ट - के अनुसार दवा रूप गौमूत्र का निर्माण करके, विकसित राष्ट्र में लाॅबी बना कर बाजार में पकड़ मजबूत कर सकते है। उदाहरण के लिये हल्दी और डायनामिक्स का सूखा दूध का पाऊडर प्रत्यक्ष प्रमाण है। आदरणीय राजीव दीक्षित जी द्वारा गौमूत्र का वैज्ञानिक प्रयोग इसी आयुर्वेद के वांग्भट्ट के अनुसार किया गया | इसी प्रकार उच्च औद्योगिक घराने गोबर के उत्पाद धूप इत्यादि व गौमूत्र का विश्व बाज़ार में विपणन करके विदेशी मुद्रा का भी अर्जन हो सकता है |

किन्तु विधि के आलोक में प्रथमतः यह अनिवार्य हो जाता है कि कृपया ‘‘कानून का शासन’’.........। 

विशेष - वर्तमान में निजी क्षेत्र की गौशालाओं में जो ट्रस्ट के रूप में संचालित है और अधिक गौवंश के कारण गौवंश के लिए गौगृह का निर्माण - चारे के गोदाम का निर्माण - अन्य निजी क्षेत्र में बन रहे गौवंश के चिकित्सालयों का निर्माण - स्थानीय सक्षम तंत्र के अनुमोदन पर उनको तत्काल बजट प्रदान किया जाए क्योंकि केंद्रीय कानून विषेशज्ञों की कॉमेंटी के विचार-विमर्श के बाद ही बनाना संभव है किन्तु उपरोक्त कार्य तत्काल रूप से होने आवश्यक है | 

 

विशेष - सरकारी पार्क - सार्वजानिक पार्क - सरकारी - निजी - सार्वजानिक बंगले व कार्यालय - कॉलोनी व बड़े शहरों की सोसाइटी - ऐसे ज़िलों के राजमार्ग जहाँ सड़क के दोनों तरफ सघन पेड़ - पौधे - हरियाली है, उपरोक्त सभी के सूखे-गीले पत्तों व अन्य वनस्पति सामग्री और बाग़वानी में काटे गए वनस्पति कचरे का नष्ट होना अथवा सूखे पत्तो को एकत्रित करके जलाना -------- ऐसा लगता है -  राष्ट्र का स्वास्थ्य जल रहा है अथवा नष्ट हो रहा है, साथ ही वन क्षेत्रों में 10 से 20 इंच तक सूखे पत्तों के परते पड़ी रहती है | जंगलों में आग का प्रमुख कारण में कृषि क्षेत्र में गोबर-गौमूत्र का प्रयोग न होना, साथ ही वन क्षेत्र के इन सूखे पत्तों उपयोग न होना - क्योंकि इसी प्रकार जब गौशालाओं में - डेरी क्षेत्रों में - निजी गौपालकों द्वारा गोबर - गौमूत्र व्यर्थ किया जाता है ऐसा लगता है जैसे राष्ट्र की अकूत संपत्ति नष्ट हो रही है अर्थात इनके मिश्रण से ऐसी जैविक खाद बनती है जो दो - तीन फसलों के बाद सोना उगलने वाली होती है अर्थात रोग रहित व पोषण और स्वाद से भरपूर साथ ही गौमूत्र से कीट नियंत्रक -  इस प्रकार राष्ट्र के नागरिकों का स्वास्थ्य व निर्यात से विदेशी मुद्रा की स्थायी प्राप्ति ------ (इसी प्रकार मेट्रो सिटी, अन्य बड़े शहरों के मुख्य बाज़ार व सघन इलाकों के अतिरिक्त गली-मोहल्लों में, खुले कॉलोनी क्षेत्र में गोबर-गौमूत्र अथवा गौवंश दिखाई नहीं देता है तो वह स्थान उजाड़-वीरान मरघट के सामान प्रतीत होता है) | यह कार्य "राज्य" भारत सरकार के संवैधानिक कर्तव्य में  निहित है जिसे पूर्व के तथ्यों में स्पष्ट किया गया है | अतः उपरोक्त सभी पदार्थों का सुनिश्चित प्रबंधन करने की कठोर विधिक नीति बनाई जावे | 

 

मूल कर्तव्य की शब्दावली जल संरक्षण में "भू-जल" भी शामिल है ------ जहाँ भी ऐसे नदी - तालाब इत्यादि जिनका जल सिंचाई व अन्य कार्यों के लिए उपयोग होता है - उस  क्षेत्र के केमिकल - पेस्टिसाइड - रंग रोगन युक्त - अन्य हानिकारक तत्वों का जल में प्रवेश निषेद किया जावे | साथ ही ऐसे जल कच्ची भूमि में एकत्रित होने पर प्रतिबन्ध किया जावे क्योंकि दोनों ही परिस्थितियों में कृषि भूमि का विनाश और भू-जल का दूषित होना पाया गया है जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण दक्षिण भारत में हज़ारों एकड़ कृषि भूमि है (उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी) और इसी प्रकार अनेक क्षेत्रों में दूषित भू-जल पाया गया है  (भू-जल के दूषित होने पर उसका कोई भी उपचार नहीं होता है) | इस प्रकार लोकव्यवस्था का अप्रत्यक्ष रूप से व्यापक हनन  हो रहा है | अतः सरकार को कठोर विधिक व्यवस्था की सुनिश्चित व्यवस्था करने का संवैधानिक कर्तव्य है | 

विशेष - प्रस्तुत विषय पर बनाये जाने वाले व पूर्व के अधिनियमों में प्रथम धारा की अनिवार्यता इस प्रकार है - "किसी भी सक्षम तंत्रों - पुलिस - प्रशासन इत्यादि कोई भी हो, शिकायत करने पर - जानकारी देने पर यह कहना, आपको क्या करना है - आप हस्तक्षेप कर रहे हो - आपको क्या लेना-देना है, अपितु प्रत्येक नागरिक व व्यक्ति (विदेशी) को शिकायत निवारण की स्थिति की जानकारी प्राप्त होने का अधिकार होना चाहिए, ऐसा न होने पर सभी सक्षम तंत्रों के जिम्मेवार अधिकारियों व कर्मचारियों को अपराध व लापरवाही के आधार पर वेतनवृद्धि-पदौन्नति को दो-चार साल तक प्रतिबन्ध करें अथवा गंभीरता की स्थिति में बर्खास्त व नुकसान की वसूली इत्यादि | प्रस्तुत विषय में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम व अन्य अधिनियम का प्रयोग न हो ‘‘युक्ति-युक्त वर्गीकरण’’ करें । उपरोक्त अनुतोष के अतिरिक्त प्रत्येक तथ्य में अनुतोष का विषय है - संबंध विशेषज्ञ केंद्रीय कानून में उनको भी अनुतोष मान कर उचित और व्यावहारिक स्थान प्रदान करें | 

             

------------------किन्तु भारत के प्रधानकार्यकारी जी के निर्णय के पश्चात ही आगे की ----------- |

---------------- न्याय में विलम्ब - न्याय के औचित्य को ही नष्ट कर देता है -------------------|

----------------- न्याय होना ही प्रयाप्त नहीं - न्याय दिखना भी चाहिए ----------------------------|

विशेष - कमिटियों - आयोग इत्यादि का गठन - रिपोर्ट तैयार होने तक ------- गौवंश की हत्या पर प्रतिबन्ध हेतु अध्यादेश ----- | 

भाग 2

Bhaag 2

उपरोक्त विषय के द्वित्तय भाग ‘‘नये कत्लखानें खोलने व स्थापित कत्लखानों के विधि विरुद्ध कृत्योंव संविधान द्वारा निर्देशित अन्य पशुओं के वध को सम्पूर्ण राष्ट्र में प्रतिबंध करने के संबंध में विधिक तथ्य इस प्रकार है:-

भाग 2 - तथ्य #1 

B2T1

वैदिक दर्शन अत्यन्त व्यापक और गहरा है क्योंकि हमारा अहिंसक जीवन दर्शन है जो जीवन और सृष्टि को संरक्षित करने का विज्ञान भी है जिसको समझना अत्यन्त दुष्कर है जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण है विश्व स्तर पर वैदिक दर्शन पर शोध कार्य और नासा तक की संस्था में इसका विश्लेषण और शोध होता है। यही कारण है कि पूरे विश्व में विदेशी नागरिकों के द्वारा ही मंदिरों का निर्माण और लाखों की संख्या में स्वतः अनुयायी बनना सिद्ध करता है कि वैदिक दर्शन का कुछ भी - एक भी शब्दावली जिसके समझ मे है वह उसका अनुयायी बन गया । जबकि अन्य सम्प्रदायों में अनुयाईयों को बनाने के लिये न करने वाले अपकृत्य भी किये जाते है। स्पष्ट है कि सनातन धर्म अनादि और अनंत है अर्थात जिसका न आदि है और न ही अंत है अर्थात प्रत्येक देश - काल - परिस्थितियों में नित्य-सत्य है |

गांधी जी के पूजनीय टाल्सटॉय का कथन है कि ‘‘शाकाहारी होना मानव प्रगति का प्रथम लक्षण है।’’ गांधीजी का सम्पूर्ण जीवन ‘‘अंहिसा धर्म’’ में ही रहा। सम्पूर्ण विश्व में दार्शनिकों का सर्व सम्मत एक मत यह भी है कि ‘‘ किसी भी देश की स्थिति का आंकलन वहां के मूक प्राणियों की स्थिति से लगाया जा सकता है।’’ गुरु नानक देव - गुरु जाम्भोजी - भगवान बुद्ध - भगवान महावीर इन सभी ने गौवंश के अतिरिक्त भी अन्य पशुओं की हत्या को भी घोर महापाप बताया।  इसी प्रकार पशुवध हमारे भारतीय संविधान के तहत् नागरिकों का मूल अधिकार भी नही है। अर्थात वह रोजगार अथवा खान-पान के आधार पर ऐसा नहीं कर सकता है। क्योंकि भारतीय संविधान के किसी भी मूल अधिकार में – “मांस खाना” ‘‘ जीवन जीने के अधिकार" में (प्राण के अधिकार) नहीं है। भारतीय संविधान के अनु. 19(1)(छ) से और अधिक स्पष्ट होता है कि किसी भी नागरिक को मन चाहे पद पर कार्य अथवा इच्छानुसार किसी विशेष पेशे या कारोबार करने की छूट नहीं है, (सर्वोच्च न्यायालय) | अतः स्पष्ट है कि उपरोक्त विषय के संबंध में किसी भी नागरिक - संप्रदाय का अधिकार - मांग असंवैधानिक है।

साथ ही संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ‘‘जीविकोपार्जन का अधिकार’’ मूल अधिकार है- किन्तु विधि के अधीन है "राज्य" प्रतिबंध लगा सकता है (सर्वोच्च न्यायालय) अतः रोजगार के नाम पर दहशतगर्द की तर्ज पर नाजायज मांग नहीं हो सकती ।

स्पष्ट है कि मांसाहार - पशु.वध विशेष पेशा या रोजगार अथवा पद पर रहना संवैधानिक अधिकार नहीं है। जो भी इस विषय में हो रहा है - वह ‘‘राज्य’’ व राज्य की व्यवस्था का भाग है। न कि मूल अधिकार ------------------------------------------------------------------------------ |

भाग 2 - तथ्य #2 

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उपरोक्त विषय के संबंध में भारतीय संविधान के अनु. 48 की शब्दावली का विश्लेषण करते है। भारतीय संविधान का अनु. 48 का निर्देश कि ‘‘अन्य दुघारू और वाहक ढ़ोरों की नस्ल सुधार व वध का प्रतिषेध’’ ऐसी स्थिति में भैंस से मादा भैंस को वध के लिये प्रतिबंध करें - क्योंकि  सामान्य नस्ल से अच्छी नस्ल की भैंस एक वर्ष में औसतन 3 लाख़ से 4 लाख रूपए तक दूध से आमदनी देती है और 50 हज़ार से 75 हज़ार रूपए की गोबर से आमदनी देती है । प्रथम स्तर पर यह किसानों व पशुपालकों का रोजगार है, द्वित्तय स्तर पर भारतवर्ष में दुध अनिवार्य आवश्यकता के कारण ‘‘लोक व्यवस्था’’ (मांग-लोच) की श्रेणी में है। अतः अनु. 48 की ‘‘अन्य दुधारू’’ शब्दावली में मादा भैंस भी है अतः इनका वध पूर्णतः प्रतिबन्ध योग्य है । इसी प्रकार वाहक ढ़ोरों की शब्दावली में गधा-खच्चर-घोड़ा-ऊँट है जो माल ढ़ोने में 25 प्रतिशत तेल की बचत करके विदेशी मुद्रा बचाते है साथ ही अनु. 48 (क) के निर्देश की पालना (पार्यावरण संरक्षण) भी होती है अतः ये पाँच पशु भी वध की श्रेणी से असंवैधानिक है। जिस क्षेत्र में नर भैंस (पाडा) वाहक-ढ़ोर के कार्य करते है उसपर भी सरकार ध्यान करें | इस प्रकार नए यांत्रिक कत्लखाने खोलने की अनिवार्य आवश्यकता नहीं रहती है | कुछ नादान वर्ग इसके घोर विरोधी है क्योंकि वह भारतवर्ष को शांत और सुनिश्चित व्यवस्था के रूप में देखना नहीं चाहते क्योंकि वो भारत के विकास और प्रभुत्व शून्य रूप में भी नहीं चाहते | इसका कार्य केवल - केवल मात्र राष्ट्र में अशांति फैलाना - वर्ग विभाजन करना - विदेशों में भारत को निम्न स्तर पर सिद्ध करना, यही इनका कार्य है |  

विशेष - नादान = अबोध बालक - मुर्ख - नासमझ - समझते हुए भी नासमझी करना - साधन-साध्य का अनुचित होना - पूर्वाग्रसित व अतिआसक्त रूप में मानसिक गुलाम - राष्ट्रवाद - राष्ट्रीय संस्कृति और सांस्कृतिक धरोहर विरोधी - स्वःधर्म की त्याग स्थिति (कुल – वंश - गोत्र व धर्म के आदेश) और परिस्थिति जन्य धर्म का त्याग (किसी भी प्रकार का पद - नियुक्ति के सम्बन्ध में निष्ठावान कर्तव्य कर्म से च्युत) | शत्रुदेश का पक्षधर व मित्र देश का विरोधी अति निम्न कृत्य | द्वेष व ईर्ष्या पूर्ण अन्यो का दुष्प्रचार (समाज व संस्कृति को विभक्त करना) करना | क्षति पहुँचाना - राष्ट्रीय सम्पत्ति व सार्वजनिक सम्पत्ति को और अन्य कारणों से राष्ट्र का अहित करना (जान-माल से)| सार्वजनिक रूप से गरिमा का हनन करना (संवैधानिक पदों एवं संस्थाओं व उच्च स्तर की संस्थाओं और व्यक्तिगत रूप से अन्यों का भी)| उपरोक्त नादानी में कुछ नादान कृत्य शूकर-कूकर योनी देने वाले होते है |

भाग 2 - तथ्य #3 

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भारतीय संविधान के अनु 51(क) के (च) के आधार पर ‘‘संस्कृति की गौरवशाली परम्परा को समझें व इसका परिरक्षण करे’’ इस शब्दावली के आधार पर भारतवर्ष में वैदिक संस्कृति प्रथम स्थान पर है (अपितु विश्व में भी) - जिसके तहत भारत विश्वगुरू ‘‘ज्ञान बाटने वाला (अन्यों का इतिहास आक्रमणकारी व विनाशक के रूप में ही रहा है)’’ ‘‘मांस’’ कैसे बांट सकता है। नागरिको के कर्तव्य श्रेणी शब्दावली होने से सामान्य नागरीक से प्रथम नागरिक तक यह शब्दावली प्रभावी है। गोवंश प्रथम भाग में अवध्य के रूप में संवैधानिक रूप से स्वयं सिद्ध है। इस भाग में भी 5 पशु संवैधानिक रूप से ‘‘अवध्य’’ है। सरकार स्वंय उपरोक्त शब्दावली की कर्तव्य श्रेणी (साथ ही  अनु. 48 इसका निर्देश देता है) में है। साथ ही 1914 की संसदीय कमेटी की रिपोर्ट भी नए कत्लखानो के विरुद्ध है | अतः नये कत्लखानें खोलने का अनुज्ञा पत्र प्रतिबंध की श्रेणी में करें और ‘‘अवध्य’’ पशुओं को खुले हुवे कत्लखानें में तस्करी एवं किसी अन्य माध्यम से कत्ल होने से रोकने की सुनिश्चित व्यवस्था प्रस्तुत करें । लोकहित-राष्ट्रहित में सरकार ‘‘मांस निर्यातनीति की पुनः समीक्षा करे। तथ्य संख्या 1 - 2 भी नये कत्लखानों पर प्रतिबंध के अधार है।

भाग 2 - तथ्य #4 

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उपरोक्त संबंध मे राष्ट्र की सर्वोच्च सत्ता संसद के ऊपरी संदन की 13 फरवरी 1914 को जारी रिर्पोट संख्या 151 को भी उपरोक्त विषय की विषयवस्तु का भाग समझे। जो प्रस्तुत विषय में सकारात्मक है | यांत्रिक कत्लखानो को रोकने के लिए आचार्य पदवी के जैन गुरु मणि प्रभ महाराज जी के शिष्य जैन मुनि मैत्री प्रभ सागर जी ने प्रस्तुत विषय पर अनेक अनशन - आंदोलन किये - जिसके कारण उनको अनेक मानसिक व शारीरिक यातनायें भोगनी पड़ी | इस विषय पर उनके शिष्यों का हैदराबाद में मुख्यालय भी है | 

भाग 2 - तथ्य #5 

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साथ ही इस सम्बन्ध में दो स्पष्टीकरण अनिवार्य हो जाते है - प्रथम महाराष्ट्र में सम्प्रदाय विशेष द्वारा गौमांस का राज्य के बाहर से मंगवाकर खाने के वाद की सुनवाई करना महाराष्ट्र उच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक सिद्ध होती है - क्योंकि मांसाहार के अनेक विकल्प होने के साथ-सम्प्रदाय का किसी भी तरह-किसी भी प्रकार से ऐसा करना संवैधानिक मूल अधिकार में नहीं आता है। और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत विकल्परहित धर्म का अभिन्न अंग भी नहीं है। इसी प्रकार 1995 (1) SCC पृष्ठ संख्या 189 के अति उत्तम निर्णय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ईद पर सम्प्रदाय विशेष पर गायों के वध पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इसको धार्मिक आधार पर पश्चिम बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार ने ईद पर इस घृणित कृत्य की अनुमति दी। उच्च न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय में 10-15 वर्षों की कानूनी लड़ाई में अपनी तुष्टिकरण ताकत लगा दी - अन्त में दिनांक 16-11-1994 को पश्चिम बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार की अपील खारिज हुई और ईद पर गौ-हत्या भी बन्द हुई एवं माननीय आषुतोष लहरी जी की विजय हुई । किन्तु इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने सात व्यक्ति मिल कर गाय व ऊँट के आधार पर गौ वध को ही अभिन्न अंग नहीं माना - कहा कि अन्य पशु ऊँट भी है - अतः गौ वध अनिवार्य नहीं है। ईद पर गौ हत्या अत्यंत क्रूरतम तरीके से - बलात् पटकना – उठाना – भगाना – मारना - अन्य शारीरिक वेदना देना इत्यादि बड़े सुख की अनुभूति के साथ ईद के नाम पर करते है | ऐसा गली-मौहल्लो में सार्वजानिक होता है | साथ ही स्वाभाविक रूप से शांत हिन्दू समुदाय की धार्मिक भावनाओ पर आघात करने का भी स्वयं की बुद्धि (नादान अनुभूति) से सुखानुभूति प्राप्त करते है | उपरोक्त तथ्य में ना ही गाय इनका सबसे अति प्रिय जीव है और न ही उपरोक्त क्रूरतम कृत्य किसी भी प्रकार से इनके धर्म का भाग नहीं हो सकता है अर्थात स्वयं को और ईस्लाम के नाम पर यह स्पष्टः घृणित दहशदगर्दी करते है | यहां माननीय सर्वोच्च न्यायालय से एक त्रुटि हो गई - जहां भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 (1) अनुसार अभिन्न अंग का विश्लेषण तो हुआ किन्तु विकल्परहित का नहीं - अतः ईद पर सम्प्रदाय विशेष के लिये बकरा विकल्प के रूप में पूर्व से ही उपस्थित है अतः ऊँट की भी ईद पर क्रूरत्तम हत्या नहीं हो सकती | इसी प्रकार ऊँट का ईद के नाम पर दहशतगर्दी के साथ हत्या गायों की हत्या से भी अभिक भयावह होती है | एक मैदान क्षेत्र में ऊँट के आगे के पैरों को बाँध दिया जाता है - सैकड़ो लोग तलवार - कटार - भाले इत्यादि के साथ विषाक्त युक्त हँसते-खेलते उत्सव मानते हुए कोई पेट में भाला मारता है तो कोई पीछे से तलवार का वार करता है कोई गर्दन पर ----- | यह सभी क्रूरत्तम कार्य तब तक होते हैं जब तक ऊँट के प्राण निकल नहीं जाते हैं | यह अट्ठास रुपी खुनी खेल नाजायज - दहशतगर्दी के साथ ---- स्वयं और इस्लाम के साथ भी दहशतगर्दी है - इस प्रकार नादान होने का अतिकठोर रूप प्रस्तुत करते है | इस प्रकार ऐसी स्थिति में पूर्णतः स्पष्टः स्वयंसिद्ध तथ्य यह है कि ईद पर बकरे के अतिरिक्त किसी भी अन्य पशु का वध असंवैधानिक है इस प्रकार कम्युनिस्ट सरकार की तुष्टिकरण रूपी नादान अनुमति और संप्रदाय विशेष का क्रूरत्तम कृत्य दोनों असंवैधानिक सिद्ध होते है। उपरोक्त मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय में धर्म के अभिन्न अंग का अति उत्तम विश्लेषण किया - किन्तु विकल्परहित अनिवार्यता का नहीं ......................। इस विषय के तत्काल समय में अति महत्वपूर्ण तथ्य होने के कारण सर्वोच्च न्यायालय की समस्त निर्णय पुस्तिकाओं में इसका प्रकाशन हुआ - जो इस प्रकार है  (1995) (1) SCC 189 - ए आई आर 1995 - एस सी 464 - 1994 (7) एस सी - 697 । अतः ईद पर बकरा विकल्प के रूप में पूर्व से ही उपस्थित है बकरे के अतिरिक्त अन्य पशु का वध असंवैधानिक स्वयं सिद्ध है।

भाग 2 - तथ्य #6 

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भारतीय संस्कृति गोपालन एवं कृषि प्रधान राष्ट्र के रूप में रही है और आज दिनांक तक भी है । आज़ादी की जंग में "वन्दे मातरम्" सबसे बड़े हथियार के रूप में सिद्ध हुआ और धरती माता - गौमाता के रूप में ही देवलोक जाती है । प्रत्येक राष्ट्रीय आयोजन में "भारत माता" की जय "वन्दे मातरम्" व "गौ माता" की जय का उद्घोष (आज़ादी के प्रथम घोषणा उत्सव के प्रथम  मंच पर भी ऐसा ही हुआ) होता है । राष्ट्र ध्वज का हरा रंग धरती की हरियाली - हरित क्रांति का प्रतीक है - न कि मूक सृष्टि की रक्तक्रांति का।  जो इनके आरम्भ की सभाओं से सिद्ध होता  है अतः अनुच्छेद 51 (क) के (क) का घोरत्तम उल्लंघन (राष्ट्र ध्वज संहिता 2002 का भी) है ।ऐसी स्थिति में मांस-मछली इत्यादि समस्त मांसाहार को "कृषि की श्रेणी" में रखना - सरकार का निर्णय प्रकृति-संस्कृति-व्यवहारिक पक्ष इत्यादि में पूर्णतः अव्यवहारिक एवं अविवेकपूर्ण है (ऐसा करना स्वतंत्रता उद्घोष के साथ भारत माटी का भी अपमान है)। अतः राष्ट्र के नागरिकों की धार्मिक और राष्ट्रीय भावनाओं को गहरा आघात लगता है । अतः इनको तत्काल "कृषि श्रेणी" से निरस्त किया जावे । अन्यथा संविधान सभा में डॉ. एस. राधाकृष्णन की राष्ट्रध्वज रूप की  व्याख्या - जिसे संविधान सभा ने सर्वसम्मति से पास किया उसका घोरत्तम अपमान है क्योंकि उनका कथन "हरा रंग माटी व वनस्पति जगत से हमारे संबंधो को उजागर करते है जिन पर पशु जगत निर्भर है" |  अतः उपरोक्त के विपरीत हम मूक प्राणियों के रक्त से माटी व कृषि जगत का सम्बन्ध कैसे कर सकते है? स्पष्ट है कि माटी - वनस्पति जगत - मूक प्राणी का सम्बन्ध सर्वसहमति से सिद्ध होता है| वहाँ पर 3 में से 1 का रक्त - मांस कैसे प्रवेश कर सकता है? यह अतिसंवेदनशील समझने योग्य तथ्य है |

भाग 2 - तथ्य #7 

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भरतवर्ष मे उपरोक्त व्यवसाय अन्य व्यवसायों से शत- प्रतिशत भिन्न प्रकृति का है। अति अल्प समूह के पास अकूत धन स्म्पदा हो गई है जो उद्देशिका की ‘‘समाजवादी’’ शब्दावली के विरुद्ध है। अतः यात्रिंक कत्लखानों व अन्य पशुवध गृहो की सभी प्रकार के अनुदान व कर संबंधि समस्त छूट को निरस्त  करें। मांस निर्यात से प्राप्त आय पर भी युक्ति-युक्त वर्गीकरण के आधार पर आयकर की वसूली की जावें - युक्ति-युक्त वर्गीकरण से जिस प्रकार एक चिकित्सा विशेषज्ञ को आयकर से छूट दी गई। ध्यान रहें कृषि उत्पादन-उत्पाद के निर्यात में और मांस के उत्पादन व निर्यात में अत्यधिक विषमता है।

भाग 2 - तथ्य #8 

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राष्ट्र में हजारों कि संख्या में पंजीयन - अपंजीयन कत्लखानें है । इस प्रकार के सभी कत्लखाने पर्यावरण को अत्यधिक दूषित करते है। आस पास की आबादी क्षेत्र में शुद्ध वायु (प्राणी जगत का 80 प्रतिशत भोजन प्राण वायु ही है) और शुद्ध जल कल्पना मात्र है। भारतीय संविधान के अनु. 21 के तहत शुद्ध जल और शुद्ध वायु ‘‘प्राण के अधिकार’’ में है,   सर्वोच्च न्यायालय । अतः ऐसा कोई भी स्थान जहां पशुवध होता है - उस स्थान की  कच्ची भूमि पर किसी भी प्रकार से पशु का अपशिष्ट पदार्थ गिरना नहीं चाहीए - यहाँ तक रक्त की एक बून्द भी नहीं और ना ही नाली के द्वारा रक्त व अन्य पशु पदार्थ बाहर आने चाहिए इसका प्रमुख कारण भू-जल है जो एक बार प्रदूषित होने पर उसे शुद्ध नही किया जा सकता है। जिसके कारण आबादी क्षेत्र के हैडपंपों से जल के रूप अनेक रोग आते है जो संज्ञान में शीघ्र नहीं आते - और आने के बाद भी शुद्धिकरण असम्भव सा हो जाता है । जिससे आस-पास के कृषि क्षेत्र के लिए भू - जल बेकार हो जाता है- जो लोक व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा (अन्य किसी भी स्थानों पर ऐसा नहीं होना चाहिए) है साथ ही भारतीय संविधान के अनु. 47 ‘‘प्राथमिक  स्तर पर लोक स्वास्थय’’ के आधार पर कठोर - सुनिश्चित विधिक कार्यवाही अनिवार्य है। पशुवध गृह का रक्त किसी भी प्रकार से नदी - नालों व समुद्र में प्रवेश नहीं करना चाहीए- क्योंकि प्रथम स्तर पर जल प्रदुषण और द्वित्तय स्तर पर पशु रक्त की गंध से मगरमच्छ - सफेद शार्क मछली किनारों पर आ जातें है और मानव भक्षी बन जाते है। इसी प्रकार आंतें इत्यादि बाहर फेंकने पर कुत्ते खाते है फिर वह छोटे बच्चों का भी खाने लग जाते है (मांसाहारी बनने से)। प्रथम घटना यूरोप देश में बहुत समय तक रही- अनुसंधान के पश्चात ज्ञात हुआ कि - सफेद शार्क मछली समुन्द्र के लाखों जीवों से 10,000 हजार गुना अधिक गन्ध शक्ति रखती है और घटना वाले स्थानों पर पशुवध गृह से पशुओं का रक्त पानी में मिल रहा था - कुत्तों वाली घटना भारतवर्ष में भी कई स्थानों पर हो चुकी है। इस प्रकार  भारतीय अनु. 21 के तह्त ‘‘जीवन जीने के अधिकार को खतरा’’ हो जाता है साथ ही ‘‘अंहिसा परमों धर्मः’’ मानने वाले नागरिको को मानसिक आघात और अनु. 25 (1) के आधार पर धार्मिक भवानाओं  एवं आस्था - विश्वास को  आघात लगता है। अतः कत्लखानों और छोटे पशुवध गृहों को आबादी क्षेत्र से स्थातंरण करना अनिवार्य है। साथ ही कत्लखानें हो अथवा  छोटे पशुवध गृह नाम के अतिरिक्त वहां आने - जाने वालें नागरिकों को किसी भी कारण - क्रिया से अथवा प्रदूषण से यह महसूस नही होना चाहीए - कि यहाँ ‘‘पशुवध’’ होता (कोई भी क्षेत्र गॉव - क़स्बा - शहर अथवा आवागमन का मार्ग) है स्थातंरण की स्थिति में कोई सरकारी अनुदान व अन्य सहायता नही होनी चाहीए - अपितु अनुदानित होने पर उस पुरानी भूमी-भवन इत्यादि पर सरकार अधिग्रहण करें। सभी प्रकार के अपशिष्ट पदार्थो का चार दिवारी के अंदर ही आधुनिक तकनीक से निष्पादन करें - उपयोगी पदार्थ उपयोग स्थानों पर प्रेषण करें । अतः पशुवध गृहो के लिये कठोर विधिक नियमावली बनाई जावें- जिसमें जुर्माने व सजा का प्रावधान (भययुक्त होना अनिवार्य है) हो साथ ही सभी नियमों का भौतिक सत्यापन होने के पश्चात ही ‘‘वधगृह" नये रूप में कार्य कर सकतें है। इससे पूर्व सभी अनुज्ञा पत्र व पंजीयन रद्द करें साथ ही बगैर अनुज्ञा पत्र - पंजीयंन के एक भी  वधगृह चलना नहीं चाहीए। क्योकि भूमि - जल - वायु को प्राकृतिक रूप से शुद्ध रखने के लिए ‘‘वधगृह‘‘ संवैधानिक रूप से ‘‘बाध्य’’ भी है। साथ ही "राज्य" ऐसी व्यवस्था करने के लिए -------- | 

भाग 2 - तथ्य #9 

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उपरोक्त के अतिरिक्त सक्षम तंत्रों द्वारा निश्चित स्थानों पर ‘‘वध’’ होने पर भी विधि व्यवस्था के अतिरिक्त कुछ विशेष नियमों की पालना के आधार पर वध को सुनिश्चित करें – जो (लोक व्यवस्था - लोक स्वास्थ्य - सदाचार का कठोरता से पालन होना चाहिए) विधिक रूप से अनिवार्य भी है | इस प्रकार की विधिव्यवस्था को किसी भी प्रकार से नकार नहीं सकते |

भाग 2 - तथ्य #10 

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पशु-वध गृह के लिए विधिक रूप से 5 से 10 विभागों की अनुमति अनिवार्य है जिसकी सुनिश्चित व्यवस्था करें | रक्त निष्पादन हेतु विद्युत् यंत्र की सुनिश्चित व्यवस्था करनी अनिवार्य है - गर्भाधान व प्रसवयुक्त पशु वध के प्रतिबन्ध को सुनिश्चित करने के साथ विशेषज्ञों द्वारा पशु प्रजाति के आधार पर समय-अवधि (उम्र) का निर्धारण होना चाहिए | साथ ही पशु-वध से पहले स्वास्थ्य व बाद में माँस का चिकित्सा परिक्षण सुनिश्चित रूप से होना चाहिए | इस प्रकार जहाँ कहीं भी पशु-वध होता है क़त्ल खाने हों या छोटे पशु-वध गृह बकरे - मुर्गी इत्यादि के उन सभी में 30% भूमि हरियाली - पेड़ युक्त (स्थिति अनुसार छोटे पौधे इत्यादि भी हो सकते है) व रक्त (व अन्य अपशिष्ट पदार्थो का भी) निष्पादन का भौतिक सत्यापन समय-समय पर हो| बाज़ारों में छोटी दुकानों पर इस प्रकार पशु-वध नहीं हो सकता जो वर्तमान में हो रहा है क्योंकि यह लोकव्यवस्था – सदाचार (भारतीय संविधान की सशक्त शब्दावली) और प्राकृत व्यवस्था के विरुद्ध है |

भाग 2 - तथ्य #11 

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पशुक्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत् जिसके संरक्षण में अथवा नियंत्रण में पशु है वही उसका मालिक है पशुहित में यथा संभव जो भी उपचार हो सकता है उसे कराने के लिये वह (वधगृह) ‘‘बाध्य’’ है। विधिक व स्वाभाविक रूप से वह पशु को अन्य क्रूरता से बचाने के लिए भी उत्तरदायी है। इस संबंध में कठोर विधिव्यवस्था प्रभावी करें | 

भाग 2 - तथ्य #12 

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प्रत्येक 6 माह से पशुओं का आंतरिक व बाहरी परजीवी उपचार अनिवार्य करें। ऐसा करने से रोग ग्रस्त होनें की संभावना नहीं होगी साथ ही पशु हष्ट-पुष्ट व खुशहाल स्थिति में रहने से उनके वजन व उत्पादन में वृद्धि होगी जिससें कम संख्या में पशुवध होगा। अतः सरकार को सभी चिकित्सा केंद्रों पर "डीवर्मिंग" की दवा का निशुल्क वितरण करना होगा | अन्य रोग प्रत्यक्ष होने पर पशु पालक उनका उपचार करने के लिए बाध्य होते हैं अथवा करते है किन्तु यह पशुओं का आधारभूत रोग अप्रत्यक्ष होने से ध्यान नहीं दिया जाता, अज्ञान में - जानकारी के आभाव में इसका नुक़सान पशुपालको को ही होता है | अतः सरकार को इस संबंध में जागृति लानी चाहिए | “डीवर्मिंग का कहना है - स्वस्थ पशु समृद्ध भारत (पशु पालक)” | 

भाग 2 - तथ्य #13 

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जीवित अवस्था में  मुलायम चमड़े के लिये पशुओं पर गर्म पानी डालने को प्रतिबंध करने की सुनिश्चित विधिक व्यवस्था करें।

भाग 2 - तथ्य #14 

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जीवित अवस्था में चमड़ा निकालने पर प्रतिबंध की सुनिश्चित विधिक व्यवस्था करें।

भाग 2 - तथ्य #15 

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जीवित अवस्था में रक्त निकालनें के लिए पशु को उल्टा लटकाने की प्रकिया को प्रतिबंध  करने की सुनिश्चित विधिक व्यवस्था करें।

भाग 2 - तथ्य #16 

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पशु शरीर के वध स्थान के अंग कों स्थानीय सूनापन उपचार द्वारा सूनापन विधि की सुनिश्चित विधिक व्यवस्था करें। विशेषकर सूअर की सूनापन विधि और वध विधि में उच्च वैज्ञानिक तकनीक अपनाने की अति कठोर विधि व्यवस्था करना सरकार का संवैधानिक दायित्व है | इसी प्रकार मगरमच्छ की तस्करी के खिलाफ भी अति कठोर विधि व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि इनकी खाल उतारना भी अति भयावय है |

भाग 2 - तथ्य #17 

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पशु वध  के समय अन्य पशुओं की उपस्थिति को प्रतिबंध करने की सुनिश्चित विधिक व्यवस्था करें।

भाग 2 - तथ्य #18 

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पशु प्रजाति के आधार पर उम्र और वजन सुनिश्चित करने की विधि व्यवस्था करें - जिससें रोगग्रस्त पशुओं का बचाव और पूर्व में रख - रखाव का स्पष्टीकरण होता है। रोग ग्रस्त मानव को भी न्यायालय सजा नहीं देता है।

भाग 2 - तथ्य #19 

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कत्लखानों में वाहन से पशुओं को गिराना - पटकना सामान्य है अतः आरामदायक उतारने की सुनिश्चित विधिक व्यवस्था हो।

भाग 2 - तथ्य #20 

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कत्लखानों में पशुओं के लिये खाने-पीने और सर्दी - गर्मी - वर्षा  से बचाव के साथ ही रहने के स्थान की सफाई व्यवस्था की सुनिश्चित विधिक व्यवस्था हो।

भाग 2 - तथ्य #21 

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जिस स्थानों से पशु ले जाना है वहां के सक्षमतंत्र का प्रमाण पत्र जिसमे नस्ल - पशु संख्या - उम्र इत्यादि का विवरण होना चाहिए साथ ही  सभी चैक पोस्ट पर जाँच व समय अंकित करें जिससे गति सीमा का निरीक्षण हो सकता है।

भाग 2 - तथ्य #22 

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30-40 कि.मी. की गति सीमा को आधार माने - तो  ऐसी स्थिति में 300 कि.मी. अथवा उससे अधिक दूरी होने पर खाने पीने की सुनिश्चित व्यवस्था की जानकारी सक्षम तंत्र को व चैक - पोस्ट पर सिद्ध करनी अनिवार्य होनी चाहिए । साथ ही वाहन में नुकीली कील - लोहे इत्यादी का उभरा स्थान नहीं होना चाहीए, अन्यथा उपरोक्त सभी कृत्यों से पशु घायल हो सकते है जो विधि के पूर्णतः विरुद्ध है ।

भाग 2 - तथ्य #23 

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परिवहन के समय वाहन पर “पशु वाहन” का बैनर होना चाहिए - जिसमे वाहन के आधार पर पशु प्रजाति कि संख्या निश्चित होनी चाहिए। ‘‘वधगृह’’ के क्षेत्र का सक्षम तंत्र प्रमाणपत्र की जाँच व पशुओं कि स्थिति (घायल-असहाय) न हो सके। ऐसा होने पर वाहन सहित पशु जब्त करने की कार्यवाही होनी चाहिए। अंतिम जांच - परिक्षण में विधि व्यवस्थाओं का उल्लघंन सिद्ध होता है - तो ऐसी स्थिति में पिछली चैक-पोस्टो पर ‘‘उचित परिवहन व समय अंकित करने वाली’’ टीम के विरुद्ध विधिक कार्यवाही की व्यवस्था होनी चाहिए। प्रस्तुत विषय के सभी कार्यो में लापरवाही व भ्रष्ट आचरण होने की स्थिति में अपराध व लापरवाही के आधार पर वेतनवृद्धि-पदौन्नति को दो-चार साल तक प्रतिबन्ध करें अथवा गंभीरता की स्थिति में बर्खास्त- प्रस्तुत विषय में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम व अन्य विधि का प्रयोग न हो ‘‘युक्ति-युक्त वर्गीकरण” ही करें |

भाग 2 - तथ्य #24 

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लोकव्यवस्था–लोकस्वास्थ्य-सदाचार व नैसर्गिक रूप से विधि का सकारात्मक होना...........। स्पष्ट है कि अघ्रुमपाई अधिनियम - प्रदूषण अधिनियम (जल - ध्वनि – वायु) इत्यादि इन पर जो अधिनियम है ये भी विधि की सकारात्मकता को सिद्ध करते है। 2000 से 2010 की अवधि में प्रस्तुत विषय के संबंध में राज्यों व न्यायपालिकाओं द्वारा कई निर्णय हुए जिसमे महत्वपूर्ण निर्णय - मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने अण्डों के ठेले इत्यादि जो आमलेट बनाते है उनको सार्वजनिक स्थलों से अथवा शाकाहारी सार्वजनिक स्थलों से अलग स्थान के निर्धारण का आदेश दिया था - यह भी विधि की सकारात्मकता है। कुछ विदेशों में एक जंगली फल पाया जाता है जो अत्यंत पौष्टिक व स्वादिष्ट होता है - किन्तु उसकी तीव्र गंध के कारण आबादी क्षेत्रों में उसके खाने पर प्रतिबन्ध है यह भी विधि की विश्व स्तर पर सकारात्मकता को सिद्ध करता है। राज मार्गों से शराब की दुकानें हटाना यह भी विधि की सकारात्मकता को सिद्ध करता है। उपरोक्त तथ्यों में कोई भी किसी भी परिस्थिति में यह नही कह सकता कि मुझे ऐसा करने का अधिकार है क्योंकि सभी कुछ विधि के अधीन ही होता है, जैसे लोक व्यवस्था इत्यादि । इसी प्रकार धारा 144 - कर्फ्यू क्षेत्र घोषित करना, देखते ही गोली मारने के आदेश देना यह भी परिस्थितियों के कारण विधि के सकारात्मक रूप को ही सिद्ध करते है। भारत में मांसाहार सरकार की नीति - अनुमति व लोक व्यवस्था के तहत ही है। क्योंकि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 (क) का (छ) प्रत्येक प्राणी के प्रति दया-भाव का संवैधानिक कृत्य आरोपित करता है और भारतीय संविधान की किसी भी शब्दावली में मांसाहार के मूल अधिकार का उल्लेख नहीं है। अतः मांसाहार व्यवसाय व खाना - स्थान वर्गीकरण सरकार के नियमों के तहत ही चल सकता है न कि अधिकार के तहत। अतः न्यायपालिका मांसाहार की नकारात्मक व्यवस्था पर कोई भी सुनवाई नहीं कर सकती । अतः भारत में सम्पूर्ण पशु वध जो विधि-विरूद्ध है सार्वजनिक है उनको प्रतिबंध किया जाये व शाकाहार के खान-पान की होटलों के स्थानों से अलग मांसाहार के ठेले-दुकानें इत्यादि होने चाहिये और मांसाहार व अपशिष्ट पदार्थो का सार्वजनिक प्रकटीकरण भी नहीं होना चाहिये - इसके लिये विधि द्वारा दुकानों इत्यादि के आगे लाल क्रास लगा कर तिरपाल का उपयोग अनिवार्य करना चाहिये साथ ही मांसाहार के उबालने अथवा आमलेट आदि की तीव्र गंध शाकाहार होटलों और शाकाहार आबादी क्षेत्रों में नहीं होनी चाहिये - क्योंकि एक सामान्य गली-मौहल्ले में जब मांसाहार पकाया जाता है तो पास के अमांसाहारियों के लिये अत्यंत भयावह स्थिति उत्पन्न हो जाती है और इसका समय भी अधिकतम होता है इसके प्रत्यक्ष उदहारण है- गर्भवती महिलाओं को वमन, रक्तचाप वालों का रक्तचाप बढ़ना और मानसिक अवसाद रोगियों की स्थिति भी खराब हो जाती है और अमांसाहारियों के लिये घर में खान-पान करना व श्वांस लेना भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि मांसाहार उबालने की तीव्र गंध हवा के बहाव के साथ 50-100 फुट से अधिक तक आती है वहां अमांसाहारी को खड़ा रहना, श्वास लेना, बात करना भी दुष्कर हो जाता है अतः गली-मौहल्ले इत्यादि में जहां अमांसाहारी है उनकी शिकायत पर मांसाहार को उबाल कर पकाने वाली प्रक्रिया बन्द करनी चाहिये आवश्यकता होने पर बाज़ार से खरीद सकते हैं जिस प्रकार पुलिस में शिकायत करने पर ध्वनि प्रदूषण अधिनियम की तरह आयोजको -बोलने वालों पर क़ानूनी कार्यवाही व ध्वनि प्रसारण यंत्रों को जब्त किया जाता है वैसी कार्यवाही सुनिश्चित करें (जब एक मकान से दूसरे मकान में ध्वनि प्रदुषण प्रवेश नहीं कर सकता - उसी प्रकार की विधि के तहत 100-100 फुट गली-महौल्ले में मॉस उबालने का वायु प्रदुषण अमाँसाहारियों के लिए कैसे प्रवेश कर सकता है--------------------?) उपरोक्त मामलों में विवाद न हो - पुरे शहर में दहशतगर्दी का माहौल न बने, इस हेतु सरकार को विधिक सार्वजानिक सूचनाओं का प्रकाशन करना चाहिए अथवा स्थानीय प्रशासन को दिशा-निर्देश और नागरिकों को ऐसा करवाने के लिए अधिकार देने चाहिए ------- जिससे सकारात्मक विधि केवल संप्रदाय विशेष के लिए ही नहीं, अपितु हिन्दू समुदाय के लिए भी हो | महानगर निगम से लेकर छोटी नगर पालिका तक कचरे के डिब्बों तक, सड़क चौराहें पर मृतक पशुओं के अपशिष्ट पदार्थ पड़े रहते है जो लोक स्वास्थ्य और सदाचार के पूर्णतः विरुद्ध है | इसकी कठोरता से प्रबंधन की व्यवस्था होनी चाहिए। अतः "राज्य" सक्षम तंत्रों को विधि व्यवस्था का निर्देश व तत्काल पालना हेतु आदेश करें | बाज़ार स्थानों पर मूक प्राणियों की खाल हटा कर मांसाहार के रूप में उनको विक्रय स्थान पर सार्वजनिक रूप से लटकाया जाता है जिससे बच्चों व अन्य अमांसाहारियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है साथ ही दूध-दही व अन्य शाकाहारी पदार्थो की दुकानों पर अंडो के विक्रय पर प्रतिबंध अनिवार्य है जैसा कि गुजरात के कुछ क्षेत्रों में है क्योंकि इन सभी कृत्यों से अनुछेद 25 के तहत धार्मिक भावनाओं पर भी आघात पहुँचता है - यह विधि विरूद्ध होने के साथ सदाचार (सदाचार भारतीय संविधान की सशक्त शब्दावली है) के विरूद्ध भी है। साथ ही आंगनबाड़ी से लेकर स्कूल विश्वविद्यालय तक (इसमें छात्रावास भी शामिल है) स्टेशनो व बस स्टेण्डों (बस यात्रा अथवा रेल यात्रा) पर और सरकारी विश्राम गृहों में मांसाहार का प्रयोग प्रतिबन्ध किया जाये। एक मांसाहारी खाना खाने वाले के पास में अन्य अमांसाहारियों को भोजन व अन्य पदार्थ खाना यात्रा या अन्य सार्वजनिक स्थान पर दुष्कर हो जाता है किन्तु माँसाहारी यात्रा - होटल इत्यादि स्थानों पर शाकाहारी भोजन व अन्य पदार्थो का भक्षण कर सकता है| इसी प्रकार मछली वाले राज्यों के स्टेशनो पर एक वातानुकुलित आधुनिक भण्डार गृह होना चाहिये - जिससे उस स्टेशन पर अमांसाहारियों को श्वांस लेने में परेशानी न हो अथवा रोगी व्यक्तियों अन्य यात्रियों के लिए कच्ची मछली की तीव्र गंध असहाय होती है। पहुँचने वाले स्टेशनो पर ऐसे नियम व विधि व्यवस्था होनी चाहिये कि आने के पश्चात् तत्काल ले जाने की अनिवार्यता हो - इसके लिये स्टेशन अधीक्षक (कोई भी अन्य प्रभारी) को व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी बनाया जावे (दण्ड स्वरूप वही ‘‘युक्ति-युक्त वर्गीकरण’’)। तटीय क्षेत्रो के स्टेशनो पर यह गंभीर समस्या है उपरोक्त तथ्य पर सरकार तत्काल कार्यवाही करें - साथ ही इन क्षेत्रो में मछली पकाना-खाना सामान्य है अतः आबादी क्षेत्र में ये क्षेत्र उपरोक्त सकारात्मक विधि व्यवस्था से मुक्त (समय व गंध अतिअल्प मात्रा में होती है) है किन्तु बाज़ार व्यवस्था उपरोक्त स्थिति वाली ही प्रभावी होगी, साथ ही मछली पकड़ने वाले साधनों पर सफाई से पहले सरकार अथवा उनका संगठन ऐसी व्यवस्था करें (सफाई से पूर्व फिनाइल व अन्य केमिकल का स्प्रे) जिससे तीव्र गंध मुख्य बाज़ारो - मुख्य मार्गों तक वास्तविक रूप से न पहुँच सके | भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार समुदाय विशेष के सभी उपासना स्थलों-धार्मिक क्षेत्रो मुख्य व उप मुख्य के आधार पर मांसाहार प्रतिबंध व अन्य निषेध पदार्थो का दूरी निर्धारण करने की सुनिश्चित व्यवस्था करें (यह सभी विधि व्यवस्था करने हेतु वहाँ के ट्रस्टी गण व कोई भी वहाँ के प्रबंधक गण हो स्थानीय प्रशासन को सूचित करें ताकि वहां की दूरी का निर्धारण सुनिश्चित हो) | इसी प्रकार उपासना स्थलों की तरह धार्मिक क्षेत्रों में सरकार- प्रशासन स्थानीय निकाय की सीमा तक माँसाहार व अन्य निषेध पदार्थो को प्रतिबंध करें, कुरुक्षेत्र - हरिद्वार - काशी - मथुरा - वृंदावन - स्वर्ण मंदिर (अमृतसर) - गुजरात का पालिताना - द्वारका - सोमनाथ - बुद्ध स्थान (बिहार) - पुष्कर इत्यादि के अतिरिक्त इन क्षेत्रों के जो जानकार है वो अपने-अपने और भी अन्य स्थानीय धार्मिक क्षेत्रों के लिए उपरोक्त विधि व्यवस्था के लिए सरकार - सक्षम तंत्रो को सूचित करें | यहां पर अव्यक्त सकारात्मक विधि भी लागू है जैसेः- सम्प्रदाय विशेष के उपासना स्थलों व उनके आबादी क्षेत्रों में कहीं पर भी सुअर पालन, सुअर मांस की बिक्री अथवा पकाना पूर्णतः स्वतः ही विधि का रूप ग्रहण कर रखा है। इसके अतिरिक्त शराब की बिक्री का भी अव्यक्त सकारात्मक विधि द्वारा इन क्षेत्रों में प्रतिबन्ध है। जबकि अन्य उपासना स्थलों (हिन्दू समुदाय के चारों समाज) पर उपरोक्त सभी आस्था और विश्वास विरुद्ध कार्य होने के साथ स्थानीय निकायों द्वारा कचरे रखने का स्थान भी बनाया जाता है | अहिंसा परमो धर्म मानने वाले हिन्दू समुदाय के मोहल्लों (वैष्णव समाज) के पास भी माँसाहार के होटलों में खान-पान, माँसाहार का विक्रय इत्यादि शुरू होते है और स्थानीय प्रशासन और निकाय मूक दर्शक रहते है | इसी प्रकार हिन्दू समुदाय के अनेकों उपासना स्थलों के आस पास अनु. 25 (1) के विरुद्ध कार्य होते है जिससे हिन्दू समुदाय को मानसिक आघात पहुँचता है | उदहारण के लिए जयपुर के मोती डूंगरी दादाबाड़ी के पास सम्पूर्ण क्षेत्र में मांसाहार का कार्य होता है | और वहां सुबह - शाम हज़ारों भक्तगण अपनी आस्था और विश्वास के साथ पूजा - अर्चना करने आते है, अतः मांसाहार क्षेत्र तत्काल प्रतिबंध योग्य है किन्तु ------- |  यदि ऐसा संप्रदाय विशेष के क्षेत्र में शराब और सूअर सार्वजनिक रूप से लाना-लेजाना होता है तो पुरे शहर में दहशतगर्दी का वातावरण बन जाता है और स्थानीय पुलिस और प्रशासन तत्काल कार्यवाही भी करते है जबकि सूअर आपातकाल में अन्य माँसाहार की तरह जायज भी है |  यह सभी कार्य समुदाय विशेष के शांत स्वभाव व सहिष्णुता के कारण जबकि संप्रदाय विशेष के सभी सकारात्मक विधि के नियमों की स्वतः पालना की जाती है | इसमें स्थानीय निकाय से लेकर केंद्र तक शामिल - सहमति है | यह भारतवर्ष है "राज्य" को यह कदापि भूलना नहीं चाहिए |

विशेष - सकारात्मक विधि के तहत सदाचार - आस्था – विश्वास, भारतीय संविधान के अनु. 25(1) के आधार पर अनियंत्रण मांसाहार हेतु तिरपाल, लाल निशान इत्यादि को विश्वस्तर की सकारात्मक विधि के तहत उपरोक्त तथ्य में प्रस्तुत और संवैधानिक रूप से सिद्ध किया गया | किन्तु साथ ही अपराध के आधार पर भी भारत एवं विश्व में पहचान छिपाने को अपराधिक षडयंत्र माना जाता है - जैसे दो पहिया वाहनों के नंबर प्लेट पर नंबर सही नहीं होने पर जुर्माना इत्यादि होते है | हम कहीं भी भारत में (विदेशों में भी ऐसा होता है) होटल, गेस्ट हाउस अथवा धार्मिक स्थलों पर ठहरने - रुकने के लिए जाते है, पहचान पत्र अनिवार्य रूप से देना होता है - अन्यथा ठहरने के लिए कमरा नहीं मिलता, कुछ मामलों में तो एक स्थान से दूसरे स्थान पर आना-जाना भी संभव नहीं होता है| इनके अतिरिक्त भारत और विश्व में निजी क्षेत्र व सरकारी क्षेत्र में करोड़ो की संख्या में ऐसे कार्य स्थल है - जहाँ पर पहचान पत्र, अनुज्ञा पत्र (वहां की संस्था का आज्ञा पास) दोनों ही अनिवार्य होते है - क्या ऐसी स्थिति में होटल - रेस्टोरेंट इत्यादि की जानकारी भी यात्रियों और ग्राहकों के लिए अनिवार्य हो सकती है| भारत में ऐसे हज़ारों होटल, रेस्टोरेंट, दुकानों पर, बाहर बोर्ड पर नाम से - अंदर जाने पर स्वागत कक्ष में अथवा पुरे होटल या दूकान - रेस्टोरेंट में घूमने पर भी किसी भी कोने में दिवार पर ऐसा महसूस नहीं होता है कि होटल मालिक कौन है - इसका संचालन कौन कर रहा है - कौनसे वर्ग विशेष की है | उपरोक्त सभी में यात्रियों का एवं ग्राहकों का अपनी इच्छा पर रहना, खाना-पीना है, परन्तु विधि के तहत पहचान छिपाना आपराधिक षड्यंत्र के तहत अपराध है, अतः पहचान का भौतिक रूप से प्रकटीकरण करना भारतीय विधि व्यवस्था के तहत अनिवार्य सिद्ध होता है | क्योंकि ऐसे स्थानों पर आस्था-विश्वास का प्रतीक चिन्ह नहीं होता है | अर्थात वह जान-बुझ कर अपनी पहचान छिपा रहे है जो की एक आपराधिक षड्यंत्र है | काफी समय से ऐसे अनेक मामले सार्वजानिक हो रहे है, कटिंग-सैलून की दूकान में मसाज, पानी इत्यादि में थूकना, रोटी में थूक लगाना, जूस में मूत्र मिलाना, यहाँ तक कि मांसाहार होटलों में "बीफ" तक खिलाना - ऐसा अन्य वर्ग समूह द्वारा भी हो सकता है - जैसे झटके का मीट, सूअर का मांस इत्यादि | कटिंग सैलून की दुकानों, जूस की दुकानों, खाने-पीने के रेस्टोरेंट्स इत्यादि में थूक मिलना, मूत्र मिलाना और इसी प्रकार पुष्पमालाओं पर भी इस प्रकार के निम्न श्रेणी के नादान कार्यों को विधि द्वारा रोक पाना - कुछ संशयप्रद ही लगता है क्योंकि इनकी मानसिकता परिवर्तन हेतु विधि के साथ इनके मजहबी मौलवी - इमामों द्वारा भी समझाने की कोशिश अनिवार्य है | अतः सभी की आस्था - विश्वास की रक्षा सुनिश्चित करने का संवैधानिक कर्त्तव्य "राज्य" का है, क्योंकि संविधान द्वारा स्थापित कर्तव्यों का पालन करना अनिवार्य है | कुछ लोग ऐसे भी है जो सद्भाव का प्रकटीकरण करने के लिए एक ही तस्वीर में अनेक वर्ग विशेष की आस्था - विश्वास की तस्वीरें होती है - ये लोग वास्तव में सद्भावी - समभावी नहीं होते है अपितु एक चालाकीपूर्ण आपराधिक प्रवृत्ति छुपी रहती है | अतः लोकव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए किसी भी व्यावसायिक स्थल का - सड़क पर ठेले से लेकर उच्च स्तर के व्यावसायिक स्थल तक (सुपर मार्किट या सुपर मॉल) पहचान और नामांकरण होना विधिक दृष्टि से अनिवार्य रूप से प्रभावी होना चाहिए | "कानून का शासन" अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करें उसके पश्चात् यात्री-ग्राहक, अपनी इच्छा से रहना, खाना-पीना, खरीदारी इत्यादि कर सकते है | इसमें सबसे बड़ा एक उदहारण आता है - केक व पेस्ट्री की दुकानों का जिसमे अधिकतर दूकान का बोर्ड अंदर की दीवारों में, किसी भी कोने में, किसी भी प्रकार का आस्था-विश्वास के तहत इष्ट देव अथवा इष्ट स्थान की तस्वीर नहीं होती है| ऐसे सभी व्यावसायिक स्थल अधिकतर संप्रदाय विशेष के लोगो के ही होते है | दुकानों एवं अन्य व्यावसायिक स्थलों पर अन्य समुदाय के व्यक्ति दिखाई देते है अथवा स्वयं रहने पर अपना कोई भी प्रतीक या पहचान होटल-दुकान इत्यादि में धारण नहीं करते है ------ | अब प्रश्न यह उठता है कि वर्तमान में केक-पेस्ट्री बच्चो के जन्मदिन में उपयोग लेना बहुत ही सामान्य बात है और सर्व प्रथम अपने इष्ट को भोग लगाना भी सामान्य बात है | जो केक-पेस्ट्री विशेष सम्प्रदायों के घर में बन कर आती है, सामान्यतः स्वाभाविक रूप से - उनका पकाना-रखना इत्यादि भी मांसाहार के बर्तनो में भी होता है और स्वयं के द्वारा भी मांसाहार का खान-पान होता रहता है | अतः कठोरता से विधि व्यवस्था को प्रभावी बनाया जावे - जिससे पहचान का प्रकटीकरण अनिवार्य हो सके | इस प्रकार शेष कार्य आम जनता की इच्छा-अनिच्छा पर निर्भर रहेगा | उसमे किसी को कोई आपत्ति भी नहीं करनी चाहिए, किन्तु विधिक पालना अनिवार्य है | सार रूप में तथ्य यह है कि संप्रदाय विशेष में कुछ पंथ के आधार पर ऋणातम कार्य क्रिया रूप में सिद्ध होते है - जैसे एक ही जूंठी गिलास से सभी लोगो का मुँह लगा कर पानी पीना - घर के पीने वाले मुख्य बर्तन में घर के मुखिया द्वारा सर्वप्रथम थूकना फिर वह पानी परिवार के सभी सदस्यों द्वारा पीना | प्रथम इनका नादान कार्य मोहब्बत बढ़ाने के लिए किया जाता ---- वह तो संक्रमण बीमारियों और कोरोना के बाद एक ही जूठे गिलास से पाने पीने वाला मोहब्बत का भूत कुछ हद तक हट गया, किन्तु मुखिया द्वारा थूखने वाला जिहाद - जिससे समपूर्ण परिवार वो पानी पीने से नियंत्रण में रहे - यह कार्य अब थूक-मूत्र जिहाद के रूप में फ़ैल रहा है | अतः नामांकरण दूकान के बाहरी बोर्ड पर और दूकान के आंतरिक स्थल में भी पंथ अथवा मजहब का स्पष्टीकरण होना अनिवार्य है | कुछ सामूहिक धार्मिक तस्वीरें लगाते है और कुछ एक कोने में साई बाबा की तस्वीर भी लगा देते है, उनके नीचे कोई धूप-दीपक का स्थान भी नहीं होता है, यह तात्कालिक प्रभाव से रुकना अनिवार्य है क्योंकि केक-पेस्ट्री के साथ संप्रदाय विशेष के लोग बिस्कुट, टोस्ट, पाँव, ब्रेड इत्यादि भी बनाते है और स्थानीय स्तर पर इनकी दुकानों में सप्लाई भी होती है | लेने वाले और देने वाले दोनों ही विधिक रूप से पाबंद होने चाहिए - एक पाव की भी पैकिंग है तो भी उनमे नाम इत्यादि का सम्पूर्ण विवरण होना चाहिए | इनके पश्च्यात सभी नागरिक-ग्राहक अपनी इच्छानुसार खरीददारी, खान-पान, कटिंग सैलून का कार्य आदि करवा सकते है |

विशेष - ईदगाह - दरगाह आबादी क्षेत्र - उपासना क्षेत्र - इन सभी की संख्या लाखों में है, जहाँ पर सूअर पालन का रोज़गार, शराब व्यापार का रोज़गार, सूअर मांस के विक्रय का रोज़गार नहीं होता है क्योंकि बगैर शासन के आदेश के बावजूद भी यहाँ पर स्वाभाविक रूप से सकारात्मक विधि लागू होती है | जबकि सूअर इनके मजहब में पूर्णतः प्रतिबन्ध नहीं है और दरगाह इनके मजहब में पूर्णतः नाजायज़ है फिर भी हमारी राज़ व्यवस्था और राजनैतिक तुष्टिकरण के कारण ऐसा होना और मजहब के नाम पर इनकी दहशतगर्दी भी ज़िम्मेवार है | अतः हिन्दू समुदाय के तीर्थ स्थानों की नगर सीमा तक और अन्य स्थानों पर उपासना स्थलों के आस-पास के क्षेत्रों में और वे रास्ते जहाँ से भक्तों का आना-जाना रहता है, सकारात्मक विधि को सुनिश्चित रूप से प्रभावी बनावें | 

B2T25

भाग 2 - तथ्य #25

उपरोक्त सम्बन्ध में भारत सरकार - विशेषज्ञो की कमेटी द्वारा मूक सृष्टि के हित में अन्य सुझाव व उपरोक्त तथ्यों का और अधिक स्पष्टीकरण कर सकती है। जैसे - सक्षमतंत्र में एक के स्थान पर अधिक सदस्य होने चाहिए । इस प्रकार विशेषज्ञों की कमेटी में मेनका गांधी को उपरोक्त विषय की जानकारी के आधार पर उचित स्थान मिलना चाहिए - स्थापित विधि - कमेटी के सुझाव - नये दिशा-निर्देशों की पूर्ण जानकारी, संबंध विभागों - पुलिस के साथ शिक्षण संस्थाओं - आम नागरिको भी होनी चाहिए - चूंकि ऐसे विषयों में जनता का सहयोग अनिवार्य रूप से अपेक्षित है। अतः शिकायत मिलने पर कोई भी सक्षम तंत्र - पुलिस इत्यादि तत्काल कार्यवाही करने को ‘‘बाध्य’’ होनी चाहिए- ऐसी व्यवस्था न होने पर विषय का औचित्य अर्थहीन हो जाता है।

B2T26

भाग 2 - तथ्य #26 अनुतोष 

उपरोक्त विषय मे सम्पूर्ण विषयवस्तु स्वयं में अनुतोष है- फिर भी मूक सृष्टि के लिये विधि व न्याय के आधार पर अनुतोष सक्षमतंत्र पर निर्भर है । अप्रत्यक्ष ही सही - किन्तु भारतीय संविधान के अनु. 13 का ‘‘अधित्याग का सिद्धांत’’ मूक सृष्टि पर भी लागू होता है क्योंकि अनु. 48 व 51 (क) और सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के निर्णय इसका आधार है । वे अपने ऊपर होन वाले अत्याचार पर न बोल सकते है और न ही शिकायत अथवा पत्राचार कर सकतें है। अपितु 3 - 4 दिन का मूक प्राणी रोगी - भूखा - प्यासा - पीड़ायुक्त होन पर भी संक्षमतंत्र के निरीक्षण करने पर उसको कुछ भी नहीं कह सकता - प्रकृति और पार्यावरण का व मानव जीवन का महत्वपूर्ण भाग - वोट अधिकार न होने से अत्यधिक क्रूरता व तिरस्कार पूर्ण है, विशेष सम्प्रदाय के वोट पाने के लिए राष्ट्र स्तर पर राजनैतिक आकाओं द्वारा आंतकवादियों के मारे जाने पर 3 दिन खाना - पीना बन्द व नींद गायब हो जाती है और न्यायायिक जाँच की मांग करते है | इसी प्रकार और भी उच्च स्तर का नादान कुनबा है | नादान = (अबोध बालक - मुर्ख - नासमझ - समझते हुए भी नासमझी करना - साधन-साध्य का अनुचित होना - पूर्वाग्रसित व अतिआसक्त रूप में मानसिक गुलाम - राष्ट्रवाद - राष्ट्रीय संस्कृति और सांस्कृतिक धरोहर विरोधी - स्वःधर्म की त्याग स्थिति (कुल – वंश - गोत्र व धर्म के आदेश) और परिस्थिति जन्य धर्म का त्याग (किसी भी प्रकार का पद - नियुक्ति के सम्बन्ध में निष्ठावान कर्तव्य कर्म से च्युत) | शत्रुदेश का पक्षधर व मित्र देश का विरोधी अति निम्न कृत्य | द्वेष व ईर्ष्या पूर्ण अन्यो का दुष्प्रचार (समाज व संस्कृति को विभक्त करना) करना | क्षति पहुँचाना - राष्ट्रीय सम्पत्ति व सार्वजनिक सम्पत्ति को और अन्य कारणों से राष्ट्र का अहित करना (जान-माल से)| सार्वजनिक रूप से गरिमा का हनन करना (संवैधानिक पदों एवं संस्थाओं व उच्च स्तर की संस्थाओं और व्यक्तिगत रूप से अन्यों का भी)| उपरोक्त नादानी में कुछ नादान कृत्य शूकर-कूकर योनी देने वाले होते है|) ऐसी स्थिति में मूक सृष्टि के हितार्थ विधि व्यवस्था की व उसके शिकायत और निवारण विभाग की जानकारी आम जनता को अनिवार्य है। साथ ही भारतीय संविधान के मूल कर्तव्य व नीति निदेशक तत्वों में और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम व अन्य जीव अधिनियमों में मूक सृष्टि के अधिकारों का रक्षण है फिर भी  उनकी कठोरता से पालना - समग्र नई कठोर व्यवस्था और सार्वजानिक रूप से जानकारी का अभाव (संबंध सक्षमतंत्रों व आम नागरिकों में) होने से मूक सृष्टि के अधिकारों का अत्यधिक हनन हो रहा है। अतः सभी अनुतोष आप सक्षमतंत्रो पर पर निर्भर है। इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने पशु संरक्षण कानूनों को विधिमान्य घोषित कर संविधान के अनु. 48 के उपबंधों को और अधिक प्रभावी बनाया है - एक अन्य वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि “मूल अधिकार और निति निदेशक तत्व एक दूसरे के पूरक है” | इस प्रकार पर मध्यप्रदेश उच्च-न्यायलय ने जिस प्रकार मांसाहार के स्थानों का वर्गीकरण किया - उसी प्रकार एक और उच्च-न्यायलय ने मूक प्राणियों के अधिकारों को मानव श्रेणी के रूप में विधि मान्य घोषित किया |

विशेष - प्रस्तुत विषय पर बनाये जाने वाले व पूर्व के अधिनियमों में प्रथम धारा की अनिवार्यता इस प्रकार है - "किसी भी सक्षम तंत्रों - पुलिस - प्रशासन इत्यादि कोई भी हो, शिकायत करने पर - जानकारी देने पर यह कहना, आपको क्या करना है - आप हस्तक्षेप क्यों कर रहे हो - आपको क्या लेना - देना है, अपितु प्रत्येक नागरिक व व्यक्ति (विदेशी) को शिकायत व निवारण की स्थिति की जानकारी प्राप्त होने का अधिकार होना चाहिए, ऐसा न होने पर सभी सक्षम तंत्रों के जिम्मेवार अधिकारियों व कर्मचारियों को अपराध व लापरवाही के आधार पर वेतनवृद्धि - पदौन्नति को दो-चार साल तक प्रतिबन्ध करें अथवा गंभीरता की स्थिति में बर्खास्त व नुकसान की वसूली इत्यादि | प्रस्तुत विषय में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम व अन्य अधिनियम का प्रयोग न हो ‘‘युक्ति-युक्त वर्गीकरण’’ करें ।

 

विशेष विशेष विशेष :- कुत्तो को पकड़कर शहर से बाहर राजमार्गों पर छोड़ना - लोकव्यवस्था के विरुद्ध (दुर्घटनाओं से जान-माल की हानि) - साथ ही वाहनों के नीचे दबकर कुत्तो की क्रूरत्तम हत्या होना - कानून और संविधान का पूर्णतः उलँघन है | अतः प्रत्येक जिला - तहसील क्षेत्र में जन सहभागिता से वैज्ञानिक विधि द्वारा रख-रखाव से परिपूर्ण स्वान घर बनाये जावें | इसके अंतर्गत संख्या नियंत्रण का कार्यक्रम भी चलाया जावे | साथ ही पशु चोरी की विधि व्यवस्था कठोर की जावे (जुर्माना व सजा और सभी साधन और सहयोगियों के साथ) |                

 

किन्तु भारत के प्रधानकार्यकारी जी के निर्णय के पश्चात ही आगे की ----------- | 

न्याय में विलम्ब - न्याय के औचित्य को ही नष्ट कर देता है ----------------------|

न्याय होना ही प्रयाप्त नहीं - न्याय दिखना भी चाहिए ----------------------------|

।। ऊँ सनातन प्राकृत प्रकृति की जय ।।

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